शादीशुदा जीवन में कलह व विवाद होना आम है़ ये विवाद मुकदमे की शक्ल में अदालत तभी पहुंचते हैं जब पानी सिर से ऊपर उठने लगता है. ऐसे में तलाक की वजह से पतिपत्नी कई बार ऐसे फसादों व गुनाहों को अंजाम देने की तरफ बढ़ चलते हैं जो दोनों के लिए ठीक नहीं होते. कैसे, जानें इस लेख में.

27 साला चेतन सुभाष सुराले पेशे से सौफ्टवेयर इंजीनियर हैं. पुणे में रहने वाले चेतन की शादी इसी साल मार्च में स्मितल सुराले नाम की लड़की से धूमधाम से हुई थी जो मेकैनिकल इंजीनियर है. चेतन बहुत खुश था क्योंकि 25 साला खूबसूरत और पढ़ीलिखी स्मितल मौडर्न और स्मार्ट भी थी. ऐसी बीवी आजकल के लड़कों की पहली पसंद होती है. एकदूसरे को नजदीक से सम झने और मौजमस्ती के लिए दोनों हनीमून पर नहीं जा पाए थे क्योंकि शादी के तुरंत बाद लौकडाउन लग गया था.

लौकडाउन हटा और जिंदगी पटरी पर आने लगी तो दोनों बीती 18 अक्तूबर को हनीमून मनाने के लिए महाबलेश्वर जा पहुंचे जहां की खूबसूरती और आबोहवा दुनियाभर में मशहूर है. दोनों ने अपने बजट के मुताबिक एक अच्छे होटल में डेरा डाल लिया और जिंदगी के हसीन लमहों को यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, खासतौर से चेतन ने जिस का दिल एक सैकंड भी नईनवेली बीवी से जुदा होने को नहीं करता था. दोनों दिनभर बांहों में बांहें डाले महाबलेश्वर में घूमते थे और रात को होटल के अपने कमरे में आ कर एकदूसरे के आगोश में ऐसे खो जाते थे मानो दुनिया की कोई ताकत अब उन्हें जुदा नहीं कर पाएगी.

अजब प्यार की गजब कहानी

होटल में दोनों की मुलाकात 22 साला कोस्तुभ अनिल गोगाटे नाम के नौजवान से हुई जो अकेला ही महाबलेश्वर आया था. अनिल खुशमिजाज था और यारबाज भी. लिहाजा, उस की पहल पर चेतन 2 दिनों में ही उस का दोस्त बन गया क्योंकि वह भी पुणे का ही था. शाम को दोनों जिगरी दोस्तों की तरह साथ बैठते हमप्याला, हमनिवाला हो गए.

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स्मितल ने इस दोस्ती और नजदीकी पर कोई एतराज नहीं जताया बल्कि दोनों के साथ बैठ कर वह भी इन की महफिल में शरीक होने लगी. इस तरह खाली वक्त और अच्छे से गुजरने लगा.

तीसरे दिन ही अनिल ने बातों ही बातों में चेतन के सामने रोना रोया कि लौकडाउन के चलते उस की नौकरी छूट गई है और अब तो उस के पास मकान का किराया देने को भी पैसे नहीं बचे हैं. ऐसे में अगर वह उस की मदद करे तो बड़ा एहसान होगा. नौकरी मिल जाने के बाद वह उस की पाईपाई चुका देगा. मदद के नाम पर उस ने मांगा यह कि चेतन उसे कुछ दिन अपने घर में रहने की इजाजत दे दे. नरम दिल चेतन पसीज गया और हामी भर दी. महाबलेश्वर से ये लोग वापस पुणे आए, तो अनिल भी उन के घर में रहने लगा.

हफ्ताभर ठीकठाक गुजरा, अनिल इन दोनों से कुछ इस तरह घुलमिल गया जैसे सालों से इन्हें जानता हो और घर का ही सदस्य हो. लेकिन जब उस की हकीकत चेतन को पता चली तो उस के पैरोंतले जमीन खिसक गई और वह बेइंतहा घबरा उठा क्योंकि अनिल उस को तो नहीं, बल्कि स्मितल को न केवल सालों से जानता था बल्कि उस से प्यार भी करता था और दोनों शादी भी करने वाले थे पर जाति अलग होने के चलते उन के घर वाले तैयार नहीं हुए थे जिन के दबाव में आ कर स्मितल ने मजबूरी में चेतन से शादी कर ली थी.

दरअसल, एक दिन चेतन ने अनिल का मोबाइल खोला तो वह यह जान कर सकते में आ गया कि उस के साथ जिंदगी का सब से बड़ा धोखा हुआ है. महाबलेश्वर में अनिल का अचानक या इत्तफाक से मिल जाना पत्नी और उस के प्रेमी की तयशुदा साजिश थी. बात यहीं खत्म हो जाती तो और थी, लेकिन अनिल और स्मितल के मोबाइल पर एकदूसरे से लिपटते हुए फोटो और चैटिंग उस ने पूरी देखी तो उस के रहेसहे होश भी फाख्ता हो गए. इन दोनों ने यह तक तय कर लिया था कि स्मितल मौका देख कर चेतन के अंग की नस काट कर उसे हमेशा के लिए नामर्द बना देगी और इसी नामर्दी की बिना पर वह उस से तलाक ले कर अनिल से शादी कर हमेशा के लिए उस की हो जाएगी.

इतना सबकुछ हो गया और चेतन को भनक भी नहीं लगी. लेकिन सचाई उजागर होते ही उस ने तुरंत पुणे के मालवाड़ी थाने में दोनों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई. वह इतना डरा हुआ था कि रिपोर्ट लिखाने के पहले सीधा अपने घर अहमदाबाद जा कर मांबाप को सारी कहानी बताई थी. अब पुलिस इस अजब प्यार की गजब कहानी की तफ्तीश कर रही है जिस की जड़ में एक कड़वा सच स्मितल का यह सोचना भी है कि अगर वह बिना किसी तगड़ी वजह के तलाक के लिए अदालत जाती तो तलाक मिलने में सालोंसाल लग जाते. लिहाजा, वजह उस ने आशिक के साथ मिल कर पैदा कर ली, लेकिन उस में कामयाब नहीं हो पाई.

यह वाकेआ जिस ने भी सुना, उस ने दांतोंतले उंगली दबा ली कि ऐसा भी होता है. लेकिन इस तरफ किसी का ध्यान नहीं गया कि इस फसाद की जड़ स्मितल की गलती के साथसाथ आसानी से तलाक न मिलने का डर भी था हालांकि इस में कोई शक नहीं कि वह प्यार अनिल से करती थी और इस हद तक करती थी कि उस से शादी की खातिर सीधेसादे और बेगुनाह पति का प्राइवेट पार्ट काटने तक की हिम्मत जुटा बैठी थी. अगर यही हिम्मत वह प्रेमी से शादी करने को दिखा पाती तो आज बजाय कोर्टकचहरी करने के, सुकून से जिंदगी  अनिल के साथ गुजार रही होती.

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और भी हैं फसाद

स्मितल ने तलाक के लिए बजाय अदालत का दरवाजा खटखटाने के एक संगीन गुनाह करने का मन क्यों बना लिया था, इस सवाल का जवाब आईने की तरह साफ है कि देश की अदालतों में तलाक के मुकदमे सालोंसाल घिसटते हैं लेकिन पतिपत्नी को तलाक के बजाय मिलती है तारीख पर तारीख जिस से उन की जिंदगी नरक से भी बदतर हो जाती है. कई तो पेशियां करतेकरते बूढ़े हो जाते हैं. लेकिन अदालत को उन की परेशानियों से कोई वास्ता नहीं रहता कि वे भयंकर तनाव में जी रहे होते हैं. मुकदमे के फैसले तक वे दूसरी शादी भी नहीं कर पाते क्योंकि यह कानूनन जुर्म है.

घर, परिवार और समाज में भी तलाक का मुकदमा लड़ रहे पतिपत्नी को अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता. एक तरह से उन्हें बाहर निकाल दिया जाता है मानो वे अछूत हों. औरतों को ज्यादा दुश्वारियां  झेलनी पड़ती हैं क्योंकि हर किसी की गिद्ध सी निगाह उन की जवानी पर रहती है.

भोपाल की वसंती (बदला नाम) का तलाक का मुकदमा अपने पति से 3 साल से चल रहा है. वह बताती है कि उस की हालत तो कटी पतंग जैसी हो गई है जिसे हर कोई लूटना चाहता है. घरों में  झाड़ूपोंछा कर गुजरबसर कर रही

गैरतमंद वसंती को उस वक्त गहरा धक्का लगा था जब उस के एक पड़ोसी, जिसे उस ने भाई माना हुआ था, ने उस की कलाई पकड़ते बेशर्मों की तरह यह कहा था कि कब तक प्यासी भटकती रहोगी, जब तक मुकदमे का फैसला नहीं हो जाता तब तक हम से प्यास बु झा लो और हमारी भी प्यास बु झा दो.

गरीब वसंती के दिल पर क्या गुजरी होगी, इस का अंदाजा हर कोई नहीं लगा सकता सिवा उन लोगों के जो सालों से तलाक का मुकदमा लड़ते जिंदगी से बेजार होने लगे हैं. ऐसे ही भोपाल के ही  एक नौजवान पत्रकार योगेश तिवारी 12 साल से तलाक के लिए अदालतों के चक्कर काटते 44 साल के हो चुके हैं. अब तो उन की दूसरी शादी कर घर बसाने की ख्वाहिश भी दम तोड़ चुकी है और बूढ़े मांबाप की सेवा करतेकरते वे खुद बूढ़े दिखने लगे हैं. योगेश अपनी इस हालत का जिम्मेदार तलाक कानूनों और अदालतों के ढुलमुल तौरतरीकों को ठहराते हैं, तो उन्हें गलत नहीं कहा जा सकता.

गुनाह की तरफ बढ़ते कदम

पुणे की स्मितल जैसा ही एक मामला लौकडाउन के ही दौरान 20 अगस्त को बहादुरगढ़ से भी सामने आया था जब शहर के सैक्टर 9 में रहने वाले प्रदीप शाह की हत्या उस की पत्नी ने 10 अगस्त को अपने प्रेमी दिल्ली के रहने वाले यशपाल के साथ मिल कर कर दी थी क्योंकि पति उसे तलाक देने को राजी नहीं हो रहा था. बिलाशक, यह खतरनाक गुनाह था. लेकिन अगर कानून में ऐसे कोई इंतजाम होते कि पति या पत्नी, वजह कोई भी हो, तलाक की फरियाद ले कर अदालत जाए और तुरंत तलाक हो जाए तो ऐसे जुर्म होंगे ही नहीं क्योंकि पति व पत्नी दोनों को आजादी और मरजी से जीने का हक मिल जाएगा.

तलाक आसानी से न होने पर पत्नी की हत्या का एक मामला मार्च के तीसरे सप्ताह में बहराइच से उजागर हुआ था. इस मामले में नेपाल से सटे गांव अडगोडवा में हसरीन नाम की औरत की लाश मिली थी. पुलिसिया छानबीन में पता चला था कि हसरीन का पति रियाज 3 साल से सऊदी अरब में रह रहा था. उस की पटरी मायके में रह रही पत्नी से नहीं बैठती थी, जिस के चलते वह उसे तलाक दे कर दूसरी शादी करना चाहता था. पत्नी की हत्या के लिए रियाज ने मुंबई में रहने वाले अपने भाई मेराज को बहराइच भेजा, जिस ने साजिश रच कर हसरीन को मार डाला. लेकिन, पकड़ा गया.

ऐसे हजारों मामले हैं जिन में पति या पत्नी ने तलाक के लिए हत्या जैसा गुनाह किया या फिर एकदूसरे को किसी न किसी तरीके से नुकसान पहुंचाया. अगर तलाक आसानी से मिलता होता तो ये अपराध शायद ही होते. जो हिंसा नहीं कर पाते या नहीं कर सकते वे घटिया और ओछे हथकंडे अपना कर तलाक हासिल करने की कोशिश करते हैं. उन की मंशा भी अपना पक्ष मजबूत करने की होती है जिस से उन्हें लगता है कि अदालत पसीज जाएगी और आसानी से तलाक उन्हें मिल जाएगा.

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आजमगढ़ की एक औरत ने थाने में रिपोर्ट लिखाई थी कि कुछ लोग उसे गंदे मैसेज और वीडियो भेज रहे हैं जिस से वह दिमागीतौर पर परेशान है. छानबीन में पता चला कि उस का पति पुनीत ही यह सब खुद कर रहा था और कुछ दोस्तों से भी करवा रहा था कि जिस से पत्नी परेशान हो कर तलाक के लिए राजी हो जाए. पुनीत ने अपनी पत्नी की नंगी सी तसवीरें उस के फोन नंबर के साथ फेसबुक पर डालते लिखा था कि सेवा के लिए हमेशा मौजूद. इस से कई मनचले पत्नी को फोन कर उस का रेट पूछने लगे थे. यानी, तलाक के लिए पति, पत्नी घटिया से घटिया तरीका आजमाने से नहीं चूकते. पुनीत की मंशा यह थी कि पत्नी बदनाम हो जाएगी तो इस बिना पर उसे जल्द तलाक मिल जाएगा.

मुकदमे से तंग आ कर खुदकुशी भी

यह तो तलाक के लिए हैरानपरेशान पति, पत्नियों का एक पहलू था लेकिन दूसरा भी कम चिंताजनक नहीं जिस में तलाक के मुकदमे के चलते पति, पत्नी में से कोई उम्मीद के साथसाथ खुदकुशी कर जिंदगी भी छोड़ जाते हैं क्योंकि इंसाफ की उन की आस पूरी होती नहीं लगती. वजह, मुकदमे का लंबा खिंचना होता है.

ललितपुर के गांव थवारी के 23 साला नौजवान राजकुमार ने भी यही रास्ता चुना था जिसे वक्त रहते तलाक नहीं मिला तो उस ने परेशान हो कर नरक होती जिंदगी  ही छोड़ दी. 13 फरवरी को राजकुमार ने जहर खा कर खुदकुशी कर ली थी. उस के पिता बसन्ते के मुताबिक, राजकुमार तलाक न मिलने से टैंशन में आ गया था. अदालत में पेशियों पर पेशियां लगती जा रही थीं और अदालत को कोई सरोकार उस के तनाव से नहीं था. राजकुमार का गुनाह इतनाभर था कि उस की अपनी बीवी से पटरी नहीं बैठ रही थी.

ऐसा ही एक चर्चित मामला ग्रेटर नोएडा के सैक्टर डेल्टा 1 में रहने वाले अरुण कुमार का है, जिस की पत्नी शीतल ने सुहागरात के हसीन वक्त में उस के ख्वाब यह कहते चकनाचूर कर दिए थे कि मांबाप ने उस की शादी जबरदस्ती कर दी है जबकि वह 7 साल से मनीष नाम के नौजवान से प्यार करती है और उस के साथ जिंदगी नहीं गुजार सकती. अरुण को सम झ आ गया कि अब कुछ नहीं हो सकता, तो उस ने तलाक की बात कही. लेकिन शीतल और उस के घर वाले तलाक के एवज में 60 लाख रुपए की मांग पर अड़ गए. दोहरी परेशानी से आजिज आ गए बेकुसूर अरुण ने फांसी लगा कर जान दे दी. उसे यह सम झ आ गया था कि तलाक का मुकदमा सालों चलेगा और उसे दहेज मांगने के इलजाम में जेल की हवा भी खानी पड़ेगी.

असली गुनाहगार तो ये हैं

आखिर क्यों पति, पत्नी तलाक के लिए अदालत जाने के बजाय फसाद और गुनाह का शौर्टकट अपनाने लगे हैं, इस सवाल का जवाब बेहद कड़वा है कि पति, पत्नी अदालत की चौखट पर एडि़यां रगड़तेरगड़ते रो देते हैं लेकिन कानून बजाय उन की परेशानी सुल झाने के, हर पेशी पर उन्हें तारीख दे देता है. तलाक के लिए उस की वजह बताना जरूरी होती है जो अगर अदालत के गले न उतरे तो मुकदमा खारिज भी हो जाता है. पति, पत्नी का यह कहना कोई माने नहीं रखता कि आपसी मनमुटाव और खयालात न मिलने के चलते वे एक छत के नीचे सुकून से नहीं रह सकते, इसलिए तलाक की उन की अर्जी मंजूर की जाए.

अदालतों में उलटी गंगा बहती है. पति या पत्नी अपना दुखड़ा और फरियाद  लिए कोर्ट पहुंचते हैं, तो जज कहता है, और सोच लो और फिर अगली तारीख लगा देता है. इस से तलाक चाहने वालों, जो घुटघुट कर जी रहे होते हैं, को लगता है कि कोई ऐसी तगड़ी और वजनदार  वजह बताई जाए जिस से अदालत जल्द तलाक दे दे. इसलिए, अधिकांश मामलों में पति पत्नी के चालचलन पर उंगली उठाता है, उसे कलह करने वाली बताता है तो पत्नी पति पर नामर्दी और मारपीट वगैरह के इलजाम लगाती है. दोनों ही अधिकतर मामलों में  झूठे होते हैं.

अदालतें क्यों पति, पत्नी को साथ रहने को मजबूर करती हैं, जबकि दोनों अच्छी तरह सम झ चुके होते हैं कि अब पति पत्नी की तरह साथ रहना मुमकिन ही नहीं. इस का जवाब न तो कानून बनाने वाली संसद के पास है न इंसाफ करने वाले जजों के और न ही तलाक के मुकदमों की आग में घी डालने वाले वकीलों के पास, जो हर पेशी पर तगड़ी दक्षिणा अपने हैरानपरेशान मुवक्किलों से पंडेपुजारियों की तरह  झटकते रहते हैं.

पहली पेशी पर तलाक चाहने वाला अपनी बात रखता है, तो अदालत कहती है कि पहले फैमिली कोर्ट या परिवार परामर्श केंद्र में जाओ. वहां काउंसलर तुम्हें सम झाएगा कि तलाक के बजाय सम झौता कर लो, इस से तुम्हारी घरगृहस्थी बसी रहेगी. यह सम झाइश बेहद बेकार का टोटका साबित होने लगी है क्योंकि पति या पत्नी तलाक के लिए तभी जाते हैं जब वे दूसरे के साथ रह नहीं पाते. 3 नवंबर को भोपाल की आयशा (बदला नाम) से पेशी के दिन अदालत ने कहा कि पहले ससुराल जा कर करवाचौथ का त्योहार मनाओ, फिर हमें रिपोर्ट दो कि क्या हुआ. आयशा ने शादी के लिए इस शर्त पर ही हामी भरी थी कि वह शादी के बाद अपनी पढ़ाई जारी रखेगी और अपने पांवों पर खड़ी होगी.

लेकिन वादे से मुकरते शादी के बाद पति और ससुराल वालों ने उसे आगे पढ़ने से मना कर दिया. यहीं से कलह शुरू हुई और मामला अदालत तक जा पहुंचा जहां आयशा को इंसाफ के बजाय अदालती नसीहत मिली और वह मजबूर हो कर दोबारा ससुराल चली गई. अब आगे कुछ भी हो, लेकिन यह जरूर साफ हो गया कि एक औरत को अपना कैरियर बनाने और पढ़ने देने से अदालत ने कोई वास्ता नहीं रखा.

औरत ज्यादा घुटती है

आयशा को सम झ आ रहा होगा कि तलाक यों ही नहीं मिल जाता, इसलिए मुमकिन है वह अपने सपनों का गला घोंट कर ससुराल वालों के कहे मुताबिक रहने लगे जो उस की मजबूरी बना दी गई है. अदालत ने देखा जाए तो कोई नई बात नहीं कही है बल्कि वही बात कही है जो धर्म, समाज और संस्कृति के ठेकेदार औरतों से कहते रहते हैं कि औरत का वजूद और जिंदगी पति और उस के घर वालों से ही है. उसे आजादी और अपनी मरजी से जीने का कोई हक नहीं. फिर भले ही पति शराबी, कबाबी, लंपट, जुआरी, लुच्चा, लफंगा और दूसरी औरतों से ताल्लुक रखने वाला क्यों न हो.

अहम बात यह है कि अदालतों के ऐसे ही फरमानों और तलाक की कार्रवाई कठिन होने के चलते पत्नी तो पत्नी, कई बार पति भी अदालत का रुख नहीं करते क्योंकि उन्हें उपदेशों और प्रवचनों की बेअसर खुराक नहीं, बल्कि घुटनभरी शादीशुदा जिंदगी से छुटकारा चाहिए रहता है. जो नहीं मिलता तो कई बार वे गुनाह और फसाद का रास्ता पकड़ने को मजबूर हो जाते हैं या फिर घुटघुट कर ही जीते रहते हैं.

शादीशुदा जिंदगी में कलह या विवाद आम बात है. लेकिन यह बात मुकदमे की शक्ल में अदालत तक तभी पहुंचती है जब पानी सिर से गुजरने लगता है. ऐसे में अदालतों को चाहिए कि वे पति, पत्नी की परेशानी सम झते तुरंत उन के रास्ते अलग कर दें, यानी, तलाक की डिक्री दे दें. इस से होगा यह कि इंसाफ मिलने के साथसाथ तलाक से जुड़े जुर्म भी कम होंगे जो दिनोंदिन बढ़ते जा रहे हैं. वरना जो पुणे की स्मितल ने किया, जो बहराइच के रियाज ने किया वह और तेजी से बढ़ेगा जो समाज या देश या किसी के भी हित में किसी लिहाज से अच्छा नहीं कहा जा सकता. और इस फसाद की इकलौती वजह तलाक मिलने में देरी है, इसलिए शादी की तर्ज पर तलाक भी  झटपट होना चाहिए.

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