‘बड़ेबड़े पहुंच रखने वाले लोग भी अपना बचाव नहीं कर पा रहे हैं. अगर ऐसे आरोप सही न भी हों, फिर भी आरोपी को बहुत तरह के दर्द सहने ही पड़ जाते हैं. लंबे समय तक जेल में रहना पड़ता है. जमानत मुश्किल से मिलती है और जमानत के लिए बड़ी कोर्ट में जाना पड़ता है, जहां वकील की फीस देने में ही आरोपी बरबाद हो जाता है.
‘रेप के मामलों में अगर कोर्ट कोई गलत लगने वाला फैसला सुना दे तो भी जनता उस की खिंचाई करने लगती है. यही नहीं, निचली अदालतों के फैसले पलटने में बड़ी कोर्ट देर नहीं लगाती. वह अब जज के खिलाफ टिप्पणी करने में भी कोई संकोच नहीं करती है. ऐसे कई मामले प्रकाश में आए हैं. नागपुर का मामला सभी ने देखा.’
यह कहना है उत्तर प्रदेश की अपर महाधिवक्ता रह चुकी इलाहाबाद हाईकोर्ट में सीनियर क्रिमिनल एडवोकेट सुनीति सचान का.
नागपुर में पास्को ऐक्ट के तहत मामले की सुनवाई करते हुए वहां की नागपुर हाईकोर्ट की जज ने कहा था कि ‘जब तक स्किन से स्किन का सीधा टच न हो, तब तक यौन उत्पीड़न नहीं माना जाएगा.’’
इस फैसले के आधार पर 39 साल के आरोपी सतीश को 12 साल की लड़की के यौन उत्पीड़न मामले में पास्को के कड़े कानून से बाहर कर दिया गया.
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इस फैसले की हर जगह खिंचाई होने लगी. सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले को अपने संज्ञान में लिया. इस फैसले पर पहले स्टे दे दिया गया. सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर हुई और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला बदला. ऐसे में अब कोर्ट बहुत सचेत हो कर काम करने लगी है.
निर्भया कांड के बाद महिलाओं के खिलाफ अपराध को ले कर कानून में कड़े नियम बनाए गए हैं, जिन में न केवल रेप की परिभाषा बदली गई है, बल्कि सजा को भी दोगुना कर दिया गया है. रेप करने वाला आरोपी अगर नाबालिग है, तब भी उस के लिए किसी भी तरह से बचाव का रास्ता बंद कर दिया गया है. पुलिस से ले कर कोर्ट तक ऐसे मामलों को तेजी से निबटाने लगी है.
उत्तर प्रदेश में महिला अपराधों के बाद सजा पाने वाले अपराधियों की सजा सब से ज्यादा है. प्रदेश में तकरीबन 55 फीसदी ऐसे अपराधी हैं, जिन्हें अब तक सजा मिल चुकी है.
उत्तराखंड और राजस्थान में भी यही हाल है. यहां 50 फीसदी और 45.5 फीसदी महिला अपराधों में सजा मिल चुकी है. रेप और महिलाओं के खिलाफ होने वाले दूसरे मामलों में पुलिस से ले कर कोर्ट तक अब मामले जल्दी निबटाने लगी हैं. ऐसे अपराधों में अब जमानत बहुत मुश्किल से मिल रही है. महिलाओं को कानूनी मदद देने के लिए एक विशेष हैल्पलाइन भी बनाई गई है.
रेप की शिकार महिलाओं को कानूनी मदद भी मिलने लगी है. उन्नाव का कुलदीप सेंगर का मामला हो या हाथरस कांड या स्वामी चिन्मयानंद का मामला हो. आसाराम तक को रेप के आरोप में जेल जाना पड़ा है.
बड़े मामलों के अलावा तमाम छोटे मामले हैं, जहां रेप करना महंगा पड़ा है. कानूनी लड़ाई में जमीनजायदाद बिकने लगी है. मुकदमा दर्ज होने के बाद आरोपी को जेल जाना ही पड़ता है. वहां सालोंसाल अपनी सुनवाई के इंतजार में कट जा रहे हैं. ऐसे में साफ है कि रेप करना महंगा पड़ने लगा है.
बलात्कार के मामलों को ‘सम्मान’ से जोड़ा
फैमिली कोर्ट की सीनियर एडवोकेट मोनिका सिंह कहती हैं, ‘‘निर्भया केस के बाद कानून में कड़ा बदलाव किया गया है. इसे काफी सख्त बनाया गया, है, जिस की वजह से रेप करना महंगा पड़ना लगा है.’’
बलात्कार के मामलों में सजा की अवधि को दोगुना तक बढ़ा कर 20 साल किया गया है. पहले बलात्कार के मामले दर्ज नहीं होते थे, पर अब ज्यादातर मामले दर्ज होने लगे हैं. बलात्कार के मामलों को ‘सम्मान’ से जोड़ कर देखा जाता है. इस के चलते रजामंदी से अंतर्धार्मिक या अंतर्जातीय संबंधों को ‘बलात्कार’ का रूप दे दिया जाता है.
इस के चलते बचाव के लिए हत्या जैसे अपराध बढ़ने लगे हैं. लंबे समय तक मुकदमों की सुनवाई चलती है. किसी मामले में तब तक आरोप मुक्त नहीं किया जाता है, जब तक आरोप तय नहीं किए गए हों. वहीं कुछ मामलों में आरोपियों को तब बरी किया जाता है, जब मुकदमे की सुनवाई पूरी हो जाती है. साल 2020 में बलात्कार के 1,60,642 मामले लंबित थे.
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समाजसेवी सुमन सिंह रावत कहती हैं, ‘‘बलात्कार का अपराध पूरे समाज को हिला चुका है. बलात्कार की शिकार लड़कियां और महिलाएं ही नहीं, बल्कि दुधमुंही बच्चियां तक हो रही हैं. बलात्कार के बाद उन की हत्याएं तक करा दी जा रही हैं.
‘‘ऐसी बहुत सी घटनाएं सामने आ चुकी हैं. कड़े कानून के बाद भी जिस तरह का असर दिखना चाहिए था, वह अभी उतना नहीं दिख रहा है. हालांकि पहले से ज्यादा सुधार हुआ है.’’
साल 2020 में एक स्टडी में पाया गया कि फास्ट ट्रैक कोर्ट हकीकत में तेज हैं, लेकिन वे बहुत ज्यादा मामले नहीं संभाल पाते हैं.
फास्ट ट्रैक कोर्ट अभी भी औसतन 8.5 महीने केस निबटाने में लेते हैं, जो 4 गुना से ज्यादा हैं. ऐसे में फास्ट ट्रैक का फायदा नहीं मिल रहा है. रेप मामलों की सुनवाई बहुत ही कम समय में होनी चाहिए.
रेप में बदल गई ‘सहमति’ की परिभाषा
सीनियर एडवोकेट शिवा पांडेय कहती हैं, ‘‘रेप के अपराध में आईपीसी की धारा 375 और 376 के तहत सजा तय की जाती है. धारा 375 में कहा गया है कि रेप ऐसा अपराध है, जिस में संभोग के साथ स्त्री की सहमति पर प्रश्न होता है. संभोग की परिभाषा भी इस धारा के तहत बताई गई है. किसी समय लिंग का योनि में प्रवेश संभोग माना जाता था, पर आज इस में बदलाव किया गया है.’’
कोई आदमी किसी महिला की योनि, उस के मुंह, मूत्र मार्ग या गुदा में अपना लिंग किसी भी स्तर पर प्रवेश करता है या उस से ऐसा अपने किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है या किसी महिला की योनि, मूत्र मार्ग या गुदा में ऐसी कोई वस्तु या शरीर का कोई भाग जो लिंग न हो किसी भी सीमा तक प्रवेश करता है या उस से ऐसा अपने किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है, वह रेप माना जाता है.
बदले गए कानून में सैक्स की परिभाषा भी बदल गई है. इस में महिलाओं को काफी अधिकार दिए गए हैं. योनि पर मुंह तक लगाने या फिर उंगली तक डालने को रेप माना जाएगा और इस प्रकार का सैक्स करना ही अपराध नहीं है, बल्कि ऐसा सैक्स करवाना भी अपराध है.
अगर लड़की की उम्र 18 साल से कम है, तब पास्को ऐक्ट के तहत मुकदमा चलता है, जो और भी गंभीर माना जाता है.
अगर किसी महिला की मरजी से सैक्स हुआ हो तो भी कानून यह देखता है कि यह मरजी कैसे हासिल की गई थी. यह सहमति डराधमका कर, नशा दे कर, पति होने का विश्वास दिला कर या फिर विकृत मन स्त्री से या फिर सहमति दे पाने में असमर्थ स्त्री से ली गई है, तो ऐसी सहमति से हुए संभोग को रेप ही माना जाता है.
नाबालिग लड़की के संबंध में, जो 18 साल से कम है, उस के साथ भी सैक्स को रेप ही माना गया है, भले ही सैक्स के लिए उस की स्पष्ट सहमति रही हो. सहमति के होने के बाद भी अभियुक्त रेप के दोषी माने जाएंगे.
उत्तर प्रदेश में रेप के मामलों से जुड़ी एक रिपोर्ट से पता चलता है कि रेप के 57 फीसदी मामले ऐसे होते हैं, जिन में किसी पीडि़ता को शादी का झांसा दे कर बलात्कार किया गया हो.
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रेप के 37 फीसदी मामलों में बलात्कार करने वाला पीडि़ता का कोई रिश्तेदार या जानने वाला ही होता है. 6 फीसदी रेप आरोपी ऐसे होते हैं, जिन से कि पीडि़ता अनजान हो.
सख्ती के बाद भी नहीं घट रहे रेप
नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट कहती है कि भारत में साल 2020 में औसतन हर रोज 91 महिलाओं ने बलात्कार की शिकायत दर्ज कराई थी.
साल 2018 में महिलाओं ने तकरीबन 33,356 बलात्कार के मामलों की रिपोर्ट दर्ज की थी. साल 2017 में बलात्कार के 32,559 मामले दर्ज किए गए थे, तो साल 2016 में यह संख्या 38,947 थी.
जेल भेजने के बाद दोषियों को सजा देने की दर सिर्फ 27 फीसदी है. साल 2017 में दोषियों को सजा देने की दर 32 फीसदी थी, वहीं साल 2020 में यह दर 45 फीसदी तक पहुंच चुकी थी.
एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि हत्या, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में पिछले साल के मुकाबले बढ़ोतरी हुई है.
साल 2018 के आंकड़ों के मुताबिक, देश में हर दिन औसतन तकरीबन 80 लोगों की हत्या के मामले दर्ज हुए. इस के साथ ही 289 अपहरण और 91 मामले दुष्कर्म के आए. साल 2002-2017 के बीच भारत में कुल 4,15,786 मामले बलात्कार के दर्ज हुए.
बीते 17 सालों में हर घंटे औसतन 3 महिलाओं के साथ रेप के मामले दर्ज हुए. महिलाओं के खिलाफ हिंसा को कई बार कम गंभीरता से लिया जाता है और पुलिस ऐसे मामलों की जांच में संवेदनशीलता की कमी दिखाती है.