Bhojpuri Interview : भोजपुरी सिनेमा में अपनी संवाद अदायगी और बेहतरीन अदाकारी से अलग पहचान बनाने वाले कलाकार देव सिंह की तुलना हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के पंकज त्रिपाठी से की जाती है. भोजपुरिया दर्शकों का मानना है कि देव सिंह की ऐक्टिंग हूबहू पंकज त्रिपाठी जैसी है.
देव सिंह का शुरुआती संघर्ष और छोटेछोटे रोल, फिर विलेन के किरदार और फिर बतौर लीड हीरो के रोल में भोजपुरी सिनेमा देखने वालों को उन का मुरीद बना लेते हैं. देव सिंह ने बीते साल फिल्म ‘सिंह साहब : द राइजिंग’ के जरीए एक बायोपिक में सिंह साहब के रोल में जान फूंक दी थी, जिस के लिए उन्हें 5वें ‘सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’ में बैस्ट ऐक्टर अवार्ड से सम्मानित किया गया था.
देव सिंह से एक फिल्म के सैट पर हुई मुलाकात में उन के फिल्म कैरियर पर ढेर सारी बातें हुईं. पेश हैं, उसी के खास अंश :
जिस भोजपुरिया समाज से आप को पहचान मिली, उस सामाजिक कर्ज को चुकाने की दिशा में क्या आप कोई काम कर रहे हैं?
मेरी कोशिश रहेगी कि जिस भोजपुरी समाज ने मु झे इतना प्यार और इज्जत दी है, उस की उम्मीदों पर खरा उतरूं. मैं अपने भोजपुरी समाज के लोगों के काम आ सकूं, ऐसी मेरी पूरी कोशिश रहती है.
किसी भी काम का क्रैडिट लेना अब आप के लिए कितना जरूरी हो गया है?
अगर आप ने अच्छा काम किया है, तो उस का क्रैडिट मिलना भी जरूरी है. अगर आप के अच्छे काम की तारीफ नहीं होती है, तो आप पीछे छूट जाएंगे. मेरा मानना है कि जब भी कोई अच्छा काम करे, तो उस की तारीफ होनी ही चाहिए.
मेरे लिए मेरी अच्छी ऐक्टिंग का क्रैडिट मिलना माने रखता है, इसलिए मैं चाहता हूं कि जब भी मैं किसी फिल्म में अच्छी ऐक्टिंग करूं, मेरी संवाद अदायगी अच्छी हो, मेरे रोल के चलते फिल्में हिट हों, तो उस का क्रैडिट मुझे भी मिले.
बायोपिक फिल्म के कमर्शियल पहलू को देखते हुए क्या आगे भी आप इस तरह की फिल्मों को चुनेंगे?
मैं हमेशा चाहता हूं कि हर बार कुछ नया करूं. लेकिन पिछले कुछ सालों से भोजपुरी सिनेमा में महिला प्रधान फिल्में ज्यादा बन रही हैं. ऐसे में बायोपिक फिल्मों के बनने की उम्मीद कम होती जा रही है.
मैं तो यह भी चाहता हूं कि भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और राजगुरु जैसे देश के ऊपर मरमिटने वाले शूरवीरों की बायोपिक करूं.
विलेन के तौर पर आप का काम काफी पसंद किया गया है. क्या आगे भी इस तरह का कोई काम करने की उम्मीद है?
बतौर विलेन मेरी आने वाली फिल्म ‘बहू की बिदाई’ है. इस के अलावा मैं फिल्म ‘भूत मंडली’ में भी विलेन के रूप में नजर आऊंगा.
न तो सिनेमाघर और न ही डिजिटल प्लेटफार्म, जब आप को फिल्म सीधे टैलीविजन पर रिलीज होने के बारे में पता चलता है, तो आप का क्या रिऐक्शन होता है?
मेरी फिल्मों की ज्यादातर रिलीजिंग सिनेमाघरों में होती थी, लेकिन पिछले कुछ सालों से थिएटर में भोजपुरी फिल्मों का प्रदर्शन ठप सा हो गया है. लिहाजा, टैलीविजन पर फिल्मों के रिलीज होने की बात पता चलने पर कोई हैरानी नहीं होती है.
आप अपनी फिटनैस के लिए जाने जाते हैं. उम्र को खुद पर हावी न होने देने का क्या कोई फार्मूला है?
मेरी फिटनैस का मूलमंत्र मौर्निंग वाक और हैल्दी खाना है. मैं जिम जाना पसंद नहीं करता, क्योंकि जिम के लिए हैवी स्टेरौयड, प्रोटीन पाउडर समेत कई आर्टिफिशियल चीजों को अपने खाने में शामिल करना पड़ता है, जो असमय बीमारियों को न्योता देता है.
हम अकसर जिम के दौरान हार्ट अटैक आने की घटनाओं के बारे में सुनते रहते हैं, इसीलिए अगर फिट रहना है तो कसरत कीजिए, अच्छा खाइए और अच्छा सोचिए.
आप की और अवधेश मिश्रा की दोस्ती की मिसाल दी जाती है. फिल्म इंडस्ट्री में दोस्ती बरकरार रखना कितना आसान होता है?
अवधेश मिश्रा को मैं अपना दोस्त नहीं, बल्कि बड़ा भाई मानता हूं. उन्होंने बतौर मैंटर मेरा साथ दिया है. फिल्म इंडस्ट्री में अकसर टांग खींचने वाले ज्यादा होते हैं, लेकिन अवधेशजी ने मु झे हमेशा बड़े भाई की तरह ही सपोर्ट किया है.
आप ने कई भोजपुरी फिल्मों में कई मुश्किल किरदार निभाए हैं. आप की नजर में सब से मुश्किल किरदार कौन सा था?
फिल्म ‘सिंह साहब : द राइजिंग’ में मु झे सिंह साहब के जीवन को परदे पर हूबहू उतारना था. इस के लिए मैं ने उन के परिवार वालों के साथ सिंह साहब के जीवन से जुड़े हर छोटेबड़े पहलू को बड़ी ही बारीकी से सम झा था. यह मेरे लिए काफी चैलेंजिंग रहा था.
जिंदगी में सुखी रहने का आप का फार्मूला क्या है?
जब तक अच्छा काम करने की मन में बेचैनी रहेगी, तब तक संतुष्टि हासिल नहीं हो सकती. इसीलिए मेरी कोशिश रहती है कि मैं हमेशा अच्छे काम करूं. मेरे बरताव से किसी को ठेस न पहुंचे. हम जितना संतुष्ट रहेंगे, उतनी खुशी बनी रहेगी.
कई कलाकार हैं, जो औन स्क्रीन कई चीजें करना पसंद नहीं करते हैं. आप की भी क्या कोई लिस्ट है कि कौन सा काम नहीं करना है?
बिलकुल, मेरी भी सूची है, जिसे मैं औन स्क्रीन नहीं करना चाहता हूं. इस में रेप और गालीगलौज जैसे सीन करने से मैं बचता हूं.
आज की नौजवान पीढ़ी सोशल मीडिया पर रील बनाने से ले कर ऐक्टर बनने तक का सपना देखती है. इस को ले कर आप का क्या नजरिया है?
सोशल मीडिया से ऐक्टर नहीं बना जा सकता है. अगर ऐसा होता, तो घरघर में ऐक्टर ही पैदा होने लगेंगे. ऐक्टर बनने के लिए कड़ी मेहनत और ऐक्टिंग की बारीकियां सीखने की जरूरत होती है.
आप अपने फैंस से क्या कहना चाहेंगे?
मेरा यही मानना है कि कभी झूठ न बोलें, कर्जदार न बनें और किसी की शिकायत या चुगली न करें. ये चीजें आप की कामयाबी में मील का पत्थर साबित होती हैं.