मरवाही : भदेस राजनीति की ऐतिहासिक नजीर

राजनीति में कहा जाता है, सब कुछ संभव है .मगर छत्तीसगढ़ के बहुप्रतीक्षित और बहुप्रतिष्ठित “मरवाही उपचुनाव” में सत्तारूढ़ कांग्रेस के मुखिया भूपेश बघेल ने जिस राजनीति का चक्रव्यू बुना है, वैसा शायद इतिहास में कभी नहीं देखा गया . आज हालात यह है कि अमित जोगी का मामला देश के उच्चतम न्यायालय में पहुंच चुका अगर यहां अमित जोगी को किंचित मात्र भी राहत मिल जाती है तो यह मामला देश भर में चर्चा का विषय बनने के साथ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कार्यशैली पर भी एक प्रश्नचिन्ह बन कर खड़ा हो सकता है.

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यह शायद छत्तीसगढ़ की राजनीति में अपने आप में एक नजीर बन जाएगा, क्योंकि चुनाव को  भदेस करने का काम आज तलक किसी भी सत्ता प्रतिष्ठान ने नहीं किया था. सनद रहे, मरवाही विधानसभा अनुसूचित जनजाति प्रत्याशी के लिए सुरक्षित है और विधानसभा उप चुनाव इसलिए हो रहा है क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी का देहांत हो चुका है. अजीत जोगी कभी यहां से कांग्रेस से विधायक हुआ करते थे, बाद में जब उन्होंने अपनी पार्टी बनाई तो उन्होंने मरवाही से चुनाव लड़ा और जीता. मगर कभी भी उनके आदिवासी होने पर कम से कम कांग्रेस पार्टी ने  प्रश्नचिन्ह नहीं खड़ा किया था. आज छत्तीसगढ़ की  राजनीति में तलवारें कुछ इस तरह भांजी जा रही है कि  कांग्रेस पार्टी भूल गई है कि अजीत जोगी कभी कांग्रेस में अनुसूचित जनजाति के सर्वोच्च नेता हुआ करते थे.

राजनीतिक मतभेदों के कारण उन्होंने जनता कांग्रेस जोगी का गठन किया और 2018 के चुनाव में ताल ठोकी थी. मगर उनके देहावसान के पश्चात उनके सुपुत्र और जनता कांग्रेस जोगी के अध्यक्ष अमित जोगी ने यहां ताल ठोकी तो कांग्रेस का पसीना निकलने लगा. अमित जोगी ने नाजुक माहौल को महसूस किया और अपनी पत्नी डाक्टर ऋचा ऋचा जोगी का भी यहां से नामांकन दाखिल कराया. मगर राजनीति की एक काली मिसाल यह की अमित जोगी व उनकी धर्मपत्नी ऋचा जोगी दोनों के जाति प्रमाण पत्र और नामांकन खारिज कर दिए गए. और प्रतिकार ऐसा कि जिन लोगों ने अमित जोगी का आशीर्वाद लेकर डमी रूप में फॉर्म भरा था उनका भी चुन चुन करके नामांकन रद्द कर दिया गया ताकि कोई भी जोगी समर्थक निर्दलीय भी चुनाव मैदान में रहे ही नहीं.

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सभी मंत्री और विधायक झोंक दिए !

कभी छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी डॉ रमन सिंह सरकार पर चुनाव के समय सत्ता के दुरुपयोग की तोहमत लगाया करती थी. और यह सच भी हुआ करता था. भाजपा  हरएक चुनाव में पूरी  ताकत लगाकर कांग्रेस पार्टी को हराने का काम करती थी, तब कांग्रेस के छोटे बड़े नेता, भाजपा  पर खूब लांछन लगाते और आज जब कांग्रेस पार्टी स्वयं सत्ता में आ गई है तो मरवाही के प्रतिष्ठा पूर्ण चुनाव में अपने सारे मंत्रियों संसदीय सचिवों, विधायक को चुनाव मैदान में उतार दिया है. स्वयं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चुनाव पर  पल पल की निगाह रखे हुए थे, ऐसे में जनता कांग्रेस जोगी के अध्यक्ष और मरवाही उपचुनाव में प्रत्याशी अमित जोगी रिचा जोगी को जिस तरह चुनाव से बाहर किया गया. वह अपने आप में एक गलत परंपरा बन गई है और यह इंगित कर रही है कि चुनाव किस तरह सत्ता दल के लिए प्रतिष्ठा पूर्व बन जाता है और सत्ता का दुरुपयोग “खुला खेल फर्रुखाबादी” होता है .

भूपेश बघेल का चक्रव्यूह

दरअसल, अजीत जोगी के जाति के मामले को लेकर भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल के 15 वर्ष में डॉ रमन सिंह सरकार नहीं कर पाई वह काम चंद दिनों में भूपेश बघेल सरकार ने कर दिखाया. कुछ नए नियम कायदे बनवाकर भूपेश बघेल ने पहले अजीत प्रमोद कुमार जोगी के कंवर जाति प्रमाण पत्र को निरस्त करवाया इस आधार पर अमित जोगी का भी प्रमाण पत्र निरस्त होने की कगार पर पहुंच गया जिसका परिणाम अब सामने आया है.

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आज मुख्यमंत्री बन चुके भूपेश बघेल और कभी पूर्व मुख्यमंत्री रहे अजीत प्रमोद कुमार जोगी का  आपसी द्वंद्व छतीसगढ़ की जनता ने चुनाव से पहले लंबे समय तक देखा है. जब भूपेश बघेल कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रहे अजीत जोगी ने कांग्रेस को उसके महत्वपूर्ण नेताओं को   राजनीति की चौपड़ पर हमेशा  घात प्रतिघात करके जताया  कि वे छत्तीसगढ़ के राजनीति के नियंता हैं. मगर अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल मुख्यमंत्री है, ऐसे में भूपेश बघेल ने  यह चक्रव्यूह  बुना और दिखा दिया कि सत्ता को  कैसे साधा और निशाना लगाया जाता है. यहां अजीत जोगी और भूपेश बघेल में अंतर यह है कि अजीत जोगी  के राजनीतिक दांव में एक नफासत हुआ करती थी. विरोधी बिलबिला जाते थे और अजीत जोगी पर दाग नहीं लगता था.अब परिस्थितियां बदल गई हैं अमित जोगी और ऋचा जोगी  नामांकन खारिज के मामले में सीधे-सीधे भूपेश बघेल सरकार कटघरे में है. अमित जोगी अब देश की उच्चतम न्यायालय में अपना मामला लेकर पहुंच चुके हैं आने वाले समय में ऊंट किस करवट बैठेगा यह देश और प्रदेश की जनता देखने को उत्सुक है.

छत्तीसगढ़ में “भूपेश प्रशासन” ने हाथी को मारा!

छत्तीसगढ़ में वन्य प्राणी संकट में दिख रहे हैं. यह संयोग है या फिर कोई षड्यंत्र की एक सप्ताह में छह: हाथी मृत पाए गए हैं. जिनमें एक हाथी “गणेश” नाम का है जो देशभर में बहुचर्चित है. गणेश पर देश की प्रतिष्ठित पत्रिका मनोहर कहानियां ने  सितंबर 2019 में एक लंबी रिपोर्ट प्रकाशित की थी और बताया था कि किस तरह रायगढ़ के धर्मजयगढ़ में एक ही परिवार के 4 लोगों को गणेश हाथी ने मार डाला था.  छत्तीसगढ़ के कोरबा, रायगढ़ जिला में लगभग 18 लोगों को गणेश हाथी ने हलाक कर डाला.

युवा गणेश के बारे में कहा जा सकता है कि वह सही मायने में एक स्वतंत्र वन्य प्राणी था, जिसने जो  भी गलती से भी उसके  सामने आ गया उसे अपने रास्ते से हटा दिया. और तो और वन विभाग के लाख प्रयासों के बावजूद वह वन विभाग के काबू में कभी नहीं आया. गणेश हाथी ने वन विभाग के द्वारा पैरों में डाली गई मोटी मोटी जंजीर तोड़ डाली. ऐसा शक्तिशाली युवा गणेश विगत दिनों रहस्यमय ढंग से मर जाता है तो प्रश्न उठना लाजमी है कि आखिर गणेश की मृत्यु क्यों और कैसे हो गई? यह मामला दबा ही रह जाता अगर कुछ वन्य प्राणी अधिकारों के लिए लड़ने वाले संवेदनशील लोग हल्ला बोल नहीं करते. अब स्थिति यह है कि छत्तीसगढ़ की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा ने गणेश हाथी को लेकर सवाल उठाया है, जिससे भूपेश सरकार हाशिए में आ गई है .

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नेता प्रतिपक्ष कौशिक आए सामने

‘गणेश’ हाथी की संदेहास्पद मौत पर छत्तीसगढ़ की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा के, नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा है, ‘यह मरा नहीं, मारा गया है, वन अमले ने लिया है बदला’

भाजपा के बड़े नेता और कभी विधानसभा अध्यक्ष रहे वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने जांच करके दोषी अधिकारियों पर एफआईआर दर्ज करने  की मांग उठाई है. परिणाम स्वरूप कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष शैलेष नितिन त्रिवेदी ने जैसा कि होता है सरकार का बचाव किया है.

घटना छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिला के धरमजयगढ़ वन मंडल के अंतर्गत घटित हुई है. भाजपा नेता के आरोप के बाद गणेश हाथी की मौत  ने तूल पकड़ लिया है. बीजेपी नेता ने अपने आरोप में कहा है कि यह हाथी मरा नहीं है, बल्कि उसे मारा गया है. वन विभाग को पहले से ही पता था कि यह हाथी गणेश ही है.

नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा है कि वन विभाग ने हाथी से बदला लिया है! उन्होंने कठोर शब्दों का उपयोग करते हुए कहा है-” हाथी की हत्या पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए. केवल अधिकारियों का ट्रांसफर कर खानापूर्ति नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसके जिम्मेदार लोगों पर एफआईआर दर्ज कर उच्च स्तरीय जांच किए जाने की जरूरत है.”

हाथियों की मौत क्या संयोग है??

वनांचल से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ मे विगत विगत दस दिनों में छह हाथियों की रहस्यमयी मौत हो गई है. रायगढ़ जिला की धरमजयगढ़ में  18जून को देश के सबसे खतरनाक माने जाने वाले युवा गणेश हाथी की मौत हो गई. वन विभाग के अधिकारियों ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर बताया कि मौत की वजह करंट लगना है.

जब घटना के साक्ष्य  धरमलाल कौशिक तक पहुंचे तो उन्होंने 22 जून को हाथियों की मौत पर बयान देते हुए कहा -” हाथियों की लगातार हो रही मौत सरकार पर प्रश्नचिन्ह लगा रही है. राज्य में जानबूझकर हाथियों को मारा जा रहा है. किसके इशारे पर यह किया जा रहा है? हाथियों को क्यों मारा जा रहा है? इसका जवाब सरकार ही दे पाएगी. सरकार ने अधिकारियों का ट्रांसफर कर खानापूर्ति कर दिया, जबकि कार्ऱवाई उसे कहते हैं, जहां ऐसे गंभीर कृत्यों पर नीचे से ऊपर तक जिम्मेदारों पर एफआईआर दर्ज किया जाए.”

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इस सख्त बयान के बाद कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रमुख शैलेष नितिन त्रिवेदी ने नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के बयान पर  कहा है कि सनसनीखेज बयान देना ठीक नहीं है, उनका बयान गरिमा के अनुरूप नहीं है. धरमलाल कौशिक बीजेपी के वरिष्ठ नेता हैं, नेता प्रतिपक्ष हैं, लेकिन उन्होंने अपने बयानों में कोई तथ्य पेश नहीं किया है. गणेश हाथी 18 आदिवासियों ग्रामीणों की मौत का जिम्मेदार था उसकी मौत के बाद सरकार ने जिम्मेदार लोगों को हटा दिया है. उन्होंने कहा है हाथियों की मौत की जांच सरकार करा रही है. त्रिवेदी ने भूपेश सरकार का बचाव करते हुए कहा बीजेपी शासन काल में जब से झारखंड और ओडिशा में माइनिंग खुली है, तब से वहां के हाथी छत्तीसगढ़ की ओर विचरण करने लगे हैं. यह हाथी अब आरंग, बारनावापारा के जंगलों तक पहुंच गए हैं. इससे मैन- एलीफेंट कानफ्लिक्ट की स्थिति बन गई है. सरकार ने हाथियों की बसाहट के लिए लेमरू अभ्यारण्य का प्रस्ताव बना लिया है.

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