सौजन्य- मनोहर कहानियां
अब गुजरात की कहानी पढि़ए. देश भर में साडि़यों के लिए मशहूर शहर सूरत में ग्लूकोज, नमक और पानी से लाखों की तादाद में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बना कर देश भर में महंगे दामों पर बेचे गए. मई की पहली तारीख को अहमदाबाद पुलिस की क्राइम ब्रांच ने सूरत के ओलपाड़ इलाके में एक फार्महाउस पर छापा मार कर नकली इंजेक्शन बनाने की फैक्ट्री का भंडाफोड़ किया था.
इस फैक्ट्री से 60 हजार नकली इंजेक्शन की शीशियां, 30 हजार स्टिकर और शीशी सील करने वाली मशीन बरामद कर 7 लोगों कौशल वोरा और पुनीत शाह तथा इन के साथियों को गिरफ्तार किया था.
इस गिरोह का नेटवर्क पूरे देश में था. गिरोह के लोग कोरोना काल में जरूरतमंदों को ये नकली इंजेक्शन ढाई हजार रुपए से ले कर 20 हजार रुपए तक में बेचते थे.
इस से पहले गुजरात की मोरबी पुलिस ने मोरबी कृष्णा चैंबर में ओम एंटिक जोन नामक औफिस में छापा मार कर 2 लोगों राहुल कोटेचा और रविराज लुवाणा को गिरफ्तार किया था. इन से 41 नकली इंजेक्शन और 2 लाख रुपए से ज्यादा नकद रकम बरामद हुई. इन्होंने बताया कि ये नकली इंजेक्शन अहमदाबाद के रहने वाले आसिफ से लाए थे. इस के बाद अहमदाबाद के जुहापुरा से मोहम्मद आसिफ और रमीज कादरी को पकड़ा गया.
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इन से 1170 नकली इंजेक्शन और 17 लाख रुपए से ज्यादा नकदी बरामद हुई. इन लोगों ने पुलिस को बताया कि वे सूरत के रहने वाले कौशल वोरा से ये इंजेक्शन लाए थे. इसी सूचना के आधार पर सूरत के ओलपाड़ में फार्महाउस पर छापा मारा गया, जहां नकली इंजेक्शन बनाने की फैक्ट्री चल रही थी.
नकली इंजेक्शन बनाने की फैक्ट्री का मास्टरमाइंड कौशल वोरा था. पुनीत वोरा उस का पार्टनर था. कौशल से पूछताछ के आधार पर पुलिस ने अडाजण के उस के एजेंट जयदेव सिंह झाला को गिरफ्तार किया. झाला के पास से भी नकली इंजेक्शन बरामद हुए. गोल्ड लोन का काम करने वाला झाला करीब साल भर पहले कौशल के संपर्क में आया था. बाद में दोनों में दोस्ती हो गई.
सूरत का डाक्टर ही निकला जालसाज
सूरत पुलिस ने 3 मई, 2021 को भेस्तान के साईंदीप अस्पताल के एडमिन डा. सैयद अर्सलन, विशाल उगले और सुभाष यादव को गिरफ्तार किया. ये लोग 18 से 20 हजार रुपए में एक रेमडेसिविर इंजेक्शन बेच रहे थे जबकि इंजेक्शन की प्रिंटेड कीमत केवल 1250 रुपए थी.
डा. सैयद कोरोना मरीज की जान बचाने के लिए जरूरी होने की बात कह कर रेमडेसिविर इंजेक्शन खरीदने को मजबूर करता था. इंजेक्शन मंगवा कर भी वह चालाकी करता और मरीज को आधी डोज ही लगाता. यानी एक इंजेक्शन 2 मरीजों को लगाता था. किसीकिसी मरीज को तो वह इंजेक्शन लगाने का दिखावा ही करता था.
डा. सैयद अपने अस्पताल से डिस्चार्ज हो चुके मरीजों के नाम पर सिविल अस्पताल से ये इंजेक्शन मंगवाता था और बाद में विशाल तथा सुभाष की मदद से इन की कालाबाजारी करता था.
कोरोना मरीजों की जान बचाने के लिए जरूरी टौसिलिजुमैब इंजेक्शन के नाम पर भी लोगों ने खूब पैसे कमाए. सूरत पुलिस ने मई के दूसरे सप्ताह में इस इंजेक्शन की कालाबाजारी करने के आरोप में अठवागेट के ट्राईस्टार अस्पताल में काम करने वाली नर्स हेतल रसिक कथीरिया, उस के पिता रसिक कथीरिया और डाटा एंट्री औपरेटर बृजेश मेहता को गिरफ्तार किया. ये लोग 40 हजार रुपए का इंजेक्शन करीब पौने 3 लाख रुपए में बेचते थे.
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इसी तरह अहमदाबाद पुलिस ने अप्रैल महीने के आखिर में एक ऐसे गिरोह को पकड़ा, जो रेमडेसिविर के नाम पर सौ रुपए की कीमत का ट्रेटासाइकल इंजेक्शन नकली स्टिकर लगा कर बेचता था. पुलिस ने इस गिरोह के 7 लोगों हितेश, दिशांत विवेक, नितेश जोशी, शक्ति सिंह, सनप्रीत और राज वोरा को गिरफ्तार किया. ये लोग अहमदाबाद के एक फाइवस्टार होटल हयात में बैठ कर ठगी का यह धंधा कर रहे थे.
इन के पास से ट्रेटासाइकल इंजेक्शन के डब्बे और रायपुर की एक कंपनी के नाम से रेमडेसिविर इंजेक्शन के नकली स्टिकर बरामद हुए. इस गिरोह ने अपने परिचितों और दोस्तों के संपर्क से गुजरात के अहमदाबाद, सूरत, राजकोट, वडोदरा, जामनगर और वापी जैसे बड़े शहरों में हजारों की तादाद में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन 4 से 10 हजार रुपए में बेचे थे.
जयपुर का अस्पताल निकला 2 कदम आगे
अब जयपुर की कहानी. राजस्थान की राजधानी जयपुर में पुलिस ने अप्रैल के दूसरे पखवाड़े में रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी में 6 लोगों को गिरफ्तार किया. इन से पूछताछ के बाद एक निजी अस्पताल के फार्मासिस्ट और एक दवा डिस्ट्रीब्यूटर सहित तीन लोगों को और पकड़ा गया. पता चला कि इन में फार्मासिस्ट शाहरुख कोरोना पौजिटिव होने के बावजूद अस्पताल में काम कर रहा था. जयपुर के 2 निजी अस्पतालों पर भी पुलिस ने काररवाई की.
राजस्थान के सब से बड़े सरकारी कोविड अस्पताल आरयूएचएस जयपुर में हाउसफुल का बोर्ड लगा कर पीछे के रास्ते से मरीजों को बैड बेचे जाने का खुलासा मई की 8 तारीख को हुआ. भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने इस काले सच को उजागर कर 23 हजार रुपए की रिश्वत लेते हुए दलाल नर्सिंग कर्मचारी को गिरफ्तार कर लिया.
नर्सिंग कर्मचारी ने 2 डाक्टरों के जरिए आईसीयू बैड दिलाने के लिए एक महिला मरीज से 2 लाख रुपए मांगे थे. सौदा एक लाख 30 हजार रुपए में तय कर 93 हजार रुपए पहले लिए जा चुके थे. इस बीच, महिला मरीज की मौत हो गई. इस के बाद भी नर्सिंग कर्मचारी यह कह कर पैसे मांग रहा था कि पैसा ऊपर तक जाएगा.
मई के पहले पखवाड़े में ही जयपुर में रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी में, निजी अस्पतालों के 3 नर्सिंग कर्मचारियों को गिरफ्तार किया. प्रशासन ने इस अस्पताल को सील कर दिया.
जयपुर पुलिस ने 11 मार्च को कोरोना मरीजों से धोखाधड़ी करने वाले शातिर लपका लालचंद जैन उर्फ कान्हा को गिरफ्तार किया. वह महंगे होटलों में रुकता ओर मरीजों के परिजनों को बड़े अस्पताल में भरती करवाने, औक्सीजन बैड दिलवाने और अच्छा इलाज करवाने के नाम पर हजारों रुपए ठगता था. वह इतना शातिर था कि मरीजों के परिजनों से ही गाड़ी मंगवा कर उस में घूमता और उन्हीं के पैसों से महंगी शराब मंगा कर पीता था.
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एक मोटे अनुमान के अनुसार, पूरे देश में कोरोना की दूसरी लहर में मरीजों से धोखाधड़ी के मामलों में अप्रैल और मई के महीने में 5 हजार से ज्यादा लोग गिरफ्तार किए गए. सांसों के इन सौदागरों में कोई नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बना कर बेच रहा था तो कोई इन की कालाबाजारी कर रहा था. कोई औक्सीजन सिलेंडर सहित जीवन रक्षक मैडिकल उपकरणों की कालाबाजारी कर रहा था. एंबुलेंस वाले मरीज को लाने ले जाने के अलावा शव ले जाने के नाम पर बीस गुना तक ज्यादा पैसा वसूल रहे थे.
दिल्ली पुलिस ने मई के पहले पखवाड़े तक ऐसे जालसाजों के 214 बैंक अकाउंट सीज करा दिए थे.
इस के अलावा करीब 900 मोबाइल नंबरों को ब्लौक करवाया गया था. जालसाजों ने मरीजों के जीवन से खिलवाड़ करने के साथ कम गुणवत्ता वाली पीपीई किट, सैनेटाइजर, मास्क और ग्लव्स भी बना कर बाजार में खपा दिए.