लेखक- कपूर चंद
अधिकांश लोग औरत को अकसर कमजोर समझते हैं, लेकिन उन्हें यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि औरत कमजोर नहीं होती. वह अगर किसी काम को करने की ठान ले तो उस के लिए कुछ भी असंभव या मुश्किल नहीं होता. बल्कि वह उस काम को भी कर सकती है जिस पर पुरुष समाज अपना वर्चस्व समझता है.
जबलपुर के एक छोटे से गांव कुंडम की रहने वाली कल्याणी संध्या मरावी इस का जीताजागता उदाहरण है. वह कटनी रेलवे स्टेशन पर ऐसा काम करती हैं, जिसे देख कर लोग भी हैरान रह जाते हैं. 30 साल की संध्या वहां पर कुली के रूप में काम करती हैं.
संध्या ने यह काम खुशी से नहीं किया बल्कि उन के घर के ऐसे हालात हो गए जिस की वजह से उसे यह करने के लिए मजबूर होना पड़ा. दरअसल 22 अक्तूबर, 2016 को संध्या के पति भोलाराम मरावी की मृत्यु हो गई. वह लंबे समय से बीमार थे. पति की मौत के बाद संध्या पर जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. घर में पति के अलावा कोई भी कमाने वाला नहीं था.
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पति जबलपुर के ही कटनी रेलवे स्टेशन पर कुली थे. उन की कमाई से मां, पत्नी और 3 बच्चों का पेट भरता था. पति की मौत के बाद संध्या की समझ में यह नहीं आ रहा था कि अब परिवार का खर्च कैसे चलेगा. अपनी बूढ़ी सास के अलावा तीनों बच्चों को कैसे पालेगी. यही सोचसोच कर वह परेशान हो रही थीं.
उन्होंने यह तय कर लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह परिवार को भूखों नहीं मरने देगी. काफी सोचनेविचारने के बाद उस ने तय कर लिया वह पति के काम को ही शुरू करेगी. वह कटनी रेलवे स्टेशन के स्टेशन मास्टर के पास पहुंची और उन्हें अपनी समस्या से अवगत कराया.
स्टेशन मास्टर ने संध्या से यही कहा कि वह उस की इतनी मदद कर सकते हैं कि उस के पति का कुली का लाइसैंस उस के नाम ट्रांसफर करा देंगे. तो क्या वह कुली के रूप में यहां काम कर सकती है? संध्या तो पहले ही इस के लिए मन बना कर आई थीं, इसलिए तुरंत हां कर दी और दूसरी बात यह थी कि इस काम को करने के अलावा उन के सामने कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था.
संध्या ने अपने परिवार का बोझ कम करने के लिए यात्रियों का लगेज उठाना शुरू किया तो उस के सामने कई तरह की परेशानियां आईं. उन्हें कुली के काम करने का कोई अनुभव नहीं था फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. स्टेशन पर 45 पुरुष कुलियों के बीच वह अकेली महिला कुली थीं.
शुरुआत में यात्री भी उसे अपना लगेज देने में झिझकते थे. उन्हें इस बात का डर रहता था कि कहीं यह महिला उस का लगेज गिरा कर कोई बड़ा नुकसान न कर दे. क्योंकि अधिकांश पुरुष महिला को असहाय और कमजोर ही समझते हैं. लेकिन संध्या ने जिम्मेदारी के साथ अपने काम को अंजाम देना शुरू किया.
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वह यात्रियों के लगेज को सिर और कंधे पर रख कर जब चलती थीं तो तमाम लोग उसे आश्चर्य से देखते. संध्या ने किसी की भी कोई परवाह नहीं की क्योंकि अपने परिवार के बोझ के आगे उन्हें यात्रियों का वह बोझ हल्का लगता था.
संध्या कुंडम गांव में रहती हैं. वह वहां से 45 किलोमीटर का सफर तय कर के पहले जबलपुर रेलवे स्टेशन पहुंचती हैं और इस के बाद 90 किलोमीटर दूर कटनी पहुंचती हैं. इस तरह रोजाना 270 किलोमीटर का सफर तय करके वह अपने परिवार के लिए रोजीरोटी मुहैया करा रही हैं. वर्ष 2017 से कुली का काम कर रही संध्या का सपना है कि वह अपने तीनों बच्चों को खूब पढ़ालिखा कर कामयाब इंसान बनाए.
रोजाना 270 किलोमीटर का सफर तय करने की वजह से उन का काफी समय बर्वाद हो जाता है, जिस से वह अपने बच्चों को समय नहीं दे पाती हैं. संध्या चाहती हैं कि उन का तबादला उन के घर के समीप यानी जबलपुर कर दिया जाए तो उन की परेशानी कुछ कम हो सकती है.