Hindi Family Story: सुबह से ही घर में मिलने वालों का तांता लगा था. फोन की घंटी लगातार बज रही थी. लैंड लाइन नंबर और मोबाइल अटैंड करने के लिए भी एक चपरासी को काम पर लगाया गया था. वही फोन पर सब को जवाब दे रहा था कि साहब अभी बिजी हैं. जैसे ही फ्री होते हैं उन से बात करा दी जाएगी. फिर वह सब के नाम व नंबर नोट करते जा रहा था. कोई बहुत जिद करता कि बात करनी ही है तो वह साहब की ओर देखता, जो इशारे से मना कर देते.
आखिर वे इतने लोगों से घिरे थे कि उन के लिए उन के बीच से आ कर बात करना बेहद मुश्किल था. लोग उन्हें इस तरह घेरे बैठे और खड़े थे मानो वे किसी जंग की तैयारी में जुटे हों. सांत्वना को संवदेनशीलता के वाक्यों में पिरो कर हर कोई इस तरह उन के सामने अपनी बात इस तरह रखने को उत्सुक था मानो वे ही उन के सब से बड़े हितैषी हों.
‘‘बहुत दुख हुआ सुन कर.’’
‘‘बहुत बुरा हुआ इन के साथ.’’
‘‘सर, आप को तो हम बरसों से जानते हैं, आप ऐसे हैं ही नहीं. आप जैसा ईमानदार और सज्जन पुरुष ऐसी नीच हरकत कर ही नहीं सकता है. फंसाया है उस ने आप को.’’
‘‘और नहीं तो क्या, रमन उमेश सर को कौन नहीं जानता. ऐसे डिपार्टमैंट में होने के बावजूद जहां बिना रिश्वत लिए एक कागज तक आगे नहीं सरकता, इन्होंने कभी रिश्वत नहीं ली. भ्रष्टाचार से कोसों दूर हैं और ऐसी गिरी हुई हरकत तो ये कर ही नहीं सकते.’’
‘‘सर, आप चिंता न करें हम आप पर कोई आंच नहीं आने देंगे.’’
‘‘एमसीडी इतना बड़ा महकमा है, कोई न कोई विवाद या आक्षेप तो यहां लगता ही रहता है.’’
आप इस बात को दिल पर न लीजिएगा सर. सीमा को कौन नहीं जानता कि वह किस टाइप की महिला है,’’ कुछ लोगों ने चुटकी ली.
भीड़ बढ़ने के साथसाथ लोगों की सहानुभूति धीरेधीरे फुसफुसाहटों में तबदील होने लगी थी. सहानुभूति व साथ देने का दावा करने वालों के चेहरों पर बिखरी अलग ही तरह की खुशी भी दिखाई दे रही थी.
कुटिलता उन की आंखों से साफ झलक रही थी मानो कह रही हो बहुत बोलता था हमें कि हम रिश्वत लेते हैं. तू तो उस से भी बड़े इलजाम में फंस गया. सस्पैंड होने के बाद क्या इज्जत रह जाती है, उस पर केस चलेगा वह अलग. फिर अगर दोष साबित हो गया तो बेचारा गया काम से. न घर का रहेगा न बाहर का.
रमनजी की पत्नी राधा सुबह से अपने कमरे से बाहर नहीं निकली थीं. जब से उन्हें अपने पति के सस्पैंड होने और उन पर लगे इलजाम के बारे में पता चला था, उन का रोरोकर बुरा हाल था. रमन ऐसा कर सकते हैं, उन्हें विश्वास तो नहीं हो रहा था, पर जो सच सब के सामने था, उसे नजरअंदाज करना भी उन के लिए मुश्किल था. एमसीडी में इतने बड़े अफसर उन के पति रमन ऐसी नीच हरकत कर सकते हैं, यह सोच कर ही वे कांप जातीं.
दोपहर तक घर पर आए लोग धीरेधीरे रमनजी से हाथ मिला कर खिसक लिए. संडे का दिन था, इसलिए सब घर पर मिलने चले आए थे. वरना बेकार ही लीव लेनी पड़ती या न आ पाने का बहाना बनाना पड़ता. बहुत से लोग मन ही मन इस बात से खुश थे. उन के विरोधी जो सदा उन की ईमानदारी से जलते थे, वे भी उन का साथ देने का वादा कर वहां से खिसक लिए. थके, परेशान और बेइज्जती के एहसास से घिरे रमन पर तो जैसे विपदा आ गई थी.
उन की बरसों की मेहनत इस तरह पानी में बह जाएगी, शर्म से उन का सिर झुका जा रहा था. बिना कोई गलती किए इतना अपमान सहना…फिर घरपरिवार, दोस्त नातेरिश्तेदारों के सवालों के जवाब देने…वे लड़खड़ाते कदमों से बैडरूम में गए.
उन्हें देखते ही राधा, जिन के मायके वाले उन्हें वहां मोरचा संभाले बैठाए थे,
कमरे से बाहर जाने लगीं तो रमन ने उन का हाथ पकड़ लिया.
‘‘मैं राधा से अकेले में बात करना चाहता हूं. आप से विनती है आप थोड़े समय के लिए बाहर चले जाएं,’’ रमन ने बहुत ही नम्रता से अपने ससुराल वालों से कहा.
‘‘मुझे आप से कोई बात नहीं करनी है,’’ राधा ने उन का हाथ झटकते हुए कहा, ‘‘अब भी कुछ बाकी बचा है कहनेसुनने को? मुझे कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. अरे बच्चों का ही खयाल कर लेते. 45 साल की उम्र में 2 बच्चों के बाप हो कर ऐसी हरकत करते हुए आप को शर्म नहीं आई?’’ राधा की आंखों से फिर आंसू बहने लगे.
‘‘देखो, तुम खुद इतनी पढ़ीलिखी हो, जौब करती हो और फिर भी दांवपेच को समझ नहीं पा रही हो…मुझे फंसाया गया है… औरतों के लिए बने कानूनों का फायदा उठा रही है वह औरत. औरत किस तरह से आज मर्दों को झूठे आरोपों में फंसा रही हैं, यह बात तुम अच्छी तरह से जानती हो. उन की बात न मानो तो इलजाम लगाने में पीछे नहीं रहतीं. फिर तुम तो मुझे अच्छी तरह से जानती हो. क्या मैं ऐसा कर सकता हूं? तुम से कितना प्यार करता हूं, यह बताने की क्या अब भी जरूरत है? तुम मुझे समझोगी कम से कम मैं तुम से तो यह उम्मीद करता था.’’
‘‘यह सब होने के बाद क्या और क्यों समझूं मैं. तुम ही बताओ…क्यों करेगी कोई औरत ऐसा? आखिर उस की बदनामी भी तो होगी. वह भी शादीशुदा है. तुम पर बेवजह इतना बड़ा इलजाम क्यों लगाएगी? अगर गलत साबित हुई तो उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है या वह सस्पैंड भी हो सकती है. यही नहीं उस का खुद का घर भी टूट सकता है. मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश मत करो. पता नहीं अब क्या होगा. पर तुम्हारे साथ रहने का तो अब सवाल ही नहीं है. मैं बच्चों को ले कर आज ही मायके चली जाऊंगी. मेरे बरसों के विश्वास को तुम ने कितनी आसानी से चकनाचूर कर दिया, रमन,’’ राधा गुस्से में फुफकारीं.
‘‘बच्चों जैसी बात मत करो. जो गलती मैं ने की ही नहीं है, उस की सजा मैं नहीं भुगतुंगा, इन्वैस्टीगेशन होगी तो सब सच सामने आ जाएगा. कब से तुम्हें समझाने की कोशिश कर रहा हूं कि मेरी मातहत सीमा बहुत ही कामचोर किस्म की महिला हैं. इसीलिए उन की प्रोमोशन नहीं होती. मेरे नाम से लोगों से रिश्वत लेती हैं. तुम्हें पता ही है एमसीडी ऐसा विभाग है, जो सब से भ्रष्ट माना जाता है. एक से एक निकम्मे लोग भी पैसे वाले बन कर घूम रहे हैं.
‘‘मैं ने कभी रिश्वत नहीं ली या किसी के दबाव में आ कर किसी की फाइल पास नहीं की, इसलिए मेरे न जाने कितने विरोधी बन गए हैं. बहुत दिनों से सीमा मुझे तरहतरह से परेशान कर रही थीं. जब मैं ने उन से कहा कि जो काम आप के अंतर्गत आता है उसे पहले बखूबी संभालना सीख लें, फिर प्रमोशन की बात सोचेंगे तो उन्होंने मुझे धमकी दी कि मुझे देख लेंगी. गुरुवार की शाम को वे मेरे कैबिन में आईं और फिर प्रमोशन करने की बात की.’’
‘‘जब मैं ने मना किया तो उन्होंने अपना ब्लाउज फाड़ डाला और चिल्लाने लगीं कि मैं ने उन के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की. मैं उन्हें मोलैस्ट कर रहा हूं. झूठे आंसू बहा कर उन्होंने लोगों को इकट्ठा कर लिया. तमाशा बना दिया मेरा. हमारा समाज ऐसा ही है कि पुरुष को ही हर गलती का जिम्मेदार माना जाता है. बस सच यही है. इन्वैस्टीगेशन होने दो, सब को पता चल जाएगा कि मैं निर्दोष हूं,’’ रमनजी बोलतेबोलते कांप रहे थे.
ऐसे वक्त में जब उन्हें अपनी पत्नी व परिवार की सब से ज्यादा जरूरत थी, वे ही उन्हें गलत समझ रहे थे. इस से ज्यादा परेशान व हताश करने वाली बात और क्या हो सकती थी. विश्वास की जड़ें अगर तेज हवाओं का सामना न कर पाएं और उखड़ जाएं तो रिश्ते कितने खोखले लगने लगते हैं. कहां कमी रह गई उन से… राधा और बच्चों के लिए हमेशा समर्पित रहे वे तो…
‘‘क्यों कहानी बना रहे हो. इतने बड़े अफसर हो कर एक औरत को ही बदनाम करने लगे. तुम्हें बदनाम कर के उसे क्या मिलेगा. उस की भी जगहंसाई होगी… मुझे विश्वास नहीं होता. इस से पहले क्या उस ने ऐसी हरकत किसी के साथ की है?’’ राधा तो रमन की बात सुनने को ही तैयार नहीं थीं.
‘‘बेशक न की हो, पर उन के चालचलन पर हर कोई उंगली उठाता है. कपड़े देखे हैं कैसे पहनती हैं. पल्लू हमेशा सरकता रहता है, लगता है जैसे मर्दों को लुभाने में लगी हुई है.’’
‘‘हद करते हो रमन… ऐसी सोच रखते हो एक औरत के बारे में छि:’’ राधा आगे कुछ कहतीं तभी कमरे में रमन के ससुराल वाले आ गए.
‘‘क्या सोच रही है राधा? अब भी इस आदमी के साथ रहना चाहती है. हर तरफ थूथू हो रही है. बच्चों पर इस बात का कितना बुरा असर पड़ेगा. स्कूल जाएंगे तो दूसरे बच्चे कितना मजाक उड़ाएंगे. चल हमारे साथ चल,’’ राधा के भाई ने गुस्से से कहा.
‘‘और क्या. तू चिंता मत कर. हम तेरे साथ हैं. फिर तू खुद कमाती है,’’ राधा की मां ने अपने दामाद की ओर घृणित नजरों से देखते हुए कहा, मानो उन का जुर्म जैसे साबित ही हो गया हो.
आज तक जो ससुराल वाले उन का गुणगान करते नहीं थकते थे, वे ही आज उन का तिरस्कार कर रहे थे. कौन कहता है औरत अबला है, समाज उसी का साथ देता है. उन्हें पुरुष की विडंबना पर अफसोस हुआ. बिना दोषी हुए भी पुरुष को कठघरे में खड़े होने को मजबूर होना पड़ता है.
‘‘पापाजी, आप ही समझाइए न इन्हें,’’ रमनजी ने बड़ी आशा भरी नजरों से अपने ससुर को देखते हुए कहा. वे जानते थे कि वे बहुत ही सुलझे हुए इनसान हैं और जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं लेते हैं.
‘‘हां बेटा, रमन की बात को समझो तो… इतने बरसों का साथ है… ऐसे अविश्वास करने से जिंदगी नहीं चलती. तुम्हें अपने पति पर भरोसा होना चाहिए.’’
‘‘अपनी बेटी का साथ देने के बजाय आप इस आदमी का साथ दे रहे हैं, जो दूसरी औरतों के साथ बदसलूकी करता है… उन की इज्जत पर हाथ डालता है… पता नहीं और क्याक्या करता हो और हमारी बेटी को न जाने कब से धोखा दे रहा हो. सादगी की आड़ में न जाने कितनी औरतों से संबंध बना चुका हो,’’ अपनी सास की बात सुन रमन हैरान रह गए.
‘‘मुझे आप से ऐसी उम्मीद नहीं थी मां. मुसीबत के वक्त अपने ही साथ देते हैं और जब राधा मुझ पर विश्वास ही नहीं करना चाहती तो मैं क्या कह सकता हूं. इतने लंबे वैवाहिक जीवन में भी अगर पतिपत्नी के बीच विश्वास की दीवारें पुख्ता न हों तो फिर साथ रहना ही बेमानी है.
‘‘अब मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा. तुम मेरी तरफ से आजाद हो, पर यह घर हमेशा से तुम्हारा था और तुम्हारा ही रहेगा.’’
रमन की बात सुन पल भर को राधा को लगा कि शायद वही गलत है. सच में रमन जैसे प्यारे पति और स्नेहमयी पिता में किसी दूसरे की बात सुन कर दोष देखना क्या उचित होगा?
18 साल की शादीशुदा जिंदगी में कभी रमन ने उस का दिल नहीं दुखाया था, कभी भी किसी बात की कमी नहीं होने दी थी, तो फिर क्यों आज उस का विश्वास डगमगा रहा है… वे कुछ कहना ही चाहती थीं कि मां ने उन का हाथ पकड़ा और घसीटते हुए बाहर ले गईं. बच्चे हैरान और सहमे से खड़े सब की बातें सुन रहे थे.
‘‘मां, पापा की बात तो सुनो…’’ उन की 18 वर्ष की बेटी साक्षी की बात पूरी होने से पहले ही काट दी गई.
‘‘तू इन सब बातों से दूर रह. अभी बच्ची है…’’
नानी की फटकार सुन वह चुप हो गई. मां का पापा पर विश्वास न करना उसे
अखर रहा था. उस ने अपने भाई को देखा जो बुरी तरह से घबराया हुआ था. साक्षी ने उसे सीने से लगा लिया और फिर दूसरे कमरे में ले गई. बड़े भी कितने अजीब होते हैं. अपनों से ज्यादा परायों की बात पर भरोसा करते हैं. हो सकता है… नहीं उसे पक्का यकीन है कि उस के पापा को फंसाया गया है.
राधा और बच्चों के जाने के बाद रमन को घर काटने लगा था. इन्वैस्टिगेशन के दौरान सीमा बिना झिझके कहती कि रमन ने पहले भी उन के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की थी. यहां तक कि उन के सामने सैक्स संबंध बनाने का प्रस्ताव भी रखा था.
बहसों, दलीलों और रमन की ईमानदारी भी इसलिए उन्हें सच्चा साबित नहीं कर पा रही थी, क्योंकि कानून औरत का साथ देता है. खासकर तब जब बात उस के साथ छेड़छाड़ करने की हो.
रमन टूट रहे थे. परिवार का भी साथ नहीं था, दोस्तों और रिश्तेदारों ने भी किनारा कर लिया था.
उस दिन शाम को रमन अकेले निराश से घर में अंधेरे में गुम से बैठे थे. रोशनी उन की आंखों को अब चुभने लगी थी, इसलिए अंधेरे में ही बैठे रहते. खाली घर उन्हें डराने लगा था. प्यास सी महसूस हुई उन्हें पर उठने का मन नहीं किया. आदतन वे राधा को आवाज लगाने ही लगे थे कि रुक गए.
फिर अचानक अपने सामने राधा को खड़े देख चौंक गए. लाइट जलाते हुए वे बोलीं, ‘‘मुझे माफ कर दीजिए रमन. आप पर विश्वास न कर के मैं ने खुद को धोखा दिया है. पर अब मुझे सच पता चल चुका है,’’ और फिर रमन से लिपट गईं. ग्लानि उन के चेहरे से साफ झलक रही थी. जिस पति पर वे आज तक अभिमान करती आई थीं, उस पर शक करने का दुख उन की आंखों से बह रहा था.
‘‘पर अभी तो इन्वैस्टिगेशन पूरी भी नहीं हुई है, फिर…’’ रमन हैरान थे, पर राधा को देख उन्हें लगा था मानो आसमान पर बादलों का जो झुंड इतने दिनों से मंडरा रहा था और हर ओर कालिमा बिखेर रहा था, वह यकायक हट गया है. रोशनी अब उन की आंखों को चुभ नहीं रही थी.
सीमा के पति मुझ से मिलने आए थे. उन्होंने ही मुझे बताया कि सीमा के खिलाफ वह सार्वजनिक रूप से या इन्वैस्टिगेशन अफसर को तो बयान नहीं दे सकते, क्योंकि इस से उन का घर टूट जाएगा और चूंकि वे बीमार रहते हैं, इसलिए पूरी तरह से पत्नी पर ही निर्भर हैं. लेकिन वे माफी मांग रहे थे कि उन की पत्नी की वजह से हमें एकदूसरे से अलग होना पड़ा और आप को इतनी बदनामी सहनी पड़ी.
वह बोले कि सीमा बहुत महत्त्वाकांक्षी है और जानती है कि मैं लाचार हूं, इसलिए वह किसी भी हद तक जा सकती है. उसे पैसे की भूख है. वह बिना मेहनत के तरक्की की सीढि़यां चढ़ना चाहती है.
वह रमनजी से इसी बात से नाराज थी कि वे उस की प्रमोशन नहीं करते और साथ ही उस के रिश्वत लेने के खिलाफ रहते थे. रमन सर ने शायद उसे वार्निंग भी दी थी कि वे उस के खिलाफ ऐक्शन लेंगे, इसीलिए उस ने यह सब खेल खेला. मैं उस की तरफ से आप से माफी मांगता हूं और रिक्वैस्ट करता हूं कि आप रमन सर के पास लौट जाएं
‘‘मुझे भी माफ कर दीजिए रमन. हम साथ मिल कर इस मुसीबत से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ़ लेंगे. मैं यकीन दिलाती हूं कि अब कभी अपने बीच की विश्वास की जड़ों को उखड़ने नहीं दूंगी.’’ Hindi Family Story