आदिवासी अंचल में आर एस एस एक्सप्रेस व्हाया भाजपा छत्तीसगढ़ के जिस सबसे बड़े समुदाय पर कभी कांग्रेस का वर्चस्व हुआ करता था.मगर आजकल वहां ‘कमल’ खिलने लगा है . अनुसूचित जनजाति का प्रदेश की आबादी पर लगभग 31प्रतिशत हिस्सा है और यह बड़ी आबादी अब शनै: शनै: भाजपा की ओर की खिसकती चली गई है. इसकी जानकारी कांग्रेस पार्टी को लगती तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
इस दुसाध्य काम के लिए जो समर्पण, निष्ठा, त्याग और बलिदान की आवश्यकता होनी चाहिए वह कांग्रेस के चिंतन से, दृष्टि से ओझल हो चुका है . यही कारण है कि अगर छत्तीसगढ़ पर दृष्टिपात करें तो पाते हैं बस्तर, सरगुजा, बिलासपुर संभाग जो पूर्णत: आदिवासी बेल्ट के रूप में जाना जाता है यहां से कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो चुका है .
कांग्रेस का खात्मा और भाजपा की प्रतिष्ठापना कोई दो चार वर्षों का खेल नहीं बल्कि लगभग पांच दशको की अथक मेहनत साधना का, श्रम का परिणाम है . यही कारण है कि 17 वी लोकसभा में कांग्रेस को सिर्फ दो लोकसभा सीटे पर ही संतुष्ट होना पड़ा . जिसमें एक कोरबा लोकसभा है, जो आधी अनुसूचित जनजाति वर्ग की जनसंख्या का आधा सामान्य वर्ग की जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है. दूसरा, बस्तर लोकसभा से कांग्रेस के प्रत्याशी दीपको बैजल को विजय मिली. यह आदिवासी वर्ग के रूप में सुरक्षित क्षेत्र है .
आइए, देखें छत्तीसगढ़ में कैसे आर एस एस एक्सप्रेस के माध्यम से कमल फूल खिलता चला गया. और आदिवासी अंचल में आर एस एस की मेहनत के मायने क्या है .
कहानी लगभग 6 दशक पुरानी है…..
अविभाजित मध्यप्रदेश की राजधानी तब नागपुर में हुआ करती थी . बात विदर्भ के जमाने की है तब के उच्च शिक्षित बालासाहेब देशपांडेे एक दफे छत्तीसगढ़ के घुर आदिवासी क्षेत्र जशपुर पहुंचे और यहां उन्होंने आदिवासियों का दमन देखा. उन्होंने बेहद गहराई से अनुभूत किया की छत्तीसगढ़ के जशपुर अंचल के आदिवासी तो तेजी से ईसाई धर्म स्वीकार करते चले जा रहे हैं और यही हालात रहे तो यहां के आदिवासी शिक्षित जरूर हो जाएंगे.क्योंकि जशपुर में मिशनरी बड़ी तेजी से काम कर रही है मगर हिंदुत्व पर संकट के बादल मंडलाने लगेंगे .
विदर्भ प्रांत के यह शख्स कई दिनों तक जशपुर में रहे और अनुसूचित जनजाति के दर्द को निकटता से अनुभूत किया . उन्होंने देखा कि आदिवासी समुदाय का हर कोण से शोषण जारी है. गांव से लेकर शहर तक आदिवासी की लूट का साजिश का कुचक्र अनवरत रूप से जारी है . इसे महसूस करके उन्होंने आदिवासियों के लिए द्रवित भाव से कुछ करने की योजना बनानी प्रारंभ की .
छत्तीसगढ़ के प्रमुख हिंदी दैनिक मितान के संपादक छेदीलाल अग्रवाल बताते हैं बालासाहब देशपांडेे ने कल्याण आश्रम की स्थापना की और आदिवासियों के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया . मगर अकेले चना कैसे भाड़ फोडेगा, सो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से उन्होंने आदिवासियों के शोषण को रोकने मदद मागी, तब उन्हें पांच स्वयंसेवक मिले. जिन्होंने जशपुर में अपना जीवन समर्पित कर अनुसूचित जनजाति को ईसाईयत के आकर्षण से मुक्त करने का बीड़ा उठाया .
आदिवासी समाज के बीच लंबे समय से काम करने वाले प्रमुख दैनिक नवभारत से जुड़े पत्रकार रमेश पासवान के अनुसार ईसाई मिशनरी जब अनुसूचित जनजाति वर्ग के बीच काम करने पहुंची तो यह लोग भूख,अशिक्षा, और बीमारी के त्रिकोण में फंस कर बिलबिला रहे थे. मिशनरी ने इन्हें अपने पैरों पर खड़ा किया . बहुत बाद में संघ ने इस ‘घांव’ को महसूस किया और कल्याण आश्रम, वनवासी आश्रम जैसी 100 से भी अधिक अनुषंगी संस्थाओं को बीहड आदिवासी अंचल में काम करने के लिए तैयार किया. जो आज भी अनवरत रूप से क्षेत्र में काम कर रही है.
औपरेशन घर वापसी से हीरो बने जूदेव
अविभाजित मध्यप्रदेश के समय छत्तीसगढ़ के जशपुर राजघराने के राजकुमार दिलीप सिंह जूदेव ने आर एस एस के प्रभाव में आकर मिशनरियों के खिलाफ शंखनाद किया.लगभग सौ वर्षों से जिस धैर्य के साथ शिक्षा, चिकित्सा की ज्योति जागृत करके मिशनरी आदिवासियों के बीच काम करके उन्हें ईसाई धर्म की ओर आकर्षित कर रही थी उस मिथक को तोड़ने का काम जूदेव ने प्रारंभ किया .
अस्सी के दशक में दिलीप सिंह जूदेव आर एस एस के चेहरे के रूप में चमके और मूछों पर ताव देकर अनुसूचित समुदाय में “ऑपरेशन घर वापसी” के जरिए हिंदू धर्म मे वापिस लाने लगे उन्हें इससे देशव्यापी ख्याती मिली .
छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ विकासखंड के ग्राम सुपकालो में 1992 में दिलीप सिंह जूदेव ने ऑपरेशन घर वापसी का कार्यक्रम रखा था. जिसमें यह लेखक स्वयं उपस्थित हुआ था . इस घर वापसी कार्यक्रम में राजकुमार दिलीप सिंह जूदेव ईसाइयों को आदिवासियों को पुन: हिंदू धर्म में ला रहे थे उन्होंने वापिस आ रहे आदिवासियों का पैर धोकर नरियल, गमछा भेंट कर ससम्मान हिंदू बनाने का काम निरंतर जारी रखा . परिणाम स्वरूप जहाँ मिशनरियों पर लगाम लगी, वही आदिवासी समाज के बीच आर एस एस की घुसपैठ होती चली गई इधर कांग्रेस पार्टी हाशिए पर चली गई उसे पता ही नहीं चला .
“हम हिंदू नहीं” कहते हैं हीरा सिंह मरकाम
यहां यह उल्लेखनीय है कि एक तरफ आर एस एस की अवधारणा है कि हिंदुस्तान में रहने वाला हर गैर मुस्लिम गैर ईसाई हिंदू है वहीं मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के संस्थापक हीरा सिंह मरकाम का स्पष्ट मानना है आदिवासी समुदाय हिंदू नहीं है . इस लेखक से अपने बिलासपुर स्थित आवास पर बातचीत के दरमियान उन्होंने कहा- आदिवासी हिंदू नहीं है, हम बूढा- देव की पूजा करते हैं.हम प्रकृति के उपासक हैं. और अपना पूर्वज रावण को मानते हैं . आपका दृढ़ विश्वास है कि आदिवासी संस्कृति हिंदुत्व से एकदम अलग है. गोंडवाना लैंड की अपनी एक अहम भूमिका है. अपनी गोंडी भाषा है, लिपि है.नागपुर में अपनी प्रेस है, अपनी एक घड़ी है जो समय बताती है और एक बड़ा आदिवासी समुदाय उस घड़ी के हिसाब से सब कुछ तय करता है.
हीरा सिंह मरकाम की विचारधारा बिल्कुल अलग है और अपनी विरोधाभासी बातें कहने में कभी गुरेज नहीं करते . आप गोंडवाना संस्कृति के पुरजोर समर्थक हैं. और मानते हैं जब तलक कांग्रेस और भाजपा दोनों शोषक पार्टियों को हटा कर आदिवासी समाज गोंडवाना राज्य की स्थापना, सत्ता की स्थापना नहीं करेगा उनका शोषण बदस्तूर जारी रहेगा . इस तरह आदिवासी समाज में अलग-अलग मान्यताएं हैं. भाजपा के अनुसूचित मोर्चा के नेता श्याम लाल मरावी का कहना है आदिवासियों को हिंदुत्व के बगैर ठौर नही है . यह राष्ट्र हिंदुत्व से ओतप्रोत रहा है और आगामी समय में भी यहां हिंदूवादी संस्कृति का बोलबाला रहना है. ऐसे में हीरा सिंह मरकाम जैसे सोच के नकारात्मक शख्सियतें इस आंधी तूफान में कहां उड जाएंगी कौन जानता है .
छत्तीसगढ़ में इस तरह एक महासंघर्ष जारी है . आज भी आदिवासी अंचल में ईसाई मिशनरी अपना काम निष्ठा पूर्वक कर रही है . आदिवासियों में शिक्षा, चिकित्सा की ज्योति प्रसारित कर रही है दूसरी तरफ आर एस एस का अपना जीव॔त अभियान जारी है .
आदिवासी समाज में शिक्षा और जागृति का अभियान यहां भी सतत चालू आहे . हां, कांग्रेस पार्टी शुतुर मुर्ग की भांती रेत के में ढुये मे सर छिपा कर सोचे, यह मानने में क्या हर्ज है की देश हमारा है, आजादी हमने दिलाई है सभी जाति समुदाय का वोट हमारे हैं.इसी प्रकल्पना में कांग्रेस शनै शनै ही सही सिकुड़ती जा रही है .