लेखक-शशि पुरवार

एक समय था जब लोगों का मोटी तनख्वाह के चलते प्राइवेट कंपनियों की तरफ रुझान था, पर आज पैंशन व सरकारी सुविधा के चलते सरकारी नौकरी सब से बड़ी जरूरत बन गई है. लेकिन सरकारी नौकरी में सीमित कमाई के चलते कुछ लोगों ने घूसखोरी को अपनी जिंदगी का अंग बना लिया है या यह कहें कि लालच के दानव ने अपना विकराल रूप धर लिया है.

इस से देश में भ्रष्टाचार बढ़ गया है. बिना कुछ लिएदिए कोई काम नहीं होता है. हर छोटाबड़ा मुलाजिम मुंह खोल कर पैसे मांगने लगा है.

कमोबेश हर सरकारी दफ्तर का यही हाल है. सरकारी नौकरी में हर कोई मोटा कमा सकता है. सरकारी कामों में कानूनी दांवपेंच, धीमी रफ्तार व कानूनी पेचीदगी के चलते घूसखोरी बढ़ी है. कामों के पूरा होने की जल्दबाजी में भ्रष्टाचार का दानव हमें जबरन पालना पड़ता है.

हमारे एक जानकार लोक निर्माण विभाग में अफसर हैं. उन के पास सरकारी आवासों, दफ्तरों के निर्माण कार्य के लिए ठेकेदारों की लाइन लगी रहती है. वे जनाब 2 फीसदी घूस खा कर ही ठेका दिलाते हैं, फिर निर्माण कार्य में लगने वाला सामान हलका हुआ तो उसे भी पास करा देते हैं.

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हाल ही में सरकारी दफ्तरों व आवासों में मरम्मत का कार्य शुरू हुआ. 3 साल से खस्ताहाल रंगरोगन व दरवाजे की दुरुस्ती का काम अटका हुआ था. वे जनाब हर बार कहते कि टैंडर पास नहीं हुआ है, फिर भी उन के आवास में नियमित काम होते रहते हैं. वह सरकारी आवास कम निजी बंगला ज्यादा नजर आता है. उन की पत्नी कहती हैं कि जब तक नौकरी में हैं तब तक ऐश कर लें.

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