Power Bank खरीदने से पहले ध्यान रखें यह 4 बातें

मौजूदा वक्त में फोन के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण फोन की बैटरी जल्दी खत्म हो जाती है. ऐसे में हम लंबे सफर पर ही नहीं औफिस जाते वक्त भी Power Bank साथ रखते हैं. हमारे फोन में कुछ ऐसे ऐप भी होते हैं, जिनके इस्तेमाल से बैटरी ज्यादा खर्च होती है. ऐसे में पावर बैंक की आवश्यकता पड़ती ही है. पावर बैंक केवल बैटरी क्षमता, साइज व रंग को देखकर न खरीदें, बल्कि कुछ अन्य चीजें हैं, जिनको ध्यान में रखना जरूरी है.

2.5 गुना ज्यादा क्षमता वाले पावर बैंक

फोन चार्जिंग के लिए पावर बैंक खरीदें, तो इस बात का जरूर ध्यान रखें कि पावर बैंक की क्षमता आपके स्मार्टफोन की बैटरी क्षमता से 2.5 गुना अधिक हो. इससे फोन तेजी से चार्ज होगा. साथ ही पावर बैंक की बैटरी भी लंबे समय तक चलेगी और आप अपने स्मार्टफोन को कई बार चार्ज कर सकते हैं. इसके साथ ही जब भी आप पावर बैंक लें, तो उसमें कितने एमएएच की बैटरी है.

यूएसबी चार्जिंग

इसके अलावा पावर बैंक के यूएसबी चार्जिंग पर भी नजर रखें. पावरबैंक खरीदते समय बैटरी की क्षमता के साथ-साथ उसकी यूएसबी चार्जिंग को भी जांच-परख कर लें, क्योंकि बाजार में मौजूद पुराने पावर बैंक केवल अपने यूएसबी केबल के साथ ही काम करते हैं. ऐसे में आपको पावर बैंक से अपने एंड्रायड फोन को चार्ज करने में काफी परेशानी होगी. ऐसे पावर बैंक आपके फोन के लिए किसी काम के नहीं होंगे.

आउटपुट वोल्टेज

पावर बैंक का इस्तेमाल करें, तो पावर बैंक के आउटपुट वोल्टेज का जरूर ध्यान रखें. यदि आपका पावर बैंक का आउटपुट वोल्टेज आपके फोन के आउटपुट वोल्टेज के बराबर नहीं है, तो फोन चार्ज नहीं होगा. ऐसे में इस बात का ध्यान रखें कि पावर बैंक का आउटपुट वोल्टेज हमेशा आपके फोन चार्जर के आउटपुट वोल्टेज के बराबर होना चाहिए. आउटपुट वोल्टेज के बराबर न होने पर आप अपने फोन के चार्जर से पावर बैंक को चार्ज भी नहीं कर पाएंगे.

डिवाइस की संख्या के आधार पर ले पावर बैंक

आजकल अधिकांश कामकाजी लोगों के पास एक से अधिक स्मार्टफोन मौजूद हैं. चार्जिंग की समस्या होने से दोनों फोन बंद न हो. इसके लिए ज्यादा क्षमता वाला पावर बैंक खरीदें. लेकिन अगर आपके पास एक ही डिवाइस है, तो कम क्षमता वाला पावर बैंक भी ले सकते हैं.

White Hair : बालों में सफेदी की समस्या

White Hair : बालों में सफेदी की समस्या

बढ़ती उम्र के साथ बालों का रंग बदलना कुदरती है. लेकिन बालों में सफेदी उम्र के किसी भी दौर में दिखायी दे सकती है. यहां तक कि किशोरों में और बीस-बाईस साल के युवाओं के बालों में भी सफेदी की झलक उभर सकती है. मनुष्‍यों के शरीर में लाखों हेयर फॉलिकल्‍स होते हैं, ये त्‍वचा की भीतरी परत पर छोटी-छोटी थैलियों जैसे होते हैं. इनसे ही बाल पनपते हैं और बालों को रंग देने वाला मेलानिन पदार्थ पैदा करने वाले पिग्‍मेंट सैल्‍स भी यहीं बनते हैं. समय के साथ, हेयर फॉलिकल्‍स अपने पिगमेंट सैल्‍स खोने लगते हैं जिसके चलते बालों की रंगत सफेद पड़ने लगती है.

विटामिन बी6, बी12, बायोटिन, विटामिन डी, या विटामिन ई में कमी की वजह से भी समय से पहल बालों में सफेदी आने लगती है.

इसके अलावा, एक और महत्‍वपूर्ण वजह होती है हमारी नस्‍ल. गोरे लोगों में समय से पहले बालों की सफेदी उनकी उम्र के दूसरे या तीसरे दशक में भी शुरू हो सकती है, जबकि एशियाई नस्‍ल के लोगों में यह 25 वर्ष के आसपास और अफ्रीकी-अमरीकी आबादी में 30 साल की उम्र से बालों का सफेद होना आम है.

बालों की सफेदी आमतौर पर आनुवांशिक होती है, लेकिन शरीर में में तनाव (ऑक्‍सीडेटिव स्‍ट्रैस) की वजह से भी समय से पहले ऐसा हो सकता है. ऑक्‍सीडेटिव स्‍ट्रैस की वजह से शरीर में असंतुलन बढ़ता है और इस स्थिति में शरीर में फ्री रैडिक्‍स के दुष्‍प्रभावों से बचाने के लिए पर्याप्‍त एंटीऑक्‍सीडेंट्स मौजूद नहीं होते. फ्री रैडिकल्‍स दरअसल, अस्थिर अणुओं को कहते हैं जिनके कारण कोशिकाओं को क्षति पहुंचती है, और इस वजह से एजिंग बढ़ती है और तथा शरीर को रोग भी आ लगते हैं.

ऑक्‍सीडेटिव स्‍ट्रैस अधिक होने से रोग बढ़ते हैं, स्किन-पिग्‍मेंटेशन कंडीशन या विटिलिगो की आशंका भी बढ़ जाती है. विटिलिगो की वजह से बालों से भी सफेदी झांकने लगती है जो कि मेलानिन कोशिकाओं के खत्‍म हो जाने या उनकी कार्यक्षमता नष्‍ट होने की वजह से होता है.

दिल्ली में सर्वश्रेष्ठ कॉस्मेटिक सर्जन डॉ.अनूप धीर यह बताते है की, सफेद बाल एक खास तरह के त्‍वचा संबंधी विकार alopecia areata के कारण भी पनप सकते हैं. इस स्थिति में सिर, चेहरे और शरीर के अन्‍य भागों से बाल झड़ते हैं और जब दोबारा बाल बढ़ते हैं तो मेलानिन की कमी के कारण सफेद हो जाते हैं.

जीवन में तनाव का होना, जो कि किसी चोट की वजह से हो सकता है, भी समय से पहले बालों को सफेद करने का कारण बन सकता है. इसी तरह, धूम्रपान करने वाले लोगों में 30 साल की उम्र से पहले ही बालों के सफेद होने की संभावना दो से ढाई गुना तक बढ़ जाती है. केमिकल हेयर डाइ और हेयर प्रोडक्‍ट्स, यहां तक कि शैंपू वगैरह के इस्‍तेमाल से भी बालों का समय पूर्व सफेद होना देखा गया है. इन प्रोडक्‍ट्स में नुकसान पहुंचाने वाले तत्‍व मौजूद होते हैं जो मेलानिन की मात्रा घटाते हैं. अधिकांश डाइ में मौजूद हाइड्रोजन पेरॉक्‍साइड ऐसा ही एक खतरनाक रसायन है. इनका अत्‍यधिक इस्‍तेमाल आपके बालों को ब्‍लीच करता है जिसके परिणामस्‍वरूप ये सफेद हो जाते हैं.

याद रखिए कि अगर बालों में सफेदी का कारण आनुवांशिकी या बढ़ती उम्र है, तो आप किसी इसे रोक नहीं सकते. लेकिन अगर बालों में सफेदी का कारण कोई मेडिकल कंडिशन है तो आप दिल्ली में प्लास्टिक सर्जन के द्वारा हेयर ट्रीटमेंट से बालों का कलर पिग्‍मेंटेशन लौटा सकते हैं.

इसी तरह, अगर खुराक और विटामिन की कमी के कारण बाल असमय सफेद हो रहे हैं, तो इन्‍हें दुरुस्‍त कर भी समस्‍या को गंभीर होने से रोका जा सकता है. इसके लिए सही उपचार काम आता है और बालों को सफेद होने से पूरी तरह रोका जा सकता है तथा कुछ मामलों में तो इस प्रक्रिया को रिवर्स भी किया जा सकता है. संतुलित खुराक और बालों की अच्‍छी देखभाल भी मददगार होती है. लेकिन कुछ मामलों में यह प्रक्रिया पूरी तरह से अपरिवर्तनीय भी होती है.

नियमित रूप से प्राकृतिक उपाय बालों के सफेद होने की प्रक्रिया को कुछ हद तक धीमा कर सकते हैं या बहुत मुमकिन है कि इसे रिवर्स भी कर सकते हैं. लेकिन एक समय तो ऐसा आता ही है कि हरेक के बाल सफेद होते हैं और व्‍यक्ति विशेष को ही यह तय करना होता है कि वह बालों को सफेद रखना चाहते हैं या फिर फिर उम्र बढ़ने की इस कहानी को कुछ समय तक के लिए रोक देना चाहते हैं.

कुछ दुर्लभ मामलों में, इंफ्लेमेट्री साइटोकाइंस जैसे कि सोरालेन और साइक्‍लोस्‍पोरिन (psoralen and cyclosporin) को लक्षित करने या मेलानोजेनेसिस को उत्‍प्रेरित करने वाली दवाएं जैसे कि इमेटिनिब या लेटेनोप्रोस्‍ट (imatinib or latanoprost) से सफेद बालों में रीपिग्‍मेंटेशन भी देखा गया है.

Acne : अब चेहरे पर नहीं होंगे एक्‍ने के दाग

एक्ने निकल आना बुरी खबर है लेकिन उनके खत्म होने के बाद बचे रह जाने वाले दाग और भी ज्यादा परेशान करने वाले होते हैं. ये दाग तब होते हैं जब कोई एक्ने त्वचा के भीतर गहराई तक पहुंच जाता है और भीतर के टिश्यू को नुकसान पहुंचाता है. ​हर प्रकार के दाग धब्बे पर उपचार का अलग—अलग असर होता है और कुछ उपचार अन्य के मुकाबले कुछ खास प्रकार के धब्बों पर ज्यादा प्रभावी होते हैं.

एक्ने के बाद के पड़े निशान दूर तक फैले यू आकार के बॉक्सकर स्कार, छोटे और गहरे वी आकार के धब्बे या रोलिंग स्कार्स कहलाने वाले घुमावदार किनारों वाले हो सकते हैं.

जैसा कि नाम से पता चलता है कि आइस पिक स्कार्स त्वचा में बहुत गहरे तक जगह बना चुके छिद्र होते हैं जिसे देखकर ऐसा लगता है कि त्वचा एक आइस पिक के साथ पंक्चर किए गए हैं. जब शरीर में किसी चोट की वजह से अ​धिक मात्रा में कोलाजेन बनने लगता है तो आइस पिक्स जैसे परेशान करने वाले स्कार्स बन सकते हैं.

उपचार में दिल्ली के प्लास्टिक सर्जन डॉ.अनूप धीर के द्वारा पंच नामक एक छोटे उपकरण से स्कार को काटना और उसकी वजह से बने छिद्र पर टांके लगाना शामिल है लेकिन यह सिर्फ अकेले आइस पिक स्कार्स पर ही काम करता है. अगर कई आइस पिक स्कार्स हों तो एक्ने स्कार उपचार डिवाइसें जिनमें रेडियोफ्रिक्वेंसी एनर्जी का इस्तेमाल होता हो तो वे अच्छा विकल्प साबित हो सकते हैं. ये उपचार भीतर कोलाजेन बनाने में मदद करते हैं और कोलाजेन स्कार्स को भीतर से भरने में मदद करता है. लेजर, रेडियोफ्रिक्वेंसी या एक अल्ट्रासाउंड डिवाइस से एनर्जी—बेस्ड स्किन रिसरफेसिंग बॉक्सकर स्कार्स को भरने में काम आ सकता है क्योंकि ये सभी त्वचा के भीतर कोलाजेन बनाने के लिए काम करता है. स्कारिंग के विस्तार, रासायनिक पील्स के आधार पर उपचारों की श्रृंखला की जरूरत होती है जो उसे फैलने से रोकने में मदद करते हैं. इनमें से किसी भी प्रक्रिया के बाद रेटिनॉयड क्रीम का इस्तेमाल करने से कोशिकाओं की संख्या बढ़ती है और कोलाजेन में भी इजाफा होता है जिससे बेहतर परिणाम सामने आते हैं.

फ्रैक्शनल नॉन—एब्लेटिव लेजर्स नई प्रौद्योगिकी है और पुराने लेजर्स के मुकाबले उनमें कम समय लगता है इसका मतलब है कि सर्जन पहले से अधिक प्रभावी हो सकता है और कम उपचार के साथ ही परिणाम देखने को मिल सकते हैं. पुराने एब्लेटिव लेजर्स से स्किन की बाहरी सतह नष्ट हो जाती थी जिसके ठीक होने में अधिक समय लगता है लेकिन ये नॉन—एब्लेटिव लेजर्स फ्रैक्सेल की तरह होते हैं जो त्वचा की बाहरी सतह से होकर गुजरता है जो बगैर नुकसान पहुंचाए गहरे टिश्यू को गरमाहट देता है, कोलाजेन को बढ़ावा देता है और कम समय में स्कार को खत्म करता है.

दिल्ली में सर्वश्रेष्ठ कॉस्मेटिक सर्जन डॉ.अनूप धीर के द्वारा अपनाई गई, माइक्रोनीडलिंग एक नॉन—सर्जिकल तकनीक है जो मैकेनिकल दबाव का इस्तेमाल त्वचा पर बारीक नीडल की मदद से करता है जिससे कोशिकाओं के प्रसार को बढ़ावा मिलता है. इन नई कोशिकाओं के बनने से नया कोलाजेन और इलास्टिन टिश्यू बनते हैं जिससे बारीक रेखाएं, झुर्रियां, खिंचाव/स्कार के निशान, ​पिगमेंटेशन या त्वचा की अन्य गड़बड़ियों में सुधार करता है. नई कैपिलरियां बनाकर यह खून की आपूर्ति में भी सुधार करता है.

रोलिंग स्कार्स को प्लेटलेट—रिच प्लाज्मा पीआरपी के साथ माइक्रोनीडलिंग के बाद माइक्रोफैट इंजेक्शन के साथ ठीक किया जा सकता है, माइक्रोनीडलिंग से त्वचा पर छोटे घाव हो जाते हैं. इसके बाद शरीर का प्राकृतिक, नियंत्रित सुधार प्रक्रिया शुरू होती है जिससे आतंरिक तौर पर कोलाजेन बनने शुरू हो जाते हैं.

माइक्रोनी​डलिंग भी एक महत्वपूर्ण एक्ने स्कार उपचार है क्योंकि यह त्वचा के भीतर चैनलों को खोलते हैं जो पीआरपी—सुधार करने वाले कारकों को आपके रक्त और त्वचा की देखभाल करने वाले उत्पादों को त्वचा के भीतरी सतह तक पहुंचने का मौका देते हैं जहां इनकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है. पीआरपी को आपके खून की कुछ मात्रा लेकर प्लेटलेट युक्त प्लाज्मा को अलग कर तैयार किया है जिसमें प्रोटीन और वृद्धि के अन्य कारक होते हैं और उन्हें स्कार में दोबार इंजेक्ट कर दिया जाता है. इसका उद्देश्य त्वचा में सुधार करने के स्तर तक पंहुचाने के लिए गड़बड़ी के भीतर कोलाजेन की सतह तैयार करना है. आपको कई प्रकार के उपचारों की जरूरत पड़ सकती है लेकिन इसके परिणाम के लिहाज से उपयोगी हैं.

हाइपरपिगमेंटेशन से एक्ने स्कार्स का उपचार हाइड्रोक्विनोन और सनब्लॉक के साथ है, हाइड्रोक्विनोन एक टॉपिकल ब्लीचिंग एजेंट है जिसका इस्तेमाल आप सीधे गहरे धब्बे पर कर सकते हैं. सनब्लॉक महत्वपूर्ण है क्योंकि सूरज की रोशनी में हाइपरपिगमेंटेशन खराब हो सकता है. अन्य लोकप्रिय उपचारों में ग्लाइकोलिक एसिड क्रीम शामिल हैं जो त्वचा और गहरे धब्बों की बाहरी सतह को खत्म कर सकते हें ओर रेटिनॉयड त्वचा की कोशिकाएं बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं.

आपको इन सभी कारकों पर गौर करना होता है और मैं हमेशा मरीजों को सलाह देता हूं कि कई प्रकार के उपचारों की जरूरत होती है और एक या दो वर्षों बाद 50 फीसदी सुधार की उम्मीद की जा सकती है.

गरीबी और तंगहाली पर भारी पीरियड्स

इंगलिश की एक मशहूर कहावत है, ‘हैल्थ इज वैल्थ’. मतलब, सेहत ही कामयाबी की कुंजी है. पर अगर हम गरीब, तंगहाल लोगों की जांचपड़ताल कर के देखेंगे तो पाएंगे कि शायद वे अपनी जरूरी चीजों का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं.

सब से पहले गरीब समुदाय के लोग अपने पेट की पूजा करते हैं, फिर रहने का जुगाड़ देखते हैं और इस सब में सेहत का तो दूरदूर तक कोई नाम ही नहीं होता है.

गरीबों को जितने पैसे मिलते हैं, वे खाने और रहने में ही खर्च हो जाते हैं. सब से ज्यादा औरतें इन हालात की शिकार बनती हैं, जबकि औरतों को मर्दों से ज्यादा डाक्टरी मदद की जरूरत पड़ती है, चाहे वह जंचगी हो या बच्चे को दूध पिलाना या फिर माहवारी का मुश्किल समय.

माहवारी के दौरान कम आमदनी वाले या गरीब परिवार की औरतें ज्यादा संघर्ष करती हैं. औरतें ऐसे समय में होने वाले दर्द के लिए दवाएं, यहां तक कि अंदरूनी छोटे कपड़ों की कमी के चलते एक जोखिमभरी जिंदगी जीती हैं.

गरीबी इनसान को अंदर तक तोड़ देती है. न जाने कितनी ही औरतें घातक बीमारियों की शिकार बनती हैं और उन की जिंदगी तक खत्म हो जाती है, जो बहुत तकलीफदेह है. कई बार ज्यादा खून बहने से औरतों को कई समस्याएं पैदा हो जाती हैं. पैसों की कमी के चलते उन्हें पूरी तरह से डाक्टरी इलाज तक नहीं मिल पाता है.

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गरीबी में माहवारी एक बड़ी समस्या है. इस बारे में मैं ने 20 औरतों से सवाल पूछने की तैयारी की, लेकिन महज  2 औरतों ने सवाल पूछने की इजाजत दी. मैं ने उन से कहा कि मैं अपनी महिला साथी को भी लाया हूं, आप अगर उन के साथ बात करने में सहमत हैं तो वे आप से बात कर सकती हैं, मगर उन्होंने साफ मना कर दिया.

जयपुर की घाटगेट कच्ची बस्ती में रहने वाली बबीता बताती हैं, ‘‘मैं महीने के दिनों में काफी ज्यादा दर्द महसूस करती हूं और साथ ही साथ पति और सासससुर की  झाड़ भी  झेलती हूं. इस से अच्छा तो मैं पेट से होने में महसूस करती हूं, जब मेरा महीना नहीं आता है.

‘‘मैं महीने के आने से इतना डर गई हूं कि मु झे अगर पूरे साल महीना न  आए और मैं पेट से रहूं तो मु झे कोई परेशानी नहीं.’’

जब रबीना नाम की एक औरत से पूछा गया कि वे माहवारी के दौरान किस तरह अपनी देखभाल करती हैं? तो उन्होंने बताया, ‘‘मेरे पास अंदर पहनने के लिए बस एक ही लंगोटी है. मेरे घर में पैसों की कमी की वजह से खाना तो पेटभर मिल नहीं पाता है, ऐसे में हम अंदर पहनने वाले कपड़े कहां से लेंगे.

‘‘पैड तो दूर की बात है, उसे बिलकुल छोडि़ए सर. खाने को 2 रोटी मिल जाएं, वही बहुत हैं. मैं डरती हूं कि मेरी लड़की की उम्र अभी 9 साल है. जब उस की माहवारी शुरू होगी, तो मैं उसे कैसे संभालूंगी?

‘‘मेरे पेशाब की जगह पर बड़ेबड़े फोड़े हो जाते हैं, जिन में से गंदी बदबू आती है. मेरा शौहर तो मेरे पास आना दूर मेरे हाथ का बना खाना नहीं खाता. मैं एक ही कपड़ों में 5-7 दिन गुजारती हूं. माहवारी के दिनों में मैं ढंग से खाना भी नहीं खा सकती. मु झे चक्कर आते हैं.’’

‘‘हमें तो ओढ़नेबिछाने को कपड़े मिल जाएं वही बहुत है. ‘उन दिनों’ के लिए कपड़ा कहां से जुटाएं…’’ यह कहते हुए जयपुर के गलता गेट के पास सड़क पर बैठी सीमा की आंखों में लाचारी साफ देखी जा सकती है.

सीमा आगे कहती हैं, ‘‘हम माहवारी को बंद नहीं करा सकते, कुदरत पर हमारा कोई बस नहीं है. जैसेतैसे कर के इसे संभालना ही होता है. इस समय हम फटेपुराने कपड़ों, अखबार या कागज से काम चलाते हैं.’’

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सीमा के साथ 3 और औरतें बैठी थीं, जो मिट्टी के छोटे से चूल्हे पर आग जला कर चाय बनाने की कोशिश कर रही थीं. जब उन के बच्चे आसपास से सूखी टहनियां और पौलीथिन ला कर चूल्हे में डालते थे, तो आग की लौ थोड़ी तेज हो जाती थी.

वैसे, थोड़ी बातचीत के बाद ये औरतें सहज हो कर बात करने लगी थीं. वहीं बैठी रीना ने मुड़ कर अगलबगल देखा कि कहीं कोई हमारी बात सुन तो नहीं रहा, फिर धीमी आवाज में बोलीं, ‘‘मेरी बेटी तो जिद करती है कि वो पैड ही इस्तेमाल करेगी, कपड़ा नहीं. पर जहां दो टाइम का खाना मुश्किल से मिलता है और सड़क किनारे रात बितानी हो, वहां हर महीने सैनेटरी नैपकिन खरीदना हमारे बस का नहीं.’’

थोड़ी दूर दरी बिछा कर लेटी पिंकी से बात करने पर उन्होंने कहा, ‘‘मैं तो हमेशा कपड़ा ही इस्तेमाल करती हूं. दिक्कत तो बहुत होती है, लेकिन क्या करें… ऐसे ही चल रहा है. चमड़ी छिल जाती है और दाने हो जाते हैं. तकलीफें बहुत हैं और पैसों का अतापता नहीं.’’

ऐसी बेघर, गरीब और दिहाड़ी पर काम करने वाली औरतों के लिए माहवारी का समय कितना मुश्किल होता होगा? इस सवाल पर बात करते हुए जयपुर के महिला चिकित्सालय में तैनात गायनी कृष्णा कुंडरवाल बताती हैं, ‘‘मैं जानती हूं कि गरीब औरतों के पास माहवारी के दौरान राख, अखबार की कतरनें और रेत का इस्तेमाल करने के सिवा और कोई दूसरा रास्ता नहीं है. पर यह सेहत के लिए कितना खतरनाक है, बताने की जरूरत नहीं है.’’

वहीं दूसरी ओर नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे (2019-20) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, गांवदेहात के इलाकों में  48.5 फीसदी औरतें और लड़कियां सैनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं, जबकि शहरों में 77.5 फीसदी औरतें और लड़कियां ऐसा करती हैं. कुलमिला कर देखा जाए, तो 57.6 फीसदी औरतें और लड़कियां ही इन का इस्तेमाल करती हैं.

औरतों से बात करने के बाद हमें  2 ऐसी समस्याओं का पता लगा, जिन से शायद हर कोई अनजान ही होगा. इस सर्वे को करते समय कई बातें सीखने को मिलीं. यहां पर सब से ज्यादा जरूरी है लोगों को जागरूक करना. इस की साफसफाई पर ध्यान देना और उपाय बताने के लिए लोगों को तालीम देना.

अगर लोगों को माहवारी के बारे में जागरूक करना शुरू नहीं किया गया, तो इस के अंजाम बहुत ही दयनीय हो सकते हैं.

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माहवारी के समय सही से साफसफाई का पालन न करना कई तरह की बीमारियों को न्योता देता है.

दरअसल, जिस ने गरीबी के साथ जिंदगी गुजारी है, उस को मालूम होता है कि मूलभूत सुविधाओं के बिना जिंदगी कितनी मुश्किल है.

संविधान के मुताबिक सभी को ये सुविधाएं मिलनी चाहिए, लेकिन यहां ठीक से खाना तक तो मिलता नहीं है, सैनेटरी पैड कहां से मुहैया होंगे.

दिमागी नामर्दी से बचें

दरअसल, जब विशाल 14-15 साल का किशोर था, तभी उसे हस्तमैथुन करने की आदत लग गई थी. हालांकि इस उम्र में ऐसा करना लाजिमी है और आमतौर पर सभी लड़के इसी तरीके से अपनी सैक्स भावना को शांत करते  हैं, लेकिन सुहागरात पर अपराधबोध की वजह से विशाल में वह जोश नहीं आया और न ही अंग में तनाव.

सुहागरात पर मिली नाकामी का उस के मन में इस कदर डर बैठ गया कि वह अपनेआप को नामर्द समझने लगा. वह अपनी पत्नी के करीब जाने से कतराने लगा. रात होते ही उसे घबराहट होने लगती. वह पत्नी के सोने का इंतजार करने लगता.

विशाल की शादी हुए एक महीना बीत चुका था, लेकिन वह शारीरिक संबंध नहीं बना पाया था. एक दिन उस ने मन पक्का कर के अपने एक खास दोस्त को यह समस्या बताई.

दोस्त को लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है, इसलिए उस ने सलाह दी कि वह किसी माहिर डाक्टर को बता कर वह अपना चैकअप कराए, ताकि पता चले कि समस्या क्या है.

विशाल डाक्टर के पास गया. डाक्टर ने उस का अच्छी तरह चैकअप किया. कई जांच करने के बाद उसे शारीरिक तौर पर एकदम सही बताया यानी वह मर्द है और उस में ऐसी कोई कमी नहीं, जो सैक्स करने में बाधक हो.

डाक्टर ने विशाल को सलाह दी कि उस की समस्या जिस्मानी नहीं, बल्कि दिमागी है यानी तन से तो वह मर्द है, लेकिन मन से नामर्द, इसलिए उसे किसी माहिर मनोचिकित्सक से काउंसलिंग कराने को कहा.

विशाल उस मनोचिकित्सक के पास गया. काउंसलिंग के दौरान उस ने मनोचिकित्सक के सभी सवालों के जवाब दिए और कुछ सवाल अपनी तरफ से किए.

मनोचिकित्सक ने उस से कहा, ‘‘तुम शारीरिक रूप से पूरी तरह सेहतमद हो यानी मर्द हो, लेकिन पत्नी के पास जाते ही तुम्हारे मन में हस्तमैथुन करने का अपराधबोध आ जाता है, जो तुम्हें मन से नामर्द बना देता है.’’

मनोचिकित्सक ने विशाल को सलाह दी कि वह इस तरह का अपराधबोध छोड़ दे. यह तो एक सहज और सामान्य प्रक्रिया है. इस बारे में ज्यादा सोचना नहीं चाहिए. बीती बातों का अपराधबोध पालने की कोई तुक नहीं है. लिहाजा, यह डर अपने दिमाग से निकाल दे.

मनोचिकित्सक के साथ काउंसलिंग के बाद जब विशाल अपनी पत्नी के करीब गया तो उस के तनमन में वही सब अहसास हुआ, जो एक मर्द को होना चाहिए. उस रात उस की मर्दानगी जाग उठी और वह उस में पूरी तरह कामयाब रहा. इस के बाद उस की शादीशुदा जिंदगी आम जोड़े की तरह सुख से भरी हो गई.

विशाल की तरह अनेक नौजवान ऐसे हैं जो अपने द्वारा किए गए हस्तमैथुन या स्वप्नदोष की वजह से आत्मग्लानि से ग्रस्त हैं, जो उन्हें दिमागी तौर पर नामर्द बना देती है.

ऐसे ही एक नौजवान को हफ्ते में एकाध बार स्वप्नदोष होता था और इस वजह से वह खुद को नामर्द समझ रहा था. जब वह डाक्टर के पास गया तो उस की सोच गलत साबित हुई.

डाक्टर ने बताया कि किशोरावस्था में हर लड़के में वीर्य बनना शुरू हो जाता है, जो लगातार जारी रहता?है. जब वीर्य एक मात्रा से ज्यादा हो जाता है, तो वह अपनेआप निकल जाता है. जब कोई लड़का उत्तेजक सपना देखता है, तो उस का वीर्य गिर जाता है. इसे ही स्वप्नदोष कहते हैं.

स्वप्नदोष होना कोई बीमारी नहीं है, बल्कि यह एक कुदरती प्रक्रिया है. इस से किसी तरह की कमजोरी नहीं आती और न ही नामर्दी होती है.

हस्तमैथुन को ले कर कई गलत सोच फैली हुई हैं, जैसे इस से  कमजोरी आती है, शादी के बाद पत्नी को संतुष्ट नहीं कर पाएगा, अंग टेढ़ा हो जाएगा वगैरह. यह भी एक गलत सोच है कि खून की 50-100 बूंद  से वीर्य की एक बूंद बनती है, जबकि वीर्य का खून से कोई लेनादेना ही  नहीं होता.

हस्तमैथुन और स्वप्नदोष के बारे में गलत सोच उन लोगों ने फैलाई है, जो इसे नामर्दी की वजह बना कर पैसा कमाना चाहते हैं.

ऐसे नीमहकीमों के इश्तिहार वगैरह टैलीविजन और अखबारों में काफी देखे जा सकते हैं. कुछ इश्तिहार नामर्दी को दूर करने वाली दवाओं के होते हैं. इन के झांसे में आने से बचना चाहिए.

कुछ किशोर गंदी संगत में पड़ कर समलैंगिक मैथुन यानी गुदा मैथुन करने की आदत पाल लेते हैं. समलैंगिक संबंधों का भी अपराधबोध दिमागी रूप से नामर्द बना देता है.

औरत के पास जाने पर संबंध बनाने में नाकाम होना दिमागी वजहों से होता है, इसलिए पहले बनाए गए समलैंगिक संबंधों को भूल जाएं. यकीन मानिए. आप अपनी पत्नी के सामने पूरे मर्द साबित होंगे.

कुछ नौजवान शादी से पहले सैक्स वर्कर्स से संबंध बनाने की आदत पाल लेते हैं. शादी के बाद पत्नी से संबंध बनाने की बारी आती है, तो उन्हें डर लगता है कि कहीं उन की पोल खुल न जाए. उन्हें अपना डर दूर कर लेना चाहिए. शादी के पहले वे मर्द थे, तो शादी के बाद नामर्द कैसे हो सकते हैं?

दरअसल, जोश या तनाव आना दिमागी सोच पर निर्भर करता है. पत्नी के साथ सैक्स करते समय पहले  बनाए गए संबंधों का खयाल दिमाग में न लाएं.

जब किसी मर्द का वीर्य सैक्स शुरू करने से पहले या तुरंत बाद निकल जाए, तो उसे शीघ्रपतन कहा जाता है. इस के साथ भी कई भ्रांतियां जुड़ी हुई हैं, जैसे उस की सैक्स की ताकत कम है, वह सैक्स नहीं कर सकता या पत्नी को संतुष्ट नहीं कर पाएगा.

यदि ऐसा होता है, तो अपनेआप को नामर्द न समझें. जब मर्द बहुत ज्यादा जोश में होता है, तो उस का वीर्य जल्दी गिर जाता है. इस से कतई परेशान न हों.

कुछ नौजवान अपने अंग का छोटा होने की वजह से अपने को नामर्द मान बैठते हैं, जबकि यह सोच गलत है. तनाव में आया 3 इंच का अंग सामान्य माना जाता है, जो सैक्स करने व पत्नी  को पूरा सुख पहुंचाने के लिए काफी  है, इसलिए इस बात को ले कर चिंतित न हों.

कुछ इश्तिहारों में अंग बड़ा करने की दवा, तेल व उपकरणों के बारे में देखा जा सकता है. इन में कोई सचाई नहीं होती. अंग को किसी भी तरीके से बड़ा नहीं किया जा सकता है. इस के लिए किसी हकीम या तंबू वाले के पास मत जाइए, क्योंकि ये लोग आप को बेवकूफ बना कर खुद पैसा कमाते हैं. ऐसी कोई दवा आज तक नहीं बनी है, जिसे खा कर अंग की लंबाई बढ़ जाती है. वैसे भी हर किसी के अंग की लंबाई अलगअलग होती है.

दरअसल, नामर्द होने का मतलब है कि आदमी सैक्स संबंध बनाने में नाकाम है, चाहे वह संबंध बनाना चाहता हो. इस हालत में आदमी का अंग तनाव में नहीं आता या सिर्फ थोड़ी देर के लिए ही आता है.

किसी आदमी के नामर्द होने की  3 वजहें हैं, प्रजनन अंग में विकार, नशे की दवाएं या शराब का असर. तीसरी वजह में आदमी मानसिक तौर पर नामर्द होता है. ज्यादातर लोग इस हालात में ही होते हैं.

अगर कोई यह सोच ले कि वह सैक्स करने में नाकाम है, तो वह कभी कामयाब नहीं होगा. यह तो वही  बात हुई कि कोई सैनिक लड़ाई के मैदान में लड़ने से पहले ही हथियार डाल दे. ऐसे में भला वह जीत कैसे सकता है? लिहाजा, नामर्द होने का वहम मन से निकाल दें. अगर कोई दिक्कत है, तो हमेशा माहिर डाक्टर से ही सलाह लें.

सेक्स समस्याओं पर खुलकर बात करें लड़के

बात भी सही है पर सेक्स से जुड़ी बीमारियों के बारे में किसी अपने से बात करना इतना आसान नहीं है, कम से कम जवान होते लड़कों के लिए. अब संजय को ही लीजिए, उस ने हाल में आई मूंछों को ताव देते हुए एक सेक्स वर्कर से संबंध बना लिए और कंडोम का भी इस्तेमाल नहीं किया. इस के बाद उसे बीमारी हो गई. वह किसी माहिर डॉक्टर के पास नहीं गया और किसी तंबू वाले नीमहकीम से दवा ले ली. सब से बड़ी बात तो यह कि संजय ने अपने किसी खास दोस्त को भी इस मामले में कुछ नहीं बताया, घर वालों से तो दूर की बात है.

नीमहकीम ने संजय को जम कर लूटा और बीमारी भी बढ़ती गई. हार कर वह डॉक्टर के पास गया और अपनी बीमारी का सही इलाज कराया.

संजय जैसे बहुत से लड़के हैं जो अपनी सेक्स समस्याओं को राज ही रखते हैं. कहीं न कहीं इस में उन का अहम आड़े आ जाता है कि भरी जवानी में अगर वे किसी से इस का जिक्र करेंगे तो उन का मजाक बनाया जाएगा. पर ऐसा होता नहीं है. अगर वे जरा सी भी दिक्कत महसूस करें तो सीधे किसी अपने से बात करें, ठीक उसी तरह जैसे कोई लड़की अपनी मां या किसी बड़ी से अपनी शारीरिक समस्याओं पर बात करती है. इस मामले में मांबेटी का रिश्ता आपस में इतना खुला होता है कि वे जिगरी सहेलियों की तरह अपनी ऐसी समस्याओं जैसे माहवारी आदि पर बेहिचक बातचीत करती हैं और समस्या को ज्यादा गंभीर नहीं होने देती हैं.

लड़कों के मामले में उन के बड़ों जैसे पिता या भाई को भी उन पर नजर रखनी चाहिए कि वे कहीं किसी सेक्स समस्या को ले कर मानसिक तनाव से तो नहीं गुजर रहे हैं या उन के किसी दोस्त से भी वे पूछ सकते हैं, क्योंकि बहुत सी बार लड़के अपने दोस्त से ऐसी समस्या को शेयर कर लेते हैं. वैसे तो जवान होते लड़कों को अपने बड़ों से ऐसा कुछ नहीं छिपाना चाहिए जो सेक्स की बीमारी से जुड़ा हो. यह उन के फायदे का ही सौदा होता है, इसलिए झिझके नहीं बल्कि किसी आम बीमारी की तरह सेक्स से जुडी बीमारी पर अपनों से बात करें और सुखी रहें.

क्या आप प्यार कर चुके है, लेकिन आप प्यार में थे लस्ट में समझ पाएं, जानिए अंतर

फिल्म ‘शुद्ध देसी रोमांस’, ‘बेफिक्रे’, ‘ओके जानू’, ‘वजह तुम हो’ आदि फिल्मों को देखने के बाद प्यार के नाम पर परोसा जाने वाला मसाला, लव, इमोशंस, इज्जत से परे केवल ‘लस्ट’ यानी सैक्स या कामुकता के आसपास दिखाया जाता है. युवकयुवती की मुलाकात हुई, थोड़ी बातचीत हुई और बैडरूम तक पहुंच गए. आज की सारी लव स्टोरी फिल्मों से ले कर दैनिक जीवन में भी ऐसी ही कुछ देखने को मिलती है. यह सही है कि फिल्में समाज का आईना हैं और निर्मातानिर्देशक मानते हैं कि आज की जनरेशन इसे ही स्वीकारती है.

आज यूथ के लिए प्यार की परिभाषा बदल चुकी है. प्यार का अर्थ जो आज से कुछ साल पहले तक एहसास हुआ करता था, उसे आज गलत और पुरानी मानसिकता कहा जाता है. ऐसे में सामंजस्य न बनने की स्थिति में ऐसे रिश्ते को तोड़ना आज आसान हो चुका है और यूथ लिव इन रिलेशनशिप को बेहतर मानने लगा है, क्योंकि शादी के बाद अगर कोई समस्या आती है, तो कानूनी तौर पर अलग होना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन यह सही है कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, कुछ अच्छा तो कुछ बुरा अवश्य होता है.

दरअसल, असल जीवन में जब युवकयुवती मिलते हैं तो उन्हें यह समझना मुश्किल होता है कि वे लव में जी रहे हैं या लस्ट में. कभीकभार वे समझते हैं कि लव में जी रहे हैं, जबकि वह लव नहीं, लस्ट होता है. जब तक वे इसे समझ पाते हैं कि उन का रिश्ता किधर जा रहा है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और रिश्ता टूट जाता है.

जानकारों की मानें तो जब आप पहली बार किसी से मिलते हैं तो पहली नजर में प्यार नहीं लस्ट होता है, जो बाद में प्यार का रूप लेता है. फिर एकदूसरे को आप पसंद कर अपने में शामिल कर लेते हैं.

एमएनसी में काम करने वाली मधु बताती है कि पहले मैं राजेश से बहुत प्यार करती थी. हम दोनों एक फैमिली फंक्शन में मिले थे. करीब एक साल बाद उस ने मुझे घर बुलाया और उस दिन हम दोनों ने सारी हदें पार कर दीं. इस तरह जब भी समय मिलता हम मिलते रहते, लेकिन जब मैं ने उस से शादी की बात कही, तो वह यह कह कर टाल गया कि थोड़े दिन में वह अपने मातापिता को बता कर फिर शादी करेगा. जब घर गया तो वहां से उस ने न तो फोन किया और न ही कोई जवाब दिया. जब मुंबई वापस आया तो उस के साथ उस की पत्नी थी.

मैं चौंक गई, वजह पूछी तो बोला कि उस के मातापिता ने जबरदस्ती शादी करवा दी है. मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई. मैं क्या कर सकती थी. उस ने कहा कि वह अब भी मुझ से प्यार करता है और उसे तलाक दे कर मुझ से शादी करेगा, लेकिन आज तक कुछ समाधान नहीं निकला.

अब मुझे समझ में आया कि यह उस का लव नहीं लस्ट था, क्योंकि अगर वह असल में प्यार करता तो किसी भी प्रकार के दबाव में शादी नहीं करता.

इस बारे में मैरिज काउंसलर डा. संजय मुखर्जी कहते हैं कि युवकयुवती का रिश्ता तभी तक कायम रहता है जब तक वह एकदूसरे को खुशी दें. प्यार में पैसा जरूरी है जो केवल 10त्न तक ही खुशी दे सकता है, इस से अधिक नहीं. प्यार भी कई प्रकार का होता है, रोमांटिक प्यार जो सब से ऊपर होता है, जिस का उदाहरण रोमियोजूलिएट, हीररांझा, लैलामजनूं आदि की कहानियों में दिखाई पड़ता है. महिलाएं अधिकतर लव को महत्त्व देती हैं जबकि पुरुषों के लिए लव अधिकतर लस्ट ही होता है. तकरीबन 75 से 80त्न महिलाएं लव और लस्ट को इंटरलिंक्ड मानती हैं. महिलाएं मोनोगेमिक नेचर की होती हैं, जबकि पुरुष का नेचर पोल्य्गामिक होता है. एक स्त्री एक साल में एक ही बच्चा पैदा कर सकती है, जबकि पुरुष 100 बच्चों को जन्म दे सकता है.

आकर्षण के बाद भी लव हो सकता है और जब आकर्षण होता है, तो उस में शारीरिक आकर्षण अधिक होता है. ये सारी प्रक्रियाएं हमारे मस्तिष्क द्वारा कंट्रोल की जाती हैं.

इस के आगे वे कहते हैं कि सबकुछ हर व्यक्ति में अलगअलग होता है. ऐसा देखा गया है कि शादी के बाद भी कुछ युवतियों में शारीरिक संबंधों को ले कर कुछकुछ गलत धारणाएं होती हैं, जिन्हें ले कर भी वे अपने रिश्ते खराब कर लेती हैं और तलाक ले लेती हैं.

लव मन की भावनाओं के साथ जुड़ता है जिस के साथ लस्ट जुड़ा होता है. लव एक मानसिक जरूरत को दर्शाता है तो दूसरा शारीरिक जरूरत को बयां करता है.

कई बार महिलाएं केवल लस्ट का अनुभव करती हैं, लव का नहीं, जिस से वे रियल प्यार की खोज में विवाहेत्तर संबंध बनाती हैं. किसी एक की कमी आप के रिश्ते को खराब करती है.

लव में सैक्सुअल कंपैटिबिलिटी होना बहुत जरूरी है. रिलेशनशिप में रहना गलत नहीं, लेकिन इस में एक तरह की सोच रखने वाले ही सफल जीवनसाथी बन पाते हैं.

लव और लस्ट के बारे में चर्चा सालों से चली आ रही है. क्या पहली नजर में प्यार होता है या वह लस्ट ही होता है? क्या अच्छा है, लव या लस्ट? हमारे आर्टिस्ट जो इन्हीं विषयों पर धारावाहिक और फिल्में बनाते हैं. आइए जानें इस बारे में उन की अपनी सोच क्या है :

अदा खान :

लस्ट पूरा शारीरिक आकर्षण है. प्यार पहली नजर में हो सकता है पर इसे पनपने में समय लगता है. दोनों ही नैचुरल हैं, पर लव की परवरिश करनी पड़ती है. जब आप किसी से प्यार करते हैं तो आप का दिल जोरजोर से धड़कता है, लेकिन मेरे हिसाब से ‘रियल सोलमेट’ के मिलने से आप शांत अनुभव करते हैं. लव और लस्ट में काफी अंतर है. लस्ट आप के सिर के ऊपर से चला जाता है, लेकिन प्यार का नशा हमेशा जारी रहता है. प्यार आप एक बार ही कर सकते हैं, लेकिन लस्ट आप बारबार कहीं भी कर सकते हैं.

श्रद्धा कपूर :

श्रद्धा कपूर बताती हैं कि लव में लस्ट होता है, लेकिन इसे सहेजना पड़ता है. मुझे कोई पहली नजर में अच्छा लग सकता है, पर प्यार हो जाए यह जरूरी नहीं. उस के लिए मुझे सोचना पड़ेगा. मैं परिवार के अलावा हर निर्णय सोचसमझ कर लेती हूं. इतना सही है कि अगर प्यार मिले तो उस में लस्ट अवश्य होगा. इस के लिए सही जांचपरख भी होगी.

पूनम पांडेय :

पूनम के अनुसार लव में 60त्न लस्ट का होना जरूरी होता है. तभी उस का मजा आता है, लेकिन इस के लिए दोनों को ही सही तालमेल बनाए रखना जरूरी है. मैं यह मानती हूं कि पहली नजर में प्यार होता है और उस के बाद लस्ट आता है.

करण वाही :

क्रिकेटर से मौडल और ऐक्टर बने करण वाही कहते हैं कि पहली नजर में अगर किसी से प्यार हो जाए तो इस से बढ़ कर और अच्छी बात कोई नहीं है. जब आप किसी से मिलते हैं तो एक अजीब तरह का आकर्षण महसूस करते हैं. हालांकि लव की परिभाषा गहन है, लेकिन यही आकर्षण लव में परिवर्तित हो सकता है. जब आप किसी से प्यार करते हैं, तो उस की हर बात आप को अच्छी लगने लगती है. लस्ट पूरा शारीरिक आकर्षण है. इस में फीलिंग्स की गुंजाइश कम होती है.

कृतिका सेंगर धीर :

टीवी अभिनेत्री कृतिका कहती हैं कि लस्ट खोखला इमोशन है, जो थोड़े दिन बाद खत्म हो जाता है, जबकि लव मजबूत, शक्तिशाली और जीवन को बदलने वाला होता है. लव से आप को खुशी मिलती है. इस से सकारात्मक सोच बनती है. मुझे इस का बहुत अच्छा अनुभव है, क्योंकि काम के दौरान मुझे सच्चा प्यार मेरे पति के रूप में निकितिन धीर से मिला.

सुदीपा सिंह :

धारावाहिक ‘नागार्जुन’ में मोहिनी की भूमिका निभा रहीं सुदीपा सिंह कहती हैं कि आजकल रिश्तों के माने बदल चुके हैं. ऐसे में सही प्यार का मिलना मुश्किल है, अधिकतर लस्ट ही हावी होता है. लस्ट हर जगह आसानी से मिल जाता है. एक  सही प्यार आप की जिंदगी बदल देता है और लस्ट आप को अधूरा कर सकता है. पहली नजर में प्यार कभी नहीं होता, लेकिन आप को एक एहसास जरूर होता है, जो समय के साथ प्रगाढ़ होता है. मुझे इस का अनुभव है. मैं युवाओं से कहना चाहती हूं कि किसी को भी अगर कोई ‘सोलमेट’ मिले तो उसे संभाल कर रखें.

लव और लस्ट में अंतर

–   लव एक प्रकार का आंतरिक एहसास है, जबकि लस्ट प्यार के साथसाथ एक शारीरिक खिंचाव भी है.

–   लव में एकदूसरे के प्रति मानसम्मान, इज्जत, ईमानदारी, विश्वसनीयता, आपसी सामंजस्य अधिक होता है, लेकिन लस्ट में चाहत, पैशन और गहरे इमोशंस होते हैं.

–   लव में एक व्यक्ति दूसरे की खुशी को अधिक प्राथमिकता देता है जबकि लस्ट थोड़े समय की खुशी देता है.

–       लव कुछ देने में विश्वास रखता है, जिस में व्यक्ति सुरक्षा का अनुभव करता है, जबकि लस्ट में अर्जनशीलता अधिक हावी रहती है, इस से असुरक्षा अधिक होती है.

–   लव समय के साथसाथ मजबूत होता है, जबकि लस्ट का प्रभाव धीरेधीरे कम होने लगता है.

–   लव का एहसास सालोंसाल रहता है जबकि लस्ट पूरा हो जाने पर भुलाया भी जा सकता है.

–    लव अनकंडीशनल होता है, जबकि लस्ट में व्यक्ति अपनी खुशी देखता है, कई बार लस्ट, लव में भी बदल जाता है पर वह लस्ट के साथसाथ ही चलता है. बाद में उस की अहमियत नहीं रहती.

लड़कों का हंसना भी है जरूरी, होते है हेल्थ को कई फायदें

हंसना या खुश रहना किसी भी इंसान के हैल्थ के लिए किसी थैरेपी से कम नहीं है. फिर चाहे आप टीवी पर कार्टून को देख कर हंस रहे हों या न्यूज पेपर के जोक पढ़कर हंस रहे हों.

 

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हंसना सेहत के लिए अच्छा है और यही बात लड़कों पर लागू होती है क्योकि ज्यादातर लड़के गंभीर ही दिखते हैं इसलिए कम हसते और कम बोलते मालूम पड़ते हैं लेकिन लड़कों का हसंना ज्यादा जरूरी है.

काम से थका आदमी अपना स्ट्रेस दूर कर सकता है, हंसने से स्ट्रेस कम होता है. इतना ही नहीं, आपकी एक हंसी स्ट्रेस को दूर करने के साथसाथ आपकी मांसपेशियों को 45 मिनट तक का आराम पहुंचाती हैं, जिससे आप रिलैक्स फील करते हैं.

हार्ट रहता है हैल्दी

जब आप हंसते हैं, तो इससे आपकी दिल की एक्सरसाइज होती है और बौडी में ब्ल्ड सर्कुलेशन अच्छी तरह से होता है. हंसने पर शरीर से एंडोर्फिन रसायन निकलता है, ये रसायन यह आपके हार्ट को मजबूत बनाता है. हंसने से हार्ट अटैक की आशंका कम हो जाती है.

ब्लड प्रेशर पर कंट्रोल

हंसने से आपकी ब्लड वैसल्स में फैलाव होगा, जिससे शरीर में खून का बहाव तेजी से होता है और इससे हार्ट चैंबर में खून का दौरा सही बना रहता है खुलकर हंसने से व्यक्ति को निगेटिव सोच नहीं आते हैं. वह दिनभर के कामकाज, पैसे कमाने का प्रेशर, बौस की फटकार, पत्नी से झगड़ा, पैरेंट्स से बहस सब भूलकर बस खुश रहता है. इसकी वजह से ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहता है.

नींद आती है अच्छी

कई बार ऐसा होता है कि आपको ठीक से नींद नहीं आती है इसका कारण आपकी बौडी में मेलाटोनिन नाम का हार्मोन कम बनता है. लेकिन आप जब हंसते है तो इससे आपके शरीर में मेलाटोनिन हार्मोन बनने लगता है, जो आपको सुकून की नींद देने में मदद करता है.

मूड बेहतर बनाता है

हंसी शरीर में सेरोटोनिन हार्मोन के लेवल को बढ़ाता है, जिससे हमारा मूड बेहतर बना रहता है और डिप्रेशन और एंग्जाइटी का खतरा कम होता है.

ध्यान रहे आप खुश रहेंगे, तो आपके आसपास के लाेग भी खुश रहेंगे, पौजिटिव माहौल में आप अच्छा सोच सकते हैं, आप लाइफ की प्रौब्लम्स को अच्छी तरह सुलझा सकते हैं, इसलिए खुलकर हंसे और जीभर कर हंसे

Psychology Sign जो बताएंगे आपका पार्टनर है कितना ‘लौयल’

एक रिलेशनशिप में ये बहुत जरूरी बात है कि आपका पार्टनर कितना सच्चा है. कितना ट्रस्ट करता है. हर कोई यही चाहता है कि उसका पार्टनर “लौयल” हो. लेकिन ये लौयल्टी कैसी दिखती है, इसे हम कैसे पहचानें? साइकोलौजी कुछ ऐसे लक्षण बताती है जिन्हें देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आपका साथी कितना लौयल है. ये वो Signs हैं जो किसी भी रिश्ते को सुपर स्ट्रौंग बनाते हैं.

 

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1. वो Sacrifices करता है

एक लौयल पार्टनर कभी भी आपके ऊपर खुद को अहमियत नहीं देगा. आपकी खुशी के लिए वो अपनी कुछ चीजों को दांव पर लगाने से भी पीछे नहीं हटेगा. ये हर बार नहीं होगा, रिश्ते में तो Give and Take होना ही चाहिए, लेकिन जब भी जरूरत पड़े वो आपके लिए खड़ा होगा.

2. वो Consistent है

एक लौयल पार्टनर वो होता है जो अपने एक्शन और जुबान में हमेशा Consistent रहता है. उस पर आप आंख बंद करके भरोसा कर सकती हैं. चाहे कोई भी सिचुएशन हो, वो हमेशा एक समान ही रहेगा.

3. वो अपनी गलतियों को एसेप्ट करता है

कोई भी Perfect नहीं होता और गलतियां होना तो Human Nature है. लेकिन एक लॉयल पार्टनर अपनी गलतियों को Accept करने से नहीं घबराता. वो सीखता है और आगे उन गलतियों को दोहराता नहीं. साथ ही, माफी मांगने में भी वो पीछे नहीं रहता.

4. आपके सपनों को Support करता है

प्यार सिर्फ एक फीलींग नहीं है, बल्कि वो एक ऐसा स्पोर्ट सिस्टम भी है जो आपको आपके सपनों को पाने में मदद करता है. एक लौयल पार्टनर आपके सपनों को इज्जत देता है.

5. वह आपको प्रेरित करता है

एक लौयल पार्टनर आपको हमेशा कंफर्ट जोन में नहीं रहने देता. वह आपको आपके कम्फर्ट जोन से बाहर निकालकर तरक्की करने के लिए आगे पुश करता है. वह आपकी कमियों को बताता है ताकि आप खुद को और बेहतर बना सकें.

हसबैंड के लिए तैयार करें 5 तरीके का लंच बौक्स

कामकाजी लाइफ में लंच बौक्स हमारे लिए बहुत अहम है. लंच बौक्स को आमतौर पर हम डिब्बा, टिफिन बौक्स कहते है. जिसे काम पर या स्कूल में ले जाया जाता है और इसका सबसे बड़ा चैलेंज घर की महिलाओं के लिए या वाइफ के लिए होता है क्योकि उनके लिए ये जरूरी है कि वे अपने हसबैंड को लंच में ऐसा क्या तैयार करके दें, जिससे पति का खाने में भी मन लगे और काम में भी. तो आज हम कुछ ऐसे लंच बौक्स में तेयार करने के लिए खाना बताएंगे. जिन्हे आप सिर्फ लंक बौक्स में अपने पति को बनाकर दें.

 

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राजमा चावल

राजमा चावल आपके डाइट में शामिल करने के लिए सबसे सही है, खासकर शाकाहारियों के लिए. ये लंच में हेसबैंड को तैयार करके देने का सही विकल्प खाना है. जिसे पेट भर कर खाया जा सकता है साथ ही बताया जाता है कि राजमा चावल वेट लौस करने में मददगार साबित होता है.

पालक बिरयानी

झटपट तैयार होने वाली पालक बिरयानी  हेल्थ में फायदेमंद है साथ ही टेस्ट भी इसका लाजवाब होता है. यकीन मानिए आपके हसबैंड डब्बा पूरा साफाचट कर के ही आएंगे.

शाही पनीर विद नान

दिल्ली की बटर नान और शाही पनीर खाने में बहुत टेस्टी लगता हैं नान को मैदा से बनाया जाता है और पनीर और नान घर में भी सबको बहुत पसन्द आते हैं बच्चो को तो बहुत ही पसंद आते हैं रोटी खाने का मन ना हो तो पनीर के साथ नान बच्चेबहुत खुश हो कर खाते हैं.

पराठा दही

गर्मियों के सीजन में दही पराठा  का स्वाद अलग ही मज़ा देता है. आपने पराठे की तो कई वैराइटीज़ ट्राई की होंगी लेकिन क्या कभी दही पराठा का मजा लिया है.

मिक्ड वेज और चपाती

मिक्स वेज सबकी पसंदीदा डिश है यह सब्जी ज्यादातर लोग चपाती के साथ ही खाना पसंद करते है. शादी पार्टियों की तो मिक्स वेज एक फेवरेट फूड डिश है.तो इसे अगर आप हसबैंड को लंच में देंगी तो काने वाला अंगूली चाटता रह जाएगा.

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