Hindi Story, लेखक- रंगनाथ द्विवेदी
वह शहर का सब से मशहूर और काफी महंगा प्राइवेट अस्पताल था, जिस की सीढि़यों पर चमचमाते हुए संगमरमर के पत्थर लगे थे.
उसी अस्पताल के अंदर एक औरत मौजूद थी. वह पहनावे से काफी गरीब लग रही थी. वह अपने बीमार बच्चे को ले कर वहां के मुलाजिमों के सामने गिड़गिड़ा रही थी.
वह औरत चाहती थी कि उस अस्पताल का डाक्टर केवल एक बार उस के बच्चे को देख ले, लेकिन उन सभी के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही थी.
वह औरत उन लोगों के इस घटिया बरताव को नजरअंदाज कर के उन से मानो भीख मांग रही थी, ‘‘एक बार डाक्टर साहब को बुला लीजिए. आप सब की मुझ गरीब पर बड़ी मेहरबानी होगी.’’
उस औरत के कई बार ऐसा कहने पर उन में से एक मुलाजिम बोला, ‘‘अभी डाक्टर साहब के आने में समय है.’’
अस्पताल के मुलाजिम उस औरत को किसी तरह उस अस्पताल से टरकाना चाहते थे, क्योंकि वे जान गए थे कि इस औरत के पास अपने बच्चे को दिखाने के लिए एक फूटी कौड़ी तक नहीं है. लेकिन जिस मां का बच्चा बीमार हो, वह उसे बचाने की कोशिश करना कैसे छोड़ सकती?है.
उस औरत ने फिर भी कोशिश और उम्मीद नहीं छोड़ी. लेकिन शायद उस की इस बार की कोशिश से अस्पताल का सारा स्टाफ झुंझला गया और उस औरत को जबरदस्ती अस्पताल के बाहर कुछ इस तरह धकेला कि वह अपने बीमार बच्चे के साथ गिरतेगिरते बची.
इस के बाद वह औरत कुछ देर उस अस्पताल के चमचमाते पत्थर लगी सीढि़यों के एक किनारे अपने बीमार बच्चे को ले कर ऐसे बैठ गई, जैसे वह डाक्टर के आने का इंतजार कर रही हो.
इसी उम्मीद में वह बीचबीच में अपने बीमार बच्चे को देखती और धीरेधीरे थपकती, जैसे वह उसे समझा रही हो कि बस बेटा थोड़ी देर और रुक जा, फिर तू एकदम भलाचंगा हो जाएगा.
तभी उस औरत के कानों में ‘डाक्टर साहब आ गए’ की आवाज सुनाई पड़ी. इतना सुनते ही उस की बुझी आंखों में जैसे अचानक कोई चमक आ गई.
वह झट से उठी और अपने बच्चे को उठाने की कोशिश करने लगी, पर उस के बच्चे के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई. वह औरत घबरा कर बहुत जोर से चीखी और अपने बच्चे को उठातेउठाते एक तरफ लुढ़क गई.
उस अस्पताल का स्टाफ उस औरत की तरफ दौड़ा. उन लोगों में अब डाक्टर भी शामिल था. पर उन सभी ने वहां पहुंचने में बहुत देर कर दी.
डाक्टर ने उस औरत और उस के बच्चे की नब्ज देखते हुए कहा, ‘‘ये दोनों तो मर चुके हैं. इन की डैड बौडी जल्दी से अस्पताल के सामने से हटवाओ,’’ इतना कह कर वह अपने केबिन की तरफ चला गया.