बदलते जमाने का सच: भाग 1

‘‘हैलो,’’ प्रियांशु ने मुसकरा कर नैनी की ओर देखा.

‘‘हैलो,’’ नैनी भी उसे देख कर मुसकराई.

‘‘तुम्हारा प्रोजैक्ट बन गया क्या?’’

‘‘नहीं, मेरा लैपटौप खराब हो गया है. ठीक होने के लिए दिया है. एक घंटे के लिए अपना लैपटौप दोगे मुझे?’’

‘‘क्यों नहीं, कब चाहिए?’’ प्रियांशु ने पूछा.

‘‘कल दोपहर में आ कर ले जाऊंगी. लंच भी तुम्हारे साथ करूंगी. संडे है न, कोई न कोई नौनवैज तो बनाओगे ही.’’

‘‘बिलकुल. क्या खाना पसंद करोगी, चिकन या मटन?

‘‘जो तुम्हें पसंद हो. वैसे, तुम्हारा प्राजैक्ट बन गया क्या?’’

‘‘हां, देखना चाहोगी?’’

‘‘हां, क्यों नहीं. कल आने के बाद,’’ नैनी ‘बायबाय’ कहते हुए चली गई. प्रियांशु भी अपने र्क्वाटर पर लौट आया.

प्रियांशु और नैनी एक कंपनी में साथसाथ काम करते थे. उन के क्वार्टर भी अगलबगल में थे. दोनों अभी कुंआरे थे. साथसाथ काम करने के चलते अकसर उन में बातचीत होती रहती थी. दोनों के विचार मिलते थे और दोस्ती के लिए इस से ज्यादा चाहिए भी क्या.

दूसरे दिन प्रियांशु मटन ले कर लौटा ही था कि नैनी आई.

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‘‘बहुत जल्दी आ गई तुम नैनी?’’ प्रियांशु ने लान में रखी कुरसी पर बैठने का इशारा किया और खुद मटन रखने रसोईघर में चला गया.

‘‘तुम्हारा हाथ बंटाने पहले आ गई,’’ कह कर नैनी मुसकराई.

नैनी की यही अदा प्रियांशु को उस का दीवाना बनाए हुई थी.

‘‘अभी चाय ले कर आता हूं, फिर इतमीनान से खाना बनाएंगे,’’ कह कर प्रियांशु रसोईघर में चला गया.

प्रियांशु के पिताजी किसान थे. उस से बड़ी एक बहन थी जिस की शादी हो चुकी थी. उस से एक छोटा भाई महीप था जो मैडिकल इम्तिहान की तैयारी कर रहा था. पिता के ऊपर काफी कर्ज हो गया था.

अब प्रियांशु कर्ज चुकाने और छोटे भाई महीप को पढ़ाने का खर्चा उठा रहा था. पिताजी उस की शादी में तिलक की एक मोटी रकम वसूलना चाहते थे. रिश्ते तो कई जगह से आए थे, पर उन की डिमांड ज्यादा होने के चलते कहीं शादी तय नहीं हो पा रही थी. इधर उस की बहन अपनी ननद के लिए लड़का ढूंढ़ रही थी. उस की ननद नाटे कद की थी और किसी तरह मैट्रिक पास हो गई थी. रंगरूप साधारण था, पर प्रियांशु के पिताजी की डिमांड को उस के समधी पूरा करने के लिए तैयार हो गए थे.

नैनी के पिताजी की मौत उस के बचपन में ही हो गई थी. कोई भाई नहीं था. मां ने उस की पढ़ाई के लिए कौनकौन से पापड़ न बेले थे. बाद में उस ने ऐजुकेशन लोन ले कर पढ़ाई पूरी की थी. अब लोन चुकाना और मां की देखभाल की जिम्मेदारी उस पर थी.

प्रियांशु जब रसोईघर में गया था तब उस का मोबाइल फोन बाहर ही छूट गया था. अचानक फोन बजने लगा तो नैनी ने प्रियांशु को पुकारा, पर चाय बनाने में बिजी होने के चलते उस की आवाज प्रियांशु के कानों तक न पहुंची.

नैनी ने फोन रिसीव किया तो उधर से आवाज आई. कोई औरत थी.

‘‘हैलो, आप कौन बोल रही हैं?’’ नैनी ने पूछा.

‘प्रियांशु कहां है? मैं उन की बहन बोल रही हूं. आप कौन हैं?’

‘‘मैं प्रियांशु की कलीग हूं, बगल में ही रहती हूं.’’

‘अच्छा, तुम नैनी हो क्या?’

‘‘हां जी, आप मुझे कैसे जानती हैं?’’ नैनी ने हैरान हो कर पूछा.

‘प्रियांशु ने बताया था. अब तुम उस का पीछा करना छोड़ दो. उस की शादी मेरी ननद से तय हो गई है,’ उधर से एक तीखी आवाज आई.

‘‘अच्छा जी… प्रियांशु अभी रसोईघर में हैं. वे आ जाते हैं तो उन्हें आप को फोन करने के लिए कहती हूं,’’ नैनी ने अपनेआप को संभालते हुए कहा.

प्रियांशु ने अपनी बहन की ननद के बारे में कुछ दिनों पहले बताया था. वह कुछ परेशान सा लग रहा था. उस की बातों से लग रहा था कि उस की बहन अपनी ननद के लिए उस के पीछे पड़ी थी. कहती थी कि यह शादी हो जाती है तो उसे मुंहमांगा दहेज मिलेगा. साथ ही, उस की ननद हमेशा के लिए उस के साथ रहेगी, पर प्रियांशु को यह रिश्ता बिलकुल पसंद नहीं था.

नैनी यह तो नहीं जानती थी कि प्रियांशु से उस का क्या रिश्ता है, पर उन दोनों को एकदूसरे का साथ बहुत भाता था. प्रियांशु जब कभी औफिस से गैरहाजिर होता था तो वह उसे बहुत याद करती. आज उसे पता चला कि प्रियांशु ने घर में उस की चर्चा की है, पर इस संबंध में उस ने कभी कुछ बताया न था. अभी वह इसी उधेड़बुन में थी कि प्रियांशु आ गया.

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‘‘तुम्हारा फोन था. बधाई, तुम्हारी शादी तय हो गई,’’ नैनी ने मुसकराने की कोशिश करते हुए कहा.

प्रियांशु चाय की ट्रे लिए खड़ा था. लगा, गिर जाएगा. किसी तरह अपनेआप को संभालते हुए वह बैठा. यह सुन कर उस का मन बैठता चला गया. तो क्या सच ही उस की शादी तय हो गई? क्या यह उस की बहन की चाल तो नहीं? अगर ऐसा है तो जरूर ही उस की ननद होगी. पर वे लोग उस से बिना पूछे ऐसा कैसे कर सकते हैं.

‘‘क्या सोच रहे हो? बहन से पूछ लो कि कब सगाई है. मुझे तो ले नहीं चलोगे. कहोगे तब भी मैं न चलूंगी. तुम्हारी बहन ने चेताया है, तुम्हारा पीछा छोड़ दूं,’’ नैनी बोल रही थी. वह सुन रहा था. लंच का सारा मजा किरकिरा हो गया था.

दूसरे दिन प्रियांशु गांव में था. उस ने पिताजी के पैर छुए.

‘‘अच्छा हुआ कि तू आ गया बेटा. अब हम कर्ज से जल्दी ही उबर जाएंगे. तुम्हारा रिश्ता तय हो गया है सरला से. वही तुम्हारी बहन की ननद. कद में तुम से थोड़ी छोटी जरूर है, पर घर के कामों में माहिर है. सुशील इतनी कि हर कोई उस के स्वभाव की तारीफ करता है. तुम्हारी बहन का भी काफी जोर था.’’

अरे, यह क्या कर दिया?

केदारनाथ धाम में मुंबई के मेरे एक दोस्त पिछले दिनों केदारनाथ धाम आए थे. अपने आने की खबर उन्होंने मुझे पहले से दे दी थी. वे एक होटल में ठहरे थे.

उन से मुलाकात कर के मैं वापस लौट रहा था. रास्ते में देखा कि एक कोढ़ी खस्ता हालत में शिवलिंग के दर्शन के लिए गुजरात से आया था.

वह कोढ़ी पूरी शिद्दत से मंदिर के अंदर चला गया. सब लोग लाइन में खड़े थे, तभी उस कोढ़ी के पास एक पंडा आया. उस कोढ़ी ने जेब से 500 रुपए निकाल कर पंडे को दे दिए. पंडा उसे स्पैशल पूजा के रास्ते से मंदिर के भीतर ले गया.

पूजा के बाद पंडा तो खिसक गया, लेकिन उस कोढ़ी ने शिवलिंग को कस कर पकड़ते हुए कहा, ‘‘महाराज, मैं गुजरात से आया हूं. न जाने मैं ने पिछले जन्म में क्या पाप किया था, जो मैं कोढ़ी हो गया…’’

वह कोढ़ी शिवलिंग पर ऐसे चिपटा हुआ था, मानो उस का कोढ़ गायब हो जाएगा. वह शिवलिंग को छोड़ने के मूड में नहीं था, तभी वहां तमाम भक्तों की भीड़ लग गई. सभी दर्शनों के लिए बेचैन थे. दूसरे पंडे उसे शिवलिंग को छोड़ने के लिए लगातार कह रहे थे, पर वह उन की बात न सुन कर केवल रोए जा रहा था.

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हार कर 4 पंडे और आए और उसे जबरन घसीट कर मंदिर से बाहर ले गए.

गुस्से में आगबबूला हो कर पंडे उसे गालियां देने लगे. कुछ पंडे उस पर लातें चला रहे थे, तो कई घूंसे जमा रहे थे.

थोड़ी देर बाद वह कोढ़ी लहूलुहान हो कर सीढ़ी के किनारे आ बैठा.

मैं ने उस की हालत देख कर कहा, ‘‘अरे, यह क्या कर दिया?’’

दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मुझे कवि सम्मेलन में भाग लेने के लिए नागपुर जाना था. मैं ने स्टेशन पर पता किया कि नागपुर के लिए गाड़ी रात के 3 बजे मिलेगी. मैं रात के 12 बजे स्टेशन पहुंच गया. मैं ने सोचा कि 3 घंटे टहलतेटहलते कट जाएंगे.

मैं प्लेटफार्म नंबर 5 पर आया और एक लोहे की बैंच पर बैठ गया. मेरे बगल वाली बैंच पर धोतीकुरता पहने एक साहब गहरी नींद में सोए हुए थे.

मेरी दाईं तरफ एक साहब व उन की बीवी और 2 बच्चे एक बैंच पर बैठे थे. शायद वे भी गाड़ी का इंतजार कर रहे थे. उन के बच्चे बहुत नटखट नजर आ रहे थे. उन की मम्मी उन्हें बिट्टू व पिंटू नाम से पुकार रही थीं.

वे दोनों बच्चे मेरे बगल वाली बैंच पर सो रहे साहब को नाना पाटेकर कह रहे थे. एक भिखारी व एक भिखारिन को वे अनिल कपूर व जूही चावला कह रहे थे.

अचानक वे दोनों बच्चे मेरी बगल वाली बैंच पर सोए हुए साहब की बैंच पर बैठ गए और उन में से एक ने अपनी मम्मी से कहा, ‘‘मम्मी, हम नाना पाटेकर के साथ बैठे हैं.’’

उन की मम्मी मुसकराते हुए उन्हें चुप रहने का इशारा करने लगीं.

वे दोनों बच्चे उन साहब के नीचे रखे जूतों को इस तरह देख रहे थे, मानो जूतों की तहकीकात कर रहे हों. फिर उन दोनों ने जूतों में पेशाब करना शुरू कर दिया. वे पेशाब की धार की गिनती गिनने लगे. बिट्टू ने 50 की गिनती तक जूता भरा, जबकि पिंटू ने 30 की गिनती में ही जूता भर दिया. इस के बाद वे दोनों अपनी मम्मी के पास चले गए.

तभी एक पुलिस वाला आया. उसने सोए हुए आदमी को डंडा चुभा कर कहा, ‘‘अबे ओ घोंचू, घर में सोया है क्या?’’

उन साहब की नींद खुली और वे जूता पहनने लगे कि जूतों में भरे पेशाब ने वहां का फर्श गीला कर दिया.

‘‘अरे, यह क्या किया. जूतों में पेशाब कर के सो रहा था. प्रदूषण फैलाता है. तुझे सामने लिखा नहीं दिखाई दिया कि गंदगी फैलाने वाले से 500 रुपए जुर्माना वसूल किया जाएगा. चल थाने,’’ कह कर पुलिस वाला उसे थाने ले जाने लगा.

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वे साहब चलतेचलते गिड़गिड़ाने लगे, ‘‘नहीं जनाब, मैं ने पेशाब नहीं किया…’’

पुलिस वाले ने उन की एक न सुनी. वह उन्हें प्लेटफार्म नंबर 4 की तरफ ले गया.

मैं ने उन दोनों बच्चों की तरफ देखा. वे भी सारा माजरा समझ गए थे. उन में से एक ने दूसरे से कहा, ‘‘अभी तो फिल्म का ट्रेलर चल रहा है, पिक्चर शुरू नहीं हुई.’’

मैं धीरे से कहने लगा, ‘‘अरे, यह क्या कर दिया?’’

राजस्थान की बस में मैं अजमेर में एक अखबार में सहायक संपादक था. प्रधान संपादक ने मुझे निजी काम से दिल्ली भेजा था. मैं अजमेर से दिल्ली के लिए सुबह बस से चला था. जयपुर से आगे एक छोटे शहर में बस का टायर पंचर हो गया. सभी सवारियां समय बिताने व कुछ खानेपीने के लिए आसपास की दुकानों में चली गईं.

मैं एक पेड़ की छाया में बैठ गया. बगल वाली गली में कुछ बच्चे खेल रहे थे, तभी वहां से एक गधा गुजरा. गधे को देख कर बच्चों ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया. 3 बच्चे गधे पर सवार हो गए और 2 बच्चे डंडे से पीटते हुए उसे दौड़ाने लगे. गधा ‘ढेंचूढेंचू’ करता हुआ दौड़ता जा रहा था.

सभी सवारियां यह तमाशा देख रही थीं. हमारी बस का ड्राइवर लंबी चोटी रखे हुए था. वे बच्चे ड्राइवर को चिढ़ाने लगे, ‘चोटी वाला साबुन क्या भाव है?’

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ड्राइवर को गुस्सा आ गया. उस ने सड़क के किनारे पड़ा एक पुराना सैल उठाया और बच्चों की तरफ फेंक दिया. सैल एक बच्चे की खोपड़ी में जोर से लगा और उस की खोपड़ी से खून बहने लगा.

बस का टायर बदला जा चुका था. ड्राइवर ने हौर्न बजाया. सब सवारियां बस में बैठ गईं और बस दिल्ली की तरफ चल पड़ी.

रेवाड़ी पहुंचते ही पुलिस ने बस को घेर लिया और ड्राइवर को हथकड़ी पहना दी.

मैं ने कहा, ‘‘अरे, यह क्या कर दिया?’’

मसजिद के बाहर बात मुरादाबाद की है. एक मसजिद के बाहर एक हिंदू दंपती ने अपना तकरीबन 15 साल का लड़का नंगा कर के जमीन पर बैठा रखा था. जो भी नमाज पढ़ने अंदर जाता, उस से लड़के का पिता गुजारिश करता कि बाहर आते समय लड़के के ऊपर थूक कर चले जाना, क्योंकि यह लड़का दुष्ट आत्मा का शिकार है.

मैं ने अपने दोस्त से पूछा कि यह क्या हो रहा है, तो उस ने बताया कि यह किसी जिन का चक्कर है.

हम दोनों मसजिद के सामने वाली दुकान पर अखबार पढ़ने के बहाने बैठ गए. मेरी नजर उसी लड़के पर टिकी थी. जो भी नमाजी बाहर आ रहा था,

वह लड़के पर थूक रहा था. कोई पान वाला लाल थूक डाल रहा था तो कोई सादा थूक.

नमाजियों की भीड़ बढ़ती जा रही थी. एक नमाजी नया सफेद पठानी सूट पहने था. भीड़ की वजह से उस की सलवार पर उस लड़के के बदन का थूक लग गया.

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‘‘बेवकूफ, मेरी सलवार को कौन साफ करेगा? तेरा बाप…?’’ कहते हुए उस ने एक जोरदार लात लड़के के मुंह पर जमा दी. मैं ने देखा कि लड़के की दाईं आंख लात की चोट से बंद हो चुकी थी.

दुष्ट आत्मा तो थूकने या लात खाने से भले ही न निकली हो, पर उस लड़के को रिकशे पर लाद कर अस्पताल ले जाना पड़ा.

मैं ने कहा, ‘‘अरे, यह क्या कर दिया?’’

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