Story In Hindi: लाल कमल – उम्मीद की किरण बना आईएएस आनंद

Story In Hindi: आईएएस यानी भारतीय प्रशासनिक सेवा में आने के बाद आनंद अभी बेंगलुरु में एक ऊंचे प्रशासनिक पद पर काम कर रहा है.

महात्मा गांधी की पुकार पर साल 1942 के आंदोलन में स्कूल छोड़ कर देश की आजादी के लिए कूद पड़ने वाले करमना गांव के आदित्य गुरुजी के पोते आनंद को देश और समाज के प्रति सेवा करने की लगन विरासत में मिली है.

आनंद बचपन से ही अपने तेज दिमाग, बड़ेबुजुर्गों के प्रति आदर और हमउम्र व बच्चों के बीच मेलजोल के साथ पढ़नेलिखने व खेलनेकूदने में भाग लेने के चलते बहुत लोकप्रिय था.

गांवसमाज के हर तीजत्योहार, शादीब्याह, रीतिरिवाज में आनंद को उमंग के साथ हिस्सा लेने में बहुत खुशी होती थी. केवल छात्र जीवन में ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक सेवा में आने के बाद भी होलीदशहरा में वह गांव आने का मौका निकाल ही लेता था.

इस बार मार्च महीने में दफ्तर के कुछ काम से उसे पटना जाना था. पटना आने के बाद आनंद ने एक दिन गांव जाने का प्रोग्राम बनाया.

आनंद को गांव आ कर काफी अच्छा लगता है, पर अब यहां बहुतकुछ बदल गया है.

यह बात आज के बच्चे सोच भी नहीं सकते कि जहां पहले कभी कच्ची सड़क पर बैलगाड़ी और टमटम के अलावा कोई दूसरी सवारी नहीं हुआ करती थी, वहां अब पक्की रोड पर

बसें और आटोरिकशा 12 किलोमीटर दूर रेलवे स्टेशन तक जाने के लिए हर 15 मिनट पर तैयार मिल जाते हैं.

यहां तक कि पटना से निकलने वाले सभी अखबार अब इस गांव में आते हैं और हौकर इन्हें घरघर तक पहुंचा जाता है. साथ ही, टैलीविजन पर भी अब हर छोटीबड़ी खबर और मनोरंजन के तमाम कार्यक्रमों समेत नईपुरानी फिल्में भी देखने को मिल जाती हैं.

अब आनंद के बाबूजी तो रहे नहीं, पर चाचा और चाची रहते हैं. उसे देखते ही उन के चेहरे पर खुशी की चमक आंखों में नमी लिए पसर गई.

आनंद ने चाचा के पैर छुए. उन्होंने उस के सिर को दोनों हाथों में ले कर चूमते हुए ढेर सारा आशीर्वाद दिया.

चाची दोनों की बातें सुनते हुए अंदर से बाहर आ गई थीं. आनंद ने उन के भी पैर छुए.

चाची ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘हम कह रहे थे कि आनंद हम को देखे बिना जा ही नहीं सकता.’’

‘‘कैसे हैं आप लोग?’’ आंखों में भर आए आंसुओं को रूमाल से पोंछते हुए आनंद ने पूछा.

‘‘तुम्हारे जैसे बेटे के रहते हमें क्या हो सकता है? हम भलेचंगे हैं. लो, कुछ चायनाश्ता कर के थोड़ा आराम कर लो, तब तक मैं खाना तैयार कर लेती हूं,’’ कह कर चाची अंदर चल पड़ीं.

‘‘बहुत परेशान न होइएगा चाची. सादा खाना ही ठीक रहेगा,’’ आनंद ने कहा और चायनाश्ता करते हुए चाचा से अपने खेतखलिहान के साथ ही साफ बागबगीचे, गांवसमाज की बातें करने लगा.

चाची के हाथ का बना खाना खाते हुए आनंद को बरबस ही बचपन की यादें ताजा हो आईं.

खाना खाने के बाद आनंद ने कुछ देर आराम किया. शाम को चाचा ने फागू को बुलाया. उन्होंने सरसों के सूखे डंठलों को खलिहान से मंगवा कर परिवार के सदस्यों की संख्या के हिसाब से एक ज्यादा होल्लरी यानी लुकाठी बनवाई.

होलिका दहन के लिए गांव की तय जगह पर लोग समय पर इकट्ठा हो गए थे. आनंद भी चाचा के जोर देने पर वहां पहुंच गया था.

वैसे, होली के इस मौके पर होने वाली हुल्लड़बाजी और नशे के असर से सहीगलत न समझ पाने वाले नौजवानों की हरकतों को आनंद बचपन से ही नापसंद करता रहा है.

आनंद को यह बात तो अच्छी लगती कि होलिका दहन में गांवमहल्ले की बहुत सी गंदगी, बेकार की चीजें, जो सही माने में बुराई की प्रतीक हैं, जला कर आबोहवा को कुछ हद तक साफ करने में मदद मिलती है. परंतु वह यह भी मानता है कि होलिका दहन के ढेर से उठती आग की लपटों से कभीकभार आसपास के हरेभरे पेड़ों और मकानों को पहुंचने वाले नुकसान से इस को मनाने के सही ढंग पर नए सिरे से सोचना चाहिए.

आनंद को देख कर गांव के बहुत से नौजवान लड़के उस के पास आ गए. उन सभी लड़कों ने अपने मातापिता से आनंद के बारे में पहले ही बहुतकुछ सुन रखा था. वे अपने बच्चों को आनंद जैसा बनने की सीख देते थे.

आनंद को भी उन से मिल कर बहुत अच्छा लगा.

आनंद ने उन नौजवानों से दोस्त की तरह कई बातें कीं, फिर होलिका दहन के बारे में भी अपने मन की बातें उन से साझा कीं. वे सभी आनंद जैसे एक बड़े ओहदे वाले शख्स की इतनी अपनेपन भरी बातों से बहुत ज्यादा प्रभावित थे.

एक लड़के सुंदर ने आगे आते हुए कहा, ‘‘आनंद अंकल, हम आप से वादा करते हैं कि आगे से सावधान रहेंगे और किसी भी दुर्घटना की नौबत नहीं आने देंगे.’’

सुधीर ने भी भरोसा दिलाते हुए कहा, ‘‘अंकल, आज होली के नाम पर न तो कोई गंदे गाने गाएगा और न ही गंदी हरकत करेगा.’’

और सच में ही उस शाम के होलिका दहन को बड़ी सादगी से मनाया गया.

आनंद ने सभी को होली की मिठाई खिलाई. उस के बाद वह अपने चाचा के साथ घर लौट आया.

चैत्र पूर्णिमा की रात थी. दालान में चारपाई पर लेटे आनंद को चांदनी में नहाई रात काफी अच्छी लग रही थी. नींद की गहराई में धीरेधीरे उतरते हुए भी आनंद के कानों में होली के गीत सुनाई पड़ रहे थे.

अचानक ही तभी कुत्तों के भूंकने की आवाजों को बीच गांव के लोगों की घबराहट भरी आवाजों का शोर जोर पकड़ता हुआ सुनाई पड़ा.

‘‘मालिक, गोलीबंदूक के साथ बसहा गांव वाले फसल लगे खेतों की सीमा पर आ कर लड़नेमरने को तैयार खड़े हैं,’’ दीनू को अपने चाचा से यह कहते हुए सुन कर चौंकता हुआ आनंद झटके से उठ बैठा.

आनंद ने अपने मोबाइल फोन से कुछ संबंधित बड़े पुलिस अफसरों से बात करने की कोशिश की.

रास्ते में दीनू ने बताया कि आधी रात के बाद गांव के कुछ अंधविश्वासी लोग देवी मां के मंदिर में जमा हुए थे.

तांत्रिक इच्छा भगत ने पहले देवी मूर्ति की लाल उड़हुल के फूलों, रोली, अबीरगुलाल से पूजा की थी, उस के बाद एक तगड़ा काला कुत्ता भैरों के रूप में वहां लाया गया.

वहां जुटे लोगों ने खुद शराब पीने के साथसाथ उस कुत्ते को भी शराब पिलाई और फूलमाला से पूजा की गई.

नए साल में अपने गांव की खुशहाली और पुराने साल आई मुसीबतों को हमेशा के लिए भगाने के लिए उन्होंने करायल, अरंडी का तेल, पीली सरसों, लाल मिर्च, सिंदूर, चावल वगैरह को एक छोटे मिट्टी के बरतन में ढक कर भैरों कहे जाने वाले कुत्ते की गरदन में बांध दिया.

तांत्रिक इच्छा भगत ने मंदिर से एक जलता हुआ दीया उठा कर कुत्ते की गरदन में सामान समेत बंधे मिट्टी के बरतन में सावधानीपूर्वक रख दिया. फिर दीए की गरमी से परेशान कुत्ता भूंकता हुआ बसहा गांव की तरफ दौड़ पड़ा.

इच्छा भगत और कुछ लोग इस बात को पक्का करना चाहते थे कि वह कुत्ता वापस उन के अपने गांव में न लौटे.

उधर खेतों की रखवाली कर रहे बसहा गांव के कुछ किसानों ने दूसरे छोर पर आग की लपटों के साथ कुत्ते की गुर्राहट भरी आवाज सुनी. कुछ ही देर में पकने को तैयार गेहूं की फसल लपटों में झालसने लगी थी.

रखवाली कर रहे किसानों को पूरा माजरा समझाने में ज्यादा समय नहीं लगा. उन्होंने दौड़ कर तमाम गांव वालों को बुला लिया. ट्यूबवैल चला कर पानी से आग बुझाने के साथसाथ कुछ लोग गोलीबंदूक के साथ इस घटना के पीछे रहे करमना गांव को सबक सिखाने को ललकारने लगे थे. हवा में गोलियों की आवाजें गूंजने लगी थीं.

इस से पहले कि करमना गांव के कुछ अंधविश्वासी और नासमझ तत्त्वों की शरारत के कारण पड़ोसी गांव वालों की होली की खुशी खूनखराबे और मातम की भेंट चढ़ जाती, आनंद अपने साथ जिला मजिस्ट्रेट और एसपी की टीम मौके पर ले कर पहुंच गया. उस ने गुस्साए लोगों को समझाबुझा कर शांत किया.

अंधविश्वास में ‘भैरव टोटका’ करने वाले इच्छा भगत व दूसरे लोगों को पुलिस पकड़ कर वहां थोड़ी ही देर में पहुंच गई.

आनंद के कहने पर उन लोगों ने बसहा गांव के लोगों से अपने गलत अंधविश्वास के चलते किए गए काम के लिए माफी मांगी.

‘‘हम आप के पैर पकड़ते हैं भैया, हमें माफ कर दीजिए. हम शपथ लेते हैं कि आगे से नासमझ और अंधविश्वास से भरा कोई काम नहीं करेंगे.’’

तब तक आग बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड की टीम भी वहां आ चुकी थी.

तेजी से किए गए बचाव काम से आग को ज्यादा फैलने के पहले ही बुझाने में कामयाबी मिल गई थी.

आनंद ने गांव वालों की ओर से हुई गलती के लिए माफी मांगते हुए कहा, ‘‘रघुवीर, मैं तुम्हारे जज्बात को अच्छी तरह समझ सकता हूं… अपनी जिस फसल को खूनपसीना बहा कर तुम ने तैयार किया है, उस के खेत में इस तरह जल जाने के चलते हुए दिल के घाव को भरना किसी के लिए मुमकिन नहीं है. फिर भी करमना गांव के लोगों की ओर से मैं खुद जिम्मेदारी लेता हूं कि तुम्हें जो भी नुकसान हुआ है, उसे हमारे द्वारा कल ही पूरा किया जाएगा.’’

अपने खेत की तैयार फसल के जलने से नाराज रघुवीर कुसूरवारों को सबक सिखाने पर आमादा था, पर अपने स्कूल के दिनों में सही बात से आगे बढ़़ने की प्रेरणा देने वाले आदित्य गुरुजी जैसे आनंद के रूप में अभी वहां आ खड़े हो गए थे, इसलिए वह अपने गुस्से पर काबू कर गया.

रघुवीर आनंद के पैरों पर झाकता हुआ बोला, ‘‘माफ करें सर. आप की हर बात मेरे सिरआंखों पर.’’

आनंद ने रघुवीर को गले लगाते हुए कहा, ‘‘उठो रघुवीर, अब बसहापुर गांव और करमना गांव आपस में

मिल कर एकदूसरे की मुसीबतों को मिटाते हुए खुशियां लाने के लिए हमेशा तैयार रहेंगे. तुम बिलकुल चिंता मत करो.

‘‘इस बार गांव के स्कूल वाले मैदान में करमना और बसहा दोनों गांव मिल कर एकसाथ होली मनाएंगे.’’

वहां जमा दोनों गांवों के लोगों के चेहरे पर खुशी की लाली चमक उठी. ‘हांहां’ के साथ ‘होली है होली है’ की आवाजें चिडि़यों की चहचहाहट भरे माहौल में गूंज उठीं.

उसी समय गांव के पूर्वी आकाश में सूरज एक लाल कमल की तरह खिलता नजर आ रहा था. Story In Hindi

Family Story In Hindi: सौतेली मां – हामिद की दूसरी शादी

Family Story In Hindi: हामिद की शादी आज से 5 साल पहले पास के ही एक गांव में चांदनी नाम की लड़की से हुई थी. चांदनी सिर्फ नाम की ही चांदनी नहीं थी, बल्कि उस की खूबसूरती के चर्चे आसपास के गांवों में आएदिन सुनने को मिलते रहते थे. वह बला की खूबसूरत और गदराए बदन की मालकिन थी.

चांदनी की बड़ीबड़ी आंखें, सुर्ख होंठ, गुलाबी गाल, पतली कमर देख कर ऐसे लगता था जैसे आसमान की कोई अप्सरा उतर कर जमीन पर आ गई हो. यही वजह थी कि हामिद पहली ही नजर में चांदनी की खूबसूरती का दीवाना हो गया था और शादी के फौरन बाद उसे अपने साथ मुंबई ले आया था.

हामिद मुंबई में सेल्समैन था. उस की अच्छीखासी कमाई थी. चांदनी को हामिद के साथ किसी बात की कोई कमी न थी. हामिद चांदनी का ऐसा दीवाना था कि वह हर साल उस के लिए कोई न कोई सोने का जेवर बनवाता रहता था.

हामिद को चांदनी से 5 साल के अंदर 3 बच्चे पैदा हुए थे. सब से पहले बेटी और उस के बाद 2 बेटे. हामिद और चांदनी अपने बच्चों के साथ खुशीखुशी रह रहे थे. घर में किसी चीज की कोई कमी न थी. हर साल हामिद अपने बीवीबच्चों के साथ गांव आताजाता रहता था.

चांदनी एक गरीब परिवार की लड़की थी. चांदनी के घर में उस की बेवा मां, 2 छोटी बहनें और एक छोटा भाई था, जिन की गुजरबसर खेतों में काम कर के होती थी. चांदनी अपनी मां की पैसे से मदद करती रहती थी. उस की शादी को 15 साल कब गुजर गए, पता ही नहीं चला.

हामिद ने अपनी बीवी चांदनी के नाम उसी के गांव में 10 लाख रुपए का एक खेत खरीद लिया था. यही हामिद की सब से बड़ी भूल थी, जिस की वजह से चांदनी अपनी मनमानी करने लगी थी. हामिद मुंबई में ही रह रहा था. उसे यहां एक छोटी से खोली में रहते हुए काफी दिन बीत गए थे.

बच्चे बड़े हो रहे थे, इसलिए वह मुंबई में एक बड़ा घर खरीदना चाहता था. उस ने चांदनी से बात की कि गांव की जमीन बेच देते हैं और यहां घर खरीद लेते हैं. चांदनी तैयार हो गई, पर जब हामिद अपनी बीवी के साथ खेत बेचने गांव पहुंचा, तो चांदनी की मां ने चांदनी को भड़का दिया, ‘‘जमीन तेरे नाम है.

तू क्यों बेच रही है? अपने नाम की चीज मत बेच. तेरे बुरे वक्त में काम आएगी.’’ चांदनी अपनी मां के बहकावे में आ गई और हामिद से टालमटोल करने लगी. हामिद ने उसे समझाया, ‘‘इस खेत की कीमत भी अच्छी मिल रही है और हमें मुंबई में रहना है. वहां हमें बड़ा और सस्ता घर मिल रहा है.

ग्राहक तैयार है.’’ लेकिन चांदनी ने साफ मना कर दिया, ‘‘यह खेत मेरे नाम है और मैं इसे नहीं बेचूंगी.’’ हामिद ने चांदनी को बहुत समझाया, पर वह नहीं मानी. बातों ही बातों में झगड़ा होने लगा.

हामिद ने चांदनी के एक थप्पड़ मारते हुए कहा, ‘‘जब बेचना नहीं था तो मुंबई से क्यों आई? और मैं ने इसे तेरे नाम इसलिए खरीदा था कि औरत के नाम खरीदने से कम खर्चा होता है. अब हमें पैसे की जरूरत है, तो तुम मुझे धोखा दे रही हो.’’

हामिद का थप्पड़ मारना हुआ कि चांदनी की मां ने फौरन पुलिस को बुला लिया. पुलिस दोनों को थाने ले गई. दोनों की बात सुनी और उन्हें झगड़ा न करने की सलाह दी. पर अगले ही दिन चांदनी और उस की मां ने हामिद पर दहेज और खर्चे का दावा कर दिया और उस में हामिद की कमाई 80,000 रुपए महीना लिखवा दी.

उधर हामिद ने भी अपने वकील के जरीए चांदनी पर रुखसती और मानहानि का दावा कर दिया. हामिद के वकील ने चांदनी के मुताबिक बताए गए 80,000 रुपए महीने की कमाई के हिसाब से 14 साल की कमाई की चोरी का इलजाम चांदनी और उस की मां पर लगाया और कहा कि जब तुम ने बताया कि हामिद महीने के इतने सारे रुपए कमाता है, तो उस की 14 साल की कमाई कहां है? उस के नाम क्या है? तुम ने सब पैसा अपनी मां को दे दिया.

मामला बढ़ गया. मुकदमेबाजी शुरू हो गई. चांदनी अपनी मां के घर जा कर बैठ गई. उस ने बच्चों तक की सुध न ली. 7 महीने बरबाद करने के बाद हामिद अपने बच्चों को ले कर मुंबई वापस अपने काम पर लौट आया.

कुछ ही महीनों बाद हामिद की मुलाकात सोशल मीडिया पर शबनम से हो गई. दोनों की प्यार भरी बातें होने लगीं. हामिद ने शबनम को अपने और चांदनी के साथसाथ बच्चों के बारे में सब बता दिया. शबनम की उम्र महज 22 साल थी, जबकि हामिद की उम्र 45 साल थी, फिर भी दोनों के सिर पर प्यार का उफान चढ़ने लगा और एक दिन शबनम ने हामिद से कहा, ‘‘मुझे तुम से शादी करनी है.

मेरे मांबाप तो मानेंगे नहीं, अगर तुम मुझ से प्यार करते हो तो अपना पता और मुंबई आने का टिकट भेज दो. मैं मौका पा कर तुम्हारे पास आ जाऊंगी और हम शादी कर लेंगे.’’ हामिद को शबनम की यह बात जम गई और उस ने शबनम के लिए टिकट भेज दिया.

शबनम मौका देख कर मुंबई आ गई और वहां हामिद ने शबनम से कोर्टमैरिज कर ली. हामिद और शबनम दोनों खुशीखुशी रहने लगे. शबनम के आने से हामिद के बच्चे भी खुश रहने लगे. शबनम बच्चों का खयाल सगी मां से भी ज्यादा करती थी.

उन के खानेपीने का खूब खयाल रखती थी. खुद पढ़ीलिखी होने की वजह से शबनम बच्चों को खुद पढ़ाती थी. उस ने बच्चों के ऊपर इतनी मेहनत की कि वे तीनों अपनीअपनी क्लास में अव्वल आए. शादी के एक साल बाद शबनम को भी एक बेटा हुआ, जिसे पा कर हामिद और शबनम की खुशी का ठिकाना न रहा, लेकिन वक्त के साथसाथ शबनम का हामिद के बच्चों से प्यार कम होता गया.

अब वह हामिद के पहले बच्चों को नजरअंदाज करने लगी और बातबात पर उन्हें मारनेपीटने लगी. इस बात से बच्चे पूरी तरह सहम गए थे. वे शबनम से खौफ खाने लगे थे.

अब उन का पढ़ाई में भी दिल नहीं लगता था. शबनम ने हामिद से कहना शुरू कर दिया कि इन बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता. लड़की की पढ़ाई बंद करो. मैं भी दिनभर काम कर के थक जाती हूं. काम के बाद इस छोटे बच्चे को भी संभालना पड़ता है.

लड़की घर पर रहेगी, तो मेरे साथ घर के कामकाज में हाथ बंटाएगी. पहले तो हामिद ने मना किया, पर शबनम की जिद के आगे उसे झुकना पड़ा और इस तरह हामिद की पहली बच्ची का भविष्य घर की चारदीवारी में कैद हो कर रह गया.

दिनभर घर का काम करने के बाद भी उस लड़की को पेट भर खाना नहीं मिलता था और छोटी सी उम्र में ही वह घर में बाल मजदूर की तरह जिंदगी बिताने के लिए मजबूर हो गई. अभी बड़ी बेटी का भविष्य अंधकारमय हुए 3 महीने ही हुए थे कि शबनम ने हामिद के बड़े बेटे की भी पढ़ाई बंद करने का मशवरा देते हुए कहा कि अब उसे अपने साथ काम पर लगाओ, ताकि तुम्हें भी कुछ आराम मिल जाए.

अगर उसे पढ़ना है तो रात वाले सरकारी स्कूल में दाखिला करा दो. अपने छोटे बेटे का भी उसी सरकारी स्कूल में दाखिला करा दो. इस से बच्चों की फीस बचेगी और किताबें व ड्रैस भी स्कूल से मुफ्त में मिल जाएंगी. हामिद को शबनम की यह बात बुरी लगी.

उस ने शबनम को समझाया, ‘‘वे तीनों मेरी औलाद हैं और मैं किस के लिए कमा रहा हूं. आज मैं जिंदा हूं तो अपनी औलाद के लिए. इन्हीं के लिए मैं मेहनत कर रहा हूं. बच्चे अगर मेरे पास न होते तो आज मैं भी न होता. ‘‘मर तो मैं उसी दिन गया था, जब चांदनी ने मुझे धोखा दिया था.

इन बच्चों की खातिर मैं ने जीने की हिम्मत की और तुम इन का ही भविष्य बरबाद करने पर तुली हो.’’ यह सुन कर शबनम खफा हो गई. हामिद को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. शबनम के रूठने से वह बेचैन हो उठा. शबनम न खाना बना रही थी, न किसी से बात कर रही थी.

बच्चों की हालत और शबनम का रूखापन हामिद को अंदर ही अंदर खाए जा रहा था. वह सोच रहा था कि अगर शबनम भी उसे छोड़ कर चली गई तो बच्चों का क्या होगा? उस ने यही फैसला लिया कि शबनम की बात मान ली जाए. हामिद ने अपने बड़े बेटे को अपने ही साथ काम पर लगा लिया और दोनों बेटों का रात के सरकारी स्कूल में दाखिला करवा दिया.

उधर चांदनी भी मुंबई आ गई. उस ने यहां हामिद के खिलाफ फिर पुलिस में शिकायत दर्ज की. पुलिस ने हामिद और शबनम को पुलिस स्टेशन बुलाया और उस से पूछा, ‘‘अपनी पहली बीवी को छोड़ कर तुम इस के साथ क्यों रह रहे हो?’’ हामिद ने सब बातें बताईं.

पुलिस ने चांदनी को बोला, ‘‘तुम्हारा मामला कोर्ट में है. वहां से कोई और्डर मिलेगा तब आना.’’ हामिद और शबनम घर आ गए. अब शबनम हामिद से जिद करने लगी कि बच्चों को उन की मां चांदनी को दे दो, भले ही उन्हें यहां कोई घर किराए पर ले कर दे दो.

हामिद की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. शबनम बच्चों को अपने पास रखने से क्यों कतरा रही थी? शादी के एक साल तक तो उस ने इन बच्चों को अपने सगे बच्चों की तरह प्यार किया, आज जब इस के खुद का बेटा हो गया तो उन से नफरत करने लगी और जिद पर अड़ी हुई है कि इन बच्चों को इन की मां चांदनी को दे दो.

उधर चांदनी को पता नहीं इन बच्चों से क्या नफरत थी कि उस ने आज तक न तो इन्हें कोर्ट से मांगा और न ही कभी बच्चों से मिलने की ख्वाहिश जाहिर की. ऐसी हालत में कैसे चांदनी से कहा जाए कि बच्चों को तुम अपने पास रख लो? समय बीतता गया.

बच्चों का भविष्य चौपट होता गया. उन के चेहरे की खुशी दब कर रह गई. उन्हें देख कर ऐसा लगता था, जैसे बच्चे हंसना ही भूल गए हों. हामिद चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा था. वह फिर से उन के सिर से मां के साए को दूर नहीं करना चाहता था.

आज बच्चे भले ही परेशानी में थे, पर उन के पास मां तो थी. उन्हें जैसा भी खाना मिल रहा था, पर भूखे तो नहीं थे. हामिद कभी बच्चों के लिए बाहर से कुछ लाता तो शबनम बच्चों को नहीं देने देती थी. भले ही वे पेट भर कर नहीं खाते थे, पर थोड़ाबहुत तो उन्हें मिल ही जाता था.

शबनम का पूरा ध्यान अपनी कोख से जनमे बच्चे पर था. हामिद ने कभी सोचा भी नहीं था कि जिन बच्चों के लिए वह शादी कर रहा है और उन के लिए नई मां ला रहा है, वह उन के साथ सौतेला बरताव रखेगी. आज उसे अहसास हो रहा था कि उस ने अपने से कम उम्र की कुंआरी लड़की से शादी कर के सब से बड़ी भूल की थी.

आज उस की वजह से ही बच्चे गुमसुम हो गए थे. सौतेली मां से बच्चों को जो दुख मिल रहा था, वह वाकई बरदाश्त के बाहर था, पर हामिद कर भी क्या सकता था. वह इस दुखभरी जिंदगी को जीने के लिए मजबूर था. Family Story In Hindi

Hindi Family Story: मैले साब – कैसी थी हवलदार की मेहमाननवाजी

Hindi Family Story: हवलदार सिंह पुलिस में नहीं, बल्कि राजनीति में थे. वे अपने क्षेत्र के विधायक थे. गांव के लोग आदर से उन्हें ‘मैले साब’ बुलाते थे. इंगलिश का एमएलए बोलने में उन्हें थोड़ी मुश्किल आती थी. विधायकजी को भी इस उपनाम से एतराज नहीं था.

वोटरों के रुझान के मद्देनजर आम चुनाव के ठीक पहले ‘मैले साहब’ ने अपनी पार्टी से बगावत कर जनवादी मोरचा का दामन थाम लिया था. पूरे देश में जनवादी मोरचा के पक्ष में लहर चल रही थी.

चुनाव में अगड़ेपिछड़े दोनों का ठीकठाक सहयोग मिला और मैले साब की नैया पार लग गई. उन की विधायकी सलामत रही और पुरानी पार्टी के उम्मीदवार की जमानत तक जब्त हो गई. राजधानी में उन का पुराना बंगला उन के ही कब्जे में रह गया.

मैले साब के परिवार में उन की पत्नी और 2 बेटियां थीं. पिछली विधायकी में ही बेटियों की जिम्मेदारी से मुक्त हो चुके थे. बेटियां ससुराल में खुश थीं. पत्नी उन के साथ ही विधायक आवास में रहती थीं. वे अकसर बीमार रहती थीं. कोविड काल में संक्रमित हुईं और अस्पताल से लौट नहीं पाईं.

गांव के पुश्तैनी मकान की देखरेख रघु करता था. घर की साफसफाई, रसोई, खेतीबारी वही देखता था. बेटियां, दामाद और बच्चे विधायक आवास पर ही आना पसंद करते थे. रघु 25 साल का हट्टाकट्टा नौजवान था और अभी कुंआरा था.

‘‘जल्दी कोई अच्छी लड़की देख कर शादी कर लो… रसोई से फुरसत ले कर खेतीबारी पर मन लगाओ…’’ मैले साब को अपनी जायदाद की चिंता थी. खेती से होने वाली सालाना आमदनी से वे संतुष्ट नहीं थे.

‘‘मैना मौसी ने लड़की पसंद कर रखी है… महीनेभर की छुट्टी लगेगी…’’ रघु ने बताया. उस की मैना मौसी का गांव पास के दूसरे जिले में था. पिछले साल तक दोनों गांव एक ही जिले में आते थे.

‘‘रजनी के बच्चों की छुट्टियां हैं… गांव आने की बात है… मैं सलाह कर के महीनेभर की छुट्टी पक्की कर दूंगा…’’ मैले साहब ने भरोसा दिलाया. रजनी उन की बड़ी बेटी थी.

रघु जब 9 साल का था, तभी उस की मां कालाजार के चपेट में आ कर गुजर गई थी. मैना मौसी ने उसे अपने पास रखा था. पिछले चुनाव में रघु ने दोस्तों के साथ अपने गांव का पोलिंग बूथ का जिम्मा लिया था. इसी दौरान जानपहचान हुई और भरोसा कर मैले साब ने गांव की अपनी गृहस्थी रघु को सौंप दी.

शादी हफ्तेभर में निबट गई. मौसी ने नई बहू को अपने ही पास रखने की बात कही.

‘‘खेतीबारी का काम तो कुछ महीनों का होता है. फुरसत मिले, आ जाना. सीता पढ़ीलिखी और होशियार है. गांव के स्कूल में बच्चों को पढ़ाती है… हफ्तेभर की भी छुट्टी होगी तो तुम्हारे पास आ जाएगी,’’ मौसी ने रघु और सीता को पास बुला कर सुझाया. सीता अपने स्कूल की नौकरी से जुड़ी थी. उसे बच्चों से काफी लगाव था.

रघु लौट कर आया तो मैले साब घर पर ही थे. बेटीदामाद, नातीनातिन सब थे. घर में चहलपहल थी. रघु मेहमानों की खातिर में जुट गया. बच्चों ने रघु अंकल से दोस्ती कर ली.

बेटीदामाद और बच्चों को विदा कर मैले साब उदास हो गए थे. उन की बड़ी बेटी अपनी मां पर गई थी. मैले साब को पत्नी की बहुत याद आ रही थी.

‘‘ह्विस्की मिलेगी…’’ मैले साब ने रघु को बुलाया… डर था… प्रदेश में शराबबंदी लागू थी.

‘‘ह्विस्की का तो पता नहीं था… चोरीछिपे देशी बिकती है…’’ रघु बोला.

‘‘नींद लाने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा… जुगाड़ लगाओ…’’ मैले साब ने कहा.

रघु ने अपने दोस्तों से बात की… मनोहर ने गिरधारी का नाम लिया… गिरधारी शराबी और गंजेड़ी था.

‘‘शराबबंदी की ऐसीतैसी… ह्विस्की और देशी सब मिलेगी… रोकड़ा मांगता… दारू और छोकरी होना… और जिंदगी में क्या रखा है… सरकार की…’’ गिरधारी ने सरकार को गंदी गाली दी.

रघु ह्विस्की और देशी दोनों ले आया.

रघु ने चखने में भुनी मछली और बकरे का गोश्त बनाया. चखना, दारू की बोतल और गिलास बैठक में सजा कर रख दिया.

मैले साब को शराब थोड़ी चढ़ी तो बड़बड़ाने लगे… रघु को पास बुलाया और पीने की जिद की.

नानुकर करते हुए रघु ने देशी की आधी बोतल गटक ली.

‘‘मेरे पास टाइम किधर है… देश की राजधानी में मिनिस्टर बनूंगा… इधर

पूरी हवेली तुम्हारे नाम कर दूंगा… परिवार के साथ यहीं रहो… फूलोफलो… खुश रहो…’’

नशे में धुत्त मैले साब जमीन पर ही पसर गए… कुछ ही देर में खर्राटे भरने लगे.

अगले हफ्ते मैले साब राजधानी चले गए. पार्टी के एमएलए की खरीदफरोख्त और पाला बदलने की खबर थी. महामहिम के पास हाजिरी लगानी थी.

दशहरे की छुट्टी आने वाली थी. सीता को रघु के साथ रहने का ज्यादा मौका नहीं मिला था. स्कूल की दूसरी टीचर छेड़ती थी.

सरोज अकसर तंग किया करती थी… वह पेट से थी… 5वां महीना चल रहा था.

‘‘सैयां बसे परदेस… रैना कैसे बीते पिया बिन…’’ सरोज उसे छेड़ने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी. सीता का भी मन मचल रहा था.

रघु को सीता को साथ लाने में कोई परेशानी नहीं थी. धान की फसल की कटाई पूरी हो चुकी थी. सीता के साथ मैना मौसी भी आई थी. मैले साब का मकान हवेलीनुमा था. सीता को छोड़ कर मौसी दूसरे ही दिन वापस चली गई.

शादी के बाद पहली बार कुछ दिनों के लिए साथ रहने का मौका मिला था. पूरी आजादी थी. सीता रघु की मांसल बांहों और मर्दानगी पर फिदा हो चुकी थी. वह रघु की बांहों में चिपकी रहती थी. रघु के साथ खेतों में ट्रैक्टर पर मस्ती करती थी.

इस बीच अचानक मैले साब का इनोवा गाड़ी में आना हुआ. बड़ी गाड़ी में सूबे के बड़े मिनिस्टर आए थे.

रघु मेहमान की खातिरदारी में जुट गया. सीता को रसोई संभालनी पड़ी. मिनिस्टर के साथ कई बौडीगार्ड जीप से आए थे.

चखने और दारू की फरमाइश हुई. गिरधारी ने रम और ह्विस्की के लिए हरे नोटों की गड्डियां ऐंठी. इस धंधे से उस की काफी अच्छीखासी कमाई होती थी. छापामारी होने पर महकमे के अफसर को नजराना देना पड़ता था.

मिनिस्टर साहब देर रात तक पीते रहे. सरकार पलटने की साजिश नाकाम कर पाने की खुशी थी.

सीता ने खाना परोसा था. वह मेहमानों के पास जाने से हिचकिचा रही थी. मैले साब ने रघु को मजबूर किया, तो घूंघट निकाल कर खाना परोसने आई.

घूंघट में उस की सूरत तो छिप गई, पर गदराया बदन और मस्त जवानी ने मिनिस्टर साहब को पागल बना दिया था.

मिनिस्टर साहब बिस्तर में पड़ेपड़े करवटें बदल रहे थे. बेचैनी हो रही थी. सीता भी गई थी. रात रंगीन कर अपनी प्यास और सफर की थकान मिटाना चाहते थे.

देर रात मिनिस्टर साहब ने रघु को अपने कमरे में बुलाया और अपना घिनौना प्रस्ताव रखा.

‘‘बस, एक रात की बात है… मुझे तुम्हारी जोरू से जबरदस्ती नहीं करनी… इस में मजा नहीं आता… पूरी कीमत मिलेगी…’’ मिनिस्टर साहब ने अपने गले से सोने की मोटी चेन और हीरे की कीमती अंगूठी निकाली. मुंहमांगी रकम भी देने का लालच दे कर रघु को राजी करने की कोशिश की.

‘‘गरीब की आबरू से खिलवाड़ मत करो साहब… हम दोनों ने आप की सेवा की है… इस का तो खयाल करो…’’ रघु ने साफ इनकार कर दिया. वह बेहद गुस्से में था, पर लाचार था.

सूबे के मिनिस्टर के सामने उस की हैसियत ही क्या थी. अपनी जान की कीमत पर भी सीता की आबरू बचाने को तैयार था. सीता उस की पत्नी, उस की जीवनसंगिनी थी.

मैले साब गहरी नींद में थे. उन को घटनाक्रम की बिलकुल खबर नहीं थी. मिनिस्टर साहब और रघु के बीच की तनातनी से उन की नींद उचट गई.

रघु ने किस्सा बयान किया, तो उन्हें बेहद बुरा लगा. मैले साब को अपने मेहमान से ऐसी बेहूदगी की उम्मीद नहीं थी.

‘‘सीता मेरी बेटी है… मेरी तीसरी बेटी… मेरे पुश्तैनी मकान की वारिस…’’ मैले साब ने ऐलान किया.

सीता भावुक हो गई. उसे भरोसा हुआ… वह फफक पड़ी. मैले साब ने उसे गले से लगा लिया.

मिनिस्टर साहब का नशा काफूर हो चुका था. भोरअंधेरे उन्होंने ड्राइवर को बुलाया और अपनी इनोवा में चुपचाप निकल गए. वैसे, वे अपनी इस करतूत पर शर्मिंदा नहीं थे. हवलदार सिंह उर्फ मैले साब की मेहमाननवाजी पसंद नहीं आई थी. वे अगले चुनाव में सबक सिखाने की सोच रहे थे. Hindi Family Story

Hindi Family Story: वजह – प्रिया से लड़के वालों ने क्यों रिश्ता तोड़ लिया

Hindi Family Story: ‘‘अरे,संभल कर बेटा,’’ मैट्रो में तेजी से चढ़ती प्रिया के धक्के से आहत बुजुर्ग महिला बोलीं.

प्रिया जल्दी में आगे बढ़ गई. बुजुर्ग महिला को यह बात अखर गई. वे उस के करीब जा कर बोलीं, ‘‘बेटा, चाहे कितनी भी जल्दी हो पर कभी शिष्टाचार नहीं भूलने चाहिए. तुम ने एक तो मुझे धक्का मार कर मेरा चश्मा गिरा दिया उस पर मेरे कहने के बावजूद मुझ से माफी मांगने के बजाय आंखें दिखा रही हो.’’

अब तो प्रिया ने उन्हें और भी ज्यादा गुस्से से देखा. मैं जानती हूं, प्रिया को गुस्सा बहुत जल्दी आता है. इस में उस की कोई गलती नहीं. वह घर की इकलौती लाडली बेटी है. गजब की खूबसूरत और होशियार भी. वह जल्दी नाराज होती है तो सामान्य भी तुरंत हो जाती है. उसे किसी की टोकाटाकी या जोर से बोलना पसंद नहीं. इस के अलावा उसे किसी से हारना या पीछे रहना भी नहीं भाता.

जो चाहती उसे पा कर रहती. मैं उसे अच्छी तरह समझती हूं. इसीलिए सदैव उस के पीछे रहती हूं. आगे चलने या रास्ते में आने का प्रयास नहीं करती.

मुझे जिंदगी ने भी कुछ ऐसा ही बनाया है. बचपन में अपनी मां को खो दिया था. पिता ने दूसरी शादी कर ली. सौतेली मां को मैं बिलकुल नहीं भाती थी. मैं दिखने में भी खूबसूरत नहीं. एक ही उम्र की होने के बावजूद मुझ में और प्रिया में दिनरात का अंतर है. वह दूध सी सफेद, खूबसूरत, नाजुक, बड़ीबड़ी आंखों वाली और मैं साधारण सी हर चीज में औसत हूं.

जाहिर है, पापा की लाडली भी प्रिया ही थी. मेरे प्रति तो वे केवल अपनी जिम्मेदारी ही निभा रहे थे. पर मैं ने बचपन से ही अपनी परिस्थितियों से समझौता करना सीख लिया था. मुझे किसी की कोई बात बुरी नहीं लगती. सब की परवाह करती पर इस बात की परवाह कभी नहीं करती कि मेरे साथ कौन कैसा व्यवहार कर रहा है. जिंदगी जीने का एक अलग ही तरीका था मेरा. शायद यही वजह थी कि प्रिया मुझ से बहुत खुश रहती. मैं अकसर उस की सुरक्षाकवच बन कर खड़ी रहती.

आज भी ऐसा ही हुआ. प्रिया को बचाने के लिए मैं सामने आ गई, ‘‘नहींनहीं आंटीजी, आप प्लीज उसे कुछ मत कहिए. प्रिया ने आप को देखा नहीं था. वह जल्दी में थी. उस की तरफ से मैं आप से माफी मांगती हूं, प्लीज, माफ कर दीजिए.’’

‘‘बेटा जब गलती तूने की ही नहीं तो माफी क्यों मांग रही है? तूने तो उलटा मुझे मेरा गिरा चश्मा उठा कर दिया. तेरे जैसी बच्चियों की वजह से ही दुनिया में बुजुर्गों के प्रति सम्मान बाकी है वरना इस के जैसी लड़कियां तो…’’

‘‘मेरे जैसी से क्या मतलब है आप का? ओल्ड लेडी, गले ही पड़ गई हो,’’ बुजुर्ग महिला को झिड़कती हुई प्रिया आगे बढ़ गई.

मुझे प्रिया की यह बात बहुत बुरी लगी. मैं ने बुजुर्ग महिला को सहारा देते हुए खाली पड़ी सीट पर बैठाया और उन्हें चश्मा पहना कर प्रिया के पास लौट आई.

हम दोनों जल्दीजल्दी घर पहुंचे. प्रिया का मूड औफ हो गया था. पर मैं उसे लगातार चियरअप करने का प्रयास करती रही.

मैं सिर्फ प्रिया की रक्षक या पीछे चलने वाली सहायिका ही नहीं थी वरन उस की सहेली और सब से बड़ी राजदार भी थी. वह अपने दिल की हर बात सब से पहले मुझ से ही शेयर करती. मैं उस के प्रेम संबंधों की एकमात्र गवाह थी. उसे बौयफ्रैंड से मिलने कब जाना है, कैसे इस बात को घर में सब से छिपाना है और आनेजाने का कैसे प्रबंध करना है, इन सब बातों का खयाल मुझे ही रखना होता था.

प्रिया का पहला बौयफ्रैंड 8वीं क्लास में उस के साथ पढ़ने वाला प्रिंस था. उसी ने पीछे पड़ कर प्रिया को प्रोपोज किया था. उस की कहानी करीब 4 सालों तक चली. फिर प्रिया ने उसे डिच कर दिया. दूसरा बौयफ्रैंड वर्तमान में भी प्रिया के साथ था. अमीर घर का इकलौता चिराग वैभव नाम के अनुरूप ही वैभवशाली था. प्रिया की खूबसूरती से आकर्षित वैभव ने जब प्रोपोज किया तो प्रिया मना नहीं कर सकी.

आज भी प्रिया उस के साथ रिश्ता निभा रही है पर दिल से उस से जुड़ नहीं सकी है. बस दोनों के बीच टाइमपास रिलेशनशिप ही है. प्रिया की नजरें किसी और को ही तलाशती रहती हैं.

उस दिन हमें अपनी कजिन की शादी में नोएडा जाना था. मम्मी ने पहले ही ताकीद कर दी थी कि दोनों बहनें समय पर तैयार हो जाएं. प्रिया के लिए पापा बेहद खूबसूरत नीले रंग का गाउन ले आए थे जबकि मैं ने अपनी पुरानी मैरून ड्रैस निकाल ली.

नई ड्रैस प्रिया की कमजोरी है. इसी वजह से जब भी पापा प्रिया को पार्टी में ले जाना चाहते तो इसी तरह एक नई ड्रैस उस के बैड पर चुपके से रख आते.

आज भी प्रिया ने नई डै्रस देखी तो खुशी से उछल पड़ी. जल्दी से तैयार हो कर निकली तो सब दंग रह गए. बहुत खूबसूरत लग रही थी.

‘‘आज तो तू बहुतों का कत्ल कर के आएगी,’’ मैं ने प्यार से उसे छेड़ा तो वह मुझे बांहों में भर कर बोली, ‘‘बहुतों का कत्ल कर के क्या करना है, मुझे तो बस अपने उसी सपनों के राजकुमार की ख्वाहिश है जिसे देखते ही मेरी नजरें झपकना भूल जाएं.’’

‘‘जरूर मिलेगा मैडम, मगर अभी सपनों की दुनिया से जरा बाहर निकलिए और पार्टी में चलिए. क्या पता वहीं कोई आप का इंतजार कर रहा हो,’’ मैं ने उसे छेड़ते हुए कहा तो वह हंस पड़ी.

पार्टी में पहुंच कर हम मस्ती करने लगे. करीब 1 घंटा बीत चुका था. अचानक प्रिया मेरी बांह पकड़ कर खींचती हुई मुझे अलग ले गई और कानों में फुसफुसा कर बोली, ‘‘प्रज्ञा वह देखो सामने. ब्लू सूट पहने मेरे सपनों का राजकुमार खड़ा है. मुझे तो बस इसी से शादी करनी है.’’

मैं खुशी से उछल पड़ी, ‘‘सच प्रिया? तो क्या तेरी तलाश पूरी हुई?’’

‘‘हां,’’ प्रिया ने शरमाते हुए कहा.

सामने खड़ा नौजवान वाकई बहुत हैंडसम और खुशमिजाज लग रहा था. मैं ने कहा, ‘‘मुझे तेरी पसंद पर नाज है प्रिया, मैं पता लगाती हूं कि यह है कौन? वैसे तब तक तुझे उस से दोस्ती करने का प्रयास करना चाहिए.’’

वह रोंआसी हो कर बोली, ‘‘यार यही तो समस्या है. वह पहला लड़का है जो मुझे भाव नहीं दे रहा. मैं ने 1-2 बार प्रयास किया पर वह अपने घर वालों में ही व्यस्त है.’’

‘‘यार कुछ लड़के शर्मीले होते हैं. हो सकता है वह दूसरे लड़कों की तरह बोल्ड न हो जो पहली मुलाकात में ही दोस्ती के लिए उतावले हो उठते हैं.’’

‘‘यार तभी तो यह लड़का मुझे और भी ज्यादा पसंद आ रहा है. दिल कर रहा है कि किसी भी तरह यह मेरा बन जाए.’’

‘‘तू फिक्र मत कर. मैं इस के बारे में सारी बात पता करती हूं. सारी कुंडली निकलवा लूंगी,’’ मैं ने उस लड़के की तरफ देखते हुए कहा.

जल्द ही कोशिश कर के मैं ने उस लड़के से जुड़ी काफी जानकारी इकट्ठी कर ली. वह हमारी कजिन के फ्रैंड का भाई था. उस का नाम मयूर था.

वह कहां काम करता है, कहां रहता है, क्या पसंद है, घर में कौनकौन हैं जैसी बातें मैं ने प्रिया को बता दीं. प्रिया ने फेसबुक, लिंक्डइन जैसी सोशल मीडिया साइट्स पर जा कर उस लड़के के बारे में और भी जानकारी ले ली. प्रिया ने फेसबुक पर मयूर को फ्रैंड रिक्वैस्ट भी भेजी पर उस ने स्वीकार नहीं की.

अब तो मैं अकसर देखती कि प्रिया उस लड़के के ही खयालों में खोई रहती है. उसी की तसवीरें देखती रहती है या उस की डिटेल्स ढूंढ़ रही होती है. मुझे समझ में आ गया कि प्रिया को उस लड़के से वास्तव में प्यार हो गया है.

एक दिन मैं ने यह बात पापा को बता दी और आग्रह किया कि वे उस लड़के के घर प्रिया का रिश्ता ले कर जाएं. पापा ने उस के परिवार वालों से बात चलाई तो पता चला कि वे लोग भी मयूर के लिए लड़की ढूंढ़ रहे हैं. पापा ने अपनी तरफ से प्रिया के लिए उन्हें प्रपोजल दिया.

रविवार के दिन मयूर और उस के परिवार वाले प्रिया को देखने आने वाले थे. प्रिया बहुत खुश थी. अपनी सब से अच्छी ड्रैस पहन कर वह तैयार हुई. मैं ने बहुत जतन से उस का मेकअप किया. मेकअप कर के बालों को खुला छोड़ दिया. वह बेहद खूबसूरत लग रही थी.

मगर आज पहली दफा प्रिया मुझे नर्वस दिखाई दे रही थी. जब प्रिया को उन के सामने लाया गया तो मयूर और उस की मां एकटक उसे देखते रह गए. मैं भी पास ही खड़ी थी. मयूर ने तो कुछ नहीं कहा पर उस की मां ने बगैर किसी औपचारिक बातचीत के जो कहा उसे सुन कर हम सब सकते में आ गए.

लड़के की मां ने कहा, ‘‘खूबसूरती और आकर्षण तो लड़की में कूटकूट कर भरा है, मगर आगे कोई बात की जाए उस से पहले ही क्षमा मांगते हुए मैं यह रिश्ता अस्वीकार करती हूं.’’

प्रिया का चेहरा उतर गया. पापा भी इस अप्रत्याशित इनकार से हैरान थे. अजीब मुझे भी बहुत लग रहा था. आखिर प्रिया जैसी खूबसूरत और पढ़ीलिखी बड़े घर की लड़की को पाना किसी के लिए भी हार्दिक प्रसन्नता की बात होती और फिर प्रिया भी तो इस रिश्ते के लिए कितनी उत्साहित थी.

पापा ने हाथ जोड़ते हुए धीरे से पूछा, ‘‘इस इनकार की वजह तो बता दीजिए. आखिर मेरी बच्ची में कमी क्या है?’’

लड़के की मां ने बात बदली और मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘मुझे यह लड़की पसंद है. यदि आप चाहें तो मैं इसे अपनी बहू बनाना पसंद करूंगी. आप घर में बात कर के जब चाहें अपना जवाब दे देना.’’

पापा ने उम्मीद के साथ मयूर की ओर देखा तो वह भी हाथ जोड़ता हुआ बोला, ‘‘अंकल, जैसा मम्मी कह रही हैं मेरा जवाब भी वही है. मैं भी चाहूंगा कि प्रज्ञा जैसी लड़की ही मेरी जीवनसाथी बने.’’

प्रिया रोती हुई अंदर भाग गई. मैं भी उस के पीछेपीछे अंदर चली गई. उन्हें बिदा कर मम्मीपापा भी जल्दी से प्रिया के कमरे में आ गए.

मगर प्रिया किसी से भी बात करने को तैयार नहीं थी. रोती हुई बोली, ‘‘प्लीज, आप लोग बाहर जाएं, मैं अभी अकेली रहना चाहती हूं.’’

हम सब बाहर आ गए. इस समय मेरी स्थिति अजीब हो रही थी. समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या कहूं. कुसूरवार न होते हुए भी आज मैं सब की आंखों में चुभ रही थी. मम्मी मुझे खा जाने वाली नजरों से देख रही थीं तो प्रिया भी नजरें चुरा रही थी. मुझे रात भर नींद नहीं आई.

अगली सुबह भी प्रिया बहुत उदास दिखी. उस की नजरों में दोषी मैं ही थी और यह बात सहन करना मेरे लिए बहुत कठिन था. मैं ने तय किया कि मैं मयूर के घर वालों के इनकार की वजह जान कर रहूंगी. प्रिया को छोड़ कर उन्होंने मुझे क्यों चुना जबकि प्रिया मुझ से लाख गुना ज्यादा खूबसूरत और स्मार्ट है, होशियार है. मैं तो कुछ भी नहीं.

बात की तह तक पहुंचने का फैसला कर मैं मयूर के घर पहुंच गई. बहुत आलीशान और खूबसूरत घर था उन का. महरी ने दरवाजा खोला और मुझे अंदर आने को कहा. घर बहुत करीने से सजा था. मैं ड्राइंगरूम का जायजा ले रही थी कि तभी बगल के कमरे से चश्मा पोंछती बुजुर्ग महिला निकलीं.

मुझे उन्हें पहचानने में एक पल भी नहीं लगा. यह तो मैट्रो वाली वही बुजुर्ग महिला थीं जिन का चश्मा कुछ दिन पहले प्रिया ने गिरा दिया था. मैं ने उन्हें चश्मा उठा कर दिया था. मुझे सहसा सारी बात समझ में आने लगी कि क्यों प्रिया को रिजैक्ट कर उन्होंने मुझे चुना.

सामने से मयूर की मां निकलीं. मुसकराती हुई बोलीं, ‘‘बेटा, मैं समझ सकती हूं कि तू क्या पूछने आई है. शायद तुझे अपने सवाल का जवाब मिल भी गया होगा. दरअसल, उस दिन मैट्रो में मैं भी वहीं थी और सब कुछ अपनी नजरों से देखा था. खूबसूरती, रंगरूप, धन, इन सब से ऊपर एक चीज होती है और वह है संस्कार. हमें एक सभ्य और व्यवहारकुशल बहू चाहिए बिलकुल तुम्हारे जैसी.’’

मैं ने आगे बढ़ कर दोनों के पांव छूने चाहे पर अम्मांजी ने मुझे गले से लगा लिया.

घर पहुंची तो प्रिया ने पहले की तरह रूखेपन से मेरी तरफ देखा और फिर अपने काम में लग गई.

मैं उस के पास जा कर धीरे से बोली, ‘‘कल के इनकार की वजह जानने मैं मयूर के घर गई थी. तुझे याद हैं वे बुजुर्ग महिला, जिन का चश्मा मैट्रो में तेरी टक्कर से नीचे गिर गया था? दरअसल, वे बुजुर्ग महिला मयूर की दादी हैं और इसी वजह से उन्होंने तुझे न कह दिया.

पर तू परेशान मत हो प्रिया. तेरी पसंद के लड़के को मैं कभी अपना नहीं बनाऊंगी. मैं न कह कर आई हूं.’’

प्रिया खामोशी से मेरी तरफ देखती रही. उस की आंखों में रूखेपन की जगह बेचारगी और अफसोस ने ले ली थी. थोड़ी देर चुप बैठने के बाद वह धीरे से उठी और मुझे गले लगाती हुई बोली, ‘‘पागल है क्या? इतने अच्छे रिश्ते के लिए कभी न नहीं करते. मैं करवाऊंगी मयूर से तेरी शादी.’’

मैं आश्चर्य से उसे देखने लगी तो वह मुसकराती हुई बोली, ‘‘आज तक तू मेरे लिए जीती रही है. आज समय है कि मैं भी तेरे लिए कुछ अच्छा करूं. खबरदार जो न कहा.’’

मेरे दिल पर पड़ा बोझ हट गया था. मैं ने आगे बढ़ कर उसे गले से लगा लिया. Hindi Family Story

Hindi Kahani: रखैल – क्या बेवफा थी लक्षमण की पत्नी मीनाक्षी

Hindi Kahani: आज से तकरीबन 15 साल पहले मीनाक्षी की शादी लक्ष्मण के साथ हुई थी. उन दिनों लक्ष्मण एक फैक्टरी में काम करता था.

जब लक्ष्मण के फैक्टरी से घर आने का समय होता, तब मीनाक्षी बड़ी बेसब्री से दरवाजे पर उस का इंतजार करती थी.

कभीकभार इंतजार करतेकरते थोड़ी देर हो जाती, तब घर के भीतर घुसते ही मीनाक्षी लक्ष्मण की छाती पर मुक्का मारते हुए कहती थी, ‘‘इतनी देर क्यों हो गई?’’

तब लक्ष्मण चिढ़ा कर उसे कहता था, ‘‘आज वह मिल गई थी.’’ फिर वे दोनों खिलखिला कर हंस पड़ते थे.

धीरेधीरे समय पंख लगा कर उड़ता रहा. पहले बेटी, दूसरा बेटा, फिर तीसरा बेटा होने से मीनाक्षी परिवार में मसरूफ हो गई थी. परिवार बढ़ने की वजह से घर का खर्चा भी बढ़ गया था. तब लक्ष्मण चिड़ाचिड़ा सा रहने लगा था. 5 साल पहले एक घटना हो गई थी. जिस फैक्टरी में लक्ष्मण काम करता था, वह फैक्टरी घाटे में चलने की वजह से बंद कर दी गई.

लक्ष्मण भी बेरोजगार हो गया. वह कोई दूसरा काम तलाशने लगा, मगर शहर में फैक्टरी जैसा काम नहीं मिला.

घर में रखा पैसा भी धीरेधीरे खर्च होने लगा. घर में तंगी होने के चलते लक्ष्मण के गुस्से का पारा चढ़ने लगा.

आखिरकार एक दिन तंग आ कर मीनाक्षी ने कहा, ‘‘अब मैं भी आप के साथ मजदूरी करने चलूंगी…’’

‘‘तू औरत जात ठहरी, घर से बाहर काम करने जाएगी?’’ लक्ष्मण बोला.

‘‘इस में हर्ज क्या है? क्या आजकल औरतें मजदूरी करने नहीं जाती हैं? क्या औरतें दफ्तरों में काम नहीं करती हैं?’’ मीनाक्षी ने अपनी बात रखते हुए कहा, ‘‘इस बस्ती की दूसरी औरतें भी तो काम पर जाती हैं.’’

मीनाक्षी की बात सुन कर लक्ष्मण सोच में पड़ गया. मीनाक्षी ने जो कहा, सही कहा था. मगर जब औरत घर की दहलीज से बाहर निकलती है, तब वह पराए मर्दों से महफूज नहीं रह पाती है. बस्ती की कितनी ही औरतों के संबंध दूसरे मर्दों से थे.

लक्ष्मण को चुप देख कर मीनाक्षी बोली, ‘‘तो क्या सोचा है?’’

‘‘मेरी मीनाक्षी बाहर काम करने नहीं जाएगी,’’ लक्ष्मण ने कहा.

‘‘क्यों नहीं जा सकती है?’’

‘‘इसलिए कि यह मर्दों की दुनिया बड़ी खराब होती है.’’

‘‘खराब से मतलब?’’

‘‘मतलब…’’ कह कर लक्ष्मण के शब्द गले में ही अटक गए. वह आगे बोला, ‘‘मैं ने कहा न कि मेरी मीनाक्षी काम करने बाहर नहीं जाएगी.’’

‘‘देखिए, आप की भी नौकरी छूट गई. आप मजदूरी के लिए इधरउधर मारेमारे फिरते हो, ऐसे में घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है. जब हम दोनों काम करने जाएंगे, तब मजदूरी भी दोगुनी मिला करेगी.

‘‘मैं अकेली कहीं नहीं जाऊंगी, बल्कि आप के साथ चलूंगी,’’ कह कर मीनाक्षी लक्ष्मण का चेहरा देखने लगी.

शायद लक्ष्मण इस बात से सहमत हो गया था. लिहाजा, अब मीनाक्षी भी लक्ष्मण के साथ ठेकेदार के यहां काम करने लगी.

उस ठेकेदार का नाम मांगीलाल था. मीनाक्षी को देख कर वह उस पर लट््टू हो गया था. उसे जहां भी मकान का ठेका मिलता था, वह लक्ष्मण और मीनाक्षी को वहीं रखता था.

ठेकेदार मांगीलाल के पास मोटरसाइकिल थी, इसलिए वह कई बार मीनाक्षी को उस पर बैठा कर ले जाता था.

मीनाक्षी का ठेकेदार के इतना करीब रहना लक्ष्मण को पसंद नहीं था, मगर वह कुछ बोल नहीं पाता था.

एक दिन एक अधेड़ औरत ने मीनाक्षी से पूछा, ‘‘तुम ने ठेकेदार पर क्या जादू कर रखा है?’’

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’ मीनाक्षी उस से जरा नाराज हो कर बोली.

‘‘मतलब यह है कि ठेकेदार तु झे इतना क्यों चाहता है?’’

‘‘मगर तुम यह क्यों पूछ रही हो?’’ मीनाक्षी बोली.

‘‘इसलिए कि ठेकेदार किसी औरत को घास नहीं डालता है. उस ने तु झे ही घास क्यों डाली?’’ वह अधेड़ औरत ऊपर से नीचे तक उसे देख कर बोली, ‘‘लगता है कि तेरी इस खूबसूरत अदा में जादू है, इसलिए वह तुम पर लट्टू हुआ है.’’

‘‘तुम्हारी सोच गलत है.’’

‘‘अरे, मैं ने ये बाल धूप में सफेद नहीं किए हैं. मैं इन मर्दों को अच्छी तरह जानती हूं. तू उसे अपने साथ सुलाती होगी.’’

‘‘तुम्हें यह कहते हुए शर्म नहीं आती है,’’ मीनाक्षी बोली.

‘‘बुरा मत मानो बहन. मैं ने अच्छीअच्छी औरतों को पराए बिस्तर पर देखा है. तुम्हारे बीच कोई रिश्ता जरूर है,’’ आगे वह अधेड़ औरत कुछ न बोल सकी, क्योंकि ठेकेदार मांगीलाल वहां आ गया था.

‘‘क्या बात है मीनाक्षी, तुम सुस्त क्यों दिख रही हो?’’ मांगीलाल ने पूछा.

‘‘नहीं तो…’’ कह कर उस ने होंठों पर बनावटी मुसकान बिखेर दी.

ठेकेदार को भी उसे भांपते देर न लगी, इसलिए वह बोला, ‘‘तुम्हारा चेहरा बता रहा है कि किसी ने कुछ कह दिया है.’’

‘‘मीनाक्षी को कुछ कहने की किस में हिम्मत है. अगर किसी ने कुछ कह भी दिया न, तो मैं उस की चमड़ी उधेड़ दूंगी,’’ उस औरत की ओर देख कर मीनाक्षी ने ताना कसा.

अब लोगों में कानाफूसी होने लगी थी कि मीनाक्षी ठेकेदार की रखैल है.

वैसे, शुरुआत के दिनों में ठेकेदार ने एक बार मीनाक्षी के बदन से खेलने की कोशिश की थी. उस दिन वह ठेकेदार के घर पर अकेली थी. ठेकेदार की पत्नी मायके गई थी.

उस दिन वह मीनाक्षी के कंधे पर हाथ रख कर बोला था, ‘‘मीनाक्षी, बहुत दिनों से इस पके फल को खाने की इच्छा थी. क्या आज मेरी इच्छा पूरी करोगी?’’

‘‘आप के सामने जो पका फल है, उस पर सिर्फ लक्ष्मण का ही हक है, आज के बाद कभी मेरे बदन से खेलने की कोशिश मत करना.’’

मीनाक्षी का गुस्से से भरा चेहरा देख कर ठेकेदार सहम गया था, इसलिए वह प्यार से बोला था, ‘‘तू तो बुरा मान गई मीनाक्षी.’’

‘‘बात ही ऐसी करता है तू,’’ मीनाक्षी आप से तू पर आ गई थी. फिर वह आगे बोली थी, ‘‘तेरे पास औरत है. तू उस से चाहे जिस तरह से खेल.’’

‘‘देख मीनाक्षी, मैं अब कभी तु झे बुरी नीयत से नहीं देखूंगा. मगर तू वचन दे कि मु झे छोड़ कर नहीं जाएगी.’

लेकिन जब से बाकी मजदूरों में उन दोनों के संबंध की अफवाह फैली, तो लक्ष्मण के मन में भी शक घर कर गया.

एक दिन लक्ष्मण का गुस्सा फट पड़ा और बोला, ‘‘मीनाक्षी, तू उस ठेकेदार के घर में जा कर क्यों नहीं बैठ जाती?’’

‘‘यह तुम क्या कह रहे हो?’’ मीनाक्षी ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं नहीं, सारी बस्ती वाले कह रहे हैं कि तुम उस की रखैल हो.’’

‘‘बस्ती वाले कुछ भी कह देंगे और तुम उसे सच मान लोगे?’’

‘‘जो बातें आंखों के सामने हो रही हों, उन्हें सच मानना ही पड़ेगा.’’

‘‘आखिर तुम्हारे भीतर भी शक का वही कीड़ा बैठ गया, जो बस्ती वालों के भीतर बैठा है.’’

‘‘मैं ने खुद तुम्हें कई बार ठेकेदार की मोटरसाइकिल पर चिपक कर बैठे देखा है,’’ लक्ष्मण ने जब यह बात कही, तब मीनाक्षी जवाब देते हुए बोली, ‘‘ठीक है, जब तुम मु झे ठेकेदार की रखैल मानते हो, तब मैं भी कबूल करती हूं कि मैं हूं उस की रखैल. अब बोलो क्या चाहते हो तुम?’’

‘‘मैं जानता हूं कि ठेकेदार तेरा यार है और अपने यार को कोई औरत कैसे छोड़ सकती है.’’

‘‘ठीक है, ठेकेदार मेरा यार है. मैं उस की रखैल हूं. तब तुम मु झे घर से निकाल क्यों नहीं देते?’’ जवाबी हमला करते हुए मीनाक्षी बोली.

‘‘हां…हां, तेरी भी यही इच्छा है, तो बैठ क्यों नहीं जाती उस के घर में जा कर?’’ यह कहते हुए लक्ष्मण की सांस फूल गई.

मीनाक्षी चिल्लाते हुए बोली, ‘‘हांहां बैठ जाऊंगी उस के घर में. ऐसे निखट्टू मर्द को पा कर मैं भी कहां सुखी थी. यह तो ठेकेदार मिल गया, जो खर्चा चल रहा था. अब रहना अकेले ही,’’ कह कर मीनाक्षी अपने कपड़े समेटने लगी.

थोड़ी देर में मीनाक्षी अपनी बेटी को ले कर  झोंपड़ी से बाहर निकल गई. दोनों बेटे उसे टुकुरटुकुर देखते रहे.मीनाक्षी ठेकेदार के घर पहुंच गई और उसे सारा किस्सा कह सुनाया. ठेकेदार ने उस के लिए अपने पड़ोस में ही किराए का एक मकान दिला दिया.

एक रात को किसी ने मीनाक्षी के घर का दरवाजा खटखटाया. उस ने उठ कर दरवाजा खोला तो देखा कि बाहर ठेकेदार मांगीलाल खड़ा था.

वह बोली, ‘‘मैं आप का यह एहसान कभी नहीं भूल सकती. आप ने मु झे रहने को मकान दिया, मेरा खर्चा उठाया. मैं आप के एहसान तले दब कर रह गई हूं.

‘‘याद है न, जिस दिन हमारी दोस्ती हुई थी, तब आप मेरे बदन से खेलना चाहते थे, लेकिन मैं ने मना कर दिया था. लेकिन आज लक्ष्मण ने मु झे आप की रखैल सम झ कर घर से निकाल दिया. अब यह शरीर आप का है.’’

ठेकेदार बोला, ‘‘नहीं मीनाक्षी, यह शरीर अब भी लक्ष्मण का ही है,’’ कह कर उस ने बाहर अंधेरे में खड़े लक्ष्मण को बुला लिया. लक्ष्मण किसी अपराधी की तरह सामने आया.

ठेकेदार बोला, ‘‘लक्ष्मण, संभालो अपनी मीनाक्षी को. अब भी तुम्हारी मीनाक्षी पाकसाफ है. दरवाजा बंद कर लेना,’’ कह कर ठेकेदार बाहर चला गया.

लक्ष्मण ने दरवाजा बंद कर लिया. उस की मीनाक्षी उस के सामने खड़ी थी. लक्ष्मण ने आगे बढ़ कर उसे अपनी बांहों में भर लिया. Hindi Kahani

Hindi Story: एक अकेली – परिवार के होते हुए भी क्यों अकेली पड़ गई थी सरिता?

Hindi Story: सरिता घर से निकलीं तो बाहर बादल घिर आए थे. लग रहा था कि बहुत जोर से बारिश होगी. काश, एक छाता साथ में ले लिया होता पर अपने साथ क्याक्या लातीं. अब लगता है बादलों से घिर गई हैं. कभी सुख के बादल तो कभी दुख के. पता नहीं वे इतना क्यों सोचती हैं? देखा जाए तो उन के पास सबकुछ तो है फिर भी इतनी अकेली. बेटा, बेटी, दामाद, बहन, भाई, बहू, पोतेपोतियां, नाते-रिश्तेदार…क्या नहीं है उन के पास… फिर भी इतनी अकेली. किसी दूसरे के पास इतना कुछ होता तो वह निहाल हो जाता, लेकिन उन को इतनी बेचैनी क्यों? पता नहीं क्या चाहती हैं अपनेआप से या शायद दूसरों से. एक भरापूरा परिवार होना तो किसी के लिए भी गर्व की बात है, ऊपर से पढ़ालिखा होना और फिर इतना आज्ञाकारी.

बहू बात करती है तो लगता है जैसे उस के मुंह से फूल झड़ रहे हों. हमेशा मांमां कह कर इज्जत करना. बेटा भी सिर्फ मांमां करता है.  इधर सरिता खयालों में खो जाती हैं: बेटी कहती थी, ‘मां, तुम अपना ध्यान अब गृहस्थी से हटा लो. अब भाभी आ गई हैं, उन्हें देखने दो अपनी गृहस्थी. तुम्हें तो सिर्फ मस्त रहना चाहिए.’  ‘लेकिन रमा, घर में रह कर मैं अपने कामों से मुंह तो नहीं मोड़ सकती,’ वे कहतीं.  ‘नहींनहीं, मां. तुम गलत समझ रही हो. मेरा मतलब सब काम भाभी को करने दो न…’

ब्याह कर जब वे इस घर में आई थीं तो एक भरापूरा परिवार था. सासससुर के साथ घर में ननद, देवर और प्यार करने वाले पति थे जो उन की सारी बातें मानते थे. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी पर बहुत पैसा भी नहीं था. घर का काम और बच्चों की देखभाल करते हुए समय कैसे बीत गया, वे जान ही न सकीं.

कमल शुरू से ही बहुत पैसा कमाना चाहते थे. वे चाहते थे कि उन के घर में सब सुखसुविधाएं हों. वे बहुत महत्त्वा- कांक्षी थे और पैसा कमाने के लिए उन्होंने हर हथकंडे का इस्तेमाल किया.   पैसा सरिता को भी बुरा नहीं लगता था लेकिन पैसा कमाने के कमल के तरीके पर उन्हें एतराज था, वे एक सुकून भरी जिंदगी चाहती थीं. वे चाहती थीं कि कमल उन्हें पूरा समय दें लेकिन उन को सिर्फ पैसा कमाना था, कमल का मानना था कि पैसे से हर वस्तु खरीदी जा सकती है. उन्हें एक पल भी व्यर्थ गंवाना अच्छा नहीं लगता था. जैसेतैसे कमल के पास पैसा बढ़ता गया, उन (सरिता) से उन की दूरी भी बढ़ती गई.

‘पापा, आज आप मेरे स्कूल में आना ‘पेरैंटटीचर’ मीटिंग है. मां तो एक कोने में खड़ी रहती हैं, किसी से बात भी नहीं करतीं. मेरी मैडम तो कई बार कह चुकी हैं कि अपने पापा को ले कर आया करो, तुम्हारी मम्मी तो कुछ समझती ही नहीं,’ रमा अपनी मां से शर्मिंदा थी क्योंकि उन को अंगरेजी बोलनी नहीं आती थी.

कमल बेटी को डांटने के बजाय हंसने लगे, ‘कितनी बार तो तुम्हारी मां से कहा है कि अंगरेजी सीख ले पर उसे फुरसत ही कहां है अपने बेकार के कामों से.’  ‘कौन से बेकार के काम. घर के काम क्या बेकार के होते हैं,’ वे सोचतीं, ‘जब घर में कोई भी नौकर नहीं था और पूरा परिवार साथ रहता था तब तो एक बार भी कमल ने नहीं कहा कि घर के काम बेकार के होते हैं और अब जब वे रसोईघर में जा कर कुछ भी करती हैं तो वह बेकार का काम है,’ लेकिन प्रत्यक्ष में कुछ नहीं कहा.

उस दिन के बाद कमल ही बेटी रमा के स्कूल जाने लगे. पैसा आने के बाद कमल के रहनसहन में भी काफी बदलाव आ गया था. अब वे बड़ेबड़े लोेगों में उठनेबैठने लगे थे और चाहते थे कि पत्नी भी वैसा ही करे. पर उन को ऐसी महफिलों में जा कर अपनी और अपने कीमती वस्त्रों व गहनों की प्रदर्शनी करना अच्छा नहीं लगता था.  एक दिन दोनों कार से कहीं जा रहे थे. एक गरीब आदमी, जिस की दोनों टांगें बेकार थीं फिर भी वह मेहनत कर के कुछ बेच रहा था, उन की गाड़ी के पास आ कर रुक गया और उन से अपनी वस्तु खरीदने का आग्रह करने लगा. सरिता अपना पर्स खोल कर पैसे निकालने लगीं लेकिन कमल ने उन्हें डांट दिया, ‘क्या करती हो, यह सब इन का रोज का काम है. तुम को तो बस पर्स खोलने का बहाना चाहिए. चलो, गाड़ी के शीशे चढ़ाओ.’

उन का दिल भर आया और उन्हें अपना एक जन्मदिन याद आ गया. शादी के बाद जब उन का पहला जन्मदिन आया था. उन दिनों उन के पास गाड़ी नहीं थी. वे दोनों एक पुराने स्कूटर पर चला करते थे. वे लोग एक बेकरी से केक लेने गए थे. कमल के पास ज्यादा पैसे नहीं थे पर फिर भी उन्होंने एक केक लिया और एक फूलों का गुलदस्ता लेना चाहते थे. बेकरी के बाहर एक छोटी बच्ची खड़ी थी. ठंड के दिन थे. बच्ची ने पैरों में कुछ भी नहीं पहना था. ठंड से वह कांप रही थी. उस की हालत देख कर वे रो पड़ी थीं. कमल ने उन को रोते देखा तो फूलों का गुलदस्ता लेने के बजाय उस बच्ची को चप्पलें खरीद कर दे दीं. उस दिन उन को कमल सचमुच सच्चे हमसफर लगे थे. आज के और उस दिन के कमल में कितना फर्क आ गया है, इसे सिर्फ वे ही महसूस कर सकती थीं.

तब उन की आंखें भर गई थीं. उन्होंने कमल से छिपा कर अपनी आंखें पोंछ ली थीं.  सरिता की एक आदत थी कि वे ज्यादा बोलती नहीं थीं लेकिन मिलनसार थीं. उन के घर में जो भी आता था वे उस की खातिरदारी करने में भरोसा रखती थीं पर कमल को सिर्फ अपने स्तर वालों की खातिरदारी में ही विश्वास था. उन्हें लगता था कि एक पल या एक पैसा भी किसी के लिए व्यर्थ गंवाना नहीं चाहिए.

सरिता की वजह से दूरदूर के रिश्तेदार कमल के घर आते थे और उन की तारीफ भी करते थे. ‘सरिता भाभी तो खाना खिलाए बगैर कभी भी आने नहीं देती हैं’ या फिर ‘सरिता भाभी के घर जाओ तो लगता है जैसे वे हमारा ही इंतजार कर रही थीं’, ‘वे इतने अच्छे तरीके से सब से मिलती हैं’ आदि.  लेकिन उन की बेटी ही उन्हें कुछ नहीं समझती है. रमा ने कभी भी मां को अपना हमराज नहीं बनाया. वह तो सिर्फ अपने पापा की बेटी थी. इस में उस का कोई दोष नहीं है. उस के पैदा होने से पहले कमल के पास बहुत पैसा नहीं था लेकिन जिस दिन वह पैदा हुई उसी दिन कमल को एक बहुत बड़ा और्डर मिला था और उस के बाद तो उन के घर में पैसों की रेलमपेल शुरू हो गई.

कमल समझते थे कि यह सब उस की बेटी की वजह से ही हुआ है. इसलिए वे रमा को बहुत मानते थे. उस के मुंह से निकली हर बात पूरा करना अपना धर्म समझते थे. जिस से रमा जिद्दी हो गई थी. सरिता उस की हर जिद पूरी नहीं करती थी, जिस के चलते वह अपने पापा के ज्यादा नजदीक हो गई थी.  धीरेधीरे रमा अपनी ही मां से दूर होती गई. कमल हरदम रमा को सही और सरिता को गलत ठहराते थे. एक बार सरिता ने रमा को किसी गलत बात के लिए डांटा और समझाने की कोशिश की कि ससुराल में यह सब नहीं चलेगा तो कमल बोल पड़े, ‘हम रमा का ससुराल ही यहां ले आएंगे.’

उस के बाद तो सरिता ने रमा को कुछ भी कहना बंद कर दिया. कमल रमा की ससुराल अपने घर नहीं ला सके. हर लड़की की तरह उसे भी अपने घर जाना ही पड़ा. जब रमा ससुराल जा रही थी तो सब रो रहे थे. सरिता को भी दुख हो रहा था. बेटी ससुराल जा रही थी, रोना तो स्वाभाविक ही था.  सरिता को मन के किसी कोने में थोड़ी सी खुशी भी थी क्योंकि अब उन का घर उन का अपना बनने वाला था. अब शायद सरिता अपनी तरह अपने घर को चला सकती थीं. जब से वे इस घर में आई थीं कोई न कोई उन पर अपना हुक्म चलाता था. पहले सास का, ननद का, फिर बेटी का घर पर राज हो गया था, लेकिन अब वे अपना घर अपनी इच्छा से चलाना चाहती थीं.

रमा अपने घर में खुश थी. उस ने अपनी ससुराल में सब के साथ सामंजस्य बना लिया था. जिस बात की सरिता को सब से ज्यादा फिक्र थी वैसी समस्या नहीं खड़ी हुई. सरिता भी खुश थीं, अपना घर अपनी इच्छा से चला कर, लेकिन उन की खुशी में फिर से बाधा पड़ गई. रमा घर आई और कहने लगी, ‘पापा, मां तो बिलकुल अकेली पड़ गई हैं. अब भैया की शादी कर दो.’  सरिता चीख कर कहना चाहती थीं कि अभी नहीं, कुछ दिन तो मुझे जी लेने दो. पर प्रत्यक्ष में कुछ नहीं कह पाईं और कुछ समय बाद रमा माला को ढूंढ़ लाई. माला उस के ससुराल के किसी रिश्तेदार की बेटी थी.

माला बहुत अच्छी थी. बिलकुल आदर्श बहू, लेकिन ज्यादा मीठा भी सेहत को नुकसान देता है. इसलिए सरिता उस से भी कभीकभी कड़वी हो जाती थी. माला बहुत पढ़ीलिखी थी. वह सरिता की तरह घरघुस्सू नहीं थी. वह मोहित के साथ हर जगह जाती थी और बहुत अच्छी अंगरेजी भी बोल लेती थी, इसलिए मोहित को उसे अपने साथ हर जगह ले जाने में गर्व महसूस होता था. उस ने रमा को भी अपना बना लिया था. रमा उस की बहुत तारीफ करती थी, ‘मां, भाभी बहुत अच्छी हैं. मेरी पसंद की हैं इसलिए न.’

सरिता को हल्के रंग के कपड़े पसंद थे. आज तक वे सिर्फ कपड़ों के मामले में ही अपनी मालकिन थीं लेकिन यहां भी सेंध लग गई. माला सरिता को सलाह देने लगी, ‘मां, आप इतने फीके रंग मत पहना करें, शोख रंग पहनें. आप पर अच्छे लगेंगे.’  कमल कहते, ‘अपनी सास को कुछ मत कहो, वे सिर्फ हल्के रंग के कपड़े ही पहनती हैं. मैं ने कितनी बार कोशिश की थी इसे गहरे रंग के कपड़े पहनाने की पर इसे तो वे पसंद ही नहीं हैं.’

‘कब की थी कोशिश कमल,’ सरिता कहना चाहती थीं, ‘एक बार कह कर तो देखते. मैं कैसे आप के रंग में रंग जाती,’ पर बहू के सामने कुछ नहीं बोलीं.

आज सुबह रमा को घर आना था. उन्होंने रसोई में जा कर कुछ बनाना चाहा. पर माला आ गई, ‘मां, लाइए मैं बना देती हूं.’

‘नहीं, मैं बना लूंगी.’

‘ठीक है. मैं आप की मदद कर देती हूं.’

उन्होंने प्यार से बहू से कहा, ‘नहीं माला, आज मेरा मन कर रहा है तुम सब के लिए कुछ बनाने का. तुम जाओ, मैं बना लूंगी.’

माला चली गई. पता नहीं क्यों खाना बनाते समय उन्हें जोर से खांसी आ गई. मोहित वहां से गुजर रहा था. वह मां को अंदर ले कर आया और माला को डांटने के लिए अपने कमरे में चला गया. सरिता उस के पीछे जाने लगीं ताकि उसे समझा सकें कि इस में माला का कोई दोष नहीं है. वे कमरे के पास गईं तो देखा दोनों भाईबहन बैठे हुए हैं. रमा आ चुकी थी और उन से मिलने के बजाय पहले अपनी भाभी से मिलने चली गई थी.

उन्होंने जैसे ही अपने कदम आगे बढ़ाए, रमा की आवाज उन के कान में पड़ी, ‘मां को भी पता नहीं क्या जरूरत थी किचन में जाने की.’

तभी मोहित बोल पड़ा, ‘पता नहीं क्यों, मां समझती नहीं हैं, हर वक्त घर में कुछ न कुछ करती रहती हैं जिस से घर में कलह बढ़ती है, मेरे और माला के बीच जो खटपट होती है उस का कारण मां ही होती हैं.’

‘क्या मैं माला और मोहित के बीच कलह का कारण हूं,’ सरिता सोचती ही रह गईं.

तभी माला की अवाज सुनाई पड़ी, ‘मैं तो हर वक्त मां का खयाल रखती हूं पर पता नहीं क्यों, मां को तो जैसे मैं अच्छी ही नहीं लगती हूं. अभी भी तो मैं ने कितना कहा मां से कि मैं करती हूं पर वे मुझे करने दें तब न.’

‘मैं समझती हूं, भाभी. मां शुरू से ही ऐसी हैं,’ रमा की आवाज आई.

‘मां को तो बेटी समझ नहीं पाई, भाभी क्या समझेगी,’ सरिता चीखना चाहती थीं पर आवाज जैसे गले में ही दब गई.

‘अच्छा, तुम चिंता मत करो, मैं समझाऊंगा मां को,’ यह मोहित की आवाज थी.

‘कभी मां की भी इतनी चिंता करनी थी बेटे,’ कहना चाहा  सरिता ने पर आदत के अनुसार फिर से चुप ही रहीं.

‘मैं देखती हूं मां को, कहीं ज्यादा तबीयत तो खराब नहीं है,’ माला बोली.

‘जब अपने ही मुझे नहीं समझ रहे तो तू क्या समझेगी जिसे इस घर में आए कुछ ही समय हुआ है,’ सरिता के मन ने कहा.

इधर, आसमान में बिजली के कड़कने की तेज आवाज आई तो वे खयालों की दुनिया से बाहर आ गईं. दरअसल, दोपहर का खाना खाने के बाद जब वे बाजार जाने के लिए घर से निकली थीं तो सिर्फ बादल थे पर जब जोर से बरसात होने लगी तो वे एक बारजे के नीचे खड़ी हो गई थीं. और अब फिर सोचने लगीं कि अगर वे भीग कर घर जाएंगी तो सब क्या कहेंगे? रमा अपनी आदत के अनुसार कहेगी, ‘मां को बस, भीगने का बहाना चाहिए.’

कमल कहेंगे, ‘कितनी बार कहा है कि गाड़ी से जाया करो पर नहीं’.  मोहित कहेगा, ‘मां, मुझे कह दिया होता, मैं आप को लेने पहुंच जाता.’

बहू कहेगी, ‘मां, कम से कम छाता तो ले ही जातीं.’

सरिता ने सारे खयाल मन से अंतत: निकाल ही दिए और भीगते हुए अकेली ही घर की तरफ चल पड़ीं. Hindi Story

Family Story In Hindi: वापसी – खुद टूटकर, घर को जोड़ती वीरा की कहानी

Family Story In Hindi: दिल्ली पहुंचने की घोषणा के साथ विमान परिचारिका ने बाहर का तापमान बता कर अपनी ड्यूटी खत्म की, लेकिन वीरा की ड्यूटी तो अब शुरू होने वाली थी. अंडमान निकोबार से आया जहाज जैसे ही एअरपोर्ट पर रुका, वीरा के दिल की धड़कनें यह सोच कर तेज होने लगीं कि उसे लेने क्या विजेंद्र आया होगा?

अपने ही सवालों में उलझी वीरा जैसे ही बाहर आई कि सामने से दौड़ कर आती विपाशा ‘मांमां’ कहती उस से आ कर लिपट गई.

वीरा ने भी बेटी को प्यार से गले लगा लिया.

‘5 साल में तू कितनी बड़ी हो गई,’ यह कहते समय वीरा की आंखें चारों ओर विजेंद्र को ढूंढ़ रही थीं. शायद आज भी विजेंद्र को कुछ जरूरी काम होगा. विपाशा मां को सामान के साथ एक जगह खड़ा कर गाड़ी लेने चली गई. वह सामान के पास खड़ी- खड़ी सोचने लगी.

5 साल पहले उस ने अचानक अंडमान निकोबार जाने का फैसला किया, तो  महज इसलिए कि वह विजेंद्र के बेरुखी भरे व्यवहार से तिलतिल कर मर रही थी.

विजेंद्र ने भरपूर कोशिश की कि अपनी पत्नी वीरा से हमेशा के लिए पीछा छुड़ा ले. उस ने तो कलंक के इतने लेप उस पर चढ़ाए कि कितना ही पानी से धो लो पर लेप फिर भी दिखाई दे.

यही नहीं विजेंद्र ने वीरा के सामने परेशानियों के इतने पहाड़ खड़े कर दिए थे कि उन से घबरा कर वह स्वयं विजेंद्र के जीवन से चली जाए. लेकिन वीरा हर पहाड़ को धीरेधीरे चढ़ कर पार करने की कोशिश में लगी रही.

अचानक ही अंडमान में नौकरी का प्रस्ताव आने पर वह एक बदलाव और नए जीवन की तैयारी करते हुए वहां जाने को तैयार हो गई.

अंडमान पहुंच कर वीरा ने अपनी नई नौकरी की शुरुआत की. उसे वहां चारों ओर बांहों के हार स्वागत करते हुए मिले. कुछ दिन तो जानपहचान में निकल गए लेकिन धीरेधीरे अकेलेपन ने पांव पसारने शुरू कर दिए. इधर साथ काम करने वाले मनचलों में ज्यादातर के परिवार तो साथ थे नहीं, सो दिन भर नौकरी करते, रात आते ही बोतल पी कर सोने का सहारा ढूंढ़ लेते.

छुट्टी होने पर घर और घरवाली की याद आती तो फोन घुमा कर झूठासच्चा प्यार दिखा कर कुछ धर्मपत्नी को बेवकूफ बनाते और कुछ अपने को भी. ऐसी नाजुक स्थिति में वे हर जगह हर किसी महिला की ओर बढ़ने की कोशिश करते, पट गई तो ठीक वरना भाभीजी जिंदाबाद. अंडमान में वीरा अपने कमरे की खिड़की पर बैठ कर अकसर यह नजारे देखती. कई बार बाहर आने के लिए उसे भी न्योते मिलते पर उस का पहला जख्म ही इतना गहरा था कि दर्द से वह छटपटाती रहती.

कंपनी से वीरा को रहने के लिए जो फ्लैट मिला था, उस फ्लैट के ठीक सामने पुरुष कर्मचारियों के फ्लैट थे. बूढ़ा शिवराम शर्मा भी अकसर शराब पी कर नीचे की सीढि़यों पर पड़ा दिख जाता. कैंपस के होटलों में शिवराम खाना कम खाता रिश्ते ज्यादा बनाने की कोशिश करता. उस के दोस्ती करने के तरीके भी अलगअलग होते थे. कभी धर्म के नाते तो कभी एक ही गांव या शहर का कह कर वह महिलाओं की तलाश में रहता था. शिवराम टेलीफोन डायरेक्टरी से अपनी जाति के लोगों के नाम से घरों में भी फोन लगाता. हर रोज दफ्तर में उस के नएनए किस्से सुनने को मिलते. कभीकभी उस की इन हरकतों पर वीरा को गुस्सा भी आता कि आखिर औरत को वह क्या समझता है?

कभीकभी उस का साथी बासु दा मजाक में कह देता, ‘बाबू शिवराम, घर जाने की तैयारी करो वरना कहीं भाभीजी भी किसी और के साथ चल दीं तो घर में ताला लग जाएगा,’ और यह सुनते ही शिवराम उसे मारने को दौड़ता.

3 महीने पहले आए राधू के कारनामे देख कर तो लगता था कि वह सब का बाप है. आते ही उस ने एक पुरानी सी गाड़ी खरीदी, उसे ठीकठाक कर के 3-4 महिलाओं को सुबहशाम दफ्तर लाने और वापस ले जाने लगा था. शाम को भी वह बेमतलब गाड़ी मैं बैठ कर यहांवहां घूमता फिरता.

एक दिन अचानक एक जगह पर लोगों की भीड़ देख कर यह तो लगा कि कोई घटना घटी है लेकिन कुछ समझ में नहीं आ रहा था. भीड़ छंटने पर पता चला कि राधू ने किसी लड़की को पटा कर अपनी कार में लिफ्ट दी और फिर उस के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी तो लड़की ने शोर मचा दिया. जब भीड़ जमा हो गई तो उस ने राधू को ढेरों जूते मारे.

वीरा अकसर सोचती कि आखिर यह मर्दों की दुनिया क्या है? क्यों औरत को  बेवकूफ समझा जाता है. दफ्तर में भी वीरा अकसर सब के चेहरे पढ़ने की कोशिश करती. सिर्फ एकदो को छोड़ कर बाकी के सभी एक पल का सुख पाने के लिए भटकते नजर आते.

वीरा की रातें अकसर आकाश को देखतेदेखते कट जातीं. जीने की तलाश में अंडमान आई वीरा को अब धरती का यह हिस्सा भी बेगाना सा लग रहा था. बहुत उदास होने पर वह अपनी बेटी विपाशा से बात कर लेती. फोन पर अकसर विपाशा मां को समझाती रहती, उस को सांत्वना देती.

5 साल बाद विजेंद्र ने बेटी विपाशा के माध्यम से वीरा को वापस आने का न्योता भेजा, तो वह अकसर यही सोचती, ‘आखिर क्या करे? जाए या न जाए. पुरुषों की दुनिया तो हर जगह एक सी ही है.’ आखिरकार बेटी की ममता के आगे वीरा, विजेंद्र की उस भूल को भी भूल गई, जिस के लिए उस ने अलग रहने का फैसला किया था.

वीरा को याद आया कि घर छोड़ने से पहले उस ने विजेंद्र से कहा था कि मैं ने सिर्फ तुम्हें चाहा है, कभी अगर मेरे कदम डगमगाने लगें या मुझे जीवन में कभी किसी मर्द की जरूरत पड़ी तो वापस तुम्हारे पास लौट आऊंगी. आखिर हर जगह के आदमी तो एक जैसे ही हैं. इस राह पर सब एक पल के लिए भटकते हैं और वह भटका हुआ एक पल क्या से क्या कर देता है.

कभी वीरा सोचती कि बेटी के कहने का मान ही रख लूं. आज वह ममता की भूखी, मानसम्मान से बुला रही है, कहीं ऐसा न हो, कल को उसे भी मेरी जरूरत न रहे.

अचानक वीरा के कानों में विपाशा के स्वर उभरे, ‘‘मां, तुम कहां खोई हो जो तुम्हें गाड़ी का हार्न भी नहीं सुनाई पड़ रहा है.’’

वीरा हड़बड़ाती हुई गाड़ी की ओर बढ़ी. घर पहुंच कर विपाशा परी की तरह उछलने लगी. कमला से चाय बनवा कर ढेर सारी चीजों से मेज सजा दी.

सामने से आते हुए विजेंद्र ने एक पल को उसे देखा, उस की आंखों में उसे बेगानापन नजर आया. घर का भी एक अजीब सा माहौल लगा. हालांकि गीतांजलि अब  विजेंद्र के जीवन से जा चुकी थी, फिर भी वीरा को जाने क्यों अपने लिए शून्यता नजर आ रही थी. हां, विपाशा की हंसी जरूर उस के दिल को कुछ तसल्ली दे देती.

वह कई बार अपनेआप से ही बातें करती कि ऊपरी तौर पर वह लोगों के लिए प्रतिभासंपन्न है लेकिन हकीकत में वह तिनकातिनका टूट चुकी थी. जीने के लिए विपाशा ही उस की एकमात्र आशा थी.

विजेंद्र की कुछ मीठी यादों के सहारे वीरा अपना दुख भूलने की कोशिश करती, वह तो बेटी के प्रति मां की ममता थी जिस की खुशी के लिए उस ने अपनी वापसी स्वीकार कर ली थी. वह सोेचती, जब जीना ही है तो क्यों न अपने इस घर के आंगन में ही जियूं, जहां दुलहन बन के आई थी.

वीरा की वापसी से विपाशा की खुशी में जो इजाफा हुआ उसे देख कर काम वाली दादी अकसर कहती, ‘‘बेटा, निराश मत हो. विजेंद्र एक बार फिर से वही विजेंद्र बन जाएगा, जो शादी के कुछ सालों तक था. मैं जानती हूं कि तुम्हें विजेंद्र की जरूरत है और विपाशा को तुम्हारी. क्या तुम विपाशा की खुशी के लिए विजेंद्र की वापसी का इंतजार नहीं कर सकतीं?

‘‘आखिर तुम विपाशा की मां हो और समाज ने जो अधिकार मां को दिए हैं वह बाप को नहीं दिए. तुम्हारी वापसी इस घर के बिखरे तिनकों को फिर से जोड़ कर घोंसले का आकार देगी. खुद पर भरोसा रखो, बेटी.’’ Family Story In Hindi

Story In Hindi: कारखाने वाली – डर के साए में सलमा?

Story In Hindi: शाम को होटल वापस आते समय अचानक जब सलमा से सामना हो गया, तो अनवर एकदम घबरा गया. ‘‘अरे अनवर, तुम…?’’ उसे देखते ही सलमा के बदसूरत चेहरे पर पहचान की चमक और होंठों पर मुसकान आ गई. ‘‘हां… मैं…’’ अनवर को अपनी आवाज गले में फंसती महसूस हुई. ‘‘कब आए?’’ ‘‘2 दिन हुए.’’ ‘‘हमारे घर क्यों नहीं आए?’’ सलमा ने पूछा. ‘‘दफ्तर के काम में उलझा हुआ हूं.’’ ‘‘तो ठीक है, अब घर चलो,’’ सलमा बोली. ‘‘अभी?’’ अनवर का दिल उछल कर गले में आ गया, ‘‘अभी… अभी नहीं. फिर कभी…’’ ‘‘तो ठीक है…

कल तुम 10 बजे हर हाल में मेरे घर आओगे और… दोपहर का खाना हमारे साथ खाओगे…’’ सलमा बोली, ‘‘मैं भी जल्दी में हूं. ज्यादा देर भी नहीं रुक सकती. वे और मुन्नी राह देख रहे होंगे.’’ ‘‘वे कौन…?’’ अनवर ने पूछा. फिर उसे अपनी बेवकूफी का एहसास हुआ, ‘‘वे से मतलब शौहर से है न?’’ ‘‘हां,’’ सलमा का काला चेहरा शर्म से चमक उठा. ‘‘तो तुम्हारी शादी हो गई?’’ अनवर को यकीन नहीं हुआ. ‘‘हां… शादी हुए 2 साल हो चुके हैं. कल तुम घर आ रहे हो न? अच्छा अपना मोबाइल नंबर तो दो’’ ‘‘हांहां, जरूर आऊंगा… और मेरा मोबाइल नंबर है…’’ अनवर ने जवाब में नंबर दिया और आगे बढ़ गया. सलमा को देखते ही अनवर पर जो घबराहट छाई थी,

उस की शादी की बात सुनते ही वह दूर हो गई. कुछ पल पहले वह सलमा से पीछा छुड़ाने के लिए उस से वादा कर रहा था कि वह उस के घर जरूर आएगा. लेकिन अंदर ही अंदर यह सोच रहा था कि सलमा के घर जाने के बजाय वह यह शहर छोड़ कर भाग जाएगा. परंतु जैसे ही सलमा ने बताया कि उस की शादी हो चुकी है और उस की एक बच्ची भी है, तो अनवर का सारा डर दूर हो गया. उस ने तय कर लिया कि अब वह सलमा के घर जरूर जाएगा. सलमा की शादी हो गई?है, अनवर रास्तेभर इसी बारे में सोचता रहा. कोई और उस से यह बात कहता हो, वह यकीन नहीं करता. पर सलमा ने खुद कहा था, तो यकीन न करने का सवाल ही नहीं उठता था. सलमा की शादी उस के लिए ही नहीं, हर उस आदमी के लिए हैरानी की बात हो सकती थी, जो सलमा को जानता था.

अनवर जब भी इस शहर में आता था, इस बात से डरता रहता था कि कहीं सलमा से आमनासामना न हो जाए. सलमा का सामना करना उस के बस की बात नहीं थी. उसे अचानक वह पुरानी वारदात याद हो आई. वह नहीं चाहता था कि फिर उसे एक बार उस तरह की किसी वारदात का सामना करना पड़े. इसलिए कादिर चाचा की मौत के बाद भी अफसोस करने वह उन के घर नहीं गया. पर उस वारदात के लिए न तो अनवर खुद को मुजरिम समझता है और न ही सलमा को. उसे तो उस दिन के बाद से सलमा से हमदर्दी हो गई थी. पहली बार उसे एक औरत की ख्वाहिशों को समझने का मौका मिला था. पर वह सलमा से सिर्फ हमदर्दी ही रख सकता था. वह न तो उस के लिए कुछ कर सकता था, न ही सोच सकता था. सलमा अनवर के पिता के एक दोस्त कादिर चाचा की लड़की थी. वह बहुत बदसूरत थी, काला रंग, पिचका हुआ चेहरा, छोटीछोटी आंखें, बड़ी सी भद्दी नाक और बाहर निकले दांत.

अनवर के अब्बा और कादिर चाचा की दोस्ती इतनी गहरी थी कि कादिर चाचा जब भी उन के शहर आते, तो उन के घर ही ठहरते थे. उस के अब्बा भी जब कभी कादिर चाचा के शहर जाते, उन के घर ही रुकते थे. अनवर का भी अकसर उस शहर में आनाजाना होता था. ऐसी हालत में उस के अब्बा उसे खासतौर से ताकीद करते थे कि वह कादिर चाचा से जरूर मिले और यदि वहां रुकना पड़े तो उन के घर ही रुके. कादिर चाचा से 2 बेटे थे, जिन की शादियां हो चुकी थीं. वे अपनेअपने कारोबार के लिए दूसरे शहरों में जा बसे थे. उस की मां की बहुत पहले ही मौत हो चुकी थी. कादिर चाचा की सेहत भी ठीक नहीं रहती थी. उन का जिंदगी से मोह खत्म हो गया था. केवल एक चिंता थी,

जो उस मोह की डोर को बांधे हुए थी. सलमा की शादी की चिंता उन्हें दिनरात सताती रहती थी. वह 22 साल की हो गई थी. पढ़नेलिखने में बहुत तेज थी, इसलिए अच्छे नंबरों से बीए पास करने के बाद उसे नौकरी भी मिल गई थी. इस तरह वह अपने पैरों पर खड़ी हो गई थी. लेकिन भला कौन बेवकूफ सलमा जैसी बदसूरत लड़की से शादी करने के लिए तैयार हो सकता था. माना कि वह एक कमाऊ लड़की थी, कादिर चाचा ने भी उस की शादी के लिए काफी पैसा जमा कर रखा था, सलमा के दोनों भाई अपनी बहन के दहेज में मुंहमांगी चीजें देने को तैयार थे, पर इन तमाम बातों के बावजूद भी कोई सलमा से ब्याह करने को तैयार नहीं होता था. भला जिस लड़की के चेहरे पर एक पल के लिए भी नजरें जमाना मुश्किल हो, उस के साथ जिंदगीभर का नाता जोड़ने के लिए कौन तैयार हो सकता था.

जब भी कादिर चाचा अनवर के अब्बा से दुख भरी आवाज में सलमा के ब्याह के बारे में बातें करते तो उस के अब्बा दिलासा देने के लिए, यही कहते थे, ‘तुम धीरज रखो कादिर, कुदरत ने सारी लड़कियों के जोड़े बनाए हैं… सलमा का भी जरूर बनाया होगा. दुनिया में कोई न कोई ऐसा नेक आदमी तो होगा ही, जो सलमा की बदसूरती के बावजूद उसे अपना लेगा.’ पर कादिर चाचा यही कहते थे, यह सब दिल को बहलाने की बातें हैं. मैं अपनी बेटी की शादी की तमन्ना सीने में लिए इस दुनिया से चला जाऊंगा. एक दिन अनवर को उस शहर में रुकना था. इसलिए वह कादिर चाचा के घर चला गया. रात का भोजन कर के वह घूमने के लिए बाहर चला गया. कादिर चाचा को कहीं बाहर जाना था, इसलिए वह कह गए थे कि रात को देर से घर आएंगे. सलमा ने खाना लाजवाब बनाया था. इसलिए अनवर कुछ ज्यादा ही खा गया था. इसलिए वह घूमने निकल गया. वह साढ़े 9 बजे के करीब वापस घर आया और पलंग पर लेट गया. सलमा शायद कोई काम कर रही थी. थोड़ी देर बाद जब वह कमरे में आई, तो अनवर ने कोई ध्यान नहीं दिया. पर जब वह कमरे का दरवाजा भीतर से बंद करने लगी, तो वह चौंक पड़ा,

‘क्या बात है?’ वह घबरा कर बोला, ‘यह तुम क्या कर रही हो? तुम क्या चाहती हो?’ ‘वही, जो एक जवान लड़की एक लड़के से चाहती है,’ सलमा उस के करीब आ कर खड़ी हो गई. ‘सलमा, तुम पागल तो नहीं हो गई?’ अनवर बौखला गया. ‘अनवर, तुम मेरे जज्बातों को समझने की कोशिश करो,’ कहते हुए सलमा उस से लिपट गई, ‘माना कि मैं बदसूरत हूं… इतनी बदसूरत कि कोई मुझे एक नजर भर के लिए भी नहीं देख सकता है, पर फिर भी मैं एक औरत हूं. मेरे भी जज्बात हैं… मैं उन को मार कर किस तरह जिंदा रह सकती हूं. मैं अपने जज्बातों को पूरा करने के लिए कई आदमियों से कह चुकी हूं. पर वे मेरी ओर देखना भी पसंद नहीं करते. ‘अनवर, तुम मेरे जज्बातों को समझने की कोशिश करो. माना कि मेरा चेहरा बदसूरत है. पर मेरा शरीर तो वैसा ही है, जैसा एक आम औरत का होता?है. मैं तुम्हें वैसा ही सुख दे सकती हूं, जैसा कि कोई दूसरी औरत दे सकती है. मेरी प्यास बुझा दो… मैं अभी तक कुंआरी हूं…’ अनवर शादीशुदा था. एक मर्द के अंदर किसी औरत का जिस्म कैसा तूफान उठा सकता?है,

यह वह अच्छी तरह जानता था. सचमुच सलमा के जिस्म से उसे वही सुख मिल सकता था, जो उसे अपनी बीवी से मिलता था. तभी उस के भीतर का कोई चीखा, ‘यह गलत है.’ ‘हट जाओ,’ कहते उस ने एक जोरदार थप्पड़ सलमा को मारा और उसे दूर धकेल दिया. सलमा फर्श पर गिर कर सिसकने लगी. अनवर ने अपनी उखड़ी हुई सांसें दुरुस्त कीं और फिर अपना सामान उठा कर तेजी से घर से निकल गया. उस के बाद अनवर फिर कभी कादिर चाचा के घर नहीं आया. उस घटना के बाद से अनवर ने उस घर से सारे रिश्ते ही तोड़ लिए थे और सलमा के बारे में सोचना भी छोड़ दिया था. उसे महसूस होता था कि सलमा जिस हालात में गुजर रही है, वह काफी खतरनाक है. ऐसे में वह कभी भी भटक सकती है. अनवर जब भी इस शहर में आता, यही डर दिल में बना रहता कि कहीं सलमा से सामना न हो जाए. अभी तक ठीक था, पर आज सामना हो गया था. पर अब अनवर सलमा से बचना नहीं चाहता था. वह उस के घर जाना चाहता था. और उस के उस नेक पति से मिलना चाहता था, जिस ने सलमा जैसी बदसूरत लड़की को अपनाया था. दूसरे दिन सुबह 10 बजे जब अनवर सलमा के घर पहुंचा, तो वह उस की राह देख रही थी. ‘‘मुझे यकीन था कि तुम जरूर आओगे.

फिर भी शक तो था ही कि आते हो या नहीं,’’ कहते हुए सलमा ने उसे अंदर आने के लिए कहा. घर बहुत शानदार था. लगता है, कुछ काम हो रहा था, क्योंकि यह घर दूसरी मंजिल पर था और आवाजें निचली और ऊपर वाली मंजिलों से आ रही थीं. ‘‘इन से मिलो, यह हैं मेरे शौहर लतीफ साहब,’’ कहते हुए उस ने सोफे पर बैठे एक आदमी की तरफ इशारा किया. ‘‘अस्सलामु अलैकुम,’’ सोफे पर बैठे सलमा के शौहर ने अनवर को पहले सलाम कर दिया. ‘‘वालेकुम सलाम,’’ जवाब देते हुए अनवर हैरानी से सलमा के अंधे पति को देखने लगा. उस की उम्र 25-26 साल के आसपास थी. जिस्म गठीला और रंग गोरा था. ‘‘अनवर भाई, सलमा अकसर आप के और आप के घर वालों के बारे में बताया करती है. मैं आप को देख तो नहीं सकता, पर महसूस कर सकता हूं,’’ लतीफ बोला. इस बीच सलमा छोटी सी बच्ची को ले आई और बोली, ‘‘यह है मेरी बेटी मुन्नी.’’ अनवर ने बच्चे को देखा. वह सचमुच खूबसूरत थी. बच्ची उसे देख कर हंसने लगी, तो उस ने उसे चूम लिया. ‘‘अनवर भाई,

शादी से पहले मुझे चारों ओर से ठोकरें मिलती थीं. मेरी जिंदगी तो अंधेरों से भरी थी. अनाथ आश्रम में पला और बड़ा हो कर दरबदर की ठोकरें खाने सड़कों पर निकल आया. ‘‘अनाथ आश्रम में मुझे खराद का काम सिखाया गया था. ऐसे में सलमा ने मुझे सहारा दिया… मुझ से शादी कर के मुझे अपने पैरों पर खड़ा किया. ‘‘लोग कहते हैं कि वह बहुत बदसूरत है, पर खूबसूरती और बदसूरती क्या?है, मैं तो कुछ भी नहीं जानता. मेरे लिए तो सलमा से खूबसूरत औरत इस दुनिया में है ही नहीं… सलमा ने ही मुझे खराद का काम लोगों को सिखा कर छोटा सा कारखाना खुलवा दिया.’’ सलमा चाय ले आई थी. प्याला लेते हुए अनवर उसे देखने लगा. जिंदगी के सुख और खुशियां उस के अंगअंग से फूट रही थीं. ‘‘इन के हाथों का कमाल है कि ये हर पुरजे को छू कर समझ लेते हैं और कारीगरों से बढि़या काम करा लेते हैं. हमारे यहां दूरदूर से लोग काम कराने आते हैं,’’ चाय रखते हुए सलमा बोली,

‘‘अब लोग मुझे बौड़म सलमा नहीं कारखाने वाली सलमा कह कर बुलाती हैं अनवर,’’ सलमा ने राज बताया. सलमा एक बदसूरत औरत थी, पर उस ने अपनी होशियारी से इतना शानदार समझौता किया था कि उस की जिंदगी खुशियों से भर गई. उस ने लतीफ जैसे एक अंधे नौजवान से शादी कर के उसे सहारा दिया था और बदले में उसे मिला था एक नेक पति. अगर वह समझौता नहीं करती तो शायद उम्रभर तरसती ही रहती. पहली बार सलमा को देख कर अनवर के दिल में खुशी और बेफिक्री की लहर दौड़ गई. Story In Hindi

Family Story In Hindi: अविश्वास – अकेलेपन से जूझती रश्मि

Family Story In Hindi: अपने काम निबटाने के बाद मां अपने कमरे में जा लेटी थीं. उन का मन किसी काम में नहीं लग रहा था. शिखा से फोन पर बात कर वे बेहद अशांत हो उठी थीं. उन के शांत जीवन में सहसा उथलपुथल मच गई थी. दोनों रश्मि और शिखा बेटियों के विवाह के बाद वे स्वयं को बड़ी हलकी और निश्ंिचत अनुभव कर रही थीं. बेटेबेटियां अपनेअपने घरों में सुखी जीवन बिता रहे हैं, यह सोच कर वे पतिपत्नी कितने सुखी व संतुष्ट थे.

शिखा की कही बातें रहरह कर उन के अंतर्मन में गूंज रही थीं. वे देर तक सूनीसूनी आंखों से छत की तरफ ताकती रहीं. घर में कौन था, जिस से कुछ कहसुन कर वे अपना मन हलका करतीं. लेदे कर घर में पति थे. वे तो शायद इस झटके को सहन न कर सकें.

दोनों बेटियों की विदाई पर उन्होंने अपने पति को मुश्किल से संभाला था. बारबार यही बोल उन के दिल को तसल्ली दी थी कि बेटी तो पराया धन है, कौन इसे रख पाया है. समय बहुत बड़ा मलहम है. बड़े से बड़ा घाव समय के साथ भर जाता है, वे भी संभल गए थे.

बड़ी बेटी रश्मि के लिए उन के दिल में बड़ा मोह था. रश्मि के जाने के बाद वे बेहद टूट गए थे. रश्मि को इस बात का एहसास था, सो हर 3-4 महीने बाद वह अपने पति के साथ पिता से मिलने आ जाती थी.

शादी के कई वर्षों बाद भी भी रश्मि मां नहीं बन सकी थी. बड़ेबड़े नामी डाक्टरों से इलाज कराया गया, पर कोईर् परिणाम नहीं निकला. हर बार नए डाक्टर के पास जाने पर रश्मि के दिल में आशा की लौ जागती, पर निराशारूपी आंधी उस की लौ को निर्ममता से बुझा जाती. किसी ने आईवीएफ तकनीक से संतान प्राप्ति का सुझाव दिया लेकिन आईवीएफ तकनीक में रश्मि को विश्वास न था.

अकेलापन जब असह्य हो उठा तो रश्मि ने तय किया कि वह अपनी पढ़ाई जारी रखेगी.

‘सुनो, मैं एमए जौइन कर लूं?’

‘बैठेबैठे यह तुम्हें क्या सूझा?’

‘खाली जो बैठी रहती हूं, इस से समय भी कट जाएगा और कुछ ज्ञान भी प्राप्त हो जाएगा.’

‘मुझे तो कोई एतराज नहीं, पर बाबूजी शायद ही राजी हों.’

‘ठीक है, बाबूजी से मैं स्वयं बात कर लूंगी.’

उस रात बाबूजी को खाना परोसते हुए रश्मि ने अपनी इच्छा जाहिर की तो एक पल को बाबूजी चुप हो गए. रश्मि समझी शायद बाबूजी को मेरी बात बुरी लगी है. अनुभवी बाबूजी समझ गए कि रश्मि ने अकेलेपन से ऊब कर ही यह इच्छा प्रकट की है. उन्होंने रश्मि को सहर्ष अनुमति दे दी.

कालेज जाने के बाद नए मित्रों और पढ़ाई के बीच 2 साल कैसे कट गए, यह स्वयं रश्मि भी न जान सकी. रश्मि ने अंगरेजी एमए की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर ली. उस के ससुर ने उसे एक हीरे की सुंदर अंगूठी उपहार में दी.

शिखा की शादी तय हो गई थी. रश्मि के लिए शिखा छोटी बहन ही नहीं, मित्र व हमराज भी थी. शिखा ने व्हाट्सऐप पर लिखा कि, ‘सच में बड़ी खुशी की बात यह है कि तुम्हारे जीजाजी का तुम्हारे शहर में अपने व्यापार के संबंध में खूब आनाजाना रहेगा. मुझे तो बड़ी खुशी है कि इसी बहाने तुम्हारे पास हमारा आनाजाना लगा रहेगा.’

व्हाट्सऐप में मैसेज देख कर और उस में लिखा पढ़ कर रश्मि खिल उठी थी. कल्पना में ही उस ने अनदेखे जीजाजी के व्यक्तित्व के कितने ही खाके खींच डाले थे, पर दिल में कहीं यह एहसास भी था कि शिखा के चले जाने के बाद मां और बाबूजी कितने अकेले हो जाएंगे.

शिखा की शादी में रमेश से मिल कर रश्मि बहुत खुश हुई, कितना हंसमुख, सरल, नेक लड़का है. शिखा जरूर इस के साथ खुश रहेगी. रमेश भी रश्मि से मिल कर प्रभावित हुआ था. उस का व्यक्तित्व ही ऐसा था. शिखा की शादी के बाद एक माह रश्मि मांबाप के पास ही रही थी, ताकि शिखा की जुदाई का दुख उस की उपस्थिति से कुछ कम हो जाए.

शिखा अपने पति के साथ रश्मि के घर आतीजाती रही. हर बार रश्मि ने उन की जी खोल कर आवभगत की. उन के साथ बीते दिन यों गुजर जाते कि पता ही न लगता कि कब वे लोग आए और कब चले गए. उन के जाने के बाद रश्मि के लिए वे सुखद स्मृतियां ही समय काटने को काफी रहतीं.

शिखा शादी के बाद जल्द ही एकएक कर 2 बेटियों की मां बन गई थी. रश्मि ने शिखा के हर बच्चे के स्वागत की तैयारी बड़ी धूमधाम और लगन से की. अपने दिल के अरमान वह शिखा की बेटियों पर पूरे कर रही थी. मनोज भी रश्मि को खुश देख कर खुश था. उस की जिंदगी में आई कमी को किसी हद तक पूरी होते देख उसे सांत्वना मिली थी.

शिखा के तीसरे बच्चे की खबर सुन कर रश्मि अपने को रोक न सकी. शिखा की चिंता उस के शब्दों से साफ प्रकट हो रही थी. उस ने तय कर लिया कि वह शिखा के इस बच्चे को गोद ले लेगी. इस से उस के अपने जीवन का अकेलापन, खालीपन तथा घर का सन्नाटा दूर हो जाएगा. बच्चे की जरूरत उस घर से ज्यादा इस घर में है. रश्मि ने जब मनोज के सामने अपनी इच्छा जाहिर की तो मनोज ने सहर्ष अपनी अनुमति दे दी.

‘शिखा, घबरा मत, तेरे ऊपर यह बच्चा भार बन कर नहीं आ रहा है. इस बच्चे को तुम मुझे दे देना. मुझे अपने जीवन का अकेलापन असह्य हो उठा है. तुम अगर यह उपकार कर सको तो आजन्म तुम्हारी आभारी रहूंगी.’ रश्मि ने शिखा से फोन पर बात की.

शाम को जब रमेश घर आया तब शिखा ने मोबाइल पर हुई सारी बात उसे बताई.

‘रश्मि मुझे ही गोद क्यों नहीं ले लेती, उसे कमाऊ बेटा मिल जाएगा और मुझे हसीन मम्मी.’ रमेश ने मजाक किया.

‘क्या हर वक्त बच्चों जैसी बातें करते हो. कभी तो बात को गंभीरता से लिया करो.’

रमेश ने गंभीर मुद्रा बनाते हुए कहा, ‘लो, हो गया गंभीर, अब शुरू करो अपनी बात.’

नाराज होते हुए शिखा कमरे से जाने लगी तो रमेश ने उस का आंचल खींच लिया, ‘बात पूरी किए बिना कैसे जा रही हो?’

‘रश्मि के दर्द व अकेलेपन को नारी हृदय ही समझ सकता है. हमारा बच्चा उस के पास रह कर भी हम से दूर नहीं रहेगा. हम तो वहां आतेजाते रहेंगे ही. ‘हां’ कह देती हूं.’

‘बच्चे पर मां का अधिकार पिता से अधिक होता है. तुम जैसा चाहो करो, मेरी तरफ से स्वतंत्र हो.’

शिखा ने रश्मि को अपनी रजामंदी दे दी. सुन कर रश्मि ने तैयारियां शुरू कर दीं. इस बार वह मौसी की नहीं, मां की भूमिका अदा कर रही थी. उस की खुशियों में मनोज पूरे दिल से साथ दे रहा था.

ऐसे में एक दिन उसे पता चला कि वह स्वयं मां बनने वाली है. रश्मि डाक्टर की बात का विश्वास ही न कर सकी.

उस ने अपने हाथों पर चिकोटी काटी.

मनोज ने खबर सुनते ही रश्मि को चूम लिया.

उसी रात रश्मि ने शिखा को फोन किया, ‘शिखा, तेरा यह बच्चा मेरे लिए दुनियाजहान की खुशियां ला रहा है. सुनेगी तो विश्वास नहीं आएगा. मैं मां बनने वाली हूं. कहीं तेरे बच्चे को गोद लेने के बाद मां बनती तो शायद तेरे बच्चे के साथ पूरा न्याय न कर पाती.’ रश्मि की आवाज में खुशी झलक रही थी.

‘आज मैं इतनी खुश हूं कि स्वयं मां बनने पर भी इतनी खुश न हुई थी. 14 साल बाद पहली बार तुम्हारे घर में खुशी नाचेगी,’ शिखा बहन की इस खुशी से दोगुनी खुश हो कर बोली.

मां और बाबूजी भी यह खुशखबरी सुन कर आ गए थे. रश्मि के ससुर की खुशी का ठिकाना ही न था.

रश्मि ने अपनी बेटी का नाम प्रीति रखा था. प्रीति घरभर की लाड़ली थी. शिखा व रमेश का आनाजाना लगा ही रहता. शिखा के तीसरा बच्चा बेटा था. रश्मि ने यही सोच कर कि घर में बेटा होना भी जरूरी है, शिखा से उस का बेटा नहीं मांगा.

रश्मि की खुशियां शायद जमाने को भायी नहीं. शिखा व रमेश रश्मि के पास आए हुए थे. उन की दूर की मौसी प्रीति को देखने आई थीं. रश्मि को बधाई देते हुए उन्होंने कहा, ‘रश्मि, तेरा रूप बिटिया न ले सकी. यह तो अपने मौसामौसी की बेटी लगती है.’

‘यह तो अपनेअपने समझने की बात है, मौसी, मैं प्रीति को अपनी बेटी से बढ़ कर प्यार करता हूं.’

मौसी का कथन और रमेश का समर्थन शिखा के दिल में तीर बन कर चुभ गए. जिन आंखों से प्रीति के लिए प्यार उमड़ता था, वही आंखें अब उस का कठोर परीक्षण कर रही थीं. प्रीति का हर अंग उसे रमेश के अंग से मेल खाता दिखाई देने लगा. प्रीति की नाक, उस की उंगलियां रमेश से कितनी मिलती हैं, तो क्या प्रीति रमेश की बेटी है? शिखा के दिल में संदेह का बीज पनपने लगा. मौसी का विषबाण अपना काम कर चुका था.

‘रश्मि बच्चे की चाह में इतना गिर सकती है और रमेश ने मेरे विश्वास का यही परिणाम दिया,’ शिखा सोचती रही, कुढ़ती रही.

घर  लौटते ही शिखा उबल पड़ी. सुनते ही रमेश सन्नाटे में आ गया. यह रश्मि की सगी बहन बोल रही है या कोई शत्रु?

‘तुम पढ़ीलिखी हो कर भी अनपढ़ों जैसा व्यवहार कर रही हो. तुम में विश्वास नाम की कोई चीज ही नहीं. इतना ही भरोसा है मुझ पर.’

‘अविश्वास की बात ही क्या रह जाती है? प्रीति का हर अंग गवाह है कि तुम्हीं उस के बाप हो. औरत सौत को कभी बरदाश्त नहीं कर पाती, चाहे वह उस की सगी बहन ही क्यों न हो.’

‘किसी के रूपरंग का किसी से मिलना क्या किसी को दोषी मानने के लिए काफी है? गर्भावस्था में मां की आंखों के सामने जिस की तसवीर होती है, बच्चा उसी के अनुरूप ढल जाता है.’

‘अपनी डाक्टरी अपने पास रखो, तुम्हारी कोई सफाई मेरे लिए पर्याप्त नहीं.’

‘डाक्टर राजेश को तो जानती हो न? उस की बेटी के बाल सुनहरे हैं, पर पतिपत्नी में से किस के बाल सुनहरे हैं? राजेश ने तो आज तक कोई तोहमत अपनी पत्नी पर नहीं लगाई.’

‘मैं औरत हूं, मेरे अंदर औरत का दिल है, पत्थर नहीं.’

बेचैनी में शिखा अपनी परेशानी मां को बता चुकी थी. उस की रातें जागते कटतीं, भूख खत्म हो गई थी. फोन करने के बाद मां कितनी बेचैन हो उठेंगी, यह उस ने सोचा ही न था.

मां अंदर ही अंदर परेशान हो उठीं. दोपहर को जब पति सोने चले गए तो उन्होंने शिखा को फोन किया, ‘‘तुम्हारी बात ने मुझे बहुत अशांत कर दिया है. रश्मि तुम्हारी बहन है, रमेश तुम्हारा पति, तुम उन के संबंध में ऐसा सोच भी कैसे सकती हो. रश्मि अगर 14 साल बाद मां बनी है तो इस का अर्थ यह तो नहीं कि तुम उस पर लांछन थोप दो. तुम्हारा अविश्वास तुम्हारे घर के साथसाथ रश्मि का घर भी ले डूबेगा. जिंदगी में सुख व खुशी हासिल करने के लिए विश्वास अत्यंत आवश्यक है. बसेबसाए घरों में आग मत लगाओ. रश्मि को इतने वर्षों बाद खुश देख कर कहीं तुम्हारी ईर्ष्या तो नहीं जाग उठी?’’

मां से बात करने के बाद शिखा के अशांत मन में हलचल सी उठी. सचाई सामने होते आंखें कैसे मूंदी जा सकती हैं. बातबात पर झल्ला जाना, पति पर व्यंग्य कसना शिखा का स्वभाव बन चुका था.

‘‘बचपना छोड़ दो, रश्मि सुनेगी तो कितनी दुखी होगी.’’

‘‘क्यों? तुम तो हो, उस के आंसू पोंछने के लिए.’’

‘‘चुप रहो, तमीज से बात करो, तुम तो हद से ज्यादा ही बढ़ती जा रही हो. जो सच नहीं है, उसे तुम सौ बार दोहरा कर भी सच नहीं बना सकतीं.’’

शिखा को हर घटना इसी एक बात से संबद्घ दिखाई पड़ रही थी. चाह कर भी वह अपने मन से किसी भी तरह इस बात को निकाल न सकी.

इधर रमेश को रहरह कर मौसीजी पर गुस्सा आ रहा था, जो उन के शांत जीवन में पत्थर फेंक कर हलचल मचा गई थीं. पढ़लिख कर इंसान का मस्तिष्क विकसित होता है, सोचनेसमझने और परखने की शक्ति आती है, पर शिखा तो पढ़लिख कर भी अनपढ़ रह गई थी.

एकदूसरे के लिए अजनबी बन पतिपत्नी अपनीअपनी जिंदगी जीने लगे. आखिर हुआ वही जो होना था. बात रश्मि तक भी पहुंच गई. सुन कर उसे गुस्सा कम और दुख अधिक हुआ. मनोज को भी इस बात का पता लगा, पर व्यक्ति व्यक्ति में भी कितना अंतर होता है. रश्मि के प्रति विश्वास की जो जड़ें सालों से जमी थीं, वे इस कुठाराघात से उखड़ न सकीं.

रश्मि ने मन मार कर शिखा को फोन कर कहा, ‘‘इसे तुम चाहो तो मेरी तरफ से अपनी सफाई में एक प्रयत्न भी समझ सकती हो. हमारा सालों का रिश्ता, खून का रिश्ता यों इतनी जल्दी तोड़ दोगी? शांत मन से सोचो, मैं तो तुम्हारा बच्चा गोद लेने वाली थी, फिर मुझे ऐसा करने की आवश्यकता क्यों होती? रमेश को मैं ने हमेशा छोटे भाई की तरह प्यार किया है, इस निश्चल प्यार को कलुषित मत बनाओ.

‘‘वैवाहिक जीवन की नींव विश्वासरूपी भूमि पर खड़ी है. अपनी बसीबसाई गृहस्थी में शंकारूपी कुल्हाड़ी से आघात क्यों करना चाहती हो? तनाव और कलह को क्यों निमंत्रण दे बैठी हो? रमेश को तुम इतने सालों में भी समझ नहीं सकी हो.’’

शिखा इन बातों से और जलभुन गई. रमेश उस की नजर में अभी भी अपराधी है. घर वह सोने और खाने को ही आता है. उस का घर से बस इतना ही नाता रह गया है. मां द्वारा पिता की उपेक्षा होते देख बच्चे भी उस से वैसा ही व्यवहार करते हैं.

शिखा ने स्वयं ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि आज न वह स्वयं खुश है, न उस का पति रमेश. Family Story In Hindi

Story In Hindi: खुशामद का कलाकंद – क्या आप में है ये हुनर

Story In Hindi: जीवन जीना अपनेआप में एक कला है. जिसे यह कलाकारी नहीं आती वह बेचारा कुछ इस तरह से जीता है कि उसे देख कर कोई भी कह सकता है, ‘ये जीना भी कोई जीना है लल्लू.’ सफलतापूर्वक जीवन जीने वाले नंबर एक के कलाकार होते हैं. उन के सामने हर बड़े से बड़ा कलाकार पानी भरता नजर आता है. चमचागीरी या खुशामद करना शाश्वत कला है और जिस ने इस कला में स्वर्ण पदक प्राप्त कर लिया या फिर जिसे ‘पासिंग मार्क’ भी मिल गया, तो उस की जिंदगी आराम से गुजर जाती है.

खुशामद इस वक्त राष्ट्र की मुख्य धारा में है. इस धारा में बहने वाले के हिस्से की सुखसुविधाएं खुदबखुद दौड़ी चली आती हैं. हमारे मित्र छदामीजी कहां से कहां पहुंच गए. साइकिल पर चलते थे, आज कार में चलते हैं. यह खुशामद का ही चमत्कार है. खुशामद की कला के विशेषज्ञ हर कहीं पाए जाते हैं. कश्मीर से ले कर कन्याकुमारी तक खुशामद करने वालों की भरमार है.

दरअसल, जीवन की हर सांस खुशामद की कर्जदार है. खुशामद और चमचागीरी में बड़ा बारीक सा अंतर है. चमचागीरी बदनामशुदा शब्द है, खुशामद अभी उतना बदनाम नहीं हुआ है, इसलिए लोग चमचागीरी तो करते हैं, लेकिन सफाई देते हैं कि भई थोड़ी सी खुशामद कर दी तो क्या बिगड़ गया. खुशामद कामधेनु गाय है, जिस की पूंछ पकड़ क र जाने कितने गधे घोड़े बन कर दौड़ रहे हैं. पद, पैसा या सुख आदि पाने की ललक में लोग खुशामद जैसे सात्विक हथियार का सहारा लेते हैं.

खुशामद एक तरह का अहिंसक हथियार है. सोचता हूं कि खुशामद की कला का इस्तेमाल कर के अगर कोई कुछ प्राप्त कर ले तो क्या बुराई है? यह तो जीवन जीने की कला है. इस के बिना आप जहां हैं, वहीं पड़े रह जाएंगे. जो लोग सड़ना नहीं चाहते हैं, वे कुछ करने के लिए खुशामद का सहारा ले कर आगे बढ़ते हैं.

इस के लिए पावरफुल लोगों का सम्मान करो, अकारण दाएंबाएं होते रहो, अभिनंदन करो और ऐश करो.  पिछले दिनों ऐसे ही एक सज्जन के बारे में पता चला. जब देखो वह आयोजनों में भिड़े रहते थे. मुझे लगा, बड़े महान प्राणी हैं. बड़े बिजी रहते हैं. देश और समाज की चिंता में निरंतर मोटे भी होते जा रहे हैं. यह देख कर मैं उन के नागरिक अभिनंदन के ‘मूड’ में आ गया. मैं उन से टाइम लेने जा रहा था कि रास्ते में एक महोदय मिल गए. पूछा, ‘‘कहां चल दिए?’’

मैं ने कहा, ‘‘फलानेजी का सम्मान करना चाहता हूं.’’ मेरी बात को सुन कर महोदय हंस पड़े तो मैं चौंका. मैं ने कहा, ‘‘हंसने की क्या बात है? फलानेजी समाजसेवी हैं. चौबीसों घंटे कुछ न कुछ करते रहते हैं. ऐसे लोगों का अभिनंदन तो होना ही चाहिए.’’ महोदय बोले, ‘‘चलिए, मैं सज्जन की पोल खोलता हूं, तब भी आप को लगे कि उन का अभिनंदन होना चाहिए तो ठीक है.’’ मेरे कान खड़े हो गए. महोदय बताने लगे कि इन्होंने पिछले साल मजदूरों का एक सम्मेलन करवाया था.

खूब चंदा एकत्र किया. एक मंत्री को बुलवा कर भाषण भी करवा दिया. सम्मेलन के बाद उन्हें 2 फायदे हुए, मंत्रीजी ने उन्हें एक समिति का सदस्य बनवा दिया और उन के घर पर दूसरी मंजिल भी तन गई. यह सज्जन हर दूसरे दिन किसी मंत्री का, किसी विधायक का या किसी अफसर का अभिनंदन करते रहते हैं. ऐसा करने से लोगों में धाक जमती चली जाती है.

पावरफुल आत्माओं से निकटता बढ़ती है तो सुविधाओं की गंगा अपनेआप बहने लगती है. देखते ही देखते कंगाल भी मालामाल हो जाता है. महोदय की बातें सुन कर मेरा माथा घूम गया और मैं ने अभिनंदन वाला आइडिया ड्राप कर दिया. अब यह और बात है कि सज्जन अपना अभिनंदन कराने के लिए मेरी खुशामद पर आमादा हैं तो भाई साहब, खुशामद के एक से एक रूप हैं, जुआ की तरह.

हम और आप कर रहे होते हैं और हमें पता नहीं चलता कि खुशामद कर रहे हैं, इसलिए कदम फूंकफूंक कर रखिए, वरना कब खुशामद की कीचड़ आप के मुंह पर लग जाए, कहना कठिन है. खुशामद की कला को अब तो सामाजिक स्वीकृति भी मिल गई है. इसे क्या कहें जो खुशामद के जरिए घरपरिवार को खुश रखता है.

उस की आमद भी सब को खुश कर देती है, लेकिन जो खुशामद से दूर रहता है, उस की आमद घर वालों को नागवार गुजरने लगती है. हर कोई मुंह बनाते हुए बड़बड़ाता है, ‘आ गया आदर्शवादी, हुंह.’ तो साहबान, खुशामद ही जीवन का सार है. घरबाहर अगर इज्जत चाहिए तो खुशामदखोरों की बिरादारी में शामिल हो जाइए. खुशामद की कला में माहिर आदमी का बी.ए. पास होना भी जरूरी नहीं. आप खुशामद पास हैं तो कहीं भी टिक सकते हैं.

समाजवाद, पूंजीवाद, अध्यात्मवाद और बाजारवाद, न जाने कितने तो वाद हैं. सब का अपनाअपना महत्त्व है, लेकिन आजकल के जमाने में ‘खुशामदवाद’ तो वादों का वाद है. सारे वाद बारबार खुशामदवाद एक बार. एक बार जो खुशामद की सुरंग में घुसा, वह मालामाल हो कर ही लौटा. यह और बात है कि आत्मा पर थोड़ी कालिख पुत जाती है, लेकिन उस को क्या देखना? जिस ने की शरम, उस के फूटे करम. आत्मा के चक्कर में न जाने कितने महात्माओं ने आत्महत्याएं कर लीं, इसलिए आत्मा को घर के पिछवाड़े में कहीं दफन कर के खुशामदवाद का सहारा लो.

इस दिशा में जिस ने भी कदम बढ़ाए हैं, वह जीवन भर सुखी रहा है, इसीलिए तो धीरेधीरे खुशामद लोकप्रिय कला बनती जा रही है और जब कला बन रही है या बन चुकी है तो इस का पाठ्यक्रम भी तैयार कर दिया जाना चाहिए. किसी की प्रशस्ति में गीत, कविता लिखना, चालीसा लिखना, क्या है? मतलब यह कि साहित्य में खुशामद कला ने घुसपैठ कर ली है. आजकल विश्वविद्यालयों में नएनए पाठ्यक्रमों की पढ़ाई शुरू हो रही है.

फलाना मैनेजमेंट, ढिकाना मैनेजमेंट तो खुशामद मैनेजमेंट का नया कोर्स भी शुरू हो जाए. इस का बाकायदा ‘पाठ्यक्रम’ तैयार हो. सुव्यवस्थित तरीके से यह कोर्स लांच हो. इस के पढ़ाने वाले सैकड़ों इस शहर में मिल जाएंगे. ऐसे लोगों की तलाश की जाए जो ‘खुशामद वाचस्पति’ हों, ‘खुशामदश्री’ खुशामद कला में पीएच.डी. की उपाधि भी दी जा सकती है और यह मानद भी हो सकती है.

आप के शहर में ऐसी प्रतिभाओं की कमी नहीं होगी. इधर तो खुशामद की प्रतिभा से लबालब लोगों की ऐसी नस्लें लहलहा रही हैं कि मत पूछिए. इसलिए समय के साथ दौड़ने वालों को इस सुझाव पर विचार करना चाहिए, क्योंकि यह सदी खुशामद को कला बनाने पर उतारू होने की सदी है, जो कोई खुशामद के विरोध में खड़ा हो, वह धकिया दिया जाएगा. वक्त के साथ चलो, खुशामद के साथ चलो.

छदामीजी हर दूसरे दिन अभिनंदन करते हैं. अभिनंदन प्रतिभाशाली लोगों का हो तो कोई बात नहीं, लेकिन अब ऐसे लोगों का अभिनंदन करता ही कौन है? अभिनंदन होता है मंत्री, नेता या अफसरों का या फिर ऐसे व्यक्ति का जिस के सहारे सुविधाओं के टुकड़े प्राप्त हो जाएं.

अभिनंदन करना भी खुशामद का ही एक तरीका है. कुछ लोग जीवन भर इसी को पवित्र काम मान कर दिनरात भिड़े रहते हैं. अभिनंदन करना और अभिनंदन कराना ऐसा शौक है कि मत पूछिए. जिसे इस का चस्का लगा, वह गया काम से. अभिनंदन के बगैर वह ठीक उसी तरह तड़पता है, जिस तरह मछली पानी के बगैर. खुशामद करना और खुशामदपसंद होना सब के बस की बात भी तो नहीं है.

खुशामदपसंद आदमी की चमड़ी मोटी होनी चाहिए और जेब भी हर वक्त ‘भरी’ रहे. जब तक जेब भरी रहेगी, अभिनंदन या सम्मान की झड़ी रहेगी. खुशामद करने वाला कंगाल हो तो चलेगा, लेकिन खुशामदपसंद का मालामाल होना जरूरी है. ऐसी जब 2 आत्माएं मिलती हैं, तब यही गीत बजना चाहिए, ‘दो सितारों का जमीं पर है मिलन आज की रात.’ सोचिए, खुशामद कितनी बड़ी चीज है कि इस नाचीज को इस पर कागज काले करने पड़ रहे हैं, लेकिन हालत यह है कि मर्ज बढ़ता गया ज्योंज्यों दवा की. खुशामद को ले कर आप लाख नाराजगी जाहिर करें, यह खत्म होने से रही.

यह तो द्रौपदी के चीर की तरह बढ़ती जा रही है, और क्यों न बढ़े साहब? जब हर दूसरातीसरा शख्स इस कला में हाथ आजमा रहा है, तब आप क्या कर लेंगे? आप को इस कला से प्रेम नहीं है तो न सही, और दूसरे लोग तो हैं, जिन की गाड़ी खुशामद के भरोसे ही चलती है. सत्ता के गलियारों में जा कर देखिए, खुशामद करने वाले कीड़ेमकोड़े की तरह बिलबिलाते हुए मिल जाएंगे.

वक्त की मार केवल मूर्तियों या स्मारकों पर ही नहीं पड़ती, शब्दों पर भी पड़ती है. ‘खुशआमद’ ऐसा बदनाम हो गया है कि शब्द का प्रयोग करते हुए डर लगता है. किसी को ‘नेताजी’ कह दो, ‘गुरु’ कह दो तो लगता है, व्यंग्य किया जा रहा है. खुशामद शब्द का यही हाल है लेकिन हाल है तो है. अब तो इसे लोग कला बनाने पर तुले हुए हैं.

वक्तवक्त की बात है, इसलिए साहेबान, मेहरबान, कद्रदान, वक्त की धड़कन को सुनो और इस नई कला को गुनो. सफल होना है तो खुशामद ही अंतिम चारा है. बिना खुशामद के हर कोई बेचारा है. यह और बात है कि जो इस जीवन को संघर्षों के बीच ही जीने के आदी हैं, जिन को मुसीबत झेलने में ही मजा आता है, जो सूखी रोटी खा कर, ठंडा पानी पी कर भी खुश रहते हैं, उन के लिए खुशामद कला विषकन्या के समान त्याज्य है, लेकिन जिन को ऐसेवैसे कैसे भी चाहिए सुविधा सम्मान और पैसे, वे खुशामद के बिना एक कदम नहीं चल सकते.

ऐसे लोग ही प्रचारित कर रहे हैं कि खुशामद एक कला है. इस की मार्केटिंग कर रहे हैं, नएनए आकर्षक रैपरों में. हर सीधासादा आदमी खुशामद के चक्कर में फंस जाता है, लेकिन खुशामद एक ऐसा भंवर है, जिस में कोई एक बार फंसा तो निकलना मुश्किल हो जाता है.  इस कला में बला का स्वाद है. जिस ने एक बार भी इस का स्वाद चख लिया, वह दीवाना हो गया.

नैतिकता से बेगाना हो गया. पता नहीं, आप ने खुशामद की कला का आनंद लिया है या नहीं, न लिया हो तो कोई बात नहीं, अगर इच्छा हो तो अपने ही शहर के किसी नेतानुमा प्राणी से मिल लीजिएगा या फिर ऐसे शख्स से, जिसे लोग ‘मिठलबरा’ (ऐसा व्यक्ति जो बड़ी ही मधुरता के साथ झूठा व्यवहार करता है) के नाम से जानते हों. ये लोग आप को बताएंगे कि खुशामद रूपी कलाकंद खाने का आनंद कैसे मनाएं?

बहरहाल, खुशामद को अगर कला का दर्जा मिल जाए तो कोई बुराई नहीं. कुछ लोग तो जेब काटने तक को कला मानते हैं. कला हमेशा भला काम ही कराए जरूरी नहीं. क्या कहा, आप खुशामद को कला नहीं, बला मानते हैं? तो भई, आप जैसे लोगों के कारण ही गलतसलत परंपराएं अपना स्थान नहीं बना पातीं.

आज कदमकदम पर खुशामदखोर मिल जाएंगे, चलतेपुर्जे, अपना काम निकालने में माहिर. आप अगर अब तक हम लोगों से कुछ नहीं सीख पाए हैं तो ठीक है, पड़े रहिए अपनी जगह. सारे लोग आप से आगे निकल जाएंगे तो फिर मत कहिएगा कि हम पीछे रह गए. आगे बढ़ना है तो शर्म छोडि़ए और खुशामदखोरी में भिड़ जाइए. शरमाइए मत, उलटे कहिए, ‘खुश-आमद-दीन’. Story In Hindi

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