Health Benefits : इलैक्ट्रोलाइट वाटर पीने के फायदे

Health Benefits : आज के समय में हर इंसान खुद को फिट रखने के लिए बहुत सी चीजें ट्राई करता है फिर चाहे वह जिम जाना हो या फिर अपने खानपान में बदलाव लाना हो.

आजकल बाजार में नौर्मल वाटर के साथ साथ ब्लैक वाटर, इलैक्ट्रोलाइट वाटर, और भी कई तरीके के वाटर मिलते हैं जो हमें फिट रखने के लिए बनाए गए हैं. जैसाकि आप सब को पता है कि पानी पीना हमारे शरीर के लिए कितना फायदेमंद है पर जब नौर्मल वाटर के साथसाथ और भी ज्यादा फायदेमंद वाटर मिलने लग जाए तो इस से अच्छी और क्या बात हो सकती है.

किसे जरूरी किसे नहीं

ज्यादातर क्रिकेटर्स और स्पोर्ट्समैन इलैक्ट्रोलाइट वाटर और ब्लैक वाटर पीना ज्यादा पसंद करते हैं ताकी वे खुद को और भी ज्यादा फिट रख सकें और अपना स्टैमिना बढ़ा सकें.

आज हम आप को बताएंगे कि इलैक्ट्रोलाइट वाटर पीने के कितने फायदे हैं और इलैक्ट्रोलाइट वाटर और नौर्मल वाटर में कितना अंतर है.

इलैक्ट्रोलाइट वाटर में अलग से इलैक्ट्रीकली चार्ज्ड इलैक्ट्रोलाइट्स और मिनरल्स डाले जाते हैं जोकि हमारे शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं. इस प्रकार का पानी उन लोगों के लिए सब से अच्छा है जो ज्यादा ऐक्सरसाइज करते हैं, क्योंकि इस में हमारे शरीर में मौजूद सब से आम इलैक्ट्रोलाइट्स ज्यादा क्वांटिटी में होते हैं. ये इलेक्ट्रोलाइट्स सोडियम, पोटैशियम, क्लोराइड, फौस्फेट, कैल्सियम, मैग्नीशियम और बाइकार्बोनेट हैं.

गजब के हैं फायदे

कुछ ब्रैंड्स कार्ब्स के साथसाथ मिनरल्स की क्वांटिटी का खास खयाल रखते हैं और अपने पानी को स्पोर्ट्स ड्रिंक के रूप में बेचते हैं, जबकि कई ब्रैंड्स केवल स्वाद का ध्यान रख इसे तैयार करते हैं.

इलैक्ट्रोलाइट वाटर आप के ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में, आप की बौडी में फ्लूइड बैलैंस कंट्रोल करने के साथसाथ मसल्स को भी स्ट्रौंग बनाने में फायदेमंद है.

किसी भी चीज़ की आदत डालना या किसी भी चीज को जरूरत से ज्यादा लेना भी गलत साबित हो सकता है तो आप को इस बात का खास खयाल रखना चाहिए कि इलैक्ट्रोलाइट वाटर भी आप को ज्यादा नहीं पीना चाहिए और इस प्रकार का पानी उन लोगों के लिए है जो हैवी ऐक्सरसाइज करते हैं या फिर स्पोर्ट्सपर्सन हैं.

White Hair : बालों में सफेदी की समस्या

White Hair : बालों में सफेदी की समस्या

बढ़ती उम्र के साथ बालों का रंग बदलना कुदरती है. लेकिन बालों में सफेदी उम्र के किसी भी दौर में दिखायी दे सकती है. यहां तक कि किशोरों में और बीस-बाईस साल के युवाओं के बालों में भी सफेदी की झलक उभर सकती है. मनुष्‍यों के शरीर में लाखों हेयर फॉलिकल्‍स होते हैं, ये त्‍वचा की भीतरी परत पर छोटी-छोटी थैलियों जैसे होते हैं. इनसे ही बाल पनपते हैं और बालों को रंग देने वाला मेलानिन पदार्थ पैदा करने वाले पिग्‍मेंट सैल्‍स भी यहीं बनते हैं. समय के साथ, हेयर फॉलिकल्‍स अपने पिगमेंट सैल्‍स खोने लगते हैं जिसके चलते बालों की रंगत सफेद पड़ने लगती है.

विटामिन बी6, बी12, बायोटिन, विटामिन डी, या विटामिन ई में कमी की वजह से भी समय से पहल बालों में सफेदी आने लगती है.

इसके अलावा, एक और महत्‍वपूर्ण वजह होती है हमारी नस्‍ल. गोरे लोगों में समय से पहले बालों की सफेदी उनकी उम्र के दूसरे या तीसरे दशक में भी शुरू हो सकती है, जबकि एशियाई नस्‍ल के लोगों में यह 25 वर्ष के आसपास और अफ्रीकी-अमरीकी आबादी में 30 साल की उम्र से बालों का सफेद होना आम है.

बालों की सफेदी आमतौर पर आनुवांशिक होती है, लेकिन शरीर में में तनाव (ऑक्‍सीडेटिव स्‍ट्रैस) की वजह से भी समय से पहले ऐसा हो सकता है. ऑक्‍सीडेटिव स्‍ट्रैस की वजह से शरीर में असंतुलन बढ़ता है और इस स्थिति में शरीर में फ्री रैडिक्‍स के दुष्‍प्रभावों से बचाने के लिए पर्याप्‍त एंटीऑक्‍सीडेंट्स मौजूद नहीं होते. फ्री रैडिकल्‍स दरअसल, अस्थिर अणुओं को कहते हैं जिनके कारण कोशिकाओं को क्षति पहुंचती है, और इस वजह से एजिंग बढ़ती है और तथा शरीर को रोग भी आ लगते हैं.

ऑक्‍सीडेटिव स्‍ट्रैस अधिक होने से रोग बढ़ते हैं, स्किन-पिग्‍मेंटेशन कंडीशन या विटिलिगो की आशंका भी बढ़ जाती है. विटिलिगो की वजह से बालों से भी सफेदी झांकने लगती है जो कि मेलानिन कोशिकाओं के खत्‍म हो जाने या उनकी कार्यक्षमता नष्‍ट होने की वजह से होता है.

दिल्ली में सर्वश्रेष्ठ कॉस्मेटिक सर्जन डॉ.अनूप धीर यह बताते है की, सफेद बाल एक खास तरह के त्‍वचा संबंधी विकार alopecia areata के कारण भी पनप सकते हैं. इस स्थिति में सिर, चेहरे और शरीर के अन्‍य भागों से बाल झड़ते हैं और जब दोबारा बाल बढ़ते हैं तो मेलानिन की कमी के कारण सफेद हो जाते हैं.

जीवन में तनाव का होना, जो कि किसी चोट की वजह से हो सकता है, भी समय से पहले बालों को सफेद करने का कारण बन सकता है. इसी तरह, धूम्रपान करने वाले लोगों में 30 साल की उम्र से पहले ही बालों के सफेद होने की संभावना दो से ढाई गुना तक बढ़ जाती है. केमिकल हेयर डाइ और हेयर प्रोडक्‍ट्स, यहां तक कि शैंपू वगैरह के इस्‍तेमाल से भी बालों का समय पूर्व सफेद होना देखा गया है. इन प्रोडक्‍ट्स में नुकसान पहुंचाने वाले तत्‍व मौजूद होते हैं जो मेलानिन की मात्रा घटाते हैं. अधिकांश डाइ में मौजूद हाइड्रोजन पेरॉक्‍साइड ऐसा ही एक खतरनाक रसायन है. इनका अत्‍यधिक इस्‍तेमाल आपके बालों को ब्‍लीच करता है जिसके परिणामस्‍वरूप ये सफेद हो जाते हैं.

याद रखिए कि अगर बालों में सफेदी का कारण आनुवांशिकी या बढ़ती उम्र है, तो आप किसी इसे रोक नहीं सकते. लेकिन अगर बालों में सफेदी का कारण कोई मेडिकल कंडिशन है तो आप दिल्ली में प्लास्टिक सर्जन के द्वारा हेयर ट्रीटमेंट से बालों का कलर पिग्‍मेंटेशन लौटा सकते हैं.

इसी तरह, अगर खुराक और विटामिन की कमी के कारण बाल असमय सफेद हो रहे हैं, तो इन्‍हें दुरुस्‍त कर भी समस्‍या को गंभीर होने से रोका जा सकता है. इसके लिए सही उपचार काम आता है और बालों को सफेद होने से पूरी तरह रोका जा सकता है तथा कुछ मामलों में तो इस प्रक्रिया को रिवर्स भी किया जा सकता है. संतुलित खुराक और बालों की अच्‍छी देखभाल भी मददगार होती है. लेकिन कुछ मामलों में यह प्रक्रिया पूरी तरह से अपरिवर्तनीय भी होती है.

नियमित रूप से प्राकृतिक उपाय बालों के सफेद होने की प्रक्रिया को कुछ हद तक धीमा कर सकते हैं या बहुत मुमकिन है कि इसे रिवर्स भी कर सकते हैं. लेकिन एक समय तो ऐसा आता ही है कि हरेक के बाल सफेद होते हैं और व्‍यक्ति विशेष को ही यह तय करना होता है कि वह बालों को सफेद रखना चाहते हैं या फिर फिर उम्र बढ़ने की इस कहानी को कुछ समय तक के लिए रोक देना चाहते हैं.

कुछ दुर्लभ मामलों में, इंफ्लेमेट्री साइटोकाइंस जैसे कि सोरालेन और साइक्‍लोस्‍पोरिन (psoralen and cyclosporin) को लक्षित करने या मेलानोजेनेसिस को उत्‍प्रेरित करने वाली दवाएं जैसे कि इमेटिनिब या लेटेनोप्रोस्‍ट (imatinib or latanoprost) से सफेद बालों में रीपिग्‍मेंटेशन भी देखा गया है.

Acne : अब चेहरे पर नहीं होंगे एक्‍ने के दाग

एक्ने निकल आना बुरी खबर है लेकिन उनके खत्म होने के बाद बचे रह जाने वाले दाग और भी ज्यादा परेशान करने वाले होते हैं. ये दाग तब होते हैं जब कोई एक्ने त्वचा के भीतर गहराई तक पहुंच जाता है और भीतर के टिश्यू को नुकसान पहुंचाता है. ​हर प्रकार के दाग धब्बे पर उपचार का अलग—अलग असर होता है और कुछ उपचार अन्य के मुकाबले कुछ खास प्रकार के धब्बों पर ज्यादा प्रभावी होते हैं.

एक्ने के बाद के पड़े निशान दूर तक फैले यू आकार के बॉक्सकर स्कार, छोटे और गहरे वी आकार के धब्बे या रोलिंग स्कार्स कहलाने वाले घुमावदार किनारों वाले हो सकते हैं.

जैसा कि नाम से पता चलता है कि आइस पिक स्कार्स त्वचा में बहुत गहरे तक जगह बना चुके छिद्र होते हैं जिसे देखकर ऐसा लगता है कि त्वचा एक आइस पिक के साथ पंक्चर किए गए हैं. जब शरीर में किसी चोट की वजह से अ​धिक मात्रा में कोलाजेन बनने लगता है तो आइस पिक्स जैसे परेशान करने वाले स्कार्स बन सकते हैं.

उपचार में दिल्ली के प्लास्टिक सर्जन डॉ.अनूप धीर के द्वारा पंच नामक एक छोटे उपकरण से स्कार को काटना और उसकी वजह से बने छिद्र पर टांके लगाना शामिल है लेकिन यह सिर्फ अकेले आइस पिक स्कार्स पर ही काम करता है. अगर कई आइस पिक स्कार्स हों तो एक्ने स्कार उपचार डिवाइसें जिनमें रेडियोफ्रिक्वेंसी एनर्जी का इस्तेमाल होता हो तो वे अच्छा विकल्प साबित हो सकते हैं. ये उपचार भीतर कोलाजेन बनाने में मदद करते हैं और कोलाजेन स्कार्स को भीतर से भरने में मदद करता है. लेजर, रेडियोफ्रिक्वेंसी या एक अल्ट्रासाउंड डिवाइस से एनर्जी—बेस्ड स्किन रिसरफेसिंग बॉक्सकर स्कार्स को भरने में काम आ सकता है क्योंकि ये सभी त्वचा के भीतर कोलाजेन बनाने के लिए काम करता है. स्कारिंग के विस्तार, रासायनिक पील्स के आधार पर उपचारों की श्रृंखला की जरूरत होती है जो उसे फैलने से रोकने में मदद करते हैं. इनमें से किसी भी प्रक्रिया के बाद रेटिनॉयड क्रीम का इस्तेमाल करने से कोशिकाओं की संख्या बढ़ती है और कोलाजेन में भी इजाफा होता है जिससे बेहतर परिणाम सामने आते हैं.

फ्रैक्शनल नॉन—एब्लेटिव लेजर्स नई प्रौद्योगिकी है और पुराने लेजर्स के मुकाबले उनमें कम समय लगता है इसका मतलब है कि सर्जन पहले से अधिक प्रभावी हो सकता है और कम उपचार के साथ ही परिणाम देखने को मिल सकते हैं. पुराने एब्लेटिव लेजर्स से स्किन की बाहरी सतह नष्ट हो जाती थी जिसके ठीक होने में अधिक समय लगता है लेकिन ये नॉन—एब्लेटिव लेजर्स फ्रैक्सेल की तरह होते हैं जो त्वचा की बाहरी सतह से होकर गुजरता है जो बगैर नुकसान पहुंचाए गहरे टिश्यू को गरमाहट देता है, कोलाजेन को बढ़ावा देता है और कम समय में स्कार को खत्म करता है.

दिल्ली में सर्वश्रेष्ठ कॉस्मेटिक सर्जन डॉ.अनूप धीर के द्वारा अपनाई गई, माइक्रोनीडलिंग एक नॉन—सर्जिकल तकनीक है जो मैकेनिकल दबाव का इस्तेमाल त्वचा पर बारीक नीडल की मदद से करता है जिससे कोशिकाओं के प्रसार को बढ़ावा मिलता है. इन नई कोशिकाओं के बनने से नया कोलाजेन और इलास्टिन टिश्यू बनते हैं जिससे बारीक रेखाएं, झुर्रियां, खिंचाव/स्कार के निशान, ​पिगमेंटेशन या त्वचा की अन्य गड़बड़ियों में सुधार करता है. नई कैपिलरियां बनाकर यह खून की आपूर्ति में भी सुधार करता है.

रोलिंग स्कार्स को प्लेटलेट—रिच प्लाज्मा पीआरपी के साथ माइक्रोनीडलिंग के बाद माइक्रोफैट इंजेक्शन के साथ ठीक किया जा सकता है, माइक्रोनीडलिंग से त्वचा पर छोटे घाव हो जाते हैं. इसके बाद शरीर का प्राकृतिक, नियंत्रित सुधार प्रक्रिया शुरू होती है जिससे आतंरिक तौर पर कोलाजेन बनने शुरू हो जाते हैं.

माइक्रोनी​डलिंग भी एक महत्वपूर्ण एक्ने स्कार उपचार है क्योंकि यह त्वचा के भीतर चैनलों को खोलते हैं जो पीआरपी—सुधार करने वाले कारकों को आपके रक्त और त्वचा की देखभाल करने वाले उत्पादों को त्वचा के भीतरी सतह तक पहुंचने का मौका देते हैं जहां इनकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है. पीआरपी को आपके खून की कुछ मात्रा लेकर प्लेटलेट युक्त प्लाज्मा को अलग कर तैयार किया है जिसमें प्रोटीन और वृद्धि के अन्य कारक होते हैं और उन्हें स्कार में दोबार इंजेक्ट कर दिया जाता है. इसका उद्देश्य त्वचा में सुधार करने के स्तर तक पंहुचाने के लिए गड़बड़ी के भीतर कोलाजेन की सतह तैयार करना है. आपको कई प्रकार के उपचारों की जरूरत पड़ सकती है लेकिन इसके परिणाम के लिहाज से उपयोगी हैं.

हाइपरपिगमेंटेशन से एक्ने स्कार्स का उपचार हाइड्रोक्विनोन और सनब्लॉक के साथ है, हाइड्रोक्विनोन एक टॉपिकल ब्लीचिंग एजेंट है जिसका इस्तेमाल आप सीधे गहरे धब्बे पर कर सकते हैं. सनब्लॉक महत्वपूर्ण है क्योंकि सूरज की रोशनी में हाइपरपिगमेंटेशन खराब हो सकता है. अन्य लोकप्रिय उपचारों में ग्लाइकोलिक एसिड क्रीम शामिल हैं जो त्वचा और गहरे धब्बों की बाहरी सतह को खत्म कर सकते हें ओर रेटिनॉयड त्वचा की कोशिकाएं बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं.

आपको इन सभी कारकों पर गौर करना होता है और मैं हमेशा मरीजों को सलाह देता हूं कि कई प्रकार के उपचारों की जरूरत होती है और एक या दो वर्षों बाद 50 फीसदी सुधार की उम्मीद की जा सकती है.

क्या आपको पता है बिना कपड़ों के सोने के ये 6 फायदे

अधिक्तर लोग रात को लाइट वेट कपड़े पहन कर सोना पसंद करते हैं क्योंकि रात के समय लोग काफी रीलैक्स हो कर सोना चाहते हैं पर कई लोग इस बात को अन्देखा करते हैं. आज कल की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में कई लोग रात को इतना थक जाते हैं कि वे बिना कपड़े चेंज किए ही सो जाते हैं पर वे यह नहीं जानते कि इस तरह से सोना उनके लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है.

रात के समय हमारे शरीर को एक दम कूल रहने की जरूरत होती है. भारी कपड़े पहन कर कई लोग सो तो जाते हैं लेकिन वे अपनी नींद ठीक तरह से पूरी नहीं कर पाते और तो और इससे हमारे शरीर को कई और नुकसान भी हो सकते हैं.

ज्यादातर लोग इस बात से कन्फयूज़ होते हैं कि रात को उन्हें कपड़े पहन कर सोना चाहिए या उतार कर. इस बात का बहुत सरल और सीधा समाधान है कि हमेशा हमें रात को कपड़े उतार कर सोना चाहिए क्योंकि इससे हमारे शरीर को बहुत फायदे होते हैं. आज हम आपको उन फायदों के बारे में बताएंगे.

1. ब्लड प्रेशर के लिए

बिना कपड़ों के सोने से खून का संचार ठीक रहता है और ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहता है. साथ ही कपड़े उतारकर सोने से ऑक्सिटोसिन हार्मोन बढ़ता है जिससे कई फायदे होते हैं और इससे तनाव व टेंशन कम होती है.

2. स्किन के लिए

जब आप कपड़े पहने बिना सोते हैं तो आप स्किन संबंधी कई दिक्कतें होने से बच जाते हैं. इससे आपके पूरे शरीर को अच्छे से हवा मिलती है और स्किन में संक्रमण जैसी कई परेशानियां दूर होती है.

3. अच्छी नींद के लिए

जब आप कपड़े बिना पहने सोते हैं तो आप को गहरी और अच्छी नींद आती है क्योंकि इससे आपका शरीर औवरहीट होने से बचता है जिससे कि आपको अच्छी नींद आती है. इससे शरीर ठंडा रहता है और तापमान भी नियंत्रित रहता है, जिसकी दिमाग को जरुरत होती है.

4. महिला-पुरुष दोनों के लिए

बिना कपड़ों के सोना महिलाओं और पुरूषों दोनों के लिए ही फायदेमंद है. इससे जिन अंगों में अधिक पसीना आता है उन अंगों में संक्रमण होने का खतरा कम हो जाता है.

5. अच्छी यादाश्त के लिए

अब आप बिना कपड़ों के सोएंगी तो आपको गहरी नींद आएगी और इससे आपकी यादाश्त भी अच्छी होती है, क्योंकि गहरी नींद आने से शरीर में ग्रोथ हार्मोन का प्रोडक्शन होता है जो कि दिमाग की वृद्धि में सहायक है.

6. वजन के लिए

बिना कपडों के साने से गहरी नींद आती है और यह स्ट्रेस को दूर करने के लिए सबसे उपयोगी है. जब आप बिना कपडों के सोते हैं तो इससे कोर्टिसोल हार्मोन घटता है जो कि जो कि आपके वजन को नियंत्रित करने में मदद करता है.

पेनिस के दर्द को न करें नजरअंदाज

किसी भी तरह से लिंग में दर्द महसूस होना कोई आम बात नहीं है. यह दर्द एक समय के बाद बहुत बड़ी समस्या का कारण भी बन सकता है. यदि किसी भी व्यक्ति के लिंग (पेनिस) में बारबार दर्द हो रहा है तो, उसे लिंग में हो रहे बदलाव पर ध्यान देना चाहिए.

लिंग यानी पेनिस में दर्द होने की कई वजह हो सकती है.

पेनिस में दर्द होने की वजह-

  • चोट लगने के कारण पेनिस में ब्लड इकट्ठा हो जाता है. इसलिए भी लिंग में दर्द होना शुरू हो जाता है.
  • कई बार इन्फैक्शन की वजह से भी पेनिस में दर्द होता है.
  • इसका एक कारण पैराफिमोसिस भी हैं. यह बहुत खतरनाक प्रॉबलम है. इसमें पेनिस हेड के उपर की स्किन टाइट होने के बावजूद पीछे की तरफ खींच तो जाती है लेकिन ऊपर नहीं आ पाती. ऐसे में वह पेनिस हेड के पीछे इकट्ठा हो कर फंस जाती है. इससे पेनिस हेड में सूजन आ जाता है और सेक्स के दौरान काफी दर्द होता है.
  • कई बार दर्द इतना बढ़ जाता है की वह पेनिस के आस-पास वाले हिस्सें को भी प्रभावित करने लगता है.
  • यदि पेनिस का दर्द काफी समय से है और बढ़ता ही जा रहा है ऐसे में डाक्टर की सलाह लेना बहुत जरूरी हैं.

डाक्टर को कब दिखाना चाहिए-

  • लिंग में अधिक खुजली होना.
  • पेनिस के रंग में बदलाव होना.
  • पेनिस पर घाव या दाने निकलने पर.
  • लिंग या उसके आस-पास की जगह में सूजन आना.
  • पेशाब संबंधी समस्याएं, जैसे बार-बार पेशाब आना, पेशाब में जलन या दर्द होना.

दर्द से कैसे बचें

  • सेक्स संबंध बनाने के समय हमेशा कंडोम का इस्तेमाल करें.
  • यदि आपको पेनिस हेड के ऊपर वाली स्किन यानी फोरस्किन में बारबार किसी तरह का इन्फैक्शन हो जाता है, तो ऐसे में साफ सफाई का ध्यान रखना बहुत जरूरी है और समय पर इसका इलाज करवाएं.
  • सेक्स संबंध बनाने से पहले ध्यान रहे जिसके साथ संबंध बना रहे हैं उसे किसी प्रकार का इन्फैक्शन तो नहीं है. अगर इन्फैक्शन है तो उसके साथ संबंध न बनाए.
  • सेक्स के दौरान ऐसे मूवमेंट या पोजीशन से बचें जिनमें लिंग में ज्यादा घुमाव या मोड़ हो.
  • हमेशा सरल व सुरक्षित सेक्स करें. एक्सपेरिमेंट के चक्कर में कोई भी गलत पोजीशन ट्राई न करें.

पुरुषों को नीम खाना पड़ सकता है महंगा, जानें क्यों?

नीम एक ऐसा पेड़ जिसकी आयुर्वेद काफी मान्यता है. इसके पत्तो के खाने से आप  कई बीमारियों से बच सकते है साथ ही इसकी दातून आपके दांत को हमेशा स्वस्थ रखने में काफी असरकारक होती है. नीम के इतने फायदों के बीच क्या आप जानते है की नीम पुरुष बांझपन की समस्या भी बन सकता है.

एक रिसर्च के मुताबिक पता चला है कि रोजाना नीम के पत्तों के जलीय सत्त की 3 ग्राम या इससे अधिक खुराक शुक्राणुनाशक गतिविधि दर्शाती है. पुराने नीम की पतितयों का जलीय सत्त न सिर्फ वीर्य को स्थिर करता है, बल्कि 20 सोकंड के भीतर ही 100 प्रतिशत तक मानव शुक्राणुओं को मार भी देता है. इसके साथ ही गया कि नीम के पत्तों की न्यूनतम प्रभावी शुक्राणुनाशक सांद्रता कम से कम 2.9 मिलीग्राम / मिलियन शुक्राणु होती है. इसके अलावा शुक्राणुओं की आकृति विज्ञान पर इसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता है.

नीम के फायदे के साथ-साथ नुकसान भी

यदि आप डायबिटीज़ से पीड़ित हैं और डीटॉक्स डाइट ले रहे हैं तो ऐसे में दिमाग में रोज़ तड़के एक गिलास नीम के पत्तों का जूस पीने की बात ज़रूर आती है। और हो भी क्यों ना, अभी तक नीम के जूस के सेवन से जुड़े लाभों के बारे में ही बात होती रही है और लोग भी इसका सेवन कर लाभान्वित होते रहे हैं। लेकिन हर चीज़ के दो पहलू होते हैं और कुछ गुणों के साथ अवगुण भी होते हैं। ये बात नीम के रस पर भी लागू होती है और इसके भी कुछ नुकसान होते हैं। यदि आप भी रोज़ाना सुबह नीम के पत्तों का रस पी रहे हैं तो इसके एंटी-फर्टीलिटी साइडइफेक्ट (पुरुष प्रजनन क्षमता पर दुष्प्रभाव) के बारे में भी ज़रूर पढ़ लें.

कैसे है सबसे ज्यादा खतरा

किसी भी व्यक्ति के लिए नीम की पत्तियों के सत्त की प्रति दिन 2 मिली ग्राम मात्रा तक ही लेनी चाहिए और अगर आप इसका सेवन करना चाहते हैं तो इसके लिए पहले अपने डाक्टर से जरुर सलाह ले लें, क्योंकि अधिक मात्रा में इसका सेवन आपके यौन स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है और बांझपन का कारण भी बन सकता है.

अगर आप भी पीते हैं कम पानी तो जरूर पढ़ें ये खबर

वैज्ञानिक अनुसंधानों के अनुसार एक व्यक्ति बिना भोजन के 1 हफ्ते तक जीवित रह सकता है, लेकिन पानी की 1 बूंद के बिना 5 दिन से ज्यादा जीवित नहीं रह सकता. इंसान के शरीर में जैसे ही 1% भी पानी की कमी होती है उसे प्यास लगने लगती है. 5% तक की कमी आने पर शरीर की नसों और उस के स्टैमिना में कमी आने लगती है. ऐसा होने पर शरीर बहुत थका और बहुत ही ड्राईनैस महसूस करने लगता है. अगर शरीर में पानी के स्तर में 10% की कमी आती है तो इंसान को धुंधला दिखने लगता है. वह बेहोशी की हालत में आ जाता है. अगर शरीर में पानी की कमी 20% तक हो जाए तो यह इंसान की मौत का कारण भी बन सकती है. यही कारण है कि इंसान को हमेशा अपने शरीर की पानी की पूर्ति करते रहना चाहिए.

आइए, जानें कि पानी किस तरह शरीर के कई बेहद जरूरी कामों के लिए अहम है.

1. पानी एक वाहक

हमारे शरीर का दोतिहाई हिस्सा पानी या तरल पदार्थ का बना होता है. रक्त, जिसे हम मानवशरीर की जीवनरेखा कहते हैं, उस का भी 83% पानी ही होता है. रक्त शरीर के हर अंग तक विटामिन, मिनरल्स, अन्य जरूरी पोषक तत्त्व जैसे हीमोग्लोबिन, औक्सीजन आदि को पहुंचाने का काम करता है. पेशाब भी हमारे शरीर का एक अहम तरल पदार्थ है, जो शरीर से खराब टौक्सिक को बाहर निकालने का काम करता है. अगर हमारे शरीर में पानी की मात्रा कम है, तो शरीर में बनने वाले विषाक्त पदार्थ बाहर नहीं जाएंगे और इस से कई समस्याएं जैसे त्वचा का सूखापन, कब्ज, सिरदर्द आदि हो सकती हैं.

2. इलैक्ट्रोलाइट संतुलन

इलैक्ट्रोलाइट्स, सोडियम या पोटैशियम जैसे मिनरल होते हैं और डीहाइड्रेशन से बचने के लिए इन का शरीर में संतुलन बनाए रखना बेहद जरूरी है. ये मिनरल शरीर में कई कामों के लिए अहम होते हैं. जैसे रक्त का पीएच स्तर बनाए रखना, नसों का काम और मस्तिष्क व शरीर के अन्य अंगों के बीच संतुलन बनाए रखना. आमतौर पर बहुत ज्यादा पसीना निकलने से शरीर में इलैक्ट्रोलाइट के स्तर में गिरावट आती है, जिस की वजह से थकावट, चक्कर आना आदि समस्याएं होती हैं.

3. नाजुक अंगों की रक्षा

हमारे शरीर के बेहद नाजुक हिस्सों जैसे आंख, पाचनतंत्र, मुंह आदि को भी पर्याप्त पानी की जरूरत होती है. पानी की कमी से सब से ज्यादा प्रभाव हमारे पाचनतंत्र पर पड़ता है. खाना पचाने के लिए मुंह में बनने वाली राल बेहद जरूरी होती है, जबकि शुष्क मुंह में चबाने और भोजन को अंदर तक ले जाने में समस्या होती है, जिस से अपच की समस्या हो सकती है. हमारी आंखों को भी पानी की जरूरत होती है ताकि जमा गंदगी को साफ किया जा सके.

4. हड्डियों को रखता है मजबूत है

शरीर की हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए हमें विटामिन डी और कैल्सियम के साथसाथ पानी की भी बहुत जरूरत होती है. शरीर के सभी जौइंट्स जैसे एड़ी का जौइंट, घुटने का जौइंट आदि में नरमी बनाए रखने के लिए पानी की जरूरत होती है. कम पानी की वजह से प्रौढावस्था में ही हड्डियों से जुड़ी समस्याएं जैसे आर्थ्राइटिस, झुकाव, चोट आदि हो जाती हैं.

5. शरीर के तापमान को बनाए रखता

पानी हमारे शरीर में प्राकृतिक तौर पर तापमान को सामान्य बनाए रखने का काम करता है. एक सामान्य शरीर का तापमान 35 डिग्री सैल्सियस या 98.6 डिग्री फारेनहाइट होता है. इसलिए जब हम धूप में गरम तापमान में जाते हैं तो हमारे शरीर से बहुत पसीना निकलता है, जिस से शरीर का तापमान कम हो जाता है.

बच्चों से ले कर बड़ों तक सभी को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए ताकि वे अच्छी जिंदगी जी सकें. प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को दिन भर में 2 लिटर तरल पदार्थ पीना चाहिए. इस के साथ ही पानी की शुद्धता को ले कर भी सतर्क रहना चाहिए. नल के पानी को हमेशा उबाल कर ही पीना चाहिए. फिल्टर पानी का इस्तेमाल करें.

जब भी बाहर जाएं, पानी अवश्य साथ रखें. दूषित पानी से पेट से जुड़ी समस्याएं ज्यादा होती हैं. सफर के दौरान घर से थोड़ा ही पानी लिया जा सकता है. ऐसे में आप बोतलबंद पानी ले सकते हैं. बोतलबंद पानी चुनते वक्त हमेशा सीलबंद बोतल ही खरीदें. हमेशा ऐसी बोतल लें जिस पर आईएसआई मार्क लगा हो, जो शुद्धता की पहचान है.

हाल ही में कंज्यूमर फोरम ‘जागो ग्राहक जागो’ की तरफ से किए गए शोध में यह सामने आया है कि कई बोतलबंद पानी के ब्रैंड आईएसआई मार्क की कसौटी पर खरे नहीं उतरे. इन बोतलों के पानी में टीडीएस की मात्रा अधिक पाई गई. अत: बोतलबंद पानी लेते समय बोतल पर आईएसआई मार्क जरूर देखें.

सेक्स पावर बढ़ाने की दवाइयों से रहें दूर, हो सकते हैं ये नुकसान

आप ने ऐसे कई विज्ञापन देखे होंगे जिन में सेक्स समस्याओं को खत्म करने और सेक्स पावर बढ़ाने की दवाओं के बारे में बताया जाता है. यों तो सेक्स पावर बढ़ाने का दावा कई दवा कंपनियां करती हैं, लेकिन सवाल है कि इन पर कितना विश्वास किया जाए. इस पर विचार करें. लेकिन आंखें बंद कर के भरोसा न करें. आप को ऐसे विज्ञापनों से सावधान रहने  की जरूरत है.

1.  बौडी पर बुरा प्रभाव 

ऐसी दवाएं किसी मान्यताप्राप्त लैब में नहीं, बल्कि झोलाछाप नीमहकीमों द्वारा बनाई जाती हैं, जिन्हें दवा बनाने की कोई साइंटिफिक जानकारी नहीं होती. इधरउधर, गांव के बुजुर्गों से मिले अधकचरे ज्ञान के आधार पर वे इन्हें तैयार करते हैं. दवा में किस चीज की मात्रा कितनी होनी चाहिए और कौन सी 2 चीजें एक ही दवाई में होने पर रिएैक्ट करेंगी, इस बारे में भी इन लोगों को कोई जानकारी नहीं होती है.

ये दवाएं सरकार द्वारा मान्यताप्राप्त भी नहीं होती हैं. यही वजह है कि जब इन का सेवन किया जाता है तो ये शरीर पर गलत असर डालती हैं. कई बार तो इन के सेवन से धीरेधीरे शरीर के अंग भी काम करना बंद कर देते हैं. इसलिए वही दवाएं लें जो आप की समस्या के अनुसार मान्यताप्राप्त डाक्टर द्वारा दी गई हों.

2.  डोज का सही होना जरूरी

परेशानी चाहे तन से जुड़ी हो या मन से, उस का निवारण तभी हो सकता है जब उस की काट के लिए दवा सही मात्रा में ली जाए. इस के लिए जरूरी है कि सही डाक्टर से उचित देखरेख में ही यह काम किया जाए. लेकिन झोलाछाप, ओझा आदि पैसे बनाने के लिए और अधिक से अधिक दवा की बिक्री के लिए ज्यादा डोज लेने को कहते देते हैं. उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि इस से मरीज की सेहत पर क्या दुष्प्रभाव पड़ेगा. इन चक्करों में पड़ने से बचें.

3. दवा के साइड इफैक्ट्स

कामोत्तेजना बढ़ाने वाली वियाग्रा जैसी कई दवाओं के भ्रामक विज्ञापन अखबारों की सुर्खियां बनते रहते हैं और युवा पीढ़ी इस ओर जल्द आकर्षित होती है और इन दवाओं का सेवन शुरू करती है. थोड़ा सा असर दिखने पर युवाओं को यह एक नशे के जैसा लगने लगता है और वे खुद ही इस की मात्रा बढ़ा देते हैं ताकि और मजे लिए जा सकें. मजे का तो पता  नहीं लेकिन इन दवाओं का साइड इफैक्ट होने लगते हैं और मरीज को थकान व कमजोरी जैसी समस्याएं महसूस होने लगती हैं. ऐसी कोई भी दवा लेने से बचें और अगर ले रहे हैं तो उन दवाओं के बारे में इंटरनैट पर पूरी जानकारी लें और फिर सोचविचार के बाद ही उन्हें खरीदने के बारे में सोचें.

4. अति हर चीज की बुरी

सेक्स पावर बढ़ाने जैसी कई दवाओं के विज्ञापन आएदिन छपते रहते हैं, लेकिन ये सभी सही नहीं होते हैं. सेक्स की हर व्यक्ति की अपनी इच्छा और क्षमता होती है. इसे किसी दूसरे से कंपैरिजन नहीं किया जा सकता है. इसलिए कहीं  पढ़ कर ऐसा न सोचें कि आप भी ये दवाएं खा कर हृष्टपुष्ट हो जाएंगे.

यदि अगर वास्तव में कोई दिक्कत है तो अपने डाक्टर से कंसल्ट करें और अपने अच्छे खानपान और पूरी नींद जैसी बातों पर ध्यान दें. इन विज्ञापनों के बारे में सोच कर ज्यादा ऐक्साइटेड न हों क्योंकि अति हर चीज की बुरी होती है. अगर आप की सेक्सलाइफ बिना कुछ किए ही अच्छी चल रही है तो फिर इन दवाओं का सेवन करना बेकार है.

5. गर्भ निरोधक गोलियां

गर्भ रोकने वाली दवाओं को बारबार लेने के घातक परिणाम हो सकते हैं. स्त्रियों के प्रजन्न अंगों पर इन का विपरीत प्रभाव पड़ सकता है. उपयोग करने के इच्छुकों को चाहिए कि वे डाक्टर से दवाओं के साइड इफैक्ट, उन के असफल होने की आशंकाएं और गर्भाशय से बाहर गर्भधारण की संभावनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त कर लें. यदि अगला मासिकधर्म न आए या मासिकधर्म के समय बहुत अधिक खून बहने लगे, तो हकीमों के पास जाने के बजाय तुरंत डाक्टर से जांच करवाएं.

डाक्टर से जांच करवा कर यह सुनिश्चित कर लें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार महिला इस दवा को लेने के लिए सक्षम है या नहीं. आपात गर्भनिरोधक गोलियों का विज्ञापन जिस तरह से किया जा रहा है उस से समाज में और विशेषरूप से युवावर्ग में यह भ्रांति फैल रही है कि बिना किसी डर के यौन संबंध बनाओ, गोली है न. लेकिन ऐसा नहीं है. युवाओं को इस बात का खयाल रखना चाहिए कि इन गोलियों की जरूरत ही न पड़े.

ऐसा न हो कि आपात गोली आफत की गोली बन जाए. इसलिए डाक्टर से मिलें और किसकिस तरह के प्रोटैक्शन होते हैं और आप दोनों में से कौन सा प्रोटैक्शन लेना ज्यादा बेहतर होगा, आदि के बारे में बात कर के ही कोई प्रोटैक्शन यूज करें. सिर्फ इन विज्ञापनों में दी गई गोली का नाम पढ़ कर ही लेना शुरू न करें.

6. वियाग्रा का इस्तेमाल न करें

प्रिस्क्रिप्शन पर दी गई परफौर्मेंस बढ़ाने वाली दवाओं जैसे वियाग्रा का उपयोग कभी न करें, क्योंकि इन्हें पहले से ब्लडप्रैशर जैसी कंडीशन होने पर, लेना सुरक्षित नहीं होता, साथ ही, अगर आप शुगर की बीमारी से पीडि़त हैं तो भी यह दवा लेना सही नहीं है. यह आप के डाक्टर का काम है कि आप के लिए ऐसी दवा लिखें जो आप के लिए सुरक्षित हों और आप को बताएं कि आप को कितनी डोज से इन्हें लेने की शुरुआत करनी चाहिए. विशेषरूप से जब आप पहले से आप द्वारा ली जाने वाली दवाओं के साथ इन्हें लेने का प्लान बना रहे हों.

7. हर्ब्स और हर्बल मिश्रण से बनी दवाओं से सावधान

आप सेक्स की इच्छा बढ़ाने का दावा करने वाली हर्ब्स और हर्बल मिश्रण से बच कर रहें. इन में से कुछ के कारण असुविधाजनक इरैक्शन हो सकता है जो घंटों तक वापस नहीं आता और योहिम्बे जैसी हर्ब आप के हृदय की गति को बढ़ा कर कार्डियक अरैस्ट  की आशंका को बढ़ा देती है. इसलिए इन्हें लेने से पहले हमेशा अपने डाक्टर की सलाह लें.

8. स्टैरौयड न लें

गैरकानूनी स्टैरौयड आप की सेक्स इच्छा बढ़ा तो सकते हैं लेकिन बाद में आप को इस की महंगी कीमत चुकानी पड़ती है. ये आप के हृदय को नुकसान पहुंचा सकते हैं और शरीर में ऐसे अपरिविर्तनीय बदलाव ला सकते हैं जिन से आप कभी भी पूरी तरह से नहीं उबर नहीं सकते. बजाय इस के ऐसे प्राकृतिक और कानूनी रूप से वैध सप्लीमैंट का उपयोग करें जो स्टैरौयड के समान ही प्रभाव रखते हैं और आप को स्थायी रूप से कोई हानि भी नहीं पहुंचाते.

जानें पुरुषों में कम स्पर्म काउंट की वजह और उसका इलाज

भारत में यदि संतान के इच्छुक किसी दंपती को साल 2 साल में बच्चा नहीं होता, तो इस का जिम्मेदार केवल महिला को ठहराया जाता है, जबकि महिला को मां बनाने में नाकाम होना पुरुष की मर्दानगी पर सवाल होता है. पुरुष भी इस के लिए कम जिम्मेदार नहीं और दोनों ही स्थितियों के स्पष्ट शारीरिक कारण हैं. पर अब लोगों में जागरूकता बढ़ी है.

आज बच्चा पैदा करने में अपनी नाकामी की बात स्वीकार करने का साहस पुरुष भी दिखा रहे हैं. वे इस की जिम्मेदारी ले रहे हैं और इलाज के लिए आगे आ रहे हैं.

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार बच्चा पैदा करने की अक्षमता के लगभग एकतिहाई मामलों की जड़ पुरुषों की प्रजनन क्षमता में कमी है, जबकि अन्य एकतिहाई के लिए महिलाओं की प्रजनन को जिम्मेदार माना जाता है. बाकी मामलों के कारण अभी ज्ञात नहीं हैं.

कारण

पुरुषों की प्रजनन अक्षमता के मुख्य कारण हैं- शुक्राणुओं की संख्या में कमी, उन की गति में कमी और टेस्टोस्टेरौन की कमी. शुक्राणुओं की संख्या में कमी से फर्टिलाइजेशन (निशेचन) की संभावना में बहुत कमी आती है, जबकि उन की गति धीमी पड़ने से शुक्राणु तेजी से तैर कर एग (अंडाणु) तक पहुंच कर उसे फर्टिलाइज करने में नाकाम रहता है. टेस्टोस्टेरौन एक हारमोन है, जिस की शुक्राणु पैदा करने में बड़ी भूमिका होती है. समस्या के ये कारण बदलते रहते हैं और इन में 1 या अधिक की मौजूदगी से पुरुष की प्रजनन क्षमता छिन सकती है.

शुक्राणुओं की संख्या या गुणवत्ता में कमी के कई कारण हो सकते हैं जैसे आनुवंशिक कारण, टेस्टिक्युलर (अंडकोश) की समस्या, क्रोनिक प्रौस्टेट का संक्रमण, स्क्रोटम की नसों का फूला होना और अंडकोश का सही से नीचे नहीं आना.

शुक्राणु बनने में बाधक कुछ अन्य कारण हैं कुछ खास रसायनों, धातुओं व विषैले तत्त्वों का अधिक प्रकोप और कैंसर का इलाज, जिस में रेडिएशन या कीमोथेरैपी शामिल है.

कुछ आम जोखिम भी हैं जैसे तंबाकू का सेवन, शराब पीना, जिस से पुरुषों के लिंग में पर्याप्त उत्तेजना नहीं होती और शुक्राणुओं की संख्या घट जाती है.

मोटापा भी एक कारण है, जिस के परिणामस्वरूप शुक्राणुओं की संख्या और टेस्टोस्टेरौन का स्तर गिर जाता है. इन सब के अलावा व्यायाम न करना या कम करना भी एक बड़ा कारण है.

काम की जगह जैसे फैक्टरी में अत्यधिक तापमान होना भी इस समस्या को जन्म देता है. इस से अंडकोश का तापमान बढ़ जाता है और शुक्राणु बनने की प्रक्रिया बाधित होती है.

बहुत से पुरुषों को उन के नपुंसक होने का तब तक सच नहीं पता चलता जब तक दोनों पतिपत्नी संतान का सपना सच करने का प्रयास शुरू नहीं करते. ऐसे में पतिपत्नी को चाहिए कि स्वाभाविक रूप से गर्भधारण के लिए 1 साल का समय दें और उस के बाद चिकित्सक से सलाह लें. यदि पत्नी 35 वर्ष से अधिक की हो तो 6 माह के प्रयास के बाद ही उस की उर्वरता की जांच जरूरी है. पुरुषों की प्रजनन क्षमता की जांच में शामिल है वीर्य का विश्लेषण, खून जांच, अल्ट्रासाउंड और जेनेटिक टैस्ट. समस्या की जड़ तक पहुंचने के लिए चिकित्सक 1 या अधिक जांचें करवा सकते हैं.

इलाज

आज इलाज के कई विकल्प मौजूद हैं. इन में एक कृत्रिम निशेचन है, जिस में उपचारित शुक्राणु को सीधे गर्भाशय में डाल दिया जाता है. दूसरा, इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) है, जिस में महिला का अंडाणु बाहर निकाल कर उसे एक लैब में पुरुष से प्राप्त शुक्राणु से निशेचित कर वापस गर्भाशय में डाल दिया जाता है. एक अन्य इलाज है इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजैक्शन (आईसीएसआई) जो शुक्राणुओं की संख्या नगण्य (या शून्य) या शुक्राणु के विकृत आकार में होने पर प्रभावी है. इस में केवल एक शुक्राणु को ले कर लैब के अंदर सीधे अंडाणु में डाल दिया जाता है ताकि भ्रूण बन जाए. इस का अर्थ यह है कि प्रचलित आईवीएफ से अलग इस में शुक्राणु को तैर कर अंडाणु तक जाने या अंडाणु की बाहरी परत को तोड़ कर अंदर घुसने की जरूरत नहीं रहती. परिणामस्वरूप निशेचन आसान हो जाता है. इन तकनीकों की मदद से नपुंसकता की समस्या होने के बावजूद पुरुष जैविक रूप से अपनी संतान का पिता बन सकता है.

कुछ मामलों में पतिपत्नी दोनों बच्चा पैदा करने में अक्षम होते हैं या उन में कुछ आनुवंशिक बीमारियों का पता चलता है, जो वे चाहते हैं कि उन की संतान तक नहीं पहुंचें. शुक्राणुओं की गुणवत्ता में अत्यधिक कमी के ऐसे मामलों में डोनर शुक्राणु का लाभ लिया जा सकता है. इस के अलावा, आज डोनर इंब्रायो का भी विकल्प है जो ऐसे दंपती दे सकते हैं, जिन्हें गर्भधारण में सफलता मिल गई है और उन के बचे निशेचित अंडाणु अब उन के किसी काम के नहीं हैं.

आज सैरोगेसी भी एक विकल्प है. इस में सैरोगेट महिला कृत्रिम रूप से निशेचित भ्रूण को स्वीकार कर संतान के इच्छुक दंपती के लिए गर्भधारण करती है.

भारत में अब अनुर्वरता के लिए विश्वस्तरीय उपचार केंद्र हैं. कुशल चिकित्सकों की मदद से हजारों नि:संतान दंपतियों के घर किलकारियों से गूंज रहे हैं. अनुर्वरता के उपचार के लिए आने वाले युवाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है. इसलिए अब यह झुंझलाहट छोड़ें कि अनुर्वर कौन पति या पत्नी? बेहतर होगा, सीधे योग्य चिकित्सक से संपर्क कर अनुर्वरता के उपचार की आधुनिक तकनीकों का लाभ लें.

वीर्यपात में शुक्राणु नहीं होने पर इस समस्या को ऐजुस्पर्मिया कहते हैं. यह 2 प्रकार

की होती है:

औब्स्ट्रक्टिव ऐजुस्पर्मिया: टेस्टिस में शुक्राणु बनता तो है पर इसे ले जाने वाली नली के बंद रहने से यह वीर्य के साथ नहीं निकलता. ऐसे मरीज के टेस्टिस की सर्जरी कर शुक्राणु निकाल फिर आईवीएफ का उपचार किया जा सकता है.

नौनऔब्स्ट्रक्टिव ऐजुस्पर्मिया: टेस्टिस में शुक्राणु नहीं बनता है. चिकित्सा और आधुनिक उपचार से गर्भधारण हो सकता है पर इस की संभावना कम होती है.

पुरुष नपुंसकता के संभावित कारण

– हारमोन असंतुलन.

– संक्रमण जैसे कि ऐपिडिडिमिस या टेस्टिकल्स में सूजन अथवा यौन संबंध में कुछ संक्रमण.

– इम्यूनिटी की समस्याएं या बीमारियां.

– वीर्यपात की समस्याएं.

– सैलियक डिजीज जो ग्लूटेन के प्रति हाइपर सैंसिटिव है. ग्लूटेन फ्री आहार अपनाने से सुधार हो सकता है.

– वैरिकोसेले जो स्क्रोटम में नसों का बड़ा होना है. सर्जरी से सही हो सकता है.

– कैंसर और नौनमैलिग्नैंट ट्यूमर.

दवा से उपचार: टेस्टोस्टेरौन बदलने का उपचार, लंबे समय तक ऐनाबोलिक स्टेराइड का प्रयोग, कैंसर की दवाओं, ऐंटीफंगल दवाओं और अल्सर की दवाओं का प्रयोग.

गलत शीजवनशैली: मोटापा, पर्यावरण की विषाक्तता, औद्योगिक रसायन, हवा की गुणवत्ता में गिरावट, सिगरेट पीने, लंबे समय तक तनाव से पुरुषों में नपुंसकता की समस्या बढ़ती है.

नपुंसकता की जांच

– चिकित्सा का इतिहास: पारिवारिक इतिहास ताकि मरीज की चिकित्सा समस्या, पहले हुई सर्जरी और दवाइयों का रिकौर्ड रखा जा सके.

– शारीरिक परीक्षण: शारीरिक विषंगतियों की जांच.

– खून जांच: टेस्टोस्टेरौन और फौलिकल स्टिम्यूलेटिंग हारमोन (एफएसएच) के स्तर की जांच.

मानक वीर्य विश्लेषण: निम्नलिखित मूल्यांकन के लिए:

– गाढ़ापन वीर्य के प्राप्त नमूने में स्पर्माटाजोआ की संख्या.

– गतिशीलता: स्पर्माटाजोआ के चलने की गति

– संरचना: शुक्राणु की संरचनात्मक विकृति का आकलन.

यदि शुक्राणु बिलकुल नहीं हों तो वीर्य की अतिरिक्त जांच होती है, जिसे पैलेट ऐनालिसिस कहते हैं.

जब गांव की लड़की को हुई पहली माहवारी, फिर हुआ ये

पहली माहवारी हर लड़की के लिए बड़ी उलझन और मुश्किल भरी होती है. किसी के लिए दर्द बरदाश्त से बाहर होता है तो कोई इस से पूरी तरह से अनजान इस बात से डरी होती है कि कहीं उसे किसी तरह की चोट या बीमारी तो नहीं हो गई जो उस के साथ यह सब हो रहा है.

यह वह सोच है, जो माहवारी से जुड़ी हुई है और जो अकसर स्कूल की किताबों में बच्चे कैसे पैदा होते हैं वाले पाठ में लिखी मिलती है. गैरसरकारी संस्था वाले जब कोई जानकारी देने आते हैं, तो वे कुछ इसी तरह से बच्चों को माहवारी के बारे में समझाते हैं.

लेकिन, माहवारी की यह परिभाषा असल में जगह और संसाधनों या कहें सुखसुविधाओं की तर्ज पर दी जाए तो बेहतर रहेगा. पर क्यों? क्योंकि जिन लड़कियों को सैनेटरी पैड या एक साफ कपड़ा भी नहीं मिल पाता, उन के लिए महीने के वे 5 दिन किसी बुरे सपने से कम नहीं होते.

लेकिन अगर सुविधाएं हों और तब भी बहुत सी लड़कियों का मुंह बंद रख कर परेशानियों को झेलते रहना भी यह सोचने पर मजबूर करता है.

84 फीसदी लड़कियों को पहली माहवारी होती है तो पता नहीं होता कि क्या हो रहा है. 15 फीसदी लड़कियां ही सैनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं.

माहवारी को धर्म से भी जोड़ा जा चुका है. कहा जाता है कि जब इंद्र देवता ने ब्राह्मणों को मारा था और इंद्र का पाप औरतों ने अपने सिर ले लिया जो हर महीने आता है.

इस बेसिरपैर की कहानी की वजह से औरतों को माहवारी के दिनों में अछूत मान लिया जाता है.

पंडेपुजारी यह भी बता देते हैं कि गलत सोच के चलते हर महीने खून की शक्ल में निकलती है. इस तरह की बातें सुनसुन कर लड़कियां अपनेआप को पापिन समझती हैं.

माहवारी, जिसे अकसर लोग पीरियड्स, महीना या डेट कह कर पुकारते हैं, असल में वह मुद्दा है, जिस पर बात तो की जाने लगी है, लेकिन बात असल में किस तरह की और क्या बात होनी चाहिए, इस पर शायद ही कोई ध्यान देता है.

गांव और कसबों की लड़कियां शहरी लड़कियों से इस मामले में बहुत अलग हैं. हर लड़की ही इस मामले में बहुत अलग है, यह कहना ज्यादा बेहतर रहेगा. पहली माहवारी का दर्द, घबराहट, चिंता जैसी परेशानियां भी सब की एकजैसी नहीं होती हैं.

नाम दिया ‘लीच’ अलीगढ़ की रहने वाली खुशबू

16 साल की है. उस से यह सवाल पूछने पर कि जब उसे पहली बार माहवारी आई थी, तो उस ने क्या किया था, तो वह हंसते हुए कहती है, ‘‘इस में बताने वाला क्या है. सब के साथ एकजैसा ही होता है.’’

खुशबू पर थोड़ा जोर डाल कर पूछने पर उस ने आगे बताया, ‘‘दीदी, मुझे तो स्कूल में बता दिया गया था कि कैसे क्या होता है, तो मुझे तो सब पता था. मम्मी ने भी कहा था कि यह दिक्कत होती है लड़कियों को.

‘‘दिक्कत…?’’ मैं ने पूछा.

खुशबू फिर जोर से हंस कर कहने लगी और बोली, ‘‘हां, मतलब वही.

‘‘तुम पीरियड्स को क्या कहती हो?’’

‘‘दीदी, मैं अपनी सहेली को बुलाती हूं. वह आप को बता देगी अच्छे से,’’ कह कर खुशबू बगल के घर से अपनी सहेली रोली को बुला लाई.

‘‘हां, क्या बताना है?’’ रोली ने खुशबू की ही तरह हंसते हुए पूछा.

‘‘पहली माहवारी आई थी, तो क्या हुआ था?’’

यह सुनते ही रोली खिलखिला कर हंसने लगी, ‘‘मुझे तो मेरी चाची ने बताया था कि यह हो तो क्या होता है.’’

‘‘यह मतलब?’’ मैं ने एक बार फिर सवाल किया.

‘‘हां, मतलब यही,’’ कह कर वह हंस पड़ी.

‘‘तुम माहवारी को क्या कहती हो?’’

‘‘कहते तो हम लीच यानी जोंक हैं,’’ रोली ने कहा और यह बताए बिना कि असल में पहली बार माहवारी आई थी तो क्या हुआ था, खुशबू को देख हंसने दी.

इस के बाद वे सिर्फ हंस रही थीं और माहवारी के बारे में बात करने से कतरा रही थीं. यह कतराना, हंसना, मजाक बनाना वह समस्या है, जिस पर बात करने की जरूरत है. क्यों? क्योंकि इस हंसी के पीछे माहवारी लड़कियों के लिए माहमारी बन जाती है और इसी हंसी के पीछे दब कर रह जाती है.

चुप रहना पड़ा महंगा 8 महीने पहले इसी गांव की रहने वाली सुनीता को अनियमित माहवारी की समस्या हुई थी. उसे 2 महीने तक 13 दिन माहवारी हुई. उस ने अपनी मां को बताया तो उन्होंने समझाया कि शुरूशुरू में ऐसा होता है. पर कोई दिक्कत नहीं.

13 दिन पीरियड्स होने पर सुनीता ने सैनेटरी पैड का इस्तेमाल किया था, लेकिन बारबार ले कर कौन आता, इस उलझन में वह एक ही पैड पूरा दिन इस्तेमाल करती. इस वजह से उस की जांघों पर दाने निकल आए. उस ने मां से दानों का जिक्र किया तो उन्होंने उसे क्रीम लगा लेने के लिए कहा.

माहवारी तो नियमित हो गई, लेकिन दाने बढ़ते गए. एक जांघ से शुरू हुए दाने अब दोनों पर फैलने लगे. सुनीता और उस की मां दोनों को ही समझ नहीं आया कि जांघें दिखा कर तो दवा ले नहीं सकते और बोलने में भी उन्हें शर्म आ रही थी, तो सुनीता की मां ने अपने पति से कह कर फैल रहे दानों की दवा मंगाई. जांघ पर हुए ये दाने अब बड़ेबड़े निशान बनने लगे और सुनीता की जांघों की चमड़ी ढीली पड़ने लगी.

अगले महीने जब पीरियड आया, तो पैड या कपड़ा कुछ भी लगाने पर वह जांघों पर बुरी तरह चुभने लगा. इस के चलते ढीली पड़ी जांघ की चमड़ी पर गहरा कट लग गया. अब न सुनीता उठ पा रही थी, न चल पा रही थी. आखिरकार सुनीता ने भाई से फोन मांग कर जांघों का फोटो खींचा और डाक्टर के पास गई.

डाक्टर ने देखते ही बताया कि सुनीता की जांघों पर दाद हुआ है और जांघों की ढीली हुई चमड़ी जिस पर खिंचाव के निशान आ गए हैं, अब कभी ठीक नहीं होगी, ये निशान कभी नहीं जाएंगे.

जाहिर तौर पर दाद की वजह से सुनीता का माहवारी के समय सफाई न रखने पर इंफैक्शन की चपेट में आना था, जिस ने बाद में दाद का रूप ले लिया.

साफतौर पर लड़कियों के लिए बहुत जरूरी है कि वे इस बात को समझें कि पहली माहवारी के बारे में सीख लेना या जान लेना ही काफी नहीं है, बल्कि तीसरी, चौथी, 5वीं और हर एक माहवारी में यह ध्यान रखना जरूरी है कि साफसफाई जरूरी है.

पैड हो या कपड़ा समय पर बदलना जरूरी है. जिस तरह से खीखी और हंसीठिठोली में इस बारे में बात होती है, उसी तरह माहवारी से हो रही तमाम बीमारियों के बारे में खुल कर बोलना भी जरूरी है.

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