गलत आदतों के शिकार हो रहे हैं बच्चें

सैक्स की जरूरत केवल लडक़ों को ही होती हो, लड़कियों को नहीं, यह जरूरी नहीं. फरीदाबाद दिल्ली के निकट एक मामले में एक लडक़ी की शिकायत पर एक लडक़े को जेल भेज दिया गया क्योंकि वह लडक़ा घर के सामने ही रहता था और उसे 2-3 साल से गंदे मैसेज भेजता था, उस पर सैक्स करने का दबाव डालता था. लडक़ी की शिकायत थी कि उस ने उस के अंगों में उंगली डाल कर उस का रेप किया था.

सवाल उठता है कि उंगल डाली हो या यौनांग यह क्या लडक़ी की रजामंदी के बिना हो सकता है. क्या कोई महीनों एक तरफा गंदे या प्यार के मैसेज किसी के फोन पर बारबार भेज सकता है. क्या कोई लडक़ा महीनों किसी लडक़ी का पीछा करेगा और अगर उसे जरा सा भी बढ़ावा लडक़ी से नहीं मिले.

सैक्स रेप के मामलों में ज्यादातर बात रजामंदी से काफी हद तक बढ़ती है और फिर लडक़ा कपड़े उतारने और साथ हम बिस्तर होने को कहता है. रेप आनंद नहीं दे सकता, हां मर्दानगी जरूर दिखा सकता है. बहुत बार रेप किया जाता है लडक़ी को या उस के घरवालों को सबक सिखाने के लिए. कई बार दुश्मनी की वजह से रेप किया जाता है. पर जहां महीनों लडक़ा घर से दफ्तर और दफ्तर से घर तक लडक़ी का पीछा करता हो, वहां लडक़ी की इच्छा भी न जागती हो यह कहना सच से मुंह मोडऩा होगा.

औरतों को हक देने के नाम पर सैक्स गुनाहों पर समाज अब कठोर हो रहा है पर अदालती बूटी के नीचे अब कंकरपत्थर और वोटों के साथसाथ प्यार के खुशबूदार फूल भी पिसने लगे हैं.

बहुत से लडक़ेलडक़ी के पहली बार नकारने के बाद आगे नहीं बढ़ते अब क्योंकि उन्हें डर होता है कि कहीं लडक़ी हंगामा खड़ा न कर दे. असल में वे रुकता है कि यह पहले कदम को नकारना केवल शर्माना हो, यह जताना हो कि लडक़ी चालू नहीं है, या फिर लडक़ी डरीसहमी हो और लडक़े को परखना चाहती हो.

आज के कानूनों ने उस प्यार को रौक दिया है. बहुत से लडक़े डर कर लड़कियों से दूर भाग जाते है कि वहीं वह नाराज हो कर शिकायत न कर दे. यह भागना लड़कियों को भारी पड़ता है क्योंकि लडक़ी समझती है कि उस में कहीं कोर्ई कमी नहीं है कि लडक़े उसे प्यार नहीं करते.

14-15 साल की होते ही हर लडक़ी के मन में एक ऐसे प्यार की जरूरत होने लगती है जो उस पर जान छिडक़े, उस के साथ घूमे, उस के दुखदर्द शेयर करे. उस की गोद में लेट कर अपने गम भुला सके. दुनिया भर से बचा सके. कानूनों ने यह सब बंद कर दिया है.

वैसे ही अब समाज और कट्टर होने लगा ङ्क्षहदूमुसलिम भेदभव तो ही रहा है. साथ ही जाति का भेद भी बढऩे लगा है जबकि अब हर जाति का रहनसहन और खानपीन एक सा होने लगा है. स्कूल, कालेज या काम की जगह जब लडक़े लडक़ेलडक़ी मिलते हैं, एकदूसरे को पसंद करने लगते हैं तो महीनों उन्हें जाति का पता भी नहीं चलता.

जब प्यार पकने लगे तो कानून का डर आ जाता है. किसी भी बात पर अनबन होने पर पुलिस बीच में आ जाती है. पुलिस इन मामलों में खूब इंटरेस्ट लेती है क्योंकि ये कानून व्यवस्था के नहीं होते. इस में मोटी रिश्वत मिलती है. मामले को सुलझाने के नाम पर दोनों पक्ष खूब खिलातेपिलाते हैं. जज भी अपने को लड़कियों को बचाने के नाम पर लडक़ों को सजा दे देते हैं पर भूल जाते हैं कि यह औरतों के लिए गलत फैसला है. यह समाज के फिर से पुराने जमाने में ले जा रहा है जहां लडक़ेलड़कियां शादी मांबाद और बिचौलिए पंडितों के हिसाब से करते थे. तब शादी तो हो जाती थी पर दोनों अपने मनचाहों को शादी के बाद ढूढ़तेफिरते थे और घर कलहों बटें में डूबते थे. आज के युग में ढील देना जरूरी है.

बच्चों के साथ जोर जुल्म, मां भी कम जालिम नहीं!

मुंशी प्रेमचंद ने कई साल पहले ‘ईदगाह’ नाम से एक कहानी लिखी थी, जिस में 4-5 साल का हामिद अपनी दादी अमीना के साथ रहता है और ईद पर वह बाजार से कोई खिलौना या मिठाई खरीदने के बजाय दुकानदार से मोलभाव कर के 3 पैसे में अपनी बूढ़ी दादी के लिए चिमटा खरीदता है, ताकि रोटी बनाते समय उन के हाथ न जलें.

पर, अगर कोई इसी गरम चिमटे से किसी मासूम को दाग दे, तो उसे कैसा महसूस होगा? यह कोई कहानी नहीं है, बल्कि हरियाणा के फरीदाबाद की राजीव कालोनी में इसी मार्च महीने में ऐसा हकीकत में हुआ. शर्म और दुख की बात तो यह रही कि ऐसा घटिया काम करने वाली एक औरत थी, जिस ने अपनी सौतेली बेटी को सताने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

मामला कुछ यों था कि फरीदाबाद के सैक्टर 58 थाना के तहत आने वाली राजीव कालोनी से पुलिस को यह खबर मिली कि एक औरत अपनी सौतेली बेटी को रोजाना मारतीपीटती थी. पुलिस हरकत में आई और बताए गए घर पर दबिश दी. वहां से मिली पीडि़त लड़की का मैडिकल कराया गया. उस के बदन पर चोट और जलने के निशान मिले.

जब इस पूरे मामले की जांचपड़ताल की गई तो पता चला कि उस 16 साल की लड़की की सौतेली मां जबरन उस से घर के सारे काम कराती थी. जब कभी वह थक कर बैठ जाती थी, तब उस की सौतेली मां उसे बुरी तरह पीटती थी. कई बार तो गरम चिमटे से दाग देती थी.

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यह कोई एकलौती घटना नहीं है, जब किसी बच्चे को अपनों द्वारा ही इतना ज्यादा सताया गया हो. सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो तैरते मिल जाएंगे, जिन में कोई औरत या मर्द बंद कमरे में किसी बच्चे की बेदर्दी से पिटाई कर रहे होते हैं. कोई चोरी छिपे ऐसी करतूतों को कैमरे में कैद कर लेता है और इंटरनैट की आभासी दुनिया में शेयर कर देता है. इन मामलों में मांएं भी पीछे नहीं हैं. इसी साल फरवरी महीने में दिल्ली महिला आयोग ने हरिनगर इलाके से 8 साल के एक ऐसे बच्चे को बचाया, जिस के साथ उस की सौतेली मां लंबे समय से मारपीट कर रही थी.

बच्चे ने बताया कि उस की मां उसे रोजाना पीटती थी. कई बार उसे खाना तक नहीं देती थी. उसे घर से बाहर निकाल देती थी. जब मां घर से बाहर जाती थी, तो उसे बांध कर जाती थी. बच्चे के मैडिकल टैस्ट से पता चला कि उस के हाथ, पैर, गरदन, पीठ समेत पूरे शरीर पर जख्मों के निशान थे. सही से खाना नहीं मिलने के चलते वह बच्चा कमजोर भी हो गया था.

अब एक असली मां की भी करतूत देख लो. महाराष्ट्र में मुंबई के पास ठाणे शहर के मुंबा इलाके में एक औरत हीना शेख का 2 साल पहले अपने शौहर फयाज शेख से तलाक हो गया था. 3 साल के बेटे की कस्टडी हीना शेख को मिली थी, पर वह अपने पति से मिलने वाले मुआवजे से खुश नहीं थी, इसलिए उस ने 28 फरवरी, 2021 को पैसों की डिमांड बढ़ाने के लिए अपने बेटे की जम कर पिटाई कर के उस का वीडियो बना दिया और फयाज शेख को भेज दिया.

मामला सामने आने के बाद पुलिस ने जुविनाइल जस्टिस ऐक्ट के सैक्शन 75 के तहत हीना शेख को गिरफ्तार कर लिया. उस वीडियो में वह अपने बेटे को बेरहमी से पीट रही थी. पिटाई के बाद वह उसे बिस्तर पर खड़ा कर के पूछती है, ‘तुझे तेरे बाप के पास जाना है?’

रोता हुआ बच्चा कहता है कि उसे नहीं जाना है, लेकिन मां उस के पैर, जांघों, पीठ, कंधे और मुंह पर लगातार मारती है. वह उसे यह कह कर पीटने लगती है कि उस का बाप उस के लिए केवल 6,000 रुपए देता है और 10,000 रुपए से ज्यादा का खाना यह बच्चा खाता है.

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यहां जिन खबरों का जिक्र किया गया है, वे ऐसे कांड हैं जिन को देखसुन कर किसी का भी दिल दहल जाए. अमूमन कोई मां अपने बच्चे को किसी बात पर पीट दे, यह कोई हैरानी वाली बात नहीं है. बचपन में तकरीबन हर कोई अपनी मां के हाथों पिटा होगा या डांट खाई होगी. इस में मां के मूड के साथसाथ बच्चे की गलती भी बड़ी वजह होती थी. बच्चे ने झूठ बोला, होमवर्क नहीं किया, गाली दी या किसी से मारपीट कर दी, चोरी की या कोई ऐसी बदमाशी कर दी, जो माफी के लायक नहीं थी, तो मां बेमन से पिटाई कर देती थी, फिर वह बेटा हो या बेटी.

लेकिन वहां मां का एक ही मकसद होता है, बच्चे में सुधार लाना. पर जब कोई मां नफरत या किसी लालच में अपने बच्चे को सताती है या बेरहमी से पीटती है, तो मामला फरीदाबाद जैसा संगीन हो जाता है. राजीव कालोनी में रहने वाली मां को अपनी सौतेली बेटी से प्यार नहीं था, यह बात समझ में आती है और वह उस से घर का सारा काम अपनी इसी भड़ास को निकालने के लिए कराती होगी, पर गरम चिमटे से दागना तो अपराध है. हालांकि 16 साल की लड़की से जबरदस्ती घर के काम कराना भी गैरकानूनी है.
दिल्ली के हरिनगर की औरत ने तो अपने 8 साल के सौतेले बेटे को सताने में कोई कसर ही नहीं छोड़ी. किसी मासूम को भूखा रखना कहां की इनसानियत है.

इसी तरह ठाणे की हीना शेख लालच में इतनी अंधी हो गई थी कि उस ने अपने तलाकशुदा शौहर से मुआवजे की रकम बढ़वाने के लिए अपने बेटे को ही बलि का बकरा बना डाला. उसे बेदर्दी से पीटा ही नहीं, बल्कि उस का वीडियो तक बना डाला.इस तरह के मामले बच्चों को घर से भागने की वजह बनते हैं. कौन बच्चा बिना बात रोजरोज की मार खाएगा?

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एक पुरानी कहावत है कि बच्चे कच्ची मिट्टी के समान होते हैं. उन्हें कुम्हार की तरह जिस आकार में ढालेंगे, वे वैसे ही बनते चले जाएंगे. मां अपने बच्चों की वही कुम्हार होती है. उस के हाथ जितने सधे होंगे, बच्चे उतने ही निखरेंगे. बच्चों के साथ एक हद तक कड़ाई करनी चाहिए, पर इतनी भी नहीं कि वे ऐसी राह पर चल पड़ें, जहां से लौटना मुश्किल हो जाए.

बच्चों को ‘ईदगाह’ कहानी के हामिद जैसा दयालु बनाएं, जिसे अपनी खुशी से ज्यादा बूढ़ी दादी की चिंता थी. अगर कहीं वही दादी भविष्य में उसे उसी चिमटे से दागती तो क्या कोई दूसरा बच्चा इस तरह का तोहफा अपनी मां या दादी के लिए लाने की सोचता? बिलकुल नहीं.

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जहां एक ओर पूरे देश में धर्म और अंधविश्वास फैलाए जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर आम नागरिकों ने मिल कर बिहार के औरंगाबाद जिले के 40 सरकारी स्कूलों में 2 दिवसीय विज्ञान कांग्रेस सह विज्ञान मेले का आयोजन कराया.

सीएसआईआर, दिल्ली के सीनियर साइंटिस्ट गौहर रजा ने बच्चों को बताया कि जिस का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं हो, उन चीजों को नहीं मानना चाहिए.

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‘किलकारी’ संस्था के सुधीर कुमार व ‘प्रथम’ संस्था के सरोज कुमार और सुरेश ने बच्चों को ताली बजाना, खेलखेल में विज्ञान, कागज से तितली और खरगोश वगैरह बनाना सिखाया. बच्चों को तरहतरह की दूसरी रोचक जानकारियां भी दी गईं.

घुमंतू वैज्ञानिक सीताराम के डायरैक्शन में कैनवास पर पेंटिंग बनाई गई. ‘कला जत्था’ की टीम के रामेश्वर विश्वकर्मा, सोहराई और फिरोज ने कार्यक्रम में चार चांद लगाने का काम किया.

बच्चों के द्वारा 40 स्टौल लगाए गए जिन में किसी ने हाइड्रोलिक ब्रिज बनाया, तो किसी ने जेसीबी का मौडल. इस के अलावा बच्चों के द्वारा कबाड़ से जुगाड़ के तहत बनाए गए दूसरे सामान देख कर लोग दंग थे. बुक स्टाल भी लगाए गए जिन में काफी तादाद में किताबें रखी गई थीं.

आयोजन समिति के सूत्रधार ‘पीस’ संस्था के डायरैक्टर गालिब साहब ने बताया कि एक सर्वे में आया है कि सरकारी स्कूल के बच्चे विज्ञान और गणित में राष्ट्रीय औसत से काफी कम हैं. बच्चों में विज्ञान के प्रति जागरूकता लाने के लिए जनता की मदद से यह आयोजन किया गया. डीएम राहुल रंजन महिवाल ने कहा कि सरकारी स्कूल के बच्चे भी चांदसितारे छू सकते हैं.

मील का पत्थर होगा सर्व शिक्षा अभियान के सहायक कार्यक्रम पदाधिकारी राजेश कुमार मांझी ने कहा कि इस तरह का कार्यक्रम खासकर कस्तूरबा गांधी स्कूल और सरकारी स्कूल के छात्रछात्राओं के बीच विज्ञान को बढ़ावा देने और लोगों में फैले अंधविश्वास को दूर भगाने की यह कोशिश मील का पत्थर साबित होगी.

वहीं प्रखंड प्रमुख जनाब आरिफ रिजवी ने कहा कि मुझे पहले यकीन ही नहीं हो रहा था कि निहायत गरीब घर के छात्रछात्राएं इतने बेहतर विज्ञान पर आधारित एक से एक मौडल बना पाएंगे.

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