एथलीट राम बाबू : मनरेगा मजदूर से मैडल तक का सफर

4 राज्यों झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सरहदों से लगे हुए उत्तर प्रदेश के आखिरी छोर पर बसा सोनभद्र का बहुअरा गांव इन दिनों सुर्खियों में है. वाराणसीशक्तिनगर हाईवे से लगा हुआ यह गांव सोनभद्रचंदौली का सरहदी गांव भी है.

कभी नक्सलियों की धमक से दहलने वाले चंदौली के नौगढ़ से लगा हुआ यह गांव नक्सलियों की आहट से सहमा हुआ करता था, लेकिन अब यह गांव दूसरी वजह से सुर्खियों में बना हुआ है.

सिर्फ एक ही नाम के चर्चे इन दिनों हरेक की जबान पर हैं. वह नाम कोई और नहीं, बल्कि एक साधारण से गरीब आदिवासी परिवार के नौजवान रामबाबू का है. इस साधारण से लड़के ने गरीबी और बेरोजगारी को पीछे छोड़ते हुए इन्हें ढाल न बना कर, बल्कि चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए इंटरनैशनल लैवल पर अपने कामयाबी के झंडे गाड़ते हुए उन लोगों  के लिए एक मिसाल पेश की है, जो चुनौतियों से घबरा कर हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाते हैं.

चीन के हांग शहर में हुए 19वें 35 किलोमीटर पैदल चाल इवैंट में कांसे का तमगा हासिल करने वाले 24 साल के रामबाबू ने गांव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई शुरू कर नवोदय विद्यालय में इंटर तक की तालीम हासिल करने के बाद इंटरनैशनल लैवल पर छाने के लिए हर उस चुनौती का सामना किया है, जो उन राह में रोड़ा बनी हुई थी.

रामबाबू के परिवार में पिता छोटेलाल उर्फ छोटू और माता मीना देवी हैं. 2 बड़ी बहनों किरन और पूजा की शादी हो चुकी है, जबकि छोटी बहन सुमन प्रयागराज में रह कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही है.

रोजाना दौड़ने की आदत को अपनी दिनचर्या में शामिल करने के बाद रामबाबू का धावक बनने

का सफर शुरू हुआ था. सुबहशाम गांव की पगडंडियों, खाली पड़े खेतखलिहानों में दौड़ लगाने के साथसाथ वे मेहनत के कामों से जी नहीं चुराया करते थे. अपने मकसद को हासिल करने के लिए मेहनतमजदूरी से भी पैर पीछे नहीं हटाया.

इस तरह अति पिछड़े गांव से बाहर निकल कर नैशनल लैवल पर छा गए रामबाबू साल 2022 में गुजरात में हुए राष्ट्रीय पैदल चाल इवैंट में एक नए रिकौर्ड के साथसाथ गोल्ड मैडल हासिल करने में कामयाब हुए थे.

इस 35 किलोमीटर की दूरी की प्रतियोगिता को उन्होंने महज 2 घंटे, 36 मिनट और 34 सैकंड में पूरा कर अपने कामयाबी के झंडे गाड़ दिए थे.

बताते चलें कि इस के पहले यह रिकौर्ड हरियाणा के मोहम्मद जुनैद के नाम था. रामबाबू ने मोहम्मद जुनैद को हरा कर ही गोल्ड मैडल जीता था.

इस के बाद 15 फरवरी, 2023 को रामबाबू ने झारखंड राज्य की राजधानी रांची में आयोजित राष्ट्रीय पैदल चाल गेम्स में अपना ही रिकौर्ड तोड़ते हुए

2 घंटे, 30 मिनट और 36 सैकंड का एक नया रिकौर्ड कायम किया था. इस के बाद 25 मार्च, 2023 को स्लोवाकिया में 2 घंटे, 29 मिनट और 56 सैकंड में यही दूरी तय करते हुए रामबाबू ने अपने नाम एक और रिकौर्ड किया था.

गुरबत में गुजरबसर कुछ समय पहले तक रामबाबू का घरपरिवार उन सभी बुनियादी सुविधाओं से महरूम था, जिन की उसे रोजाना जरूरत होती है. पीने का पानी लाने के लिए एक किलोमीटर दूर जाना पड़ता था. आवास के नाम पर खपरैल और झोंपड़ी वाला मकान लाचार नजर आता है.

वह तो भला हो सोनभद्र के कलक्टर चंद्र विजय सिंह का, जिन्होंने राष्ट्रीय खेलों में गोल्ड मैडल हासिल करने वाले रामबाबू की कामयाबी के बाद उन के घर पहुंच कर पानी की समस्या को हल करने के लिए तत्काल हैंडपंप लगवाए जाने का निर्देश दिया था.

कलक्टर के निर्देश का असर ही कहा जाएगा कि रामबाबू के परिवार को पानी की समस्या से नजात मिल गई है. उन्होंने 10 बिस्वा जमीन भी पट्टा करने के साथसाथ आवास के लिए अलग से एक बिस्वा जमीन मुहैया कराई.

पर अफसोस यह है कि रामबाबू के परिवार को भले ही कहने के लिए कलक्टर ने आवास, खेतीकिसानी के लिए जमीन आवंटित कर दी है, लेकिन देखा जाए तो यह रामबाबू के परिवार के लिए बेकार है. वजह, जो जमीन मिली है, वह भी डूब क्षेत्र में 10 बिस्वा मिली है.

बहुअरा बंगाल में एक बिस्वा जमीन आवास के लिए मिली है. यह जमीन मार्च, 2023 में मिली थी. लेकिन लेखपाल और प्रधान ने मनमानी करते हुए बाद में दूसरी जगह नाप दी है, जहां से 11,000 पावर की टावर लाइन गुजरती है, जबकि बगल में ही ग्राम समाज की जमीन खाली पड़ी हुई है. वहां जमीन न दे कर कलक्टर के आदेश को भी एक तरह से दरकिनार करते हुए मनमानी की गई है.

दबंगों का खौफ रामबाबू का जो घर है, वह अब जर्जर हो चुका है. उन के परिवार वाले बताते हैं कि वे लोग 35 सालों से गांव में रहते आ रहे हैं. गांव के ही एक आदमी को 10 बिस्वा का पैसा आज से 25 साल पहले दिया था, इस के बावजूद वह न जमीन दे रहा है, न ही पैसा वापस कर रहा है, बल्कि दबंग लोग कच्चे घर के खपरैल को भी तोड़ देते हैं.

कई बार शिकायत करने के बाद भी अभी तक कोई सुनवाई नहीं हो पाई है, जिस से सर्दी, बरसात के थपेड़ों को सहते हुए जंगली जीवजंतुओं के डर के बीच रहने को मजबूर होना पड़ रहा है.

रामबाबू के घर तक सड़क, खड़ंजा नाली की कमी बनी हुई है. हलकी बारिश में भी पानी भरने के साथ कीचड़ में चलना दूभर हो जाता है, जबकि लिंक मार्ग से रामबाबू का घर लगा हुआ है. अगर 50 मीटर तक खड़ंजा बिछा दिया जाए, तो कीचड़ से राहत मिल जाए, लेकिन इस के लिए न तो प्रधान ने पहल की और न ही किसी और जनप्रतिनिधि ने.

वेटर और मनरेगा मजदूर

भारत में लौकडाउन के दौरान जब समूचा मजदूर तबका हलकान और परेशान हो उठा था, उस दौर में भी रामबाबू ने हिम्मत नहीं हारी थी. साल 2020 में जब वे भोपाल में प्रैक्टिस कर रहे थे, तब लौकडाउन  के दौरान वे गांव लौट आए थे. वहां मातापिता के साथ मिल कर मनरेगा के तहत मजदूरी किया करते थे. इस के पहले वे वाराणसी में एक होटल में वेटर का भी काम कर चुके हैं.

रामबाबू भारतीय सेना में हवलदार हैं. उन का अगला टारगेट पैरिस ओलिंपिक, 2024 में तमगा हासिल करना है.

फल बेचने वाले की बेटी चमकी

सोनभद्र के रामबाबू के साथ ही जौनपुर जिले के रामपुर विकास खंड क्षेत्र के अंतर्गत सुलतानपुर गांव की रहने वाली ऐश्वर्या ने भी गोल्ड मैडल हासिल कर अपने जिले का मान बढ़ाया है.

हालांकि ऐश्वर्या और उन के मातापिता मुंबई में रहते हैं, फिर भी उन के गांव में उन की कामयाबी के चर्चे हर जबान पर होते रहे हैं.

ऐश्वर्या के पिता कैलाश मिश्रा मुंबई में रह कर फल बेचने का कारोबार करते हैं. उन की बेटी ऐश्वर्या ने चीन में एशियन गेम्स में गोल्ड मैडल जीता है. ऐश्वर्या का जन्म व पढ़ाईलिखाई मुंबई में ही हुई है. उन के परिवार वाले बताते हैं कि इस की तैयारी ऐश्वर्या पिछले 11 साल से कर रही थीं.

देश के लिए ऐश्वर्या ने यह चौथा मैडल जीता है. सब से पहले वे थाईलैंड में पहला मैडल जीती थीं. ऐश्वर्या की जीत पर प्रधानमंत्री ने भी ट्वीट कर के बधाई दी थी.

नोवाक जोकोविच: खिताब के साथ दिल भी जीता

आज के महान लौन टैनिस खिलाड़ी नोवाक जोकोविच के बारे में बात करने से पहले साल 1995 के उस ऐतिहासिक मैच की बात करते हैं, जिस ने हर दर्शक को इमोशनल कर दिया था. आस्ट्रेलियन ओपन टूर्नामैंट का वह क्वार्टर फाइनल मैच पीट संप्रास और जिम कोरियर के बीच खेला गया था, जो तब के दिग्गज खिलाड़ी माने जाते थे.

अगर स्वभाव की बात करें तो हम पीट संप्रास को ‘लौन टैनिस का सचिन तेंदुलकर’ कह सकते हैं, जो कोई फंसा हुआ पौइंट जीतने के बाद भी ज्यादा खुश नहीं हुआ करते थे, पर उस मैच में वे किसी बच्चे की तरह फूटफूट कर रोए थे, लेकिन अपनी हार पर नहीं, बल्कि वह मैच तो उन्होंने बड़े ही शानदार तरीके से जीता था और शायद अपनी जिंदगी का सब से बेहतरीन खेल उस में दिखाया था.

अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्या हाई वोल्टेज ड्रामा उस हरे मैदान पर हुआ था. दरअसल, शुरुआत में वह मैच जिम कोरियर की झोली में गिरता दिखाई दिया था, क्योंकि पहले 2 सैट वे 7-6 और 7-6 से जीत चुके थे और तीसरा सैट जीतते ही वे पीट संप्रास को टूर्नामैंट से बाहर कर देते.

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लेकिन पहले 2 सैट हारने के बाद पीट संप्रास ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी और अगले 2 सैट 6-3 और 6-4 से अपने नाम कर लिए. पर जैसे ही 5वां और फाइनल सैट शुरू हुआ, तो अपनी सर्विस के साथसाथ पीट संप्रास लगातार रोते दिखाई दिए. इतना ज्यादा कि वे कभी अपने दाएं कंधे से आंसू पोंछते तो कभी बाएं कंधे से. मैच के बीच में आंसुओं की बहती धार को रोकने के लिए उन्होंने अपना तौलिया भी इस्तेमाल किया. तब तक दर्शक भी गमगीन हो गए थे, पर समझ नहीं पाए थे कि माजरा क्या है.

दरअसल, इस टूर्नामैंट से कुछ समय पहले ही पीट संप्रास के कोच टिम गुलकिसन को ब्रेन ट्यूमर होने की खबर आई थी, जिस से पीट संप्रास बहुत दुखी थे. पर जिम कोरियर से 2 सैट हारने के बाद किसी दर्शक ने चिल्ला कर पीट संप्रास से कहा था, “कम औन पीट, अपने कोच की खातिर यह मैच जीत लो…”

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शायद इसी वजह से पीट संप्रास में जीत की प्रेरणा जागी होगी और वे उस मैच में बेहतर से और ज्यादा बेहतर होते गए. उन्होंने 5वां सैट भी 6-3 से अपने नाम कर वह मैच और दर्शकों का दिल जीत लिया था.

अब आज की बात करते हैं. हाल ही में लौन टैनिस के शानदार सितारे नोवाक जोकोविच ने फ्रैंच ओपन टूर्नामैंट के फाइनल मुकाबले में यूनान के स्टेफानोस सितपितास को हरा कर खिताब जीता. इस जीत के बाद उन्होंने मैच देखने आए एक बच्चे को अपना रैकेट पकड़ा दिया. उस बच्चे को मानो कुबेर का धन मिल गया और मारे खुशी के वह नाचने लगा.

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आप यह सोच कर हैरान हो रहे होंगे कि आखिर नोवाक जोकोविच ने उस छोटे से बच्चे में ऐसा क्या देखा कि अपना फ्रैंच ओपन खिताब जिताने वाला रैकेट ही उसे पकड़ा दिया?

नोवाक जोकोविच ने मैच के बाद अपनी प्रैस कौंफ्रैंस में इस बात का खुलासा किया और बताया, “मैं उस लड़के को नहीं जानता, लेकिन वह पूरे मैच के दौरान मेरे कान में घुसा रहा. खासतौर से तब, जब मैं 2 सैट के बाद भी पिछड़ रहा था. वह लगातार मेरा जोश बढ़ा रहा था, साथ ही वह मुझे रणनीति भी सुझा रहा था. वह कहता था कि ‘अपना सर्व रोको’, ‘एक ईजी फर्स्ट बाल मिलने के बाद दबदबा बनाओ’.

“वह सच में मुझे कोचिंग दे रहा था और मुझे यह बेहद क्यूट और अच्छा लगा. सर्वश्रेष्ठ इनसान को रैकेट देना… और यह वही था. मेरा सपोर्ट करने और मेरे साथ बने रहने के लिए मैच के बाद उसे अपना रैकेट देना मेरे लिए शुक्रिया अदा करना जैसा था.”

इस फाइनल मैच में नोवाक जोकोविच अपने पहले 2 मुकाबले 6-7 (6-8) और 2-6 से हार चुके थे, पर बाकी के 3 मुकाबले उन्होंने 6-3, 6-2 और 6-4 से अपने नाम किए.

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पीट संप्रास और नोवाक जोकोविच जैसे महान खिलाड़ियों को उन 2 अनजान लोगों ने तकरीबन हारा हुआ मैच जीतने की प्रेरणा दी, जो शायद ही इस खेल की बारीकियों को समझते हों, पर उन के जोश से भरे वाक्यों ने मैच का रुख ही बदल दिया.

पीट संप्रास अपने कोच की बीमारी से विचलित थे तो नोवाक जोकोविच भी फाइनल मुकाबला हार रहे थे. पर भीड़ से आए कुछ प्रेरणादायक शब्दों ने उन के भीतर के खिलाड़ी को समझाया कि हारने से पहले ही हार मान लेना किसी भी नजरिए से समझदारी नहीं है.

जीत के बाद नोवाक जोकोविच ने तो अपने ‘नन्हे कोच’ को रैकेट दे कर खुश भी कर दिया और यह खुशी उस बच्चे को उम्रभर याद रहेगी.

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