छोटे किसानों ने मचान खेती से लिखी तरक्की की कहानी

ये सभी छोटी जोत के किसान हैं और अपनी जमीन के छोटे से टुकड़े पर पारंपरिक रूप से सब्जियों की खेती करते आ रहे थे. इस के चलते उन का खर्चा बड़ी मुश्किल से चल पाता था. ऐसे में इन किसानों को परिवार चलाने के लिए बाकी दिनों में मेहनतमजदूरी कर अपना पेट पालना पड़ता था.

ऐसे में उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले की स्वैच्छिक संस्था ‘पानी’ ने 2 साल पहले इन किसानों को पारंपरिक खेती छोड़ मचान विधि से सब्जियों की खेती करने की सलाह दी. साथ ही, इस संस्था ने इन किसानों को तकनीकी मदद के साथ ही उपकरण, खादबीज की निशुल्क मदद देने का प्रस्ताव भी रखा.

संस्था के इस प्रस्ताव को देखते हुए कई किसान ‘पानी’ संस्था द्वारा बताई गई विधि से सब्जियों की खेती करने को तैयार हो गए.

फिर क्या था, इस गांव के किसान लालबहादुर, राम दुलार, तुलसीराम, धीरेंद्र, पृथ्वीपाल, निरंजन, धर्मेंद्र, मेवालाल, रामकली, मंजू बलवंत मौर्या, प्यारेलाल ने 2 साल पहले अपने खेत में मचान विधि से खेती करने की शुरुआत की हामी भर दी.

संस्था के सहयोग से बनी बात?: जिन किसानों ने मचान खेती के जरीए अपनी माली हालत में तरक्की लाने का काम किया है, उस में ‘पानी’ संस्था का बहुत बड़ा योगदान है. इस मसले पर ‘पानी’ संस्था के कर्मचारी संजीव पाठक ने बताया कि किसानों की तरक्की के लिए इस

संस्था ने एचडीएफसी बैंक

के सहयोग से किसानों को बांस के टुकड़े, रस्सियां, तार, खाद, बीज वगैरह मुहैया कराए.

इन किसानों ने भी संस्था की देखरेख में मचान विधि से खेती की शुरुआत की. इस के लिए ‘पानी’ संस्था की तरफ से किसानों को कृषि विशेषज्ञ भी उपलब्ध कराए गए.

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नर्सरी में तैयार होते पौधे : संजीव पाठक ने बताया कि मचान विधि से खेती के लिए किसानों द्वारा सब्जियों के बीजों को सीधे खेतों में न बो कर पहले बोई जाने वाली सब्जियों की नर्सरी तैयार कराई जाती?है. नर्सरी में तैयार इन पौधों को मचान वाले खेत में बिना जड़ों को नुकसान पहुंचाए रोपाई का काम पूरा कराया जाता है.

ऐसे करते हैं रोपाई : ‘पानी’ संस्था के सहयोग से किसानों को खेत में मचान तैयार करने में कोई परेशानी नहीं हुई. किसानों ने सब्जियों को बोने से पहले ही पौध को सहारा देने के लिए बांस के टुकड़ों को गाड़ कर खड़ा किया और खंभों के बीच की दूरी 2 मीटर रखते हुए ली जाने वाली फसल को देखते हुए खंभों की ऊंचाई 5 से

6 फुट रखी.

इस के बाद खंभों के सहारे सब्जियों की पौध को ऊपर चढ़ाने के लिए खंभों के?ऊपरी सिरे को तार व रस्सियों से बांधते हुए आपस में जोड़ दिया.

इस गांव के किसान मचान वाले खेतों में सब्जियों के पौधों को रोपाई के लिए मिट्टी सहित निकाल कर शाम के समय रोपाई करने का काम करते हैं. रोपाई के तुरंत बाद पौधों की हलकी सिंचाई करते हैं. इस से खेत में पौधों के मरने का डर कम रहता?है.

ये किसान खेत में रोपे गए पौधों की रोपाई के 10-15 दिन बाद और आगे इसी अंतराल पर निराई कर के खरपतवार साफ करते रहते?हैं.

मचान विधि से खेती कर रहे किसान पहली निराई के बाद गुड़ाई कर के पौधों की जड़ों के आसपास हलकी मिट्टी चढ़ाते हैं. इस से पौधे मजबूत होते?हैं और उन का विकास अच्छा होता है.

मचान विधि से खेती कर रहे किसान कृषि माहिरों द्वारा बताए अनुसार खादबीज की मात्रा का उपयोग करते हैं. साथ ही, फसल में लगने वाले कीटबीमारियों की रोकथाम के लिए कृषि विशेषज्ञों की सलाह लेना नहीं भूलते हैं. फसल की सिंचाई भी इन माहिरों की सलाह के मुताबिक ही करते हैं.

दोगुनातिगुना कमा रहे लाभ : गांव राजपुर कसबा उर्फ कजियानी में मचान खेती करने वाले?छोटी जोत के किसान लाल बहादुर ने बताया कि वह 4 बिस्वा खेत में मचान विधि से सब्जियों की खेती कर रहे?हैं. पहले वह इतने ही खेत में सब्जियों की खेती कर के मुश्किल से 2,000 से 3,000 रुपए कमा पाते थे, लेकिन मचान विधि से खेती करने से वह एकसाथ उतने ही खेत में 2 से 3 तरह की फसलें ले रहे?हैं. इस से उन की हर महीने की आमदनी 12,000 से 15,000 रुपए हो गई है.

संजीव पाठक के मुताबिक, मचान विधि से किसान मचान के ऊपर तुरई, करेला, टिंडा, लौकी, खीरा, सेम, नेनुआ की फसल ले रहे हैं, जबकि फसल के नीचे जमीन पर प्याज, सूरन, पालक वगैरह की फसल ले कर दोगुना फायदा कमा रहे हैं.

मचान विधि से खेती कर रही रामकली ने बताया कि मचान विधि से खेती करने से आमदनी में तो इजाफा हुआ है, साथ ही गरमी और बरसात में फसल का नुकसान बहुत कम हो गया?है.

रामकली के मुताबिक, मचान के जरीए सब्जियों की खेती कर इन लोगों ने 90 फीसदी तक फसल को खराब होने से बचाने में कामयाबी पाई है. साथ ही, फसल में कीट व रोग की दशा में दवा छिड़कने में भी आसानी रहती है.

संजीव पाठक के मुताबिक, जिस तरह से छोटी जोत के किसान मचान खेती के जरीए अपनी आमदनी में इजाफा करने में कामयाब रहे हैं, उसी तरह से अगर दूसरे किसान भी अपने खेतों में मचान विधि से खेती करें तो अच्छी आमदनी ले सकते हैं.

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किसान अगर मचान खेती से जुड़ी और अधिक जानकारी चाहते?हैं तो ‘पानी’ संस्था के कर्मचारी संजीव पाठक के मोबाइल

फोन नंबर 916388794731 पर संपर्क कर सकते हैं.                                      ठ्ठ

नीलहरित शैवाल जैव उर्वरक:बढ़ाए पैदावार

आलोक कुमार सिंह, डीके श्रीवास्तव, डा. आरएस सेंगर

फसल की उत्पादकता में बढ़वार करती?हैं. इस क्रिया को जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहते?हैं. इन सूक्ष्म जीवाणुओं को ही जैव उर्वरक कहते हैं.नीलहरित शैवाल एक विशेष प्रकार की काई होती है. इन की कई प्रजातियां होती हैं, जिस में आलोसाइरा, नास्टाक, एनाबीन, सिटोनिमा, टालिपोथ्रिक्स, वेस्टीवापसिस वगैरह प्रमुख हैं.

नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्रिया शैवाल की संरचना में स्थित एक विशिष्ट प्रकार की कोशिका होती है, इसे हैटेरोसिस्ट कहते?हैं. यह सामान्य कोशिकाओं से संरचना करने में अलग होती है. इस का निर्माण सामान्य कोशिकाओं में ही कोशिकाभित्ति मोटी होने और कुछ आंतरिक परिवर्तनों के फलस्वरूप होता है.

नीलहरित शैवाल यानी बीजीए धान के लिए महत्त्वपूर्ण जैव उर्वरक है. इस के प्रयोग से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (25 फीसदी) रासायनिक नाइट्रोजन की बचत और धान के उत्पादन में 8-10 फीसदी की

बढ़ोतरी होती है. साथ ही, जमीन की उर्वरक क्षमता में बढ़ोतरी होती?है. धान के खेत का वातावरण नीलहरित शैवाल की

बढ़वार के लिए मुफीद होता?है. इस की बढ़ोतरी के लिए जरूरी तापमान, समुचित रोशनी, नमी और पोषक तत्त्व की मात्रा धान के खेत में मौजूद रहती है.

नीलहरित शैवाल द्वारा स्थिर किया गया नाइट्रोजन पौधों को शैवाल की जीवित अवस्था में ही मिल जाता?है या शैवाल कोशिकाओं के मृत होने के बाद जीवाणुओं द्वारा विघटन होने पर मिलता है.

उत्पादन की विधि

नीलहरित शैवाल जैव उर्वरक उत्पादन के लिए 5 मीटर लंबा, 1 मीटर चौड़ा और 8-10 इंच गहरा पक्का सीमेंट का?टैंक बना लें. टैंक की लंबाई जरूरत के मुताबिक घटाई या बढ़ाई जा सकती?है. टैंक ऊंची व खुली जगह पर

होना चाहिए. सीमेंट के?टैंक के स्थान पर

कच्चा गड्ढा भी बना सकते?हैं. कच्चे गड्ढ़े में तकरीबन 400-500 गेज मोटी पौलीथिन बिछा लें. खेत के स्थान पर खुली छतों पर भी 2 इंच ऊंचा गड्ढा व टैंक बना सकते हैं.

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टैंक व गड्ढे में 4-5 इंच तक पानी भर लें और प्रति वर्गमीटर के हिसाब से एक किलोग्राम खेत की साफसुथरी भुरभुरी मिट्टी, 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 10 ग्राम कार्बोफ्यूरोन डाल कर अच्छी तरह मिला कर 2-3 घंटे के लिए?टैंक को?छोड़ दें. मिट्टी बैठ जाने पर

100 ग्राम प्रति वर्गमीटर के हिसाब से उच्च गुणवत्ता का शैवाल र्स्टाटर कल्चर पानी के ऊपर समान रूप से बिखेर दें. 8-10 दिन में शैवाल की मोटी परत बन जाती?है. साथ ही, पानी भी सूख जाता?है. यदि तेज धूप या किसी दूसरी वजह से शैवाल परत बनाने से पहले ही पानी सूख जाए तब टैंक में और पानी सावधानीपूर्वक किनारे से धीरेधीरे डालें, जिस से शैवाल की मोटी परत टूटने न पाए. 8-10 दिन बाद काई की मोटी परत बनने के बाद भी अगर गड्ढे व टैंक में पानी भरा हो तो उसे डब्बे वगैरह से सावधानीपूर्वक बाहर निकाल दें. इस के बाद टैंक व गड्ढे को धूप में सूखने के लिए छोड़ दें. सूख जाने पर शैवाल कल्चर को इकट्ठा कर पौलीथिन बैग में भर कर खेतों में प्रयोग करने के लिए रख लें.

फिर उपरोक्त विधि से उत्पादन शुरू करें और स्टार्टर कल्चर के स्थान पर उत्पादित कल्चर का प्रयोग कर सकते हैं. यह उत्पादित कल्चर उच्च गुणवत्ता का?होता है. एक बार में

5 मीटर साइज के?टैंक या गड्ढे से 6.5-7.5 किलोग्राम शैवाल जैव उर्वरक हासिल होता है.

नीलहरित शैवाल जैव उर्वरक के उत्पादन के लिए बलुई दोमट मिट्टी सब से अच्छी होती?है. अप्रैल, मई, जून माह इस के उत्पादन के लिए सब से मुफीद होते हैं.

बरतें ये सावधानियां

* नीलहरित शैवाल जैव उर्वरक के प्रयोग में लाई जाने वाली मिट्टी साफसुथरी और भुरभुरी होनी चाहिए.

* उत्पादन में प्रयोग की जा रही मिट्टी ऊसर जमीन की नहीं होनी चाहिए.

* मिट्टी में कंकड़, पत्थर और घास को छलनी से अच्छी तरह?छान लें.

* जैव उर्वरक उत्पादन के लिए प्रयोगशाला द्वारा जांच किए गए उच्च गुणवत्ता वाले स्टार्टर कल्चर का ही प्रयोग करें.

* किसान अपने यहां उत्पादित जैव उर्वरक की गुणवत्ता की जांच परिषद के वैज्ञानिकों द्वारा करा लें.

* शैवाल जैव उर्वरक की परतों को नाइट्रोजन उर्वरकों और कीटनाशक रसायनों के साथ कभी न रखें.

* शैवाल जैव उर्वरक की थैलियों को नमी से दूर रखें.

* चूंकि शैवाल जैव उर्वरक के उत्पादन में कार्बोफ्यूरान का इस्तेमाल किया जाता है इसलिए ध्यान रखें कि टैंक के पानी को

जानवर न पी जाएं, वरना उन पर कार्बोफ्यूरान का जहरीला असर हो सकता है, इसलिए टैंक व गड्ढे को जानवरों से बचा कर रखें.

* यदि उत्पादन के समय बारिश हो तो?टैंक व गड्ढे को पौलीथिन शीट से ढक दें और बारिश खत्म होने पर हटा दें.

प्रयोग की विधि

धान की रोपाई के एक हफ्ते बाद स्थिर पानी में 12.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से शैवाल कल्चर बिखेर दें और शैवाल जैव उर्वरक प्रयोग करने के 4-5 दिन बाद तक खेत में पानी भरा रहने दें.

खेतों में यदि खरपतवारनाशक जैसे?ब्यूटाक्लोर वगैरह रसायनों का इस्तेमाल कर रहे हों तो खरपतवारनाशक डालने के 3-4 दिन बाद जैव उर्वरक का इस्तेमाल करें वरना शैवाल की बढ़ोतरी प्रभावित होगी.

खरपतवारनाशी रसायनों का प्रयोग रोपाई के 2 दिन बाद जरूर कर लें और अन्य सभी खेती के काम और निराईगुड़ाई सामान्य तरह ही करते रहें.

खेत में नीलहरित शैवाल जैव उर्वरक का प्रयोग पहली व दूसरी टौप ड्रेसिंग के दौरान जरूर कर दें. बेसल ड्रेसिंग में रासायनिक नाइट्रोजन का प्रयोग कम मात्रा में करें. धान के पूर्व जिस खेत में हरी खाद के?रूप में ढैंचा लगाया गया हो, उस खेत में उपरोक्त विधि से नीलहरित शैवाल जैव उर्वरक का प्रयोग करने से बेसल ड्रेसिंग में भी संस्तुत रासायनिक नाइट्रोजन की मात्रा में 50 फीसदी की कमी कर दें. ध्यान रखें, नीलहरित शैवाल जैव उर्वरक का प्रयोग जिस खेत में करना हो, उस की मेंड़बंदी अच्छी तरह कर लें, जिस से उर्वरक के प्रयोग के बाद पानी बाहर न निकले.

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प्रयोग से लाभ

कृषक प्रक्षेत्र पर नीलहरित शैवाल जैव उर्वरक की 12.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की मात्रा 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन देती है इसलिए रासायनिक नाइट्रोजन की मात्रा 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (66 किलोग्राम यूरिया) की बचत हो सकती?है. इस के प्रयोग से धान की उपज में औसतन 2-4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की बढ़ोतरी होती है. साथ ही, पर्यावरण को साफ रखने में सहायक है.

शैवाल जैव उर्वरक इस्तेमाल करने से मिट्टी की भौतिक दशा में सुधार होता है और उपजाऊ ताकत बढ़ती है. मिट्टी में नाइट्रोजन और मौजूद फास्फोरस की मात्रा में बढ़ोतरी होती?है.

कार्बनिक तत्त्वों की बढ़ोतरी से मिट्टी की जलधारण कूवत में भी बढ़ोतरी होती है.

अम्लीय जमीन में लोहे वगैरह तत्त्वों की विषाक्ता कम करता है.

शैवाल जैव उर्वरक के प्रयोग से ऊसर जमीन में सुधार होता?है.

नीलहरित शैवाल जैव उर्वरक बढ़ोतरी नियंत्रक, विटामिन बी12, अमीनो अम्ल

वगैरह भी छोड़ते?हैं, जिस से पौधों की अच्छी बढ़ोतरी होती है और दानों की गुणवत्ता भी

बढ़ती है.                                       ठ्ठ

कैसे बचाए धान की फसल को कीड़ों से,जानें

लेखक- डा. ऋषिपाल

धान खरीफ की फसल है. जिस तरह धान की फसल लेने के लिए नम व गरम आबोहवा की जरूरत होती?है, ठीक उसी तरह से कीट की

बढ़वार और प्रजनन के लिए भी इसी तरह की जलवायु की जरूरत होती है. इसी वजह से धान की फसल पर अनेक कीटों का हमला होता है.

यही वजह है कि फसल को कम नुकसान पहुंचाने वाले कीट भी नुकसान पहुंचाने लगते?हैं. कीटों की वजह से धान की फसल में तकरीबन 10-15 फीसदी उत्पादन में कमी आ जाती?है.

मुख्य कीट और बचाव

पीला तना बेधक : इस कीट की मादा के अगले जोड़ी पंख पीले रंग के होते?हैं जिन के मध्य में काले रंग का बिंदु होता है. कीड़े के पिछले पंख भूसे के रंग जैसे होते हैं. मादा कीट की उदर की नोक पर भूरे पीले रंग का गुच्छा होता है.

इस कीट की पूरी तरह से विकसित सूंड़ी का रंग पीला सफेद होता?है. इस कीड़े के प्रौढ़  रात में घूमते हैं. कीड़े की मादा रात में 7 से 9 बजे के बीच अपने अंडे मुलायम पत्तियों की नोक पर देती है.

मादा गुच्छों में 100 से 200 अंडे देती?है. अंडे 7-8 दिन में फूट जाते हैं और उन से सूंडि़यां निकल आती हैं. नवजात सूंड़ी पत्ती की ऊपरी सतह पर चढ़ कर रेशमी धागों के सहारे दूसरे पौधों पर पहुंच जाती?है.

शुरुआती अवस्था में इस कीट की सूंड़ी पत्ती के ऊपर धारी सी बना कर खाती?है. तकरीबन 1 हफ्ते बाद सूंड़ी तने में छेद कर के अंदर घुस जाती?है और नुकसान पहुंचाती है.

इस कीट का प्रकोप फसल की बढ़वार अवस्था में होता है और पौधे का नया बढ़ने वाला भाग यानी बीच की पत्ती वाला भाग सूख जाता है. इसे मृत गोभ कहते?हैं. इस गोभ को आसानी से बाहर खींचा जा सकता?है.

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फसल की बाली में प्रकोप होने पर कुछ पौधों की बालियां अंदर ही अंदर सूख जाती हैं और बाहर नहीं निकलती?हैं. पौधों में बालियां निकलने के बाद जब कीट का हमला होता?है तब बालियां सूख कर सफेद दिखाई देती हैं और उन में दाने नहीं पड़ते?हैं. इन्हें सफेद बाली कहते हैं. इस कीड़े द्वारा नुकसान करने पर फसल के उत्पादन में भारी कमी आ जाती है.

भूरा फुदका : इस कीड़े का रंग हलका भूरा होता?है. आकार पच्चर की तरह होता?है. इस कीट की मादा पत्ती की मध्य शिरा के पास खुरच कर या पत्ती के पर्णच्छंद को खुरच कर 250 से ले कर 300 तक समूह में अंडे देती है.

एक समूह में 15-30 अंडे होते हैं. ये अंडे बेलनाकार व सफेद रंग के होते हैं. अनुकूल वातावरण में अंडे 5-8 दिन में फूट जाते हैं. इस कीट के शिशु व प्रौढ़ दोनों ही पौधे के तने से रस को चूस कर फ्लोयम व जाइलम को बंद कर देते हैं.

इस कीट के प्रकोप से पत्तियां सूख कर भूरी हो जाती?हैं और फसल की इस अवस्था को फुदका झुलसा रोग कहा जाता है.

इस कीट का प्रकोप अगर फसल की बढ़वार अवस्था में होता है तो पौधों में बालियां नहीं निकलती?हैं. अगर कीट का हमला फूल के गुच्छे निकलने के बाद होता है तो ज्यादातर बाली में दाने नहीं बनते हैं. इस कीट के हमले से कभीकभी पूरी फसल चौपट हो जाती है.

सफेद पीठ वाला फुदका : इस कीड़े के हर अगले पंख के पिछले सिरे के मध्य में एक सुस्पष्ट काला धब्बा होता?है जो अगले पंखों के एकसाथ आने पर मिल जाता है. इस कीड़े का पृष्ठक हलके पीले रंग का होता है. इस कीड़े के प्रौढ़ काले भूरे रंग के होते?हैं व शरीर का रंग हलका पीला होता?है. इस कीड़े के अगले व पिछले पंखों के जोड़ पर सफेद रंग की पट्टी होती है.

एक मादा अपने जीवनकाल में 500-600 अंडे देती?है. 5-6 दिन बाद अंडों से शिशु निकलते?हैं. शिशु का रंग हलका भूरा होता है. इस कीड़े के शिशु व प्रौढ़ दोनों ही पत्तियों का रस चूसते हैं. नतीजतन, नीचे की पत्तियां पीली पड़ कर मुरझा जाती हैं और छोटे पौधे सूख जाते?हैं, वहीं बड़े पौधे से कल्ले निकलने में देरी हो जाती है. इस वजह से बालियों की तादाद कम रह जाती है और फसल का उत्पादन घट जाता है. इस कीट के प्रकोप से चावल की क्वालिटी भी प्रभावित होती है.

हरा फुदका : हरा फुदका कीड़े के शिशु व प्रौढ़ दोनों ही पच्चर की शक्ल और हरे रंग के होते हैं. इन के अगले पंखों के?ऊपर काले रंग के धब्बे होते हैं और पंखों के बाहरी किनारे भी काले रंग के होते?हैं. ये कीड़े रोशनी के प्रति काफी आकर्षित होते हैं. इस कीड़े के शिशु व प्रौढ़ दोनों ही पत्तियों से रस चूसते?हैं. इस के चलते पौधे पीले पड़ जाते हैं और छोटे भी रह जाते?हैं. जब कीड़े का प्रकोप ज्यादा होता है तो पौधे की पत्तियां भूरे रंग की हो जाती?हैं.

यह कीड़ा टुग्रो नामक विषाणु का वाहक है. फसल में इस विषाणु के हमले के फलस्वरूप पौधे पीले पड़ जाते?हैं और उन का फुटाव भी कम पड़ जाता है. टुग्रो प्रभावित पौधों से जो बालयां निकलती?हैं, उन में दानों की तादाद भी कम होती है.

पत्ती लपेटक : इस कीड़े का प्रौढ़ भूरे नारंगी रंग का होता है. इस कीट के पंख के किनारे भूरे रंग के होते?हैं. इस कीड़े की मादा संगम के बाद 1-2 दिन के बाद अंडे देना शुरू कर देती है. मादा कीड़ा 300 अंडे तक देती है जो हलके पीले रंग के होते हैं. अंडे पत्ती की मध्य शिरा के आसपास दिए जाते?हैं. अंडे 6-8 दिन में फूटने लगते?हैं. सूंड़ी की अवधि 15-17 दिन रहती?है.

इस कीट की प्रथम अवस्था सूंड़ी इधरउधर घूमती है और अपनी लार द्वारा रेशमी धागा बना कर पत्ती के किनारों को जोड़ लेती है और अंदर ही रह कर पत्ती के हरे भाग को खुरचखुरच कर खाती है. इस से पत्ती पर शुरू में सफेद धारी दिखाई देती है और धीरेधीरे ये पत्तियां सूख जाती?हैं. पत्तियों के सूखने से पौधा कमजोर पड़ जाता?है और फसल का उत्पादन घट जाता है.

गंधी बग : इस कीड़े के प्रौढ़ तकरीबन 15 मिलीमीटर लंबे व पीलापन लिए चपटे हरे रंग के होते हैं. इस कीट के शिशु भी हरे रंग के होते?हैं. मादा कीट पत्तियों की निचली सतह पर लाइनों में अंडे देती है. एक मादा अपने जीवनकाल में तकरीबन

150 से 250 अंडे देती है. इस कीड़े को अगस्त से नवंबर माह तक खेतों में देखा जा सकता है.

शुरुआती अवस्था में यह कीट धान के खेतों की मेंड़ों पर उगे खरपतवारों पर अपना जीवनयापन करते हैं. लेकिन जैसे ही सितंबरअक्तूबर माह में जब बालियां दूधिया अवस्था में होती हैं, वयस्क कीड़े दानों से रस चूस लेते?हैं. इस के फलस्वरूप बाली दानों से खाली रह जाती है. इस कीड़े के हमले से दानों के टूटने की संभावना बढ़ जाती है. इस कीड़े से एक विशेष प्रकार की गंध आती है. इसी वजह से इस कीड़े को गंधी बग भी कहते हैं.

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कीड़ों से बचाव के ऐसे उपाय

कीड़ों के आने का पता लगाएं:

* पीला तना भेदक कीड़े की निगरानी के लिए 5 फैरोमौन ट्रैप प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगाएं.

* खेत में फूल आने से पहले प्रकाश प्रपंच लगा कर कीड़ों को आकर्षित कर मार देना चाहिए.

* खेत व नर्सरी में कीड़ों की तादाद का पता लगाने के लिए जाल ट्रैप से स्वीप कर पता लगा लें.

कृषि क्रियाएं :

* धान के कीड़े प्रतिरोधी किस्मों की रोपाई और बोआई करनी चाहिए.

* स्वस्थ बीज व स्वस्थ नर्सरी पौधों का इस्तेमाल करना चाहिए.

* फसल में संतुलित मात्रा में उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिए. ज्यादा यूरिया के इस्तेमाल से पत्ती लपेटक कीट का प्रकोप फसल पर देखा जाता है, जबकि पोटाश का इस्तेमाल करने पर कीड़े का प्रकोप कम होता?है.

* गरमी में गहरी जुताई करनी चाहिए, जिस से कीड़े की सुषुप्तावस्था को नष्ट किया जा सके.

* फसल की जल्दी रोपाई कर देनी चाहिए ताकि कीड़े के हमले से पहले पौधे की लंबाई सही बढ़ चुकी हो.

* गाल मिज के हमले के समय खेत में पानी भरा हो तो उसे तुरंत निकाल देना चाहिए क्योंकि पानी भरे खेत में गाल मिज का हमला ज्यादा पाया जाता है.

* मुख्य खेत में पौधे की रोपाई से पहले नर्सरी पौधे की ऊपर की तरफ यानी नोक की तरफ से 1.5-2.0 इंच पत्तियों को काट देना चाहिए ताकि मुख्य खेत में कीट के अंडे न पहुंच पाएं.

* खेत में पक्षियों के बैठने के लिए बांस के डंडे यानी बर्डपर्चर लगा देने चाहिए, ताकि पक्षी डंडों पर बैठ कर कीटों को खाते रहें. फसल में बाली निकलने पर?डंडों को उखाड़ कर रख लेना चाहिए.

यंत्रों से रोकथाम :

* धान के खेत के आसपास मेंड़ों पर खड़े खरपतवारों के साथसाथ घास को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए ताकि खरपतवार और घास पर पनपने वाले कीड़े धान की फसल को नुकसान न पहुंचाएं.

* कीटों के समूह को एकत्र कर नष्ट कर देना चाहिए.

* पीला तना बेधक कीट के प्रकोप से बचने के लिए लंबी बढ़ने वाली प्रजातियों को बांध कर रखना चाहिए.

* पानी के साथसाथ जो सूडि़यां खोल सहित दूसरे खेत में बह कर जाती हैं, उन को रोकना चाहिए.

* फूल आने से पहले खेत में खोल सहित सूंडि़यों को रस्सी से हिला कर इकट्ठा कर नष्ट कर देना चाहिए.

व्यावहारिक विधि

* पीला तना बेधक कीट के प्रकोप से बचने के लिए खेत में 20 फैरोमौन ट्रैप प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगाएं ताकि तना?बेधक कीट के प्रौढ़ नर ट्रैप में इकट्ठा हो कर मरते रहें. पौधों की रोपाई के 20 दिन बाद और 10-12 दिन बाद ल्यूर को बदलते रहना चाहिए.

जैविक विधि द्वारा रोकथाम

* सूंड़ी परजीवी प्लेटीगेस्टर ओराइजी का इस्तेमाल गाल मिज के प्रकोप वाली फसल में करना चाहिए.

* भूरा फुदका कीट के लिए क्रटोरहिनस लिविडिपेनिस 50-75 अंडे प्रति वर्गमीटर के अंतराल पर और 3 परभक्षी मकड़ी लाइकोसा स्यूडोनोलेटा प्रति पौधा खेत में छोड़ना चाहिए.

* 1.5 किलोग्राम लहसुन को पीस कर रातभर पानी में भिगो दें. सुबह पानी को छान कर उस में 250 ग्राम गुड़ और 200 ग्राम कपड़े धोने वाला साबुन मिला दें. पानी की मात्रा को 150 लिटर कर के उस का छिड़काव फसल पर करें. ऐसा करने से गंधी बग दानों से रस नहीं चूस पाएगा.

* अगर फसल के अंदर मित्र जीव जैसे मिरिड बग और तमाम तरह की मकडि़यां नियंत्रण कर रही हैं तो इन का संरक्षण करना चाहिए.

* नीम की निंबोली की

5 किलोग्राम मात्रा कूटपीस कर रातभर 25 लिटर पानी में भिगोएं. निंबोली का सफेद रस निकाल कर उसी पानी में डालें. पानी में 250 ग्राम कपड़े धोने वाला साबुन मिला कर पानी को छान लें और इस पानी की मात्रा को 100 लिटर कर के फसल पर छिड़काव करें.

* बिवेरिया बेसियाना की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 500-600 लिटर पानी में मिला कर छिड़कें.

* फसल रोपने के एक महीने बाद या खेत में तना बेधक कीट के अंडे दिखाई देने पर ट्राईकोग्रामा जपोनिकम के 75000-1,00000 अंडे प्रति हेक्टेयर की दर से ट्राइकोकार्ड को काट कर पत्तियों के नीचे लगाना चाहिए. इस प्रक्रिया को 5-6 बार 8-10 दिन के अंतराल पर दोहराना चाहिए.

कीटनाशी द्वारा रोकथाम

* नर्सरी में बोते समय कार्बोफ्यूरान

40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से या फोरेट 12.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से नर्सरी में डालना चाहिए.

* कीट की तादाद के आधार पर फोलीडाल या कार्बारिल 5 फीसदी धूल का 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करें.

* यदि तना बेधक कीट का प्रकोप दिखाई दे तो कौरटौप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी की 18 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सूखी रेत या राख में मिला कर खेत में बिखेर देनी चाहिए.

* कीटनाशक का प्रयोग करते समय खेत में हलका पानी खड़ा रहना चाहिए.

0.5 मिलीलिटर कोराजन की मात्रा प्रति लिटर पानी की दर से छिड़कना चाहिए.

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* यदि पौधे के प्रति झुंड पर 10 कीट दिखाई दें तो फसल के ऊपर इथोफेनप्रौक्स

20 ईसी की 1 मिलीलिटर या डाईक्लोरोवास

1 मिलीलिटर व वीपीएमसी की 1 मिलीलिटर के मिश्रण को एक लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें या क्विनालफास 25 ईसी

(1.5 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी की दर से) या इथोफेनप्रौक्स 20 ईसी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल (1 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी की दर से) का छिड़काव करें.

सब्सिडी पर कृषि उपकरण ले कर उन्नत खेती करें

आधुनिक कृषि उपकरणों और तकनीकों के इस्तेमाल से उत्पादन भी बढ़ा है और किसानों की माली हालत भी सुधरी है. माली रूप से कमजोर, निम्न और मध्यम तबके के किसानों को आज भी सरकारी योजनाओं की जानकारी न होने से उन्हें फायदा नहीं मिलता.

किसानों की भलाई के लिए बनी सरकारी योजनाओं की जानकारी के लिए आप अपने इलाके के कृषि विस्तार अधिकारी से संपर्क कर कृषि उपकरणों की खरीद पर अनुदान का फायदा ले कर उन्नत ढंग से खेतीकिसानी की जा सकती है.

आजकल केंद्र और राज्य सरकारें भी किसानों को कृषि उपकरण मुहैया कराने के लिए विभिन्न योजनाएं चला रही हैं. कृषि उपकरणों पर सब्सिडी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब सहित देश के?ज्यादातर राज्यों में किसानों को दी जाती?है. विभिन्न कृषि उपकरणों पर 40 फीसदी से ले कर 80 फीसदी तक की सब्सिडी दी जाती है. सभी राज्यों में ई-पोर्टल के माध्यम से औनलाइन आवेदन करने के नियम राज्य सरकारों द्वारा तय किए गए हैं.

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बिहार में?ट्रैक्टर को?छोड़ 76 तरह के कृषि यंत्रों पर अनुदान दिया जाता है. औनलाइन आवेदन के अलावा कृषि विभाग?द्वारा अनुमंडल स्तर पर लगने वाले कृषि मेलों में खरीदी करने पर भी किसानों को सब्सिडी मिलती?है.

राजस्थान में अधिकृत, पंजीकृत क्रयविक्रय सहकारी समिति, ग्राम सेवा सहकारी समिति या राज्य के किसी भी जिले में पंजीकृत निर्माता, विक्रेता से कृषि यंत्र खरीद करने पर भी सब्सिडी दी जाती?है.

किसानों के अनुदान क्लेम का भुगतान उन के बैंक खाते में दिया जाता है. पंजीकृत निर्माताओं, विक्रेताओं को सीधे अनुदान राशि का भुगतान नहीं किया जाता है.

मध्य प्रदेश में पारदर्शी प्रक्रिया द्वारा औनलाइन आवेदन ले कर कृषि यंत्रों पर सब्सिडी यानी अनुदान दिया जाता रहा है. किसानों को अनुदान की यह सुविधा ट्रैक्टर, टै्रक्टरचालित रीपर कम बाइंडर व सिंचाई यंत्रों (पंप, स्प्रिंकलर, ड्रिप सिस्टम, पाइपलाइन, रेनगन), कंबाइन हार्वेस्टर, जीरो टिल सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल, पैडी राइस ट्रांसप्लांटर, रेज्डबेड प्लांटर, रेज्डबेड प्लांटर विथ इंक्लिनेड प्लेट एंड शेपर, हैप्पी सीडर, लेजर लैंड लेवलर, रोटावेटर, मल्चर, स्वचालित रीपर, स्ट्रा रीपर के आवेदन के लिए उपलब्ध?हैं. फर्टिलाइजर ड्रिल, मल्टीक्रौप थ्रैशर, एक्सियल फ्लो पैडी थ्रेशर जैसे उपकरणों पर उपलब्ध है.

किसे मिलेगा अनुदान

ट्रैक्टर के लिए किसी भी तबके के किसान, जिन के नाम से खेती की जमीन हो, आवेदन कर सकते?हैं. ट्रैक्टर से चलने वाले सभी प्रकार के कृषि यंत्र भी किसी भी तबके के किसान ले सकते?हैं. इस के लिए किसान के नाम पर पहले से ट्रैक्टर होना जरूरी?है.

कृषि पंप के लिए किसान के नाम से बिजली कनैक्शन होना जरूरी?है. जिन किसानों ने पिछले 5 साल में कृषि विभाग से किसी भी योजना के तहत किसी?भी प्रकार का अनुदान का फायदा नहीं लिया?है, वे किसान ही कृषि यंत्रों की खरीद के लिए पात्र होंगे.

सब्सिडी के लिए आवेदन करने की तारीख से 10 दिन के भीतर चयनित डीलर के माध्यम से अपना आवेदन देना होगा वरना यह पंजीयन खुद ही निरस्त हो जाएगा. आवेदन निरस्त होने पर आगामी 6 महीने तक आवेदन प्रस्तुत करने की पात्रता नहीं होगी.

कृषि यंत्रों पर 40,000 से 60,000 रुपए तक की सब्सिडी मिलती?है. ट्रैक्टर के लिए

2 लाख रुपए तक अनुदान और कंबाइन जैसे बड़े यंत्रों पर 1 लाख रुपए तक की सब्सिडी का प्रावधान है.

ट्रैक्टर की अधिक जानकारी के लिए किसान भाई निर्माता जौनडियर इंडिया प्रा. लि., देवास से मोबाइल फोन नंबर 7875289413, मल्टीक्रौप थ्रेशर के लिए सोनालिका इंडस्ट्रीज, होशियारपुर, पंजाब के मोबाइल फोन नंबर 9814054025, सीड ड्रिल, कल्टीवेटर, मल्टीक्रौप प्लांटर के लिए लालवानी इंडस्ट्रीज, भोपाल के मोबाइल नंबर 9009646664, स्प्रिंकलर सिस्टम के लिए रेवा पौलीमर्स, जबलपुर के मोबाइल नंबर 9425155366 पर फोन कर के कृषि यंत्रों की कीमत व सब्सिडी संबंधी जानकारी ले सकते हैं.

महंगे उपकरण खरीदना मुश्किल

हर किसान महंगे उपकरणों की खरीदी नहीं कर पाते हैं, इसलिए सरकार ने कृषि उपकरणों पर किसानों के होने वाले खर्चों में कटौती करने और उन की आमदनी बढ़ाने की दिशा में एक नई योजना शुरू की है. इस योजना का नाम स्मैम यानी सबमिशन औन एग्रीकल्चर मैकेनाइजेशन है. इस योजना के तहत किसान समूह बना कर भी ट्रैक्टर सहित कई प्रकार के हाईटैक कृषि यंत्र ले सकते हैं.

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के जरीए कृषि उपकरणों की खरीद करने वाले किसान समूहों को गांव लैवल पर 10 लाख से 25 लाख रुपए तक का अनुदान दिए जाने की योजना?है. किसान समूह गांव लैवल पर कृषि विभाग में आवेदन जमा करा सकते?हैं.

महंगे कृषि यंत्र खरीदने के लिए कृषि एवं किसान कल्याण विभाग उन्हें रियायती दरों पर ये उपकरण मुहैया करवाएगा. इस के लिए किसानों को समूह बना कर विभाग में आवेदन करना होगा. विभाग?द्वारा हर जिले में किसान समूहों को यह लाभ दिया जाएगा.

कृषि विभाग के उपसंचालक जितेंद्र सिंह बताते हैं कि कस्टम हायरिंग सैंटर खोलने के लिए जिला लैवल पर किसानों के समूह (सहकारी समितियां, पंजीकृत किसान समूह, स्वयंसहायता समूह) पंजीकृत कृषि समूहों से फसल अवशेष प्रबंधन के लिए 40 हौर्सपावर से 70 हौर्सपावर तक का ट्रैक्टर, एसएमएस सहित कंबाइन हार्वेस्टर, हैप्पी सीडर, रोटरी?प्लो, रीपर बाइंडर, स्ट्रा बेलर, मल्चर, हे रेक,?स्ट्रा चोपर, स्ट्रा श्रेडर वीड, ट्रैक्टरचालित स्ट्रा स्लेशर, स्ट्रा रीपर और जीरो टिल सीड कम फर्टिलाइजर कृषि यंत्रों पर 10 लाख रुपए तक की खरीद पर 4 लाख रुपए तक का अनुदान दिया जाता है. मध्य प्रदेश सहित सभी राज्यों के पंजीकृत 391 कृषि उपकरणों के निर्माताओं और 14,980 डीलर के माध्यम से खरीदी की जा सकती है.

कहां करें आवेदन

सभी राज्यों में सब्सिडी के लिए औनलाइन फार्म भरे जाने के नियम?हैं. मध्य प्रदेश में

कृषि यंत्रों पर अनुदान के लिए कृषि विभाग

की वैबसाइट पर औनलाइन आवेदन किए जा सकते हैं.

किसानों द्वारा डीलर का चयन केवल बायोमीट्रिक मशीन (फिंगरप्रिंट स्कैनर मशीन) के जरीए किया जा सकेगा इसलिए जो किसान पहले से पंजीकृत हैं या जो पहली बार पंजीयन करवा रहे?हैं, वे सभी जिस डीलर से यंत्र खरीदना चाहते?हैं, उन के पास या जहां भी बायोमीट्रिक मशीन उपलब्ध?हो, वहां से पंजीयन कराने की कोशिश करें.

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आवेदन के लिए किसान इस लिंक ई कृषि यंत्र अनुदान स्रड्ढह्ल.द्वश्चस्रड्डद्दद्ग.शह्म्द्द/द्बठ्ठस्रद्ग3.ड्डह्यश्च3 पर क्लिक करें, दी गई लिंक पर किसान भाई सब्सिडी कैलकुलेटर पर किस यंत्र पर कितना अनुदान उन्हें मिलेगा, यह भी देख सकते हैं.

चयनित डीलर के जरीए किसान अपने कागजात के साथसाथ बिल की प्रति और सामान के विवरण को भी पोर्टल में दर्ज कराएं.

एक बार डीलर को चुन लिए जाने पर डीलर को फिर से बदलना संभव नहीं होगा. डीलर को किसान द्वारा कृषि उपकरण या यंत्रों की खरीदी की राशि का भुगतान बैंक ड्राफ्ट, चैक, औनलाइन बैंकिंग के माध्यम से ही किया जाना होगा. नकद राशि नहीं ली जाएगी.

डीलर के माध्यम से कागजात व बिल वगैरह पोर्टल पर अपलोड करने के 7 दिन में विभागीय अधिकारी द्वारा सामान और कागजातों का सत्यापन किया जाएगा. सत्यापन में सभी कागजात सही पाए जाने, खरीदी के अनुसार कृषि उपकरण या यंत्रों के सही पाए जाने पर ही किसान को सब्सिडी का फायदा मिल सकेगा.

ये कागजात हैं जरूरी

किसान को आधारकार्ड,?बैंक पासबुक की फोटोकौपी, सिंचाई उपकरणों के लिए बिजली कनैक्शन का प्रमाणपत्र और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के किसानों के लिए सक्षम अधिकारी जैसे तहसीलदार, एसडीएम द्वारा जारी किया गया जाति प्रमाणपत्र का होना जरूरी है.

किसानों को यह?भी अवगत कराया जाता है कि विक्रेता द्वारा काटे गए बिल (देयक) पर लिखी गई कीमत के अलावा प्रकरण पास कराने, जल्दी कार्यवाही कराने जैसी वजहों के लिए किसी भी राशि का भुगतान किसी को भी नहीं किया जाए.

शासन द्वारा औनलाइन प्रक्रिया पूरी तरह से निर्धारित है और पारदर्शी है. इस में सभी तरह की जानकारी व प्रकरणों की स्थिति साफसाफ पोर्टल पर देखी जा सकती है.

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यदि किसान भाइयों को कोई शिकायत है तो वे संचालनालय किसान कल्याण एवं कृषि विभाग, पंचम तल, विंध्याचल भवन, भोपाल को कृषि यंत्रों पर अनुदान की जानकारी के लिए विभाग के फोन नंबर 0755-4935001 और सिंचाई यंत्रों पर अनुदान के लिए मोबाइल नंबर 6264408543 पर संपर्क कर सकते हैं.

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