पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने नोटबंदी और जीडीपी के आंकड़ों में गड़बड़ी का इशारा किया है. उन्होंने सवाल उठाया है कि पुराने नोट बंद करने का अर्थव्यवस्था पर इतना कम असर पड़ा. इसका अर्थ है कि या तो जीडीपी की सही से गणना नहीं हो रही या फिर भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत लचीली है. उन्होंने संशोधित वृद्धि दर के आंकड़ों पर विवाद के बीच इसकी समीक्षा विशेषज्ञों द्वारा कराने की वकालत की है. अरविंद के मुताबिक, कुछ पहेली जरूर है, जिसे स्पष्ट किया जाना चाहिए.

‘लोग जो कहना चाहते हैं, कहें’

अरविंद सुब्रमण्यम ने हाल में अपनी नई किताब ‘ऑफ काउंसिल: द चैलेंजेस ऑफ द मोदी जेटली इकनॉमी’ में नोटबंदी की आलोचना की है. हालांकि जब उनसे पूछा गया कि क्या इस मामले में उनसे सलाह ली गई थी, तो उन्होंने इसका साफ जवाब नहीं दिया. अर्थशास्त्री की इस बात को लेकर आलोचना हुई थी कि सरकार के साथ काम करने के दौरान वह नोटबंदी पर कुछ नहीं बोले और अब अपनी किताब बेचने के लिए यह मामला उठा रहे हैं. इस पर पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि लोग जो कहना चाहते हैं, कहें. अपनी नई किताब के जरिये वह उस पहेली बड़ी पहेली की ओर ध्यान खींच रहे हैं कि 86 प्रतिशत करंसी बंद हो जाती है और अर्थव्यवस्था पर काफी कम असर पड़ा है. उनकी किताब के अनुसार, नोटबंदी से पहले 6 तिमाही में औसत वृद्धि दर 8 फीसदी थी. बाद की सात तिमाहियों में यह 6.8 प्रतिशत दर्ज की गई.

‘जीडीपी की गणना बेहद तकनीकी काम, विशेषज्ञ ही करें’

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने पिछले महीने 2004-05 के बजाय 2011-12 के आधार वर्ष का इस्तेमाल करते हुए यूपीए सरकार के जीडीपी आंकड़ों को घटा दिया था. इसमें नीति आयोग की भूमिका को लेकर काफी विवाद हुआ. अरविंद ने इस पर कहा है कि आंकड़े बनाने और उनपर चीजें स्पष्ट करने की मुख्य जिम्मेदारी विशेषज्ञों की है. जीडीपी की गणना काफी तकनीकी काम है और तकनीकी विशेषज्ञों को ही करना चाहिए. जिन संस्थानों के पास यह विशेषज्ञता नहीं है, उन्हें इससे दूर रखना चाहिए. उनका इशारा नीति आयोग की तरफ था.

‘RBI कैश रिजर्व का इस्तेमाल खजाने की लूट होगी’

अरविंद ने कहा कि राजकोषीय घाटा कम करने के लिए आरबीआई के रिजर्व का इस्तेमाल बैंक के खजाने की लूट होगी. सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के बीच विवाद की खबरें सामने आई थीं. इस मामले में अरविंद ने आरबीआई की स्वायत्ता को देशहित में बताया है. उन्होंने कहा कि जब संस्थान मजबूत होते हैं तभी देश को भी फायदा होता है. देश में बढ़ती असहिष्णुता पर बोले, ‘दुनियाभर के देशों में देखा गया है कि अधिक सामाजिक शांति होने पर आर्थिक विकास भी बेहतर होता है.’

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