15 अगस्त स्पेशल: फौजी के फोल्डर से एक सैनिक की कहानी – भाग 3

‘पर उस ने ऐसा कैसे किया. मैं ने सिर्फ और सिर्फ इसी समारोह के लिए कैमरा लिया था और उस ने सब बेकार कर दिया. अब दोबारा यह समय तो नहीं आएगा. मैं ने सोचा था जब आप लोग मेरे कंधे पर स्टार लगाओगे तो उस फोटो को मैं फ्रेम करवा कर ड्राइंगरूम में सजाऊंगा, मगर इस की गलती से सब बेकार हो गया.’

‘क्या बेकार हुआ बता. जा, तू अभी अपनी वरदी पहन. महिमा, तू पापा को बुला कर ला. हम अभी तेरे कंधे पर स्टार लगाते हुए तेरे साथ फोटो खिंचवा लेते हैं. अभी हम जिंदा ही हैं, मरे नहीं, कि दोबारा फोटो न खींच सकें.’

कितना सही कहा था मां ने. जब तक जीवन है, उम्मीद नहीं मरती. मगर जो चले गए इस जीवन से, उन के मातापिता की उम्मीदों का क्या? वे क्या उम्मीद रखें और किस से रखें? आजकल हर कोई अपनी बयानबाजी में जुट कर रोज ही अखबारों व टैलीविजन पर सुर्खियां बटोरने में लगा है. कोई कहता है किस ने इन्हें फौज जौइन करने को कहा था? तो कोई कुछ और.

किसी को आर्मी जौइन करने को कह कर तो देखो, तब पता चल जाएगा. किसी दूसरे के कहने से तो कोई जा भी नहीं सकता. हम अपने देशप्रेम के जज्बे के चलते मरमिटने के लिए ही वरदी पहनते हैं. भले ही हमारे परिवार की सहमति हो या न हो. वे हमें भेजना नहीं चाहते हों, मगर हमारी जिद से उन्हें झुकना भी पड़ता है और शहीद हो जाने का दर्द भी उन्हें ही झेलना होता है. और ये रातदिन बकवास करने वालों का क्या जाता है. अपनी राजनीति चमकाते रहने के अलावा सीखा ही क्या है? क्या वे मोहित की बहन के न सूखने वाले आंसुओं को समेट उन के भाई या बेटे की जिम्मेदारी निभाने जाएंगे? जब ऐसा कुछ भी कर नहीं सकते तो उन के घावों को कुरेदते क्यों हैं?

एक फोटो पर अचानक नजर पड़ते ही राघव अतीत की यादों से बाहर आ गया. उस की उंगलियां आगे बढ़ने से रूक गईं. महिमा के केक काटने की फोेटो थी. अरे, इसी महीने तो महिमा का जन्मदिन पड़ता है. ओह, वह तो सब भूल ही गया था. यहां नैटवर्क भी बहुत कमजोर है. कभी फोन लगता है, कभी नहीं. चलो, अभी मिला कर देखता हूं, मिल गया तो ऐडवांस में ही बधाईर् दे दूंगा.

फोन एक बार में ही मिल गया. तो राघव का मुंह खिल गया, मानो कोई गड़ा हुआ खजाना हाथ लग गया हो.

‘‘हैलो मां, प्रणाम, कैसी हैं आप?’’

‘‘खुश रहो बेटा,’’ आज कितनो दिनों के बाद आवाज सुनने को मिल रही है.’’

‘‘मां, जल्दी से महिमा को फोन दो… हैप्पी बर्थडे टू यू, हैप्पी बर्थ टू डिअर सिस, हैप्पी बर्थडे टू महिमा, हैप्पी…’’

‘‘बस, कर भाई. आज मेरा जन्मदिन नहीं है और तुम्हें उसी दिन ही फोन करना होगा. मैं आज की कौल को नहीं मानती.’’

‘‘अरे, मेरी बात तो सुनो…’’ फोन कट गया. राघव ने फिर कई बार फोन लगाने की कोशिश की मगर फोन नहीं लगा.

राघव फिर अतीत में खो गया. मेरी आवाज तो मेरे घर वालों ने सुन ही ली. फोन की समस्या के चलते घर वाले मेरा फोन हमेशा लाउडस्पीकर पर लगा कर ही बातचीत करते हैं पर क्या मोहित की बहन उस की आवाज कभी सुन पाएगी? और सोमेश की मां, क्या वे अपने इकलौते बेटे की आवाज सुनने का इंतजार अपनी बेबसी के आंसुओं में डूब कर न करती होंगी?

क्या करूं? कभी सोचता हूं मैं ही कुछ बात कर लूं उन के परिवारों से. मगर फिर सोचता हूं, कहीं उन के घाव मेरी आवाज सुन कर हरे न हो जाएं. इस से अच्छा छुट्टियों में उन के घर ही हो कर आऊंगा. मगर अभी तो सारी छुट्टियां ही कैंसिल हो गई हैं. ओह, छुट्टियों से याद आया कि कल हवलदार लोकेश सिंह का जन्मदिन था और वह कैसे अपने घर वालों को फोन पर मना रहा था.

‘अरे मां, मेरी तरफ से सब को आज ही पार्टी दे दो जन्मदिन की. जब छुट्टियों में घर आऊंगा तो फिर एक बढि़या पार्टी करूंगा. मेरे बच्चों को भी स्कूल के लिए टौफियां, चौकलेट दिला देना. और हां मां, छुटकी जब ससुराल से घर आए तो इस बार उसे एक अंगूठी दिलवा देना. मैं रुपए भेज रहा हूं. हर बार यही कहती है फोन पर कि, भतीजेभतीजी दोनों हो गए पर मुझे क्या मिला. और मां, बापू को शहर ले जा कर जांच करवा देना. बिन्नी कह रही हैं कि बापू की खांसी 2 महीने से बराबर बनी हुई है…’ न जाने कितनी बकबक करे जा रहा था आखिर में एक साथी ने बोल ही दिया, ‘अरे, बस कर. सारी कथा आज ही बांच लेगा क्या?’ एक सम्मिलित ठहाके के साथ सब अपने गमों को छिपा ले गए.

अचानक उसे याद आई कि आज नाइट शिफ्ट है और ड्यूटी का समय हो गया था. वह अतीत के पन्नों से बाहर निकल आया. रात के समय बौर्डर की सभी चौकियों की जानकारी लेना, सब की उपस्थिति देखना जैसे कई कार्य उस की ड्यूटी में शामिल हैं. आज राघव आधा घंटा पहले ही तैयार हो गया था, इसलिए लैपटौप खोल कर बैठा था. उस ने दीवारघड़ी पर नजर डाली और सोचा, बाहर गाड़ी आ गई होगी. उस ने लैपटौप को शटडाउन कर दिया और टेबल पर रखी कैप उठा कर पहन ली. तभी एक तेज धमाके ने पूरी इमारत को हिला कर रख दिया.

धमाका इतना तेज था कि टेबल पर रखा सामान नीचे बिखर गया. राघव तेजी से अपनी पिस्तौल को उठा बाहर को दौड़ पड़ा. बाहर का नजारा बड़ा हृदयविदारक था. उस की गाड़ी धमाके के साथ जल रही थी. ड्राइवर और सहायक धमाके के कारण गाड़ी से उछल कर दूर गिरे पड़े थे. चारों तरफ से सैनिकों ने अपनी पोजीशन संभाल ली. कुछ सैनिक दौड़ कर घायलों को गाड़ी में डाल कर सेना के स्वास्थ्य केंद्र को चले गए. 3 घंटे की अफरातफरी के बाद यह निष्कर्ष निकला कि धमाका पड़ोसी देश की सेना द्वारा किए गए मोर्टार हमले से हुआ है. जिस में

2 सैनिक शहीद हो गए. राघव फिर सोच में डूब गया, कल यही लोकेश अपने घर वालों की आंखों में कईर् सपने दिखा रहा था आज उन्हीं आंखों को सूना कर गया. आज लोकेश शांत हो गया है, कल इस से कहा भी था, ‘अरे, बस कर, सारी कथा आज ही बांच लेगा क्या.’ लेकिन, अब उस की कथा कौन पूरी करेगा?

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