यूरोप के अंधकार युग के समय वहां की ज्यादातर जवान लड़कियों को डायन करार दे कर जला कर मार डालने की वारदातों का जिक्र आज भी इतिहास के पन्नों में पढ़ने को मिलता है. उस समय इस के खिलाफ आवाज उठाने वालों को डायन कह देना धर्म के नेताओं के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी.

जरमनी, इटली और फ्रांस के साथसाथ इंगलैंड जैसे देशों में सैकड़ों बेकुसूर लोगों खासकर औरतों और कम उम्र की लड़कियों को डायन बता कर उन पर जोरजुल्म किया जाता था और आखिर में उन्हें आग के हवाले कर दिया जाता था.

जिन लड़कियों पर जोरजुल्म किया जाता था, उन्हीं में से एक थी जोवन आव मार्क, जो हमलावर अंगरेजों के हाथों फ्रांस को बचाने के मकसद को ले कर जंग में कूद पड़ी थी और 5 सालों के अंदर कट्टर मुक्तिवाहिनी बनाने वाली जोवन आव मार्क को अंगरेजी हुकूमत की सेनाओं द्वारा डायन बता कर जला कर मार दिया गया था.

आज हम सभी 21वीं सदी में हैं और आज के वैज्ञानिक युग में भारत के पूर्वोत्तर राज्यों खासकर असम में एक के बाद एक डायन बता कर हत्या कर देने की दिल दहला देने वाली वारदातें रुकने का नाम नहीं ले रही हैं.

डायन क्या है

डायन एक तरह का अंधविश्वास है. अलौकिक शक्तियों के सहारे किसी का बुरा करने वाले मर्द और औरतें, जो भविष्य की बातें करते हैं, अपना रूप बदल सकते हैं और जिस तरह का काम हो, उस का वे समाधान करने का दावा करते हैं.

इस तरह के लोग कई समुदायों से देखने और सुनने को मिलते हैं. इन्हें ही डायन कहा जाता है.

हमारे देश में डायन का अंधविश्वास कितना पुराना है, यह कहना मुश्किल है, लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों में भूतप्रेत और डायन जैसी कुप्रथा वहां के लोगों की ही देन है.

कुछ पंडितों का भी यही कहना है. माधव कंदलि की ‘रामायण’ में भी डायन शब्द का जिक्र है. राजा दशरथ की मौत के बाद रामसीता को वनवास मिलने की कुसूरवार भरत ने अपनी मां कैकेयी को ही ठहराया था.

डायन प्रथा आज सभी समाज में है. बोडो समुदाय   में थानथीन मंत्र शब्द प्रचलित है और खासकर असम के ग्वालपाड़ा जिले में राभा और बोडोकछारी संप्रदायों में यह कुप्रथा भरी पड़ी है.

थानथीन मंत्र को ज्यादातर औरतें सीखती हैं. वे विश्वास करती हैं कि इस मंत्र को पढ़ कर इनसान को मारा जा सकता है.

मिजोरम में मिजो संप्रदाय में खहरिंग को डायन कहा जाता है. ऐसी औरतों को मिजो संप्रदाय के लोग समाज से बाहर कर के उस की हत्या तक कर देते हैं.

मीसिंग समुदाय में यह कुप्रथा कूटकूट कर भरी पड़ी है. यह संप्रदाय मरनो यानी डायन पर पूरा विश्वास करता है. दूरदराज के गांवों में अमंगल और जब कोई अनहोनी घटना घटती है या बीमारियों से किसी की मौत होती है तो कहा जाता है कि डायन ने यह सब किया है.

इस मीसिंग समुदाय में अगर किसी पर शक हुआ तो उसे पकड़ कर रस्सियों से बांधा जाता है और काट कर उसे नदी में बहा दिया जाता है.

ऐसा भी देखने को मिलता है कि प्राचीन समाज में प्रचलित यह कुप्रथा और अंधविश्वास आज भी बहुत से संप्रदायों में देखने को मिल जाता है.

असम के असमिया समाज में मुखालगा यानी नजर लगना कहा जाता है. किसी शख्स का बीमार होना, फल लगने वाले पेड़ पर फल नहीं लगना, पेड़ के पत्ते का सूख जाना या समय से फल हो कर जमीन पर गिर आना वगैरह जैसी घटनाओं को नजर लगना कहा जाता है.

बताया जाता  है कि ऐसे मामलों में कोई कुसूरवार होता है तो उस के सामने जाने से लोग कतराते हैं. यहां तक कि छोटे बच्चों को नजर न लगे, इस के लिए काले टीके लगाए जाते हैं.

इन्हें डायन कहा जाता है

किसी दिमागी परेशानी से जूझ रहे शख्स के अजीब बरताव को देख कर अंधविश्वास में डूबे लोग इन्हें डायन कहते हैं. दूसरी ओर कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो अपने निजी फायदे को पूरा करने और जमीनजायदाद के लालच में किसी को भी डायन करार देते हैं.

यही नहीं, किसी से पुरानी दुश्मनी है तो वह समाज में शोर फैला देता है कि फलां आदमी डायन है, जबकि एक तांत्रिक अपनी दुकान चलाने के लिए किसी दूसरे तांत्रिक को फटकने नहीं देने के लिए उस तांत्रिक को भगाने के चक्कर में समाज में यह अफवाह फैला देता है कि फलां तांत्रिक जादूमंत्र से बुरा करने वाला है.

डायन बता कर हत्या

असम में डायन बता कर बेकुसूर मर्दों, औरतों और लड़कियों के ऊपर जोरजुल्म करने और उन की हत्या कर देने की तमाम वारदातें हो चुकी हैं. साल 1999 में ग्वालपाड़ा जिले के दुधनै इलाके में सयालमारी, साल 2000 में भवानीपुर, साल 2013 में दारीदरी गांव, साल 2000 में कोकराझाड़ जिले के कचूगांव, साल 2006 में विजयनगर, साल 2006 में नंदीपुर, साल 2010 में सेफरांगगुड़ी, साल 2011 में बेलगुड़ी, साल 2011 में सराईपुल, साल 2011 में सांथाईबाड़ी, साल 2011 में बेदलांगमारी, साल 2007 में बाक्सा जिले के रौमारी कलबाड़ी, साल 2009 में बागानपाड़ा, साल 2011 में ठेकरकूची, साल 2008 में शोणितपुर जिले के ठेकेरिलगा गांव, साल 2009 में ततखालगांव और साल 2012 में लखीपथार, साल 2005 में विश्वनाथ चारिआली के खादरू चाय बागान के कछाली लाइन गांव में डायन बता कर किसी को मार देने की वारदातें हो चुकी हैं.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 2010 से ले कर 2015 तक 36 औरतों और 47 मर्दों को डायन बता कर हत्या कर दी गई, लेकिन असम महिला समता सोसायटी की एक समीक्षा के मुताबिक, महज ग्वालपाड़ा जिले में ही पिछले 10 सालों में डायन होने के शक में जोरजुल्म किए जाने के 87 मामले दर्ज हैं. इन मामलों में 98 औरतें और 2 मर्द शामिल हैं, जिस में 7 औरतें और 4 मर्दों की हत्या केवल ग्वालपाड़ा जिले में की गई.

इन आंकड़ों से पता चलता है कि जिन जगहों पर इस तरह की बर्बर घटनाएं घटी हैं, वह जगह गांव के भीतरी इलाका समूह है, जहां के रहने वाले लोग पढ़ाईलिखाई और डाक्टरी इलाज से कोसों दूर हैं. इन्हीं वजहों के चलते गांव में किसी को किसी तरह की बीमारी हो जाती है तो वह उसे अस्पताल ले जाने के बजाय तांत्रिकों व ओझाओं के पास ले जाते हैं.

नतीजतन, ओझाओं द्वारा टोनाटोटका कर इलाज करना शुरू करते हैं और उसी बीच उस बीमार आदमी की मौत हो जाती है. ओझा गांव के लोगों को यह बता कर पिंड छुड़ाता है कि इस के ऊपर डायन सवार थी और इसी वजह से यह मौत हुई.

आज के इस वैज्ञानिक युग में भी अंधविश्वास का मकड़जाल इस कदर लोगों पर जकड़ा है कि कितने बेकुसूर मर्दों, औरतों और लड़कियों को डायन बता कर हत्या कर दी जाती है. एक ओर जहां हम डिजिटल इंडिया बनाने की बात करते हैं तो वहीं आज भी अंधविश्वास हमारा पीछा नहीं छोड़ रहा है.

बहरहाल, आज के इस वैज्ञानिक युग में अंधविश्वास जैसे मकड़जाल को हटाने के लिए सरकार को उचित कदम उठाने चाहिए, नहीं तो डायन का आरोप लगा कर यों ही हत्याएं होती रहेंगी.

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