भाजपा नेता देवकीनंदन राठौड़, जो अन्य पिछड़ा वर्ग के तेली तबके से है, इस बात से खफा हो गया था कि राजकुमार वाल्मीकि मरी गाय को घसीट क्यों रहा था? वह अपने सिर पर उठा कर क्यों नहीं ले जा रहा था? सड़क पर घसीटे जाने से गौमाता की बेइज्जती हो गई और जिस की सजा राजकुमार वाल्मिकी को भीड़ के सामने दे दी गई.
कोटा की सांगोद नगरपालिका में मरे जानवरों को उठाने का जिम्मा राजकुमार वाल्मीकि के पास है. वह एक मरी हुई गाय को घसीट कर ले जा रहा था, तभी कुछ नवहिंदुत्ववादी लोगों की नजर उस पर पड़ती है. ये लोग खुद सदियों तक ब्राह्मणों के अत्याचार सहते रहे, पर आज उन से ज्यादा धार्मिक हैं और हिंदुत्व की माता के प्रति एकदम सम्मान उमड़ पड़ता है.
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वे राजकुमार वाल्मीकि को रोक देते हैं और नगरपालिका के चेयरमैन देवकीनंदन राठौड़ को बुलाया जाता है. उस ने जैसे ही मामला देखा तो तो वह राजकुमार को मांबहन की गालियां देते हुए उस पर टूट पड़ा.
थप्पड़ों व रस्सियों से पीटते हुए राजकुमार को सम झाया जाता है कि हम ने हमारी मृत मां को ठिकाने लगाने के लिए तु झे जिम्मा दिया था. उस को कंधों पर उठा कर ले जाना चाहिए.
नगरपालिका चेरयमैन ने ठेका देते हुए शायद अर्थियों, फूलमालाओं की व्यवस्था भी टैंडर में की होगी. अपनी माता के अंतिम संस्कार के लिए महल्ले वालों को भी कंधा देने की बात लिखी होगी, क्योंकि अकेला इनसान तो अर्थी उठा कर नहीं ले जा सकता.
भाजपा नेता देवकीनंदन राठौड़ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा हुआ है. जब वह दलित वाल्मीकि नौजवान की मृत गाय के लिए गालियां देते हुए पिटाई कर रहा था, तब उस के सैकड़ों समर्थक वीडियो बना कर उसे वायरल कर रहे थे और भाजपा नेता को उकसाने का काम कर रहे थे.
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इस घटना की एफआईआर दर्ज हो चुकी है. हर जगह इस काम की निंदा हो रही है. प्रदेश के सफाई वाले, वाल्मीकि समाज और दलित बहुजन संगठन भयंकर गुस्से में हैं. इस घटना के खिलाफ लोग उठ खड़े हुए हैं. चेतावनी दी गई है कि आरोपी के खिलाफ कड़ी कार्यवाही नहीं की गई तो राज्यभर की सफाई व्यवस्था ठप कर दी जाएगी.
आखिर एक मरे हुए जानवर की इज्जत के लिए जिंदा दलित की इज्जत को क्यों बारबार तारतार किया जा रहा है? पुराने समय से ही गांवों में मरे पशु घसीट कर ही फेंक जाते रहे हैं. शहरों में ट्रैक्टरट्रौली में ले जाए जाते हैं, पर सांगोद के इस ठेकेदार को ट्रौली के पैसे नहीं मिलते थे. इस के चलते वह मरी गाय को घसीटते हुए ले जा रहा था.
झज्जर में भी मरे पशु की चमड़ी निकालते समय 5 दलित जिंदा जला दिए गए थे. उन की हत्या पर अफसोस जताने के बजाय विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन नेता गिरिराज किशोर ने कहा था, ‘हमारे लिए मरी हुई गाय जिंदा दलितों से ज्यादा पवित्र है.’
पिछले 20-25 सालों में वाल्मीकि समाज का बहुत हिंदुत्वकरण किया गया है. इन की बस्तियों में खूब शाखाएं लगाई जाती हैं. सेवा भारती के प्रकल्प चलते हैं. वंचित बस्ती भाजपाई गौभक्तों की सब से बड़ी प्रयोगशाला बन जाती है.
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सांगोद जैसी घटनाओं से दलित वाल्मीकियों को अपनी औकात सम झ आ जानी चाहिए कि उन की जगह एक मरे जानवर से भी कमतर है.
जिस तरह का लिंचिंग वाला समाज बनाया गया और दलित चुप रहे कि गाय के नाम पर मुसलिम मारा जा रहा है, हमारा क्या? आज हालात ये हैं कि मुसलिम जिंदा गायों के नाम पर लिंच किए जा रहे हैं और दलित मरी गायों के लिए, पर हर जगह चुप्पी है. मोहन भागवत तो कहते हैं कि इस तरह के कामों को लिंचिंग का नाम दे कर बदनाम किया जा रहा है.
इस घटना पर दलित चिंतक भंवर मेघवंशी का कहना है, ‘‘सांगोद की घटना का सभी जगह विरोध होना चाहिए, एट्रोसिटी ऐक्ट में जो मुकदमा दर्ज हुआ है, उस पर तुरंत कार्यवाही हो. भाजपा नेता देवकीनंदन राठौड़ की तुरंत गिरफ्तारी हो. भाजपा उसे पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित करे और पीडि़त नौजवान को इंसाफ मिले.
‘‘जब तक यह न हो, हमें संवैधानिक तरीके से आंदोलन चलाना होगा. गंदगी करने वाले समाज को सफाई करने वाले समाज का मजबूत जवाब जानना चाहिए. जिन की माता गाय है, उन को ही उसे संभालना चाहिए, हम क्यों उठाएं किसी की मरी हुई मांओं को?’’