आज की हमारी इस रिपोर्ट में डॉ. चरणदास महंत की राजनीतिक दौड़ में बार-बार पिछड़ने की समीक्षा करना चाहेंगे . लाख टके का सवाल यह है कि डॉ. चरणदास महंत छत्तीसगढ़ के मोस्ट सीनियर राजनेता होने के बाद मुख्यमंत्री की दौड़ में पीछे क्यों रह जाते हैं . और भविष्य में क्या वे अर्जुन के मानिदं लक्ष भेदने के अनुसधांन में नहीं लगे हुए हैं . छत्तीसगढ़ की राजनीतिक फिजा को महसूस करें तो आज भूपेश बघेल के पश्चात ताम्रध्वज साहू, टी.एस. सिंहदेव मुख्यमंत्री पद की दौड़ में है मगर डॉ. चरणदास महंत की दौड़ भी जारी है और ऐसा तथ्य बताते हैं कि उन्होंने अपनी स्थिति धीरे-धीरे ही सही मजबूत बनाई है इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण अपनी बेगम श्रीमती ज्योत्सना को सांसद चुनाव में विजयी बनाकर भी है . आज हम इस रिपोर्ट में डॉक्टर चरणदास का भविष्य और राजनीतिक कद को समझने का प्रयास करेंगे .

कौन कछुआ कौन खरगोश

छत्तीसगढ़ की राजनीति की नब्ज को समझने वाले जानते हैं कि डा. चरणदास महंत को छत्तीसगढ़ की राजनीति में नकारना असंभव है .1987 में आप पहली दफे विधायक बने और सीधे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने आपको राज्य कृषि मंत्री बनाया था .तब से अपनी 30 सालों की राजनीतिक यात्रा में डाक्टर चरणदास ने संघर्ष झैला है कभी अर्श पर रहे कभी फर्श पर मगर उन्होंने राजनीति के मैदान में अपनी अमिट छाप छोड़ी और प्रदेश भर में समर्थकों की भीड़ जोड़ी दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बने तो आप जनसंपर्क मंत्री, आबकारी मंत्री और गृह मंत्री भी बने . दिग्विजय सिंह ने ही डॉ चरणदास को संसद की टिकट दी और मध्य प्रदेश की राजनीति से रुखसत कर सांसद बनवाया फिर हारे फिर जीते फिर हारे और यूपीए-2 में केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री बन कर सोनिया और राहुल गांधी के प्रियपात्र बन गए . डॉ . चरणदास अपने मृदु व्यवहार और पारखी नजर के बूते छत्तीसगढ़ में अपनी अलग ही बखत रखते हैं इससे उनके विरोधी भी इंकार नहीं करते .

छत्तीसगढ़ के मोस्ट सीनियर लीडर

डाक्टर चरणदास महंत छत्तीसगढ़ में मोतीलाल वोरा के पश्चात नि:संदेह मोस्ट सीनियर राजनेता है . आप सीधे मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे मगर इसलिए चुक गए क्योंकि भूपेश बघेल और टी.एस.सिंहदेव के नेतृत्व में चुनाव हुए थे डॉक्टर महंत को भी केंद्र ने जिम्मेदारी दी थी वे चुनाव संयोजक थे . जब अजीत जोगी छत्तीसगढ़ कांग्रेस से किनारा कर के चले गए तो डॉक्टर चरणदास महंत का वजन बेहद बढ़ गया . इधर जब वे सांसद चुनाव हार गए और दुर्ग से ताम्रध्वज साहू सांसद बन दिल्ली पहुंचे तो उनकी कद्र बड़ी . मगर चरण दास लगे रहे और निष्ठा से छत्तीसगढ़ के कार्यकर्ताओं को टटोलते रहते क्षेत्र में पहुंच उत्साहवर्धन करते रहते . यही कारण है कि सक्ति विधानसभा से स्वयं भारी मतों से जीत गए वहीं अपनी धर्मपत्नी जो ज्योत्सना महंत को कोरबा लोकसभा से सांसद भेजने में ऐतिहासिक विजय प्राप्त की . यह ऐसा दांव था जो डॉक्टर महंत पर भारी पड़ सकता था अगर श्रीमती चुनाव हार जाती तो डॉक्टर चरणदास राहुल गांधी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहते मगर अपनी सधी हुई राजनीतिक चाल से उन्होंने छत्तीसगढ़ में अपनी पैठ जबरदस्त रूप से बनाई .

ज्योत्सना महंत की जीत का अर्थ

डा चरणदास महंत की बेगम ज्योत्सना महंत के लोकसभा चुनाव में विजयी होने से विपक्ष भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस में उनके विरोधियों के हाथों के तोते उड़ गये . जी हां यह सच है ज्योत्सना महंत अस्वस्थ रहती है राजनीति से कोई मतलब नहीं मगर आपने चुनाव जीत कर दिखा दिया की राजनीति में सिर्फ चेहरा ही सब कुछ नहीं मैनेजमेंट भी कोई चीज होती है .

ज्योत्सना महंत चुनाव में मौन मौन रही अभी भी डा. चरणदास की छाया की तरह उन्हें आगे बढ़ा रहे हैं मगर यह जीत छत्तीसगढ़ की राजनीति में भूचाल लेकर आई है . क्योंकि भूपेश बघेल मुख्यमंत्री रहते टी.एस.सिंहदेव, ताम्रध्वज साहू कैबिनेट मंत्री रहते जो कारनामा नहीं दिखा पाए डा चरणदास ने विधानसभा अध्यक्ष रहते संवैधानिक पद की गरिमा की रक्षा करते हुए कर के दिखा दिया . अब इस खरगोश- कछुआ दौड़ में आगे क्या हो सकता है आप स्वयं अनुमान लगा सकते हैं भूपेश बघेल के नेतृत्व क्षमता पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगा सकता उन्होंने अपना काम बखूबी किया है मगर डॉक्टर चरणदास की पैठ अनेक चेहरो पर शिकन खींच चुकी है यह छत्तीसगढ़ की राजनीति की सच्चाई है .

Edited By – Neelesh Singh Sisodia  

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