Writer- प्रेक्षा सक्सेना
भारत में समलैंगिकता आज भी हंसीमजाक का हिस्सा मात्र है. कानून बनने के बाद भी लोग समलैंगिकता को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे कई मिथक हैं जिन के चलते समलैंगिक लोगों के लिए वातावरण दमघोंटू बना हुआ है.
पिछले वर्ष फरवरी में एक फिल्म आई थी, ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’. उस में समलैंगिक जोड़े को अपनी शादी के लिए परिवार, समाज और मातापिता से संघर्ष करते हुए दिखाया गया था. वह कहीं न कहीं हमारे समाज की सचाई और समलैंगिकों के प्रति होने वाले व्यवहार के बहुत करीब थी.
अब जबकि समलैंगिकता गैरकानूनी नहीं रही है, ऐसे में समलैंगिक लोग खुल कर सामने आ रहे हैं. पहले अपने रिश्तों को स्वीकारने में ऐसे जोड़ों को जो िझ झक होती थी अब वह कम हुई है. कानून कुछ भी कहे पर समाज में अभी भी ऐसे जोड़ों को स्वीकृति नहीं मिली है. लोग ऐसे जोड़ों को स्वीकारने में संकोच करते हैं क्योंकि उन के मन में इन लोगों को ले कर कई प्रकार की धारणाएं और पूर्वाग्रह हैं.
मिथक- यह वंशानुगत है.
सच- समलैंगिकता वंशानुगत नहीं होती, इस के लिए कई कारक जिम्मेदार हो सकते हैं. कई लोग बचपन से ही अपने मातापिता या भाईबहन पर भावनात्मक रूप से निर्भर रहते हैं, इस के कारण उन की रुचि पुरुष या महिलाओं में हो सकती है और वे समलैंगिकता अपना सकते हैं. जैंडर आइडैंटिटी डिसऔर्डर भी इस की एक वाजिब वजह है. यह एक ऐसी बीमारी है जो समलैंगिकता के लिए जिम्मेदार है.
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इस बारे में कई थ्योरी हैं जिन के आधार पर बात की जाती है. अभी सहीसही कारणों का पता तो नहीं लग पाया है, फिर भी यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि समान सैक्स के लिए शारीरिक आकर्षण अप्राकृतिक तो नहीं है. वैसे भी, स्वभाव से मनुष्य बाइसैक्सुअल होता है. ऐसे में उस की रुचि किसी में भी हो सकती है.
डा. रीना ने बताया कि मेरे पास आने वाले जोड़ों में किसी के घर में कोई समलैंगिक नहीं था. उन के अनुसार, किसी को समलैंगिक बनाया नहीं जा सकता. समलैंगिक होना भी उतना ही स्वाभाविक है जितना एक स्त्री और पुरुष के बीच का रिश्ता.
मिथक- ये लोग असामान्य होते हैं.
सच- मनोचिकित्सकों की मानें तो ये लोग आप की और हमारी तरह ही सामान्य बुद्धि के होते हैं, बस, अंतर है सैक्स की रुचि का. बाकी अगर देखा जाए तो बुद्धि इन की भी सामान्य ही होती है. भावनाओं की बात करें तो ये बहुत अधिक भावुक होते हैं, क्योंकि हर वक्त इन्हें अपने स्वीकार्य को ले कर चिंता बनी रहती है. इन के लिए विरोध की पहली शुरुआत घर से ही हो जाती है क्योंकि मातापिता और परिवार समलैंगिकता को सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़ कर देखते हैं.
हरेक के लिए सामान्य होने की अलग परिभाषा होती है पर समलैंगिकों की बात करें तो इन के रिश्ते में संतानोत्पत्ति सामान्य तरीके से संभव नहीं. इसलिए इस रिश्ते को समाज सामान्य नहीं मानता. वंश को आगे बढ़ाना हमारी सामाजिक सोच का हिस्सा है, जिस की पूर्ति इस से संभव नहीं, पर मनोचिकित्सकों की मानें तो यहां बात सामान्य होने की नहीं बल्कि सैक्स में उन की रुचि की है.
यदि कोई व्यक्ति समान सैक्स के प्रति आकर्षण महसूस करता है तो यह पूरी तरह सामान्य बात है. मुंबई के हीरानंदानी अस्पताल के मनोचिकित्सक डा. हरीश शेट्टी के अनुसार, अपने ही सैक्स के व्यक्ति के साथ रुचि रखना एक सामान्य बात है क्योंकि ऐसे लोगों को विपरीत सैक्स के प्रति कोई आकर्षण नहीं होता.
मनोचिकित्सक कहते हैं कि एक समलैंगिकता स्वाभाविक तौर पर होती है जो खुद की चुनी हुई होती है और एक परिस्थितिजन्य होती है जिस में किसी अनजान भय, जैसे कि मैं विपरीत सैक्स वाले के साथ होने पर उसे संतुष्टि दे सकूंगा/सकूंगी या नहीं. यह छद्म समलैंगिकता है.
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मिथक- इन्हें यौन संक्रमण ज्यादा होता है.
सच- कुछ लोगों का मत है कि सैक्सवर्कर्स, किन्नरों, नशे के इंजैक्शन लेने वाले नशेडि़यों और समलैंगिकों में एड्स व अन्य यौनजनित रोग होने की संभावना अधिक होती है. अभी कुछ समय पहले तक हमारे यहां समलैंगिकता को कानूनी रूप से मान्यता न होने के चलते समलैंगिक कपल घर बसा कर साथ नहीं रह पाते थे.
ऐसे में शारीरिक आवश्यकताओं के कारण एक से अधिक लोगों के साथ संबंध बन जाना इस का मुख्य कारण है. हालांकि, ऐसा नहीं है कि एसटीडी केवल समलैंगिकों को होती है. यह तो हेट्रोसैक्सुअल लोगों में भी होती है. यौन संबंधों में सुरक्षा का खयाल न रखा जाए तो भी ऐसे रोगों का खतरा होता है. इसलिए यह एक मिथक ही है कि समलैंगिकों में सैक्सुअल ट्रांसमिटेड डिसीज ज्यादा होती हैं.
मिथक- शादी इस का हल है
सच- समलैंगिकों से जुड़ा सब से बड़ा मिथक यह है कि इन की शादी करा दी जाए तो सब ठीक हो जाएगा. जबकि, ऐसा बिलकुल भी नहीं है. कई बार मातापिता दबाव डाल कर शादी कर देते हैं, ऐसे में जिस से शादी होती है उस का जीवन तो खराब होता ही है बल्कि दूसरे का जीवन खराब करने का अपराधबोध उन के बच्चे को भी अवसादग्रस्त कर देता है.
सब मिला कर शादी इस का हल नहीं है. यदि आप के बच्चे ने आप को अपनी सैक्सुअल वरीयता के बारे में बता रखा है तो ऐसे में उस पर दबाव डाल कर शादी करने की भूल कभी न करें क्योंकि इस से 2 जीवन खराब होंगे. ऐसी शादियां सिवा असंतुष्टि के कुछ नहीं देतीं क्योंकि ऐसे लोगों में विपरीत सैक्स के प्रति कोई भावना नहीं पनप पाती. ऐसे में वह अपने साथी के साथ रिश्ते बनाने में असमर्थ होता है नतीजतन शादी टूट जाती है.
मिथक- ये वंशवृद्धि में असमर्थ होते हैं.
सच- लोग कहते हैं कि अगर ऐसी शादी होगी तो वंश का क्या होगा, क्योंकि प्राकृतिक तरीके से संतानोत्पत्ति संभव नहीं होगी, पर सच यह है कि यदि बच्चे की इच्छा है तो आजकल आईवीएफ द्वारा यह किया जा सकता है. बच्चा गोद लेना भी एक अच्छा विकल्प है. यदि ऐसा व्यक्ति जो विपरीत सैक्स के प्रति झुकाव महसूस नहीं करता वह अपने साथी के साथ रहता है और अपना जैविक बच्चा चाहता है तो एग डोनेशन या स्पर्म डोनेशन और सरोगेसी इस का अच्छा उपाय है. मनोचिकित्सकों के अनुसार, सैक्स सिर्फ बच्चा पैदा करने का जरिया नहीं है बल्कि यह भावनात्मक लगाव दर्शाने का और अपने साथी का प्यार पाने का तरीका भी है.