आधुनिकता के मौजूदा दौर में छोटीमोटी दुकान के टिके रहने के लिए बाजार में हो रहे परिवर्तनों के ऊपर सतत निगरानी रखते हुए मौडर्न ट्रैंड को अपनाया जाना जरूरी है. ऐसे में पिता की दुकान से कन्नी काटने या उस का मजाक बनाने की जगह उस में हाथ बंटाना फायदे का सौदा है.

विनय गुप्ता निर्मल डेरी एवं किराना एजेंसी नामक एक किराना स्टोर के मालिक हैं. किराने की यह दुकान उन के पिताजी ने उन्हें आज से 25 वर्षों पहले तब खुलवाई थी जब वे मात्र 21 वर्ष के थे. तब से वे अपनी दुकान को अपने अनुकुल ही चला रहे हैं. वे बताते हैं कि दुकान ही उन की आजीविका का साधन है, इसलिए सुबह 8.30 से ले कर रात्रि 11 बजे तक दुकान पर ही उन का समय बीतता है. कुछ दिनों पूर्व मैं उन की दुकान पर सामान लेने गई तो दुकान में काफी कुछ बदलाव सा अनुभव किया. विनयजी भी पहले की अपेक्षा काफी खुश और संतुष्ट नजर आ रहे थे. पूछने पर पता चला कि उन का बेटा जो कि दिल्ली के किसी कालेज से एमबीए कर रहा था अपनी पढ़ाई पूरी कर के वापस आ गया है और अब उस ने अपनी इच्छानुसार दुकान में काफी बदलाव किए हैं.

विनय हंसते हुए कहते हैं, ‘‘बेटे के आने के बाद से ग्राहकी और दुकान का स्टैंडर्ड बढ़ने के साथसाथ मेरा सुकून भी बढ़ा है.’’ वहीं उन का युवा बेटा अंकित कहता है, ‘‘हां, यह सही है कि पहले मु  झे दुकान पर बैठना बिलकुल भी पसंद नहीं था परंतु अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद मैं ने अनुभव किया कि किसी दूसरी कंपनी में किसी दूसरे के अधीन काम करने की अपेक्षा अपनी ही दुकान में पिताजी के अधीन काम कर के उसे ही एक कंपनी का रूप क्यों न दे दिया जाए. क्यों न अपनी शिक्षा का उपयोग दूसरों की अपेक्षा अपने लिए ही किया जाए. बस, यह खयाल आते ही मैं ने अपने पिताजी की नौकरी जौइन कर ली. मेरे आने से यहां एक ओर मेरे पिता को एक हैंड मिला है वहीं मु  झे अपने पिता को सपोर्ट कर पाने का सुकून.’’

ये भी पढ़ें- Harleen Deol: एक कैच ने बनाया “सुप्रीम गर्ल” 

अपनी बात को जारी रखते हुए अंकित आगे कहते हैं, ‘‘दुकान पर काम प्रारंभ करने से पूर्व हम ने सर्वप्रथम अपने काम के घंटे और तरीकों पर बहुत तरह का विचारविमर्श किया ताकि मु  झे स्पेस भी मिले और पिताजी को आराम भी, साथ ही हमारी दुकान का आउटपुट भी बढ़ कर मिले. मैं खुशनसीब हूं कि पिताजी ने मेरे हर सु  झाव को न केवल ध्यान से सुना बल्कि उन पर अमल करने के लिए पर्याप्त बजट और आजादी भी दी और अब मैं अपने बिजनैस को बढ़ाने के लिए सतत प्रयासरत हूं.’’

अपने बेटे के बारे में बात करते हुए विनय गुप्ता कहते हैं, ‘‘ये आज के युवा हैं. यह सही है कि अनुभव में हम इन से काफी आगे हैं परंतु मौडर्न तकनीक व नईर् पीढ़ी की पसंद से ये लोग हम से बहुत आगे हैं. यदि हम चाहते हैं कि वे हमारे साथ काम करें तो इस के लिए उन्हें उन के तरीके से काम करने की आजादी देनी ही होगी. आखिर जब वे आजाद होंगे तभी तो अपने पंख फैला कर उड़ पाएंगे.’’

अपनी दुकान के बदलावों के बारे में बात करते हुए अंकित कहते हैं, ‘‘अपनी दुकान के आधारभूत ढांचे में बिना कोई बदलाव किए मैं ने उसे कुछ आधुनिक रूप देने का प्रयास किया है. आज हर चीज एक्सपोजर मांगती है तो उस के लिए कुछ रैक्स की व्यवस्था कर के दुकान के सामान को एक्सपोज करने का प्रयास किया ताकि ग्राहक को दुकान में निहित सारा सामान दिख सके क्योंकि ग्राहक कितने भी सामान की लिस्ट बना कर ले आए परंतु दुकान पर सामान देख कर उसे अधिकांश सामान याद आ जाता है. परंतु यह तभी संभव है जब दुकान का सामान उसे दिखाई देगा.’’

इसी प्रकार मिलतीजुलती कहानी कानपुर के एक मिठाई दुकान के संचालक सुनील की है. उन्होंने अपनी युवावस्था में इस दुकान को खोला था. तब से उन की दुकान दूध से बनाए जाने वाले पेड़ों की विशेषता के लिए प्रसिद्ध है. आज कानपुर में उन की दुकान की लगभग 10 ब्रांचें हैं और व्यापार के इस प्रचारप्रसार का पूरा श्रेय वे अपने दोनों बेटों को ही देते हैं.

होटल मैनेजमैंट में स्नातक उन का बेटा कार्तिक कहता है, ‘‘पिताजी के बनाए पेड़ों की दूरदूर तक प्रसिद्धि थी. सच पूछा जाए तो उन की मेहनत का पूरा आउटपुट उन्हें नहीं मिल पा रहा था. हम ने उसे आधुनिक तकनीक के सहारे से चैनलाइज करने का प्रयास किया है. आज न केवल कानपुर बल्कि देश के सभी बड़े शहरों में हमारे पेड़े अपनी खुशबू बिखेर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- Online Harassment से डरें नहीं, मुकाबला करें

‘‘हम ने अपने व्यवसाय को पूरी तरह औनलाइन कर दिया है जिस से कोई भी कहीं से भी हमें और्डर कर सकता है. होटल मैनेजमैंट से स्नातक करने के कारण मैं ने पेड़ों के बेसिक इंग्रीडिएंट्स में कुछ नए प्रयोग कर के उन्हें विभिन्न फ्लेवर्स में बनाने का प्रयास किया है जिस से उन की डिमांड में बेहताशा वृद्धि हुई है.

‘‘आजकल नवीनता, पैकिंग, डैकोरेशन और एक्सपोजर का जमाना है. मैं ने पहले स्वयं को एक ग्राहक महसूस किया कि मैं एक मिठाई की दुकान पर जा कर क्या अपेक्षा करूंगा और फिर अपनी अपेक्षाओं के अनुकूल अपने व्यवसाय में परिवर्तन लाने का प्रयास किया. हां, इस में पापा का योगदान सब से बड़ा है कि उन्होंने हम पर भरोसा किया. हमें दुकानरूपी एक उन्मुक्त आकाश दिया जिस में हम ने अपनी शिक्षारूपी ब्रश के माध्यम से कल्पनाओं के रंग भर कर उसे सजाया है.’’

अपने बेटों के बारे में बात करते हुए सुनीलजी कहते हैं, ‘‘मु  झे मेरे बेटों की शिक्षा का बहुत लाभ हो रहा है. आज न केवल हमारी बिक्री बढ़ी है, बल्कि हमारी साख भी बढ़ी है. मेरा अनुभव और बच्चों की तकनीक दोनों का जब तालमेल हुआ तो परिणाम तो सुखद आना ही था. हां, मैं ने उन्हें उन के मनमुताबिक काम करने की पूरी छूट दी ताकि वे हमारे व्यवसाय को बढ़ाने में अपना भरपूर योगदन दे सकें. आखिर किसी भी प्रकार के बंधन में रह कर कोई कैसे अपने मन का कर सकता है और जब मन का कर नहीं पाएगा तो मन का लगातार काम करना संभव नहीं है.’’

वास्तव में आज की नई पीढ़ी बहुत अधिक सम  झदार, प्रयोगधर्मी और बाजार की डिमांड के अनुकूल कार्य करने वाली है. आवश्यकता है उन के विचार, सु  झाव और तरीकों को भरोसापूर्वक सुनने की और उस के अनुकूल उन्हें बजट व आजादी देने की. परंतु कई बार अभिभावक अपने आगे बच्चों की बात को तवज्जुह नहीं दे पाते.

इंजीनियरिंग से स्नातक 20 वर्षीय नमन कहता है, ‘‘मैं जानता हूं कि किसी भी महानगर में पूरे दिन खपने के बाद मैं जो कमाऊंगा, उस से कहीं अधिक मैं अपने पिता की कपड़े की दुकान से कमाऊंगा. साथ में, अच्छा खानापीना और मातापिता व भाईबहन का साथ भी रहेगा. हां, यह सही है कि परिवार के साथ रहने पर कुछ बंदिशें तो होती हैं परंतु आगामी सुखद भविष्य के लिए वे बंदिशें भी अच्छी हैं. पर मैं पुराने ढर्रे पर चलने की अपेक्षा आज के समय के अनुसार बदलाव अवश्य करना चाहूंगा और इस के लिए अपने अभिभावकों से मेरी इच्छाओं को मानने की अपेक्षा भी रखता हूं.’’

भोपाल के अग्रवाल किराना स्टोर के 24 वर्षीय युवा संचालक रोहन अपने क्षेत्र के प्रसिद्ध किराना स्टोर संचालकों में माने जाते हैं. वे बताते हैं, ‘‘इंजीनियरिंग करने के बाद मैं ने एक प्राइवेट कंपनी में बतौर सौफ्टवेयर इंजीनियर 2 वर्ष नौकरी की. मैं जब भी अवकाश में घर आता तो दुकान पर पापा को विभिन्न कंपनियों के और्डर्स लेने वाले बंदों और ग्राहकों के बीच संघर्ष करते देखता था क्योंकि पापा और्डर्स देते थे तो कस्टमर को इंतजार करना पड़ता. यही नहीं, कई बार देर होने पर वह दूसरी दुकान से सामान ले लेता था जिस का नुकसान हमें ही उठाना होता था.

‘‘अपने अवकाश के दिनों में मैं बैठता तो था पर वहां मेरा मन नहीं लगता था क्योंकि हाथ से बिल बनाना, ग्राहक की

लिस्ट से सामान देना, ढेर सामान से भरी अव्यवस्थित दुकान, छोटीछोटी बातों पर ग्राहकों की  ि झक ि झक जैसी बातें मु  झे बहुत उबाऊ लगती थीं. जब भी मैं पापा से उस में बदलाव की बात करता तो वे आधुनिक तकनीक और चीजों को अपनाने की अपेक्षा मु  झे ही  ि झड़क देते.

ये भी पढ़ें- प्रेम संबंधों को लीलता कोविड

‘‘वे दुकान के ढर्रे को तनिक भी बदलने को तैयार नहीं होते थे. मैं जानता हूं बड़े लोगों को बदलाव करना जल्दी पसंद नहीं आता परंतु हमें अवसर मिलेगा हम तभी तो खुद को प्रूव कर पाएंगे. 2 वर्ष पूर्व स्पाइन में बीमारी के चलते पापा को डाक्टर ने 3 माह का टोटल बैड रैस्ट बताया और परिस्थितियों को देखते हुए मैं ने अपनी नौकरी को छोड़ कर अपने बिजनैस को जौइन कर लिया. बस, इस दौरान मु  झे अपने मनमुताबिक दुकान में परितर्वन करने का सुअवसर मिल गया. इस दौरान मैं ने कंप्यूटराइज्ड बिलिंग सिस्टम को डैवलप किया. शौप के सामान को गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए टोटल पैकेजिंग सिस्टम अपना कर हर वस्तु को और्गेनाइज्ड किया, साथ ही, ग्राहकों की डिमांड को ध्यान में रख कर सामान लाना प्रारंभ किया.

‘‘दरअसल, आजकल मौल कल्चर का युग है, इसलिए हमें अपने सिस्टम को आधुनिक बनाना ही होगा अन्यथा कुछ ही समय में हमारे विकास के रास्ते ही बंद हो जाएगें. जब पिताजी बीमारी के बाद दुकान पर आए तो दुकान का कायापलट देख कर वे दंग रह गए, बोले, ‘यह मेरी ही दुकान है, पहचान ही नहीं पा रहा हूं मैं.’’

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए रोहन कहते हैं, ‘‘इस से पहले मैं ने जब भी पापा से औनलाइन डिलिवरी के लिए ऐप डैवलप करने की बात की तो वे इस में इन्वैस्ट करने के लिए तैयार नहीं थे परंतु अब जब हम ऐप के माध्यम से औनलाइन और्डर्स ले कर होम डिलिवरी करते हैं तो पापा को ही बहुत अच्छा लगता है.’’

किसी भी दुकान को चलाने के लिए मैनपावर, अर्थात दुकान के कर्मचारी, सर्वाधिक आवश्यक तत्त्व है क्योंकि अकेला दुकान मालिक दुकान को संचालित नहीं कर सकता. इस बारे में बात करते हुए हाल ही में अपने पिता के व्यवसाय को जौइन करने वाले प्रणय गुप्ता कहते हैं, ‘‘मेरे आने से पहले कई बार ऐसे अवसर आए जब पापा के विरुद्ध सारे कर्मचारी वेतन या अवकाश बढ़ाने जैसी मांगों को ले कर एकजुट हो जाया करते थे और पापा को उन के समक्ष   झुकना ही पड़ता था. परंतु मेरे आने के बाद वे जानते हैं कि अब पापा के पास एक अतिरिक्त हैंड है जिस के सहारे वे आपातकाल में अकेले भी दुकान को संचालित कर सकते हैं.’’

पहले की अपेक्षा आज परिवार का स्वरूप 3 या 4 तक ही सिमट गया है. चारों ओर मुंहबाए खड़ी बेरोजगारी के इस दौर में अपने ही व्यवसाय को जौइन करना एक बुद्धिमत्तापूर्ण कदम है. इस में एक बेहतर भविष्य की गारंटी तो है ही, साथ ही, भले ही कितने भी कोरोना के स्ट्रेन क्यों न आ जाएं पर यहां रिसैशन का दौर नहीं आ सकता. इस में आप जितनी अधिक मेहनत करेंगे उतना अधिक फल पाएंगे. परंतु आधुनिकता के इस दौर में टिके रहने के लिए बाजार में हो रहे परिवर्तनों के ऊपर सतत निगरानी रखते हुए मौडर्न ट्रैंड को अपनाना भी अत्यंत आवश्यक है. आज के बच्चे अपने पिता के व्यवसाय को अपनाएं, इस के लिए मातापिता को भी कुछ बिंदुओं पर विचार अवश्य करना चाहिए.

 स्पेस देना है जरूरी

अकसर अपना बच्चा होने के कारण हम उसे स्पेस देना भूल जाते हैं. जबकि आवश्यक है कि उसे भी अन्य कर्मचारियों की ही भांति वेतन, अवकाश और सुविधाएं मिलनी चाहिए ताकि वह अपने काम को बो  झ सम  झने की अपेक्षा आनंदित हो कर कार्य करे. दुकान के अन्य कर्मचारियों के सामने उस का अपमान करने से बचें. विवादित विषयों पर चर्चा दुकान की अपेक्षा घर पर करने का प्रयास करें.

 आजादी दें

बच्चे को दुकान में अपने मनमुताबिक बदलाव करने की आजादी दें. हो सकता है कभी वह अपने प्रयास में असफल भी हो जाए परंतु इस के लिए उसे बारबार ताने देने से बचें. दुकान के हितों से जुड़े मुद्दों पर उस से राय अवश्य लें. इस से उसे विभिन्न विषयों की जानकारी तो होगी ही, साथ ही उसे अपने अस्तित्व व जिम्मेदारी की भावना का एहसास भी होगा.

ज्ञान को हवा में न उड़ाएं

अकसर अभिभावक बच्चों की बातों को ‘हमें सब पता है या हमारे बाल धूप में सफेद नहीं हुए हैं,’ कह कर उन की बातों को हवा में उड़ा देते हैं जबकि तकनीक और विज्ञान के इस युग में आज की युवा पीढ़ी अपने मातापिता से बहुत आगे है. आज हर चीज के लिए औनलाइन प्लेटफौर्म मौजूद है जिस से व्यापार का बहुत अधिक विस्तार किया जा सकता है. इसलिए उन के इस ज्ञान को हवा में उड़ाने की अपेक्षा उस से लाभ उठाने का प्रयास करें ताकि अनुभव और तकनीक के संयोजन से व्यापार उत्तरोतर प्रगति के मार्ग पर अग्रसर रहे.

पिता नहीं, दोस्त बनें

यह कहावत हम सब ने सुनी ही है कि बाप का जूता जब बेटे के पैर में आने लगे तो पिता को उस का दोस्त बन जाना चाहिए परंतु कई बार पिता अपने युवा बेटे के सदैव पिता ही बने रहते हैं जिस से अकसर उन में वादविवाद या मनमुटाव की स्थिति आ जाती है. बेटे के दोस्त या पार्टनर बन कर उस की भावनाओं, निर्णयों और बदलावों का सम्मान करने से व्यापार में उत्तरोतर प्रगति होना निश्चित है क्योंकि तभी आप का बेटा खुल कर दुकान में काम कर सकेगा.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...