2019 के मद्देनजर पूरे देश की नजर जिस एक गठबंधन की ओर लगी है, वह है यूपी में एसपी-बीएसपी के बीच प्रस्तावित गठबंधन क्योंकि इस गठबंधन के जरिए सिर्फ यूपी में ही नहीं बल्कि पूरे देश की राजनीति की तस्वीर बदल सकती है. गोरखपुर और फूलपुर के चुनाव के मौके पर एक-दूसरे के नजदीक आकर दोनों दलों ने भविष्य में गठबंधन किए जाने का संकेत दिया था लेकिन तबसे बात आगे नहीं बढ़ी. कहा जा रहा है कि जिस एक ठोस फॉर्म्युले की बुनियाद पर दोनों दलों के बीच गठबंधन होना है, वह अभी तक तलाशा नहीं जा सका है.

कई मौकों पर बीएसपी चीफ मायावती ने यह जरूर कहा कि किसी भी गठबंधन में अगर उन्हें सम्मानजनक हिस्सा नहीं मिला तो वह अकेले ही चुनाव मैदान में उतरना बेहतर समझेंगी. 2014 के चुनाव में राज्य की 80 लोकसभा सीटों में बीएसपी को एक भी सीट पर कामयाबी नहीं मिली थी, जबकि समाजवादी पार्टी पांच सीटें जीतने में कामयाब हो गई थी.

2017 के विधानसभा चुनाव में भी समाजवादी पार्टी ने भले ही सत्ता गंवा दी हो लेकिन वह बीएसपी से आगे ही रही थी. इस लिहाज से पार्टी यूपी में खुद को बीएसपी से मजबूत मानती है और किसी भी गठबंधन में उसका दावा बीएसपी के मुकाबले ज्यादा सीटों का बनता है लेकिन बीएसपी की मांग किस हद तक जाती है, इस बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता.

क्या है योगी फौर्मूला

मायावती ने छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की पार्टी के साथ विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन किया है. जोगी की तरफ से जो बयान आया, वह यह है कि विधानसभा के चुनाव में मुख्यमंत्री पद पर दावा मेरी पार्टी का रहेगा, बीएसपी उसे समर्थन करेगी लेकिन लोकसभा के चुनाव में हमारी पार्टी बीएसपी चीफ मायावती को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में समर्थन करेगी. इसका मतलब हुआ कि इस गठबंधन ने समझौते के तहत अपना-अपना हिस्सा तय कर लिया है.

जोगी के इस फॉर्म्युले के बाद ही सियासी गलियारों में इस सवाल का जवाब तलाशा जाने लगा कि क्या यूपी में भी ऐसा ही रास्ता निकल सकता है. कई मौकों पर अखिलेश यादव साफ कर चुके हैं कि फिलहाल वह पीएम पद की रेस में नहीं हैं और उनकी दिलचस्पी अभी यूपी की राजनीति करने में है लेकिन मायावती को राष्ट्रीय स्तर पर गैर एनडीए दलों के बीच प्रधानमंत्री पद का सशक्त दावेदार माना जा रहा है. इसी वजह से कहा जा रहा है कि यूपी में भी जोगी फॉर्म्युला लागू हो सकता है. एसपी अपनी ओर से माया को पीएम के रूप में पेश कर दे और माया 2022 के लिए राज्य में अखिलेश को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार कर लें.

अखिलेश को मंजूर होगा

समाजवादी पार्टी के कुछ सीनियर नेताओं ने कहा कि ‘अगर बीएसपी अखिलेश को 2022 में सीएम के रूप में स्वीकार करने की बात करती है तो एसपी को भी 2019 के चुनाव में मायावती को पीएम के रूप में स्वीकार करने में ऐतराज नहीं होगा. इसके तहत लोकसभा चुनाव में सीटों का बंटवारा 60 (बीएसपी) : 40 (एसपी) के अनुपात में हो सकता है और विधानसभा के चुनाव में यह अनुपात पलट जाएगा. 60 प्रतिशत हिस्सा एसपी का होगा और 40 बीएसपी का.

ये नेता अखिलेश के उस बयान की तरफ भी ध्यान दिलाते हैं कि समाजवादी जब किसी से दोस्ती करते हैं तो बड़े दिल के साथ करते हैं. दोस्ती में अगर कुछ ज्यादा देना भी पड़ जाए तो भी उन्हें कोई शिकवा नहीं रहती.’ इस तरह की बातें यह संकेत देती हैं कि एसपी को इस फॉर्म्युले पर बहुत ज्यादा ऐतराज नहीं है.

बेशक यह फॉर्म्युला उनकी पसंद के नजदीक दिखता हो लेकिन छत्तीसगढ़ और यूपी की स्थितियों में फर्क को भी समझना होगा. छत्तीसगढ़ में बीएसपी का कहीं कुछ दांव पर नहीं है लेकिन उसकी सारी राजनीतिक पूंजी यूपी ही है. इस वजह से क्या मायावती यूपी अखिलेश के हवाले करने का जोखिम लेना चाहेंगी, जबकि यह भी तय न हो कि प्रधानमंत्री बन ही जाएंगी.

दूसरी बात यह कि छत्तीसगढ़ के चुनाव के कुछ महीनों के अंदर ही लोकसभा का भी चुनाव हो जाना है पर यूपी में लोकसभा चुनाव के तीन साल बाद चुनाव होने हैं. इतने लंबे वक्त तक क्या राजनीति में गठबंधन बना रह सकता है? चूंकि राजनीति संभावनाओं का खेल है इसलिए सारे विकल्प खुले माने जा रहे हैं.

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