किसी के बस में नहीं कि मासूम बच्चों को काल के गाल में जाने से रोक ले. एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी चमकी बुखार से मरने वाले बच्चों की संख्या 113 हो गयी है, वहीं अस्पतालों में भर्ती होने वाले बच्चों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है. खबर लिखे जाने तक 414 बच्चे अस्पतालों में भर्ती हैं.

बिहार में हर साल यह आपदा आती है. सैकड़ों बच्चे मौत के मुंह में समा जाते हैं. हर साल हो-हल्ला मचता है और हर साल मौतों पर सियासत होती है, लेकिन इस आपदा से निपटने के इंतजाम कभी नहीं होते हैं. ‘स्वस्थ भारत - स्वच्छ भारत’ के ढोल-नगाड़े बजाने वाले भी अच्छी तरह जानते हैं कि पूरे देश में स्वास्थ्य सेवाएं बद से बदतर हालत में हैं. उत्तर प्रदेश और बिहार की खस्ताहाली तो बयान करने लायक ही नहीं है, मगर इस दुर्दशा से उबरने की कोई राजनीतिक इच्छा दिखती नहीं है. न राज्य स्तर पर और न ही केन्द्रीय स्तर पर. बिहार का स्वास्थ्य विभाग तो खुद आईसीयू में है, आखिरी सांसें ले रहा है, वह क्या मरते हुए बच्चों को जीवनदान देगा? यहां अस्पतालों में न डॉक्टर्स हैं, न दवाएं, न इंजेक्शन, न मरीजों के लिए पर्याप्त बेड.

वर्ष 2012 में इसी मुजफ्फरपुर में एनसिफलाइटिस के चलते 120 बच्चों ने अपनी जानें गंवायी थीं. वर्ष 2013 में 39 बच्चे मर गये. 2014 में यहां 90 बच्चे खत्म हो गये. 2015 में 11 और 2016 में 4 बच्चे मारे गये. वर्ष 2017 में 11 बच्चे इनसिफलाइटिस से मरे तो 2018 में 7 बच्चों की जानें गयी. मगर इस बार तो आंकड़ा बेहद डरावना है. यह सिर्फ मुजफ्फरपुर के आंकड़े हैं. अन्य जिलों में भी मौतों का आंकड़ा भयावह है. वैशाली, मोतीहारी, गया, चम्पारण और बेगूसराय में भी लगातार मौतें हुई हैं. इस वक्त भी यह जिले इस बीमारी की चपेट में हैं.

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