डुप्लीकेट- भाग 1: आखिर क्यों दुखी था मनोहर

कल्पना सिनेमाघर में काफी पुरानी फिल्म ‘अपना कौन’ चल रही थी. बहुत कम दर्शक थे. मनोहर भी फिल्म देखने आया था. जैसेजैसे वह सीन निकट आ रहा था, उस के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. एक घंटे बाद वह सीन आया. अचानक फिल्म की हीरोइन सीढि़यों से लुढ़कती हुई फर्श पर आ गिरती है.

यह देखते हुए मनोहर के मुंह से दुखभरी चीख निकली. वह बुरी तरह कांप उठा. उस का मन बहुत भारी हो गया. वह सीट से उठा और सिनेमाघर से बाहर निकल गया. वह बस इतनी ही फिल्म देखने आया था.

सिनेमाघर से बाहर आ कर मनोहर ने एक रिकशा वाले को जनकपुरी चलने को कहा.

मनोहर के चेहरे पर दुख की रेखाएं फैलती जा रही थीं. 20 साल पहले बनी थी यह फिल्म ‘अपना कौन’. किसी को क्या पता था कि सीढि़यों से लुढ़क कर फर्श पर गिरने वाली हीरोइन नहीं, बल्कि हीरोइन की डुप्लीकेट नीलू थी. नीलू उस की पत्नी ऊंचे जीने से बुरी तरह लुढ़कती हुई फर्श पर गिरी. उस के बाद वह कभी उठ ही न पाई.

फिल्म नगरी की नकली सुनहरी चमकदमक. खिंचे चले जा रहे हैं अनेक नौजवान. न जाने कितने चेहरे इस चमक के पीछे छिपे गहरे अंधकार में हमेशा के लिए खो जाते हैं.

मनोहर विचारों के सागर में गोते लगाने लगा

मनोहर विचारों के सागर में गोते लगाने लगा. उसे याद आ रहा था जब वह नौजवान था, हैंडसम था. उसे ऐक्टिंग करने का शौक था. शहर के कुछ मंचों पर नाटकों में भी ऐक्टिंग की थी. उसे भी फिल्मों में काम करने का भूत सवार हो गया था. वह घर से मुंबई भाग आया था. महीनों मारामारा घूमता रहा. जो रुपए लाया था, खत्म हो गए.

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तभी उस की दोस्ती विजय से हो गई जो फिल्मों में डुप्लीकेट का काम करता था. विजय उसे भी स्टूडियो में साथ ले जाने लगा. वहां वह फिल्मों की शूटिंग देखता और सोचता कि काश, मुझे भी किसी फिल्म में काम मिल जाता.

वह दिन मनोहर की खुशी का दिन था जब एक फिल्म में विजय ने उसे भी डुप्लीकेट का काम दिला दिया था. उस ने मन ही मन सोचा था कि आज वह डुप्लीकेट बना है, कल हीरो भी जरूर बनेगा.

पर, यह सोचना कितना गलत रहा, क्योंकि फिल्म नगरी में हीरो कभी डुप्लीकेट नहीं बनता और डुप्लीकेट कभी हीरो नहीं बनता. जो जिस लाइन पर चल निकला, सो चल निकला. जिस पर जो लेबल यानी ठप्पा लग गया, सो लग गया.

फिल्मी दुनिया में मनोहर भी एक डुप्लीकेट बन कर रह गया

फिल्मी दुनिया में मनोहर भी एक डुप्लीकेट बन कर रह गया था. वह कुछ नामचीन हीरो के लिए काम करने लगा था. शीशे तोड़ कर कमरे में घुसता. ऊंचीऊंची इमारतों पर विलेन के डुप्लीकेट से लड़ाई के शौट देता. कभी वह पहाडि़यों से लुढ़कता तो कभीकभी ऐसे स्टंट भी करने पड़ते जिन्हें देख कर दर्शक अपनी सांसें रोक लेते.

फिल्मों की शूटिंग पर मनोहर सुंदर सलोनी सी एक लड़की को देखा करता था. एक दिन जब उस से बात की गई, तो उस ने बताया था कि उस का नाम नीलिमा है. पर सभी उसे नीलू कहते हैं. उसे भी थोड़ीबहुत ऐक्टिंग आती थी. वह भी अपने शहर में कई नाटकों में रोल कर चुकी थी. वह भी फिल्मों में हीरोइन बनना चाहती थी.

यहां मुंबई में नीलू के दूर के एक रिश्ते का मामा रहता है. उस से फोन पर बात हुई तो उस ने एकदम कह दिया कि आ जाओ, मेरी बहुत जानपहचान है फिल्म नगरी में.

नीलू ने जब मम्मीपापा को मुंबई में जाने के बारे में बताया तो दोनों ने साफ मना कर दिया था. फिल्मी दुनिया में फैली अनेक बुराइयों व परेशानियों के बारे में भी उसे समझाया था.

पापा ने कहा था, ‘नए लोगों को वहां पैर जमाने में बहुत संघर्ष करना पड़ता है. उन लड़कियों के लिए दलदल में गिरने जैसी बात हो जाती है जिन का फिल्म नगरी या मुंबई में कोई अपना नहीं होता.’

‘वहां पर मामा जगत प्रसाद तो हैं. उन्होंने फोन पर मुझ से कहा है कि उन की बहुत जानपहचान है,’ नीलू बोली थी.

‘नीलू बेटी, वह तेरा सगा मामा तो है नहीं. दूर के रिश्ते में मेरा भाई लगता है. तू फिल्मी दुनिया के सपने छोड़ कर यहीं पढ़ाईलिखाई में अपना ध्यान दे,’ मम्मी ने कहा था.

पर नीलू नहीं मानी. उस की जिद के सामने वे मजबूर हो गए. उन दोनों को नाराज कर वह मुंबई पहुंच गई. जगत मामा व मामी उसे देख कर बहुत खुश हुए.

जगत मामा ने नीलू को फिल्मी दुनिया के अनेक लोगों के साथ अपने फोटो भी दिखाए. उसे पूरा विश्वास हो गया था कि मामा उसे जल्द ही किसी न किसी फिल्म में रोल दिला देंगे.

एक दिन मामी बाजार गई हुई थीं. मामा और वह घर पर अकेले ही थे. वह एक फिल्मी पत्रिका पढ़ रही थी.

‘नीलू, एक दिन तुम्हारी तसवीरें भी इसी तरह पत्रिकाओं व अखबारों में छपेंगी.’

‘सच, मामाजी,’ नीलू की आंखों में खुशी भरी चमक तैरने लगी मानो उस की फिल्म की शूटिंग हो रही है. उसे हीरोइन की सहेली का रोल मिला है. उस के फोटो भी अखबारों में छप रहे हैं.

तभी नीलू चौंक उठी. मामा ने एक झटके से उसे अपनी तरफ खींचना चाहा था. वह एकदम बोल उठी, ‘यह क्या करते हो आप मामाजी?’

मामा ने मुसकरा कर उस की ओर देखा था. मामा की आंखों में वासना के डोरे तैर रहे थे.

‘मामाजी, आप से मैं क्या कहूं? आप को तो शर्म आनी चाहिए. आप अपनी भांजी के साथ ऐसी हरकत कर रहे हो.’

‘अरे, तुम मेरी सगी भांजी तो हो नहीं. मेरी 2-3 निर्माताओं से बात चल रही है. उन्होंने कहा है कि वे जल्द ही तुम्हें स्क्रीन टैस्ट के लिए बुला लेंगे. स्क्रीन टैस्ट के नाम पर यह सब होना मामूली बात है.

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‘अगर तुम इस से बचना चाहोगी तो नामुमकिन हो जाएगा काम मिलना. अखबारमैगजीनों में तुम ने पढ़ा होगा कि बहुत सी हीरोइन अपने इंटरव्यू में बता देती हैं कि फिल्मों में काम देने के नाम पर उन का यौन शोषण हुआ है.’

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