इतना ही नहीं टौप ट्रेडिंग में गोडसे अमर रहे था. उस दिन मैं समझ गया कि अब मेरी पहचान बदल गई है. अब मेरी पहचान गोडसे अमर रहे से हो रही है जोकि कभी नहीं होना चाहिए था. मुझे अंग्रेजों की हुकूमत से आजाद करने वाले नायक के हत्यारे से जाना जाए ऐसा नहीं होना चाहिए. आज मैं व्यथित हूं लेकिन कुछ कर नहीं सकता. बस इंतजार है और भरोसा है कि एक दिन ये सब कुछ जरूर बदलेगा…”
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गांधी जयंती के दिन देश भर में बड़े-बड़े आयोजन किए गए. करोड़ों रूपये की आहूति दे दी गई वो भी ऐसे दौर में जब देश आर्थिक मंदी से जूझ रहा है. हालांकि सरकार इस बात को सिरे से नकारती आई है कि इस देश में किसी भी प्रकार की मंदी है लेकिन ग्रोथ रेट तो यही दर्शाता है. कांग्रेस और बीजेपी दोनों महात्मा गांधी के नाम का इस्तेमाल कर राजनीति चमकाने की कोशिश में जुटे हुए हैं.
2 अक्टूबर के दिन दो दोनों में जुबानी जंग भी छिड़ गई. कोई पदयात्रा निकाल रहा है तो कोई मंचों से भाषणबाजी कर रहा है लेकिन कोई भी बापू के सपनों का भारत नहीं बना रहा है. गांधी जी के भारत में हिंदू-मुसलमानों की बात नहीं होती थी. गांधी के भारत में मौब लिंचिंग शब्द नहीं होता था. लेकिन अब सब हो रहा है. भले ही भारी-भरकम आयोजन कर के गांधी जी की 150वीं वर्षगांठ बनाने की कवायद की जा रही हो लेकिन ये तब तक सार्थक नहीं होगी जब तक गांधी के सपनों का भारत नहीं बनेगा.
पीएम मोदी ने स्मारक टिकटों और 40 ग्राम शुद्ध चांदी के सिक्के को महात्मा गांधी को समर्पित किया. इस टिकट और सिक्के को 15वीं गांधी जयंती पर बापू को समर्पित किया गया है. इस दौरान पीएम मोदी ने भारत को खुले में शौच मुक्त बनाने में योगदान देने वाले स्वच्छाग्रहियों को सम्मानित किया गया.पीएम मोदी ने कहा कि बापू की जयंती का उत्सव तो पूरी दुनिया मना रही है.
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कुछ दिन पहले संयुक्त राष्ट्र ने डाक टिकट जारी कर इस विशेष अवसर को यादगार बनाया और आज यहां भी डाक टिकट और सिक्का जारी किया गया है. मैं आज बापू की धरती से, उनकी प्रेरणा स्थली, संकल्प स्थली से पूरे विश्व को बधाई देता हूं, शुभकामनाएं देता हूं. यहां आने से पहले मैं साबरमती आश्रम गया था. अपने जीवन काल में मुझे वहां अनेक बार जाने का अवसर मिला है. हर बार मुझे वहां पूज्य बापू के सानिध्य का ऐहसास हुआ लेकिन आज मुझे वहां एक नई ऊर्जा भी मिली.
अब हम यहां पर कुछ बात कर लेते हैं अर्थव्यवस्था की जिसका कोई जिक्र नहीं हो रहा है…
साल 2019-20 की पहली तिमाही के आंकड़े जारी किये गए हैं. जिनके अनुसार आर्थिक विकास दर 5 फीसदी रह गई है. बीते वित्तीय वर्ष की इसी तिमाही के दौरान विकास दर 8 प्रतिशत थी. वहीं पिछले वित्तीय साल की आखिरी तिमाही में ये विकास दर 5.8 प्रतिशत थी. अर्थशास्त्री विवेक कौल के अनुसार यह पिछली 25 तिमाहियों में सबसे धीमा तिमाही विकास रहा और ये मोदी सरकार के दौर के दौरान की सबसे कम वृद्धि है.
विशेषज्ञ कहते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था में तरक्की की रफ्तार धीमी हो रही है. ऐसा पिछले तीन साल से हो रहा है.उनका कहना है कि उद्योगों के बहुत से सेक्टर में विकास की दर कई साल में सबसे निचले स्तर तक पहुंच गई है. देश मंदी की तरफ़ बढ़ रहा है. लेकिन सरकार को इससे कोई फर्क है ही नहीं. तभी तो सरकार ने हाउडी मोदी कार्यक्रम में आंख बंद कर खूब पैचे खर्च किए.
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार के अनुसार जून में ख़त्म होने वाली साल की पहली तिमाही में विकास दर में गिरावट से ये मतलब नहीं निकलना चाहिए कि देश की अर्थव्यवस्था मंदी का शिकार हो गयी है. वो कहते हैं, “भारत में धीमी गति से विकास के कई कारण हैं जिनमे दुनिया की सभी अर्थव्यवस्था में आयी सुस्ती एक बड़ा कारण है.” वो सरकार के हिस्सा हैं तो ऐसी बातें तो करेंगे ही. लेकिन सच छिपता नहीं है. आज हर सेक्टर में सुस्ती देखी जा रही है.
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पश्चिमी देशों में इसे हल्की मंदी करार देते हैं. साल-दर-साल आधार पर आर्थिक विकास में पूर्ण गिरावट हो तो इसे गंभीर मंदी कहा जा सकता है. इससे भी बड़ी मंदी होती है डिप्रेशन, यानी सालों तक नकारात्मक विकास. अमरीकी अर्थव्यवस्था में 1930 के दशक में सबसे बड़ा संकट आया था जिसे आज डिप्रेशन के रूप में याद किया जाता है. डिप्रेशन में महंगाई, बेरोज़गारी और ग़रीबी अपने चरम सीमा पर होती है.
साल 2008-09 में वैश्विक मंदी आयी थी. उस समय भारत की अर्थव्यवस्था 3.1 प्रतिशत के दर से बढ़ी थी जो उसके पहले के सालों की तुलना में कम थी लेकिन विवेक कॉल के अनुसार भारत उस समय भी मंदी का शिकार नहीं हुआ था.