लेखक– रोहित और शाहनवाज
देश की राजधानी दिल्ली में बीते कुछ दिनों से चल रहे किसान आन्दोलन ने हर किसी का ध्यान अपनी ओर खिंचा है. अपनी जायज मांगों को लेकर किसान दिल्ली की तरफ कुच करने पर मजबूर है. वैसे तो हर समय ही आन्दोलन चल रहा है लेकिन इन किसानों ने जब दिल्ली की सड़कों पर अपना घर बना ही लिया है तो वे किस प्रकार से पूरा दिन आन्दोलन कर रहे हैं? आखिर कैसे कट रही है इन किसानों की दिन और राते?
केंद्र सरकार के द्वारा कृषि कानूनों में बदलाव के कारण देश भर के किसानों में आक्रोश साफ दिखाई दे रहा है. आन्दोलन की मौजूदा स्थिति यह है कि पंजाब और हरियाणा के किसान दिल्ली और हरियाणा के सिंघु बार्डर और टिकरी बार्डर पर संगठित हैं, वहीं उत्तर प्रदेश से आए किसान गाजीपुर बार्डर पर संगठित है.
यह आन्दोलन ऐसा नहीं है कि सुबह सुबह अपने घर से निकले, प्रोटेस्ट साईट पर पहुंचे, तख्तियां और बैनर लेकर दो चार नारे लगाए, पुलिस वालों के साथ धक्का मुक्की की और शाम ढली तो अपने घर को रवाना हो लिए. बल्कि आन्दोलन के लिए इतने दूर-दूर से आए इन किसानों के लिए दिल्ली की यही सड़कें अब उनका घर बन चुकी हैं.
दिल्ली-हरियाणा सिंघु बार्डर पर पंजाब और हरियाणा के किसान अपने जिन ट्रक और ट्रैक्टर से सफर कर वे दिल्ली आए थे, अब वहीं वाहन इन किसानों का घर बन चुके हैं. पुलिस वालों के द्वारा इन किसानों को रोकने के लिए जिन सीमेंट के भारी भरकम बैरीकेड का इस्तेमाल किया गया, वह अब इन किसानों के लिए अपना खाना बनाने के लिए चूल्हा बन चूका है.
ये भी पढ़ें- बढ़ती महंगाई, बिचौलियों की कमाई
ऐसे में किसानों के इस आन्दोलन में लोग चौबीसों घंटे तैनात हैं. यह किसान हर समय तो नारे तो नहीं लगा रहे या फिर पुलिस के साथ मुठभेड़ नहीं हो रही, बल्कि समय के साथ वें अपने प्रोटेस्ट को विराम और अपने शरीर के आराम का भी पूर्णतः ख्याल रख रहे हैं. हमने अलग अलग प्रदर्शन स्थालों पर विजिट कर यह जानने की कोशिश की, कि आन्दोलन के लिए आए ये किसान आखिर किस प्रकार अपने दिन और रातें काट रहे हैं.
हाल ही में बस में सफर करते समय मुझसे आगे बैठे 2 शख्स आपस में दिल्ली में चल रहे किसान आन्दोलन की बात कर रहे थे. एक कहता कि, “आखिर कोई कैसे इतनी बड़ी संख्या में सड़क पर दिन और रात गुजार सकता है?” दूसरा वाला भी सहमती देते हुए कहता है कि “हां यार जिगरा चाहिए हर समय नारे लगाने का.”
वहीं पहला शख्स दूसरे से कहता कि, “अभी वे किसान अपने घर पर होते तो शायद अपने दिनचर्या वाले कामों में व्यस्त होते. अपने दोस्तों से मिलते, नहाते धोते, समय से खाते पीते, अपने बच्चों के साथ खेलते, खेती में व्यस्त हो जाते. सब कुछ नार्मल चलता लेकिन इस प्रोटेस्ट में आने के बाद वें किस तरह से हर चीज का ध्यान रख पा रहे होंगे ? हर समय आन्दोलन को देना कितना मुश्किल होता होगा. नहीं?”
बस में इन दो शख्सों की बातचीत सुन मेरे दिमाग में भी यह ख्याल आया कि जिन लोगों ने अपने जीवन में कभी किसी आन्दोलन का हिस्सा नहीं बने, जिन्होंने कभी कोई प्रोटेस्ट नहीं किया, जिनकी संख्या संभवतः ज्यादा ही होगी, वैसे लोग किसानों के लगातार आन्दोलन को इन्ही नजरों से देखते होंगे जिस प्रकार ये बात और आपस में सवाल जवाब कर रहे थे.
ये भी पढ़ें- सियासत : कांग्रेस में रार, होनी चाहिए आर या पार
प्रोटेस्ट करने आए ये किसान हर समय नारे लगाना या फिर हर समय पुलिस के साथ धक्का मुक्की के मोड पर नहीं रहते. ये बात सही है की इस प्रोटेस्ट में किसानों ने एक मंच ऐसा भी बनाया है जहां पर दिन भर कुछ न कुछ चलता ही रहता है. नारे लगाना, भाषण देना, गीत गाना इत्यादि ज्यादातर समय यह होता ही रहता है. लेकिन क्योंकि प्रोटेस्ट करने आए किसानों की संख्या हजारों में हैं इसीलिए हर समय उस मंच पर लोग बदलते रहते हैं.
और ऐसा नजारा जिन सभी बार्डर पर प्रोटेस्ट हो रहा है, उन सभी में देखा जा सकता है. मंच पर मौजूद होने पर किसान नारे भी लगाते हैं, गाने भी गाते हैं, मीडिया वालों से बातचीत भी करते हैं और भी बहुत कुछ चलता ही रहता है. लेकिन जब वें मंच के आसपास नहीं होते और अपने टेंट में होते हैं तो वें अपने लिए खाना भी बनाते हैं, आराम भी करते हैं, फ़ोन पर अपने परिवार वालों के साथ बातचीत भी करते हैं.
प्रदर्शन के लिए आए किसान पुरे जोर-शोर से अपने साथ 6 महीने तक का राशन बांध कर आए हैं. लेकिन ऐसा नहीं है की हर एक चीज का प्रबंध ये किसान खुद से कर रहे हो. बेशक केंद्र सरकार के द्वारा काले कृषि कानून के लागु होने के बाद किसान सड़कों पर उतरे हो, लेकिन दिल्ली से भी लोग प्रोटेस्ट साईट पर पहुंच कर किसानों की मांगों के समर्थन में उतरे हैं.
गाजीपुर बार्डर हो या फिर टिकरी बार्डर या सिंघु बार्डर हर जगह पर दिल्ली की सिख गुरुद्वारा कमिटी द्वारा लंगर का प्रबंध किया गया है और प्रदर्शनकारियों को कम से खाने पीने की किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ रहा है. इसके अलावा किसानों को रात में सोते वक्त ठण्ड न लगे इसके लिए भी आम लोगों और गुरुद्वारा कमिटी के द्वारा किसानों के लिए कम्बल और चादरों का इंतजाम किया गया है.
ये भी पढ़ें- किसान आत्महत्या कर रहे, मुख्यमंत्री मौन हैं!
कैसे कर रहे हैं किसान अपना टाइम पास?
वैसे तो 24 घंटे काम कोई मशीन या कोई रोबोट भी नहीं कर सकता. कुछ इसी तरह से हर समय किसान भी प्रदर्शन में लीन नहीं हो सकते हैं. गाजीपुर बॉर्डर पर जिस फ्लाईओवर के नीचे किसानों ने प्रोटेस्ट के लिए जगह हासिल की हैं वहां पर हमें किसान कई तरह से आन्दोलन में अपना समय निकालते हुए दिखाई दिए.
हम ने देखा की पुरे प्रदर्शन स्थल पर करीब 7-8 हुक्के दिखाई दिए, और हर हुक्के पर 10-12 लोगों का झुंड बारी बारी से हुक्का खीचने का इंतज़ार कर रहा था. उसी तरह से कुछ लोग जलते कोयले के पास हाथ सकते हुए नजर आए. कुछ अपने हुक्के में जलता हुआ कोयला भरते हुए नजर आए तो कुछ बेफिक्र हो कर यहां वहां घूमते नजर आए.
कुछ लोगों का झुंड हमें ताश खेलता हुआ भी नजर आया तो कुछ ठंड की दोपहर की धूप में सोते हुए नजर आए. कुछ आपस में बात करते हुए दिखाई दिए तो कुछ फोन पर अपने घर परिवार वालों से बात करते दिखाई दिए.
लेकिन ऐसा नहीं है कि उस समय प्रोटेस्ट नहीं हो रहा था. फ्लाईओवर के ऊपर बड़ी संख्या में लोग बैठ कर लोगों का भाषण सुन रहे थे. प्रोटेस्ट में गीत भी गाये जा रहे थे. बड़ी संख्या में उपस्थित पुलिस, फ्लाईओवर के ऊपर तैनात थी. उत्तर प्रदेश की तरफ से दिल्ली आने के लिए आम लोगों की गाड़ियां भी पुल पर खड़ी थी.
कुछ ऐसा ही नजारा टिकरी बार्डर पर भी हमें देखने को मिला. टिकरी बार्डर पर भारी तादाद में जमा थे. 58 साल के गुरविंदर सिंह जी ने वहां पर उपस्थित लोगों के बारे में थोड़ी जानकारी दी. उन्होंने बताया कि, “इस बार्डर पर करीब 30-35 किलोमीटर आगे तक किसानों का हुजूम मौजूद है. और जैसे जैसे समय बढ़ता जा रहा है वैसे वैसे लोगों की संख्या में और अधिक इजाफा बढ़ता ही रहा है.”
टिकरी बार्डर पर इतनी बड़ी संख्या में किसान प्रदर्शन के लिए मौजूद है कि वहां का नजारा देखने को ही बनता है. सड़के किसानों के ट्रैक्टर और ट्रक से भरी हैं. हर कुछ मीटर की दूरी पर किसान कुछ न कुछ बांटते हुए दिख ही जाएंगे. ऐसे में वहां पर लोग अपना ज्यादातर समय हमें या तो घूमते हुए नजर आए या फिर लंगर के लिए काम करते नजर आए.
लोग ज्यादातर समय खाने के लिए तैयारियां करते दिखाई दिए. कोई सब्जियां को छिलते हुए दिखाई दिए, तो कोई उन छिली हुई सब्जियों को काटते हुए. कुछ लोगों का झुंड मिल कर चाय बनाता हुआ दिखाई दिया तो कोई चाय बांटता हुआ.
सिंघु बार्डर पर भी नजारा कुछ अलग नहीं था. कुछ नारे लगाते हुए दिखे तो कुछ घूमते हुए भी दिखे. रात को ढंग से नींद न पूरी होने के कारण लोग अपने ट्रक में और अपने ट्रैक्टर के पीछे सोते हुए दिखे. लोग सड़कों पर ही चटाई बिछा कर सोते हुए भी दिखे.
कुछ कमियों का सामना करने को मजबूर है किसान
इन तीनों बार्डर पर ही किसान किसी न किसी तरह से खुद को व्यस्त रखे हुए है. लेकिन कुछ चीजो की कमी हमें इन तीनों ही जगह पर दिखाई दी. जैसे शौच की व्यवस्था. टिकरी बार्डर और सिंघु बार्डर पर यह समस्या बहुत ज्यादा है. प्रशासन की ओर से प्रदर्शनकारियों के लिए शौच की व्यवस्था एकदम न के बराबर है.
टिकरी बार्डर पर मौजूद गुरविंदर सिंह जी ने हमें बताया की वें पहले दिन से इस प्रदर्शन का हिस्सा बने हुए हैं, लेकिन शौच की कोई किसी तरह की व्यवस्था नहीं हैं. टिकरी बार्डर पर 5 किलोमीटर आगे तक जाने के बाद हमने पाया कि उस 5 किलोमीटर के दायरे में केवल 3 गाड़ी वाले शौचालय हैं. एक गाड़ी में कुल मिला कर 8 शौचालय की व्यवस्था है. यानि की कुल मिला कर 24 शौचालय ही.
इतने हजार लोगों के लिए केवल 24 शौचालय. प्रशासन का बड़ा ही अमानवीय व्यवहार देखने को मिला. इस के साथ ही यदि प्रदर्शनस्थल पर कोई बीमार हो जाए तो उस के एम्बुलेंस की कोई भी व्यवस्था देखने को हमें नहीं मिली.
अभी प्रदर्शन की हालिया स्थिति यह है की सरकार और किसानों की 3 दिसम्बर के दिन बातचीत हुई जिस का कोई परिणाम निकल कर नहीं आया. और सरकार का रवैय्या देख किसानों ने 8 दिसम्बर के दिन भारत बंद का ऐलान किया है, जिस में प्रशासन को उन की मांगों की अनदेखी करने पर दिल्ली के सभी रास्ते बंद करने का भी ऐलान किया है. अब देखना यह है की यह आन्दोलन आने वाले समय में किस तरह से आगे बढ़ता है. अभी तक किसानों के इस रवैय्ये को देख हर किसी को यह समझ लेने की जरुरत है की किसान अपना प्रदर्शन जारी रखेंगे और अपनी मांगों को मनवाए बगैर एक इंच भी अपने कदम खीचने को तैयार नहीं होंगे.