Liver को हेल्दी बनाने के लिए अपनी डाइट में शामिल करें ये 7 चीजें

लिवर (Liver)  आपके शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक है. यह पूरे शरीर को डिटाक्स करता है. अगर लीवर स्वस्थ और मजबूत रहता है तो आप भी स्वस्थ रहेंगे. तो आइए जानते हैं उन 7 चीजों के बारे में जो आपके लिवर को मजबूत बनाती हैं.

  1. लहसुन- लहसुन में एलिसिन कंपाउंड होता है जो पूरी बौडी को डिटाक्स करने के लिए जाना जाता है. लहसुन में एंटीऔक्सिडेंट और एंटीबायोटिक गुण भी होते हैं. ये लिवर को साफ और मजबूत बनाता है.

2. चकोतरा- चकोतरा में मौजूद एंटीऔक्सीडेंट इंफ्लेमेशन को कम करते हैं और लिवर कोशिकाओं की रक्षा करने में मदद करते हैं.

3. चुकंदर- चुकंदर  एंटीऔक्सीडेंट, मिनरल्स और विटामिन से भरपूर होता है. ये पित्त को बेहतर बनाता है और विषाक्त पदार्थों को बॉडी से बाहर निकालता है.

4. धनिया, हल्दी, अदरक का मिश्रण- धनिया, हल्दी, अदरक और सिंहपर्णी की जड़ों शक्तिशाली डिटौक्सिफायर माने जाते हैं. ये सारी जड़ी-बूटियां लिवर को मजबूत बनाती हैं.

5. कौफी- कौफी में मौजूद पालीफेनोल्स में एंटीऔक्सिडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो सिरोसिस को बढ़ने से रोकते हैं और लिवर की रक्षा करते हैं.

6. बेरीज- क्रैनबेरी और ब्लूबेरी जैसे बेरीज में एंथोसायनिन होता है जो लिवर को किसी भी तरह के नुकसान से बचाता है. ये एंटीऑक्सीडेंट लिवर के इम्यून सिस्टम को भी सही रखता है.

हेल्थ: 21वीं सदी का बड़ा मुद्दा है बढ़ता बांझपन

चाहे तनाव हो, मोटापा हो, वायु प्रदूषण हो या देर से शादी होना, कुछ भी वजह हो, पिछले तकरीबन 50 सालों में मर्दों के शुक्राणुओं की तादाद में 50 फीसदी तक की कमी पाई गई है. इस में बेऔलाद जोड़ों के लिए स्पर्म डोनेशन का एक नया रास्ता तैयार हुआ है.

‘चाहिए 6 फुट लंबा, गोरा, गुड लुकिंग, अच्छे परिवार से, अच्छा पढ़ालिखा, आईआईटी/एमबीए, विदेशी यूनिवर्सिटी में पढ़ा, सेहतमंद व आकर्षक होना चाहिए…’

आप को यह एक शादी का इश्तिहार लगा होगा, लेकिन यह इस से हट कर स्पर्म डोनर यानी शुक्राणु दान करने वाले की खोज के लिए है. बेऔलाद जोड़े इस सूटेबल स्पर्म के लिए कुछ भी कीमत देने को तैयार रहते हैं.

‘‘अस्पताल में आने वाले तकरीबन  40 फीसदी जोड़ों की स्पर्म डोनर से ऐसी ही मांग होती है, जबकि कुछ की कुछ खास मांगें भी होती हैं जैसे स्पर्म लंबे आदमी का होना चाहिए, क्योंकि वह जोड़ा चाहता है कि उस के बच्चे की लंबाई अमिताभ बच्चन जैसी होनी चाहिए.

‘‘कुछ जोड़े आईआईटी पास का स्पर्म चाहते हैं, क्योंकि वे अपने परिवार में एक आइंस्टाइन चाहते हैं, जबकि नवजात के गुण उस के मातापिता के मिलेजुले रूप से होते हैं, जो बाद में विकसित होते हैं,’’ यह कहना है डाक्टर अमिता शाह का, जो एक नामचीन आईवीएफ विशेषज्ञ हैं और कोलंबिया एशिया अस्पताल में प्रैक्टिस करती हैं.

ज्यादातर लोगों के दिमाग में यह घुसा हुआ है कि स्पर्म दान करना बहुत ही शर्मनाक बात है, लेकिन अब लोग धीरेधीरे इसे स्वीकार कर रहे हैं. बड़े कारोबारी, जो अपनी लक्जरी कार में स्पर्म दान के लिए आते हैं, के अलावा स्कूल व कालेज जाने वाले लड़के भी क्लिनिकों के हस्तमैथुन कमरे में अपनी मर्दानगी आजमाने आते हैं.

इंडियन काउंसिल औफ मैडिकल साइंस के नियमों के तहत स्पर्म दान करने वाले की उम्र 21 साल से 45 साल की उम्र के बीच की होनी चाहिए, इस के बावजूद बहुत से टीनेजर भी स्पर्म दान करते हैं. यहां केवल पैसा ही आकर्षण का केंद्र नहीं है, बल्कि स्कूली लड़के एक क्लिनिक के दान कक्ष में अपना सैक्स का जोश शांत करने के लिए भी जाते हैं, क्योंकि ज्यादातर फर्टिलिटी क्लिनिकों का लुक काफी जबरदस्त होता है.

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नोएडा के मैक्स सैंटर ने तो मौडल क्लाडिया शिफर की मादक तसवीर लगाई हुई है, जिस से स्पर्म दान बढ़े. और भी बहुत से लोकल क्लिनिक हैं, जिन्होंने दान कक्ष को अच्छे से सजाया हुआ है. उदाहरण के तौर पर मयूर विहार, दिल्ली का ठकराल क्लिनिक है, जिस की दीवारों पर खूबसूरत महिलाओं की उत्तेजक तसवीरें लगी हैं और वे अपनी हथेलियों से अपने उभार दबा रही हैं. एक बार दान कक्ष में जाने के बाद आप खुद को नहीं रोक सकते.

ऐसा दान कक्ष छोटा व आरामदायक होता है. एक क्लिनिक के कमरे की दीवार पर लगे शीशे में नीली, गुलाबी बिकिनी पहने, चीनी मिट्टी से बनी मौडल मूर्तियां रखी थीं. इस के चारों तरफ की तसवीरों में भी औरतें नाममात्र के कपड़ों में थीं. कमरे के एक तरफ फोम के गद्दे वाला आरामदायक बिस्तर लगा था.

इस के पास की एक मेज पर एक विदेशी मैगजीन का ताजा अंक रखा हुआ था, बिकिनी विशेषांक था. दान करने वाले को जोश में लाने के लिए टैलीविजन व डीवीडी भी थीं, जिन पर उत्तेजक वीडियो देखी जा सकती थीं.

मैक्स सैंटर के एक मुलाजिम ने बताया कि आमतौर पर एक डोनर कक्ष में 5-15 मिनट का समय लेता है, पर हमेशा ऐसा नहीं होता कि एक परफैक्ट हैल्दी स्पर्म डोनर का वीर्य लिया ही जाए, क्योंकि अच्छी क्वालिटी के मानकों पर खरा उतरने के बाद ही उस के वीर्य को स्वीकार किया जाता है.

अभी हाल ही में एक औनलाइन इश्तिहार में चेन्नई के एक जोड़े ने साफतौर पर एक आईआईटी पास व खूबसूरत नौजवान के स्पर्म की मांग की थी, जिस के लिए वे लोग 50,000 रुपए प्रति मिलीलिटर तक देने को तैयार थे. उन की इस मांग ने इसे बहस का मुद्दा बना दिया है कि क्या सच में स्पर्म से नवजात का व्यवसाय और सामाजिक जिंदगी में जगह तय हो जाती है?

माहिरों का कहना है कि ऐसा बिलकुल नहीं है. ऐसा अनुरोध करना केवल हास्यास्पद है. लेकिन जोड़े ऐसा करते हैं, क्योंकि वे एक बेहतर वंशावली चाहते हैं.

कौंवैंट स्कूल से पढ़े दानदाताओं की सब से ज्यादा मांग है, क्योंकि आम सोच होती है कि दानकर्ता अच्छे समाज से है और वह वीर्य दान केवल पैसा कमाने के लिए नहीं करेगा.

मुंबई के डाक्टर अनीरधा मालपानी का कहना है कि यह केवल एक भरम है कि ऐसे दाताओं को सामान्य से ज्यादा मिलता है. कुछ क्लिनिकों व अस्पतालों का आरोप है कि हमारे 1,500-2,000 रुपए के भुगतान के अलावा भी जोड़े निजी तौर पर भी भुगतान करते हैं. कुछ जोड़े अपनी पेशकश औनलाइन पेश कर देते हैं.

मौलाना आजाद मैडिकल कालेज के छात्र रह चुके बालकृष्ण अय्यर ने बताया, ‘‘मैं ने छात्र जीवन में ही अपने स्पर्म दान किए थे. मैं हमेशा दूसरों की मदद करना चाहता था. मैं ने नागपुर के एक जोड़े को अपने स्पर्म दान किए थे. वे सरकारी महकमे में ऊंचे पद पर थे.

‘‘वे लोगों की नजरों में नहीं आना चाहते थे. मैं ने उन का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. उन्होंने मेरा हवाई यात्रा का खर्चा भी उठाया और शहर के अच्छे थ्रीस्टार होटल का भी सारा खर्चा उठाया, क्योंकि इस सब में मु?ो एक हफ्ता लग गया था.

‘‘मु?ो स्पर्म दान करने के बदले 35,000 रुपए भी मिले थे. आज वह जोड़ा आगरा में 2 बच्चों के साथ रहता है. मु?ो खुशी है कि मेरा स्पर्म किसी के काम आया.’’

इस सामाजिक काम को करने के लिए बालकृष्ण अय्यर जैसे कई लोग हैं, जिन्होंने ऐसा इंटरनैट के जरीए किया है. वैसे तो स्पर्म दाताओं में 56 फीसदी शहरी होते हैं, पर अब गांवदेहात से भी ऐसे लोग आगे बढ़ने लगे हैं.

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लेकिन यह माध्यम कितना सुरक्षित है, इस पर सवालिया निशान लगा है. नकली सीमन एक बड़ा जुआ है, जिस के बारे में जोड़ों को ठीक से जागरूक होना चाहिए. इस के बारे में जोड़ों को जानकारी देने के लिए बहुत से पेशेवर संस्थान भी हैं. वे जोड़ों को सेहतमंद स्पर्म मुहैया कराते हैं व खतरा घटाते हैं.

लेकिन अभी भी 10 फीसदी बेऔलाद जोड़े ऐसे हैं, जो क्लिनिक में आने से शरमाते हैं. वे पारिवारिक डाक्टर के पास जाना पसंद करते हैं, जो प्रक्रिया को सुपरवाइज करता है. इस तरह के केसों में डाक्टरी जांच अधूरी होती है, जिस से डर बना रहता है.

डाक्टर कहते हैं कि यह अच्छी बात नहीं है, क्योंकि ज्यादातर जोड़े पढ़ेलिखे हैं और इस के लिए वे बहुतकुछ देते हैं. पर पिछले दशक से अब तक स्पर्म दाताओं के नजरिए में बहुत से बदलाव आ गए हैं, फिर भी लोगों की सोच में बहुत सी भ्रांतियां हैं.

2 दशक पहले जब हम ने मुंबई में पहला स्पर्म बैंक शुरू किया था, तो हम से पूछा जाता था कि हम सार्वजनिक रूप से इस शब्द का इस्तेमाल कैसे करेंगे. उस समय डोनर पाना भी मुश्किल था, क्योंकि 25 साल पहले मर्दों का कहना था कि वे सड़क पर अपने जैसों को घूमता नहीं देखना चाहते, पर आज हमारे क्लिनिक में रोजाना 8-9 डोनर खुद आते रहते हैं.

भारत की जानीमानी डाक्टर अंजलि मालपानी कहती हैं कि यह अलग बात है कि इन दानदाताओं में से 70 फीसदी को रिजैक्ट कर दिया जाता है, क्योंकि नियम बहुत सख्त हैं. हर हफ्ते क्लिनिक 500 शीशी सेहतमंद स्पर्म इकट्ठा करता है. हमें मुलुंड, नवी मुंबई व पश्चिमी उपनगर से भी काफी तादाद में नौजवान विद्यार्थी मिलते हैं, जो मामूली पैसों पर उपलब्ध हैं, लेकिन हम आईसीएमआर के शुक्रगुजार हैं कि उस ने डोनर के लिए निश्चित उम्र व मानक तय कर दिए हैं.

दिल्ली के डाक्टर अनूप गुप्ता मानते हैं कि हर फर्टिलिटी क्लिनिक में  रोजाना स्पर्म डोनेशन के लिए 10-15 फोन आते हैं.

दक्षिण दिल्ली की थापर डायग्नोस्टिक लैब के डायरैक्टर सुनील थापर कहते हैं कि उन्हें स्कूली बच्चों से लगातार ईमेल रिक्वैस्ट मिलती रहती हैं. वे लिखते हैं कि स्पर्म दान के लिए वे पूरी तरह फिट हैं. पैसे के अलावा सैक्स के जोश के चलते भी वे अपना स्पर्म दान करना चाहते हैं.

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के नियमों के तहत डोनर की उम्र कम से कम 21 साल होनी चाहिए, लेकिन अकसर नियमों का पालन नहीं होता, जबकि नियमों के उल्लंघन पर फर्टिलिटी क्लिनिक का लाइसैंस रद्द होना व संचालकों को जेल भेजा जाना चाहिए.

डाक्टर अंजलि मालपानी का कहना है कि जब हम ने मुंबई में पहला स्पर्म बैंक खोला, तो एक मिलीलिटर वीर्य  में आसानी से 40-60 मिलियन स्पर्म मिल जाते थे, लेकिन अब ये घट कर तकरीबन 45 फीसदी हो गया है.

प्रजनन प्रणाली के भारतीय गाइडलाइंस के सहायक डाक्टर पीएम भार्गव कहते हैं कि स्पर्म (शुक्राणुओं) के घटने को साल 1990 के बीच में पश्चिम में नोटिस किया गया. कुछ भारतीय डाक्टर भी मानते हैं कि भारतीय मर्दों में भी शुक्राणुओं की संख्या लगातार घट रही है.

पश्चिमी अध्ययन बताते हैं कि हर साल शुक्राणुओं की तादाद 2 फीसदी की दर से घट रही है. इस हिसाब से अगले 40-50 सालों में कोई भी मर्द उपजाऊ नहीं रहेगा.

हिंदी फिल्म ‘विकी डोनर’ के कलाकार आयुष्मान खुराना का कहना है कि जब आप स्पर्मदाताओं जैसे गंभीर मुद्दों पर फिल्म बनाते हैं, तो इस विषय की खोज करनी होती है.

यह बहुत ही नोबल काम था. अगर रक्तदान जीवन देता है, तो स्पर्मदान जीवन की आज्ञा देता है. शहरी मर्दों  में शुक्राणुओं की संख्या बहुत कम हो गई है, जिस से स्पर्मदान आज की जरूरत है.

इसी फिल्म में आईवीएफ विशेषज्ञ की भूमिका निभाने वाले अन्नू कपूर का कहना है कि एक आम भारतीय सैक्स के बारे में बात क्यों नहीं करना चाहता? निजी तौर पर मु?ो यह सम?ा नहीं आता कि भारत में लोग सैक्स और हस्तमैथुन को ले कर इतना हल्लागुल्ला क्यों करते हैं? यह एक सामान्य चीज है, जो जीवन देती है. मेरे लिए सैक्स पवित्र है. हम इसी से जनमे हैं.                    द्य

Top 10 Best Health Tips in Hindi: हेल्थ से जुड़ी टॉप 10 खबरें हिंदी में

Top 10 Best Health Tips in Hindi: भागदौड़ भरी जिंदगी में आप अपने हेल्थ का केयर करना भूल जाते है लेकिन उम्र बढ़ने के बाद किसी खतरनाक बीमारी से सामना करना पड़ता है तो आपको अपने हेल्थ की चिंता सताती है. इस आर्टिकल में हम आपको 10 Best Health Tips के बारे में बताएंगे. जिसे आप अपनाकर फिट एंड फाइन रह सकते हैं. तो यहां पढ़िए सरस सलिल की Top 10 Best Health Tips in Hindi.

  1. Piles की बीमारी से इस तरह मिलेगा छुटकारा

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गुदा के अंदर वौल्व की तरह गद्देनुमा कुशन होते हैं, जो मल को बाहर निकालने या रोकने में सहायक होते हैं. जब इन कुशनों में खराबी आ जाती है, तो इन में खून का प्रवाह बढ़ जाता है और ये मोटे व कमजोर हो जाते हैं. फलस्वरूप, शौच के दौरान खून निकलता है या मलद्वार से ये कुशन फूल कर बाहर निकल आते हैं. इस व्याधि को ही बवासीर कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि कब्ज यानी सूखा मल आने के फलस्वरूप मलद्वार पर अधिक जोर पड़ता है तथा पाइल्स फूल कर बाहर आ जाते हैं. बवासीर की संभावना के कई कारण हो सकते हैं.

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2. घर पर कैसे रहें फिट

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कोरोनाकाल में युवाओं की फिटनैस काफी प्रभावित हुई है. जिम बंद हुए तो अधिकतर का शरीर ढीला पड़ता गया. लेकिन अब चिंता की जरूरत नहीं क्योंकि यहां फिटनैस मंत्र जो उपलब्ध है जो आप को बिन जिम के भी फिट रखेगा.

कोरोनाकाल में लोगों को भीड़भाड़ वाली जगहों से दूर रहने की खास हिदायत दी गई है, क्योंकि कोविड-19 का संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में बड़ी तेजी से फैलता है. जिस के प्रसार का माध्यम छींकने, खांसने, पसीने और बातचीत के आम व्यवहार से हो सकता है.   यही कारण है कि समयसमय पर ऐसी जगहों पर सरकार द्वारा कड़े प्रतिबंध लगाने की नौबत आई जहां संक्रमण फैलने का अधिक खतरा बना रहता है और उन स्थानों में से एक ‘जिम’ रहा.

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3. अगर आप भी करते हैं रक्तदान तो जरूर ध्यान रखें इन बातों का

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आज के समय में ब्लड डोनेट (रक्तदान) करके आप दूसरों की मदद तो करते ही हैं साथ ही आपको भी इसके बहुत फायदे होते हैं. कई लोगों को लगता है कि रक्तदान करने के बाद शरीर में कमजोरी आ जाती है, लेकिन ऐसा नहीं है. रक्तदान करने के 21 दिन बाद यह दोबारा बन जाता है. इसलिए रक्तदान करने से पहले घबराए नहीं बल्कि रक्तदान करते समय इन बातों का खास खयाल रखें.

– कोई भी हेल्दी व्यक्ति रक्तदान कर सकता है. बात करें पुरुष की तो वह 3 माह में एक बार रक्तदान कर सकते हैं वहीं महिलाएं 4 माह में एक बार ब्लड डोनेट कर सकती हैं.

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4. जोड़ों के दर्द को न करें अनदेखा

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कुछ तरह के गठिया में जोड़ों का बहुत ज्यादा नुकसान होता है. गठिया यानी जोड़ों की सूजन, जो एक या एक से ज्यादा जोड़ों पर असर डाल सकती है. डाक्टरों की मानें, तो हमारे शरीर में 10 से ज्यादा तरह का गठिया होता है.

गठिया जोड़ों के ऊतकों में जलन और टूटफूट के चलते पैदा होता है. जलन के चलते ही ऊतक लाल, गरम, सूजन और दर्द से भर जाते हैं. गठिया के लक्षण आमतौर पर बुढ़ापे में दिखते हैं, लेकिन आजकल ये लक्षण बच्चों और नौजवानों में भी देखे जा रहे हैं.

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5. इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने के लिए ये हैं 9 खास टिप्स

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शरीर कई तरह की बीमारियों के जीवाणुओं का हमला झेलता रहता है और कई बार इन की चपेट में आ जाता है. इन हमलों को नाकाम तभी किया जा सकता है, जब हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो यानी इम्यून सिस्टम सौलिड होना जरूरी है. इसे मजबूत करना ज्यादा मुश्किल नहीं है. तो आइए, देखते हैं कि किस तरह हम अपने इम्यून सिस्टम को मजबूत बना सकते हैं.

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6. पैनक्रियाटिक रोगों की बड़ी वजहें

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युवा कामकाजी प्रोफैशनल्स में अल्कोहल सेवन, धूम्रपान के बढ़ते चलन और गालस्टोन के कारण पैनक्रियाटिक रोगों के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. पैनक्रियाज से जुड़ी बीमारियों में एक्यूट पैनक्रियाटाइटिस, क्रोनिक पैनक्रियाटाइटिस और पैनक्रियाटिक कैंसर के मामले ज्यादा हैं. लेकिन आधुनिक एंडोस्कोपिक पैनक्रियाटिक प्रक्रियाओं की उपलब्धता और इस बीमारी की बेहतर सम झ व अनुभव रखने वाली विशेष पैनक्रियाटिक केयर टीमों की बदौलत इस से जुड़े गंभीर रोगों पर भी अब आसानी से काबू पाया जा सकता है.

आधुनिक पैनक्रियाटिक उपचार न्यूनतम शल्यक्रिया तकनीक के सिद्धांत पर आधारित है और इसे मरीजों के लिए सुरक्षित व स्वीकार्य इलाज माना जाता है.

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7. अगर आप भी करते हैं तंबाकू का सेवन तो हो जाइए सावधान

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तंबाकू से बनी बीड़ी व सिगरेट में कार्बन मोनोऔक्साइड, थायोसाइनेट, हाइड्रोजन साइनाइड व निकोटिन जैसे खतरनाक तत्त्व पाए जाते हैं, जो न केवल कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को जन्म देते हैं, बल्कि शरीर को भी कई खतरनाक बीमारियों की तरफ धकेलते हैं. जो लोग तंबाकू या तंबाकू से बनी चीजों का सेवन नहीं करते हैं, वे भी तंबाकू का सेवन करने वाले लोगों खासकर बीड़ीसिगरेट पीने वालों की संगत में बैठ कर यह बीमारी मोल ले लेते हैं. इसे अंगरेजी भाषा में ‘पैसिव स्मोकिंग’ कहते हैं.

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8. वजन कम करने के लिए डाइट में नींबू का ऐसे करें इस्तेमाल

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नींबू  आपके हेल्द के लिए काफी फायदेमंद है. अगर आप वजन कम करना चाहते हैं तो इसके लिए भी नींबू बहुत ज्यादा लाभदायक है. यह बौडी में कौलेस्ट्राल के स्तर को भी कम करता है. तो चलिए जानते हैं, आप अपने डाइट में नींबू का कैसे इस्तेमाल करें कि आपका वजन झट से कम हो जाए.

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9. क्या आप पेनकिलर एडिक्टेड हैं तो पढ़ें ये खबर

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आज की भागतीदौड़ती जिंदगी में हमारे पास आराम करने का बिलकुल भी समय नहीं है. ऐसे में भीषण दर्द की वजह से हमें बैठना पड़े तो उस से बड़ी मुसीबत कोई नहीं लगती है. कोई भी दर्द से लड़ने के लिए न तो अपनी एनर्जी लगाना चाहता है और न ही समय. इसलिए पेनकिलर टैबलेट खाना बहुत आसान विकल्प लगता है. बाजार में हर तरह के दर्द जैसे बदनदर्द, सिरदर्द, पेटदर्द आदि के लिए कई तरह के पेनकिलर मौजूद हैं.

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10. क्या पुरुषों को भी होता है मोनोपौज?

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मेनोपोज, यानी एक उम्र के बाद शरीर में होने वाले हार्मोनल चेंज और कुछ शारीरिक क्रियाओं में आने वाली कमी. अधेड़ावस्था की शुरुआत है मेनोपोज. मेनोपोजसे उत्पन्न कुछ शारीरिक समस्याओं की चर्चा अब तक स्त्रियों के सम्बन्ध में ही की जाती रही हैं, लेकिन यह चर्चा बहुत कम होती है कि मेनोपोज की स्थिति और इससे उत्पन्न समस्याओं से पुरुष भी जूझते हैं.

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