उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले के एक गांव निजामपुर में एक दलित की बरात की पूरे देश में चर्चा होगी, यह किस ने सोचा था? संगीनों के साए में होने वाली यह शादी उस सामाजिक बुराई के मुंह पर तमाचा बनी जहां दबंगों का कानून चलता है. पर संजय ने इस दबंगई को मानने से इनकार किया और तय किया कि वह घोड़ी भी चढ़ेगा और अपनी बरात पूरे गांव में घुमाएगा.
संजय की सगाई गांव निजामपुर के सत्यपाल सिंह की बेटी शीतल के साथ तय हुई थी. इसी के साथ होने वाले दामाद की जिद ने शीतल के परिवार वालों को सकते में डाल दिया.
संजय अपनी फरियाद ले कर जिलाधिकारी आरपी सिंह के पास पहुंचा और उस ने शादी के लिए बरात गांव में घुमा कर जनवासे तक ले जाने की इजाजत और सिक्योरिटी मांगी.
यह एक अजीबोगरीब मांग थी. जिलाधिकारी आरपी सिंह को पता चला कि निजामपुर में केवल ठाकुरोें की बरात ही घूम सकती है दलितों की नहीं, इसलिए उन्होंने संजय को शांति भंग न करने की सलाह दी.
लेकिन संजय पहुंच गया योगी आदित्यनाथ के जनसुनवाई दरबार में जहां उस की अर्जी पर खाद्य एवं रसायन मंत्री अतुल गर्ग ने मार्क किया कि बरात गांव के बीच चढ़ने पर पाबंदी क्यों? मामले में न्यायपूर्ण कार्यवाही करें.
मामला मुख्यमंत्री के पोर्टल पर आ चुका था, इसलिए समाधान जरूरी हो गया और मामले में जांच का काम निजामपुर गांव की चौकी मोहनपुरा के इंचार्ज राजकुमार सिंह को सौंपा गया जो खुद ठाकुर थे.
दारोगा ने चौकी पर बैठेबैठे मामले का हल निकाल दिया और लिखा कि आवेदक पक्ष के लोगों की बरात गांव में कभी नहीं चढ़ी. बरात चढ़ाए जाने से कोई भी अप्रिय घटना हो सकती है. आवेदक नई परंपरा डालना चाहता है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए बरात चढ़ाने की इजाजत नहीं दी जाती है.
दारोगा राजकुमार सिंह और जिलाधिकारी आरपी सिंह ने मान लिया कि अब संजय खामोश हो जाएगा और जिद छोड़ देगा, पर संजय को मालूम था कि संविधान में इस बात का कहीं जिक्र नहीं था कि सवर्ण अपनी बरात पूरे गांव में घुमाए और दलित चुपचाप आए और दुलहन को ब्याह कर ले जाए.
इसी बीच गांव के ठाकुरों को पता चल गया और तनाव फैलने लगा. संजय की ससुराल वालों को दिया जाने वाला पानी काट दिया गया. इस से फसलें सूख गईं पर संजय ने हार नहीं मानी.
संजय ने अपनी जाति के नेताओं से मदद मांगी लेकिन उन लोगों ने सलाह दी कि ऐसा करने में खतरा हो सकता है. उन की राजनीति पर गलत असर हो सकता है. संजय की समझ में आ गया था कि अब अदालत की शरण में जाना होगा.
संविधान का 17वां अनुच्छेद इसीलिए लिखा गया था. अस्पृश्यता अधिनियम की धारा (3) में हर किसी को बिना भेदभाव के सार्वजनिक कुओं, तालाबों, पार्कों, अस्पतालों और सड़कों का इस्तेमाल करने की आजादी है और इस के खिलाफ जाने वालों को
500 रुपए जुर्माना और 6 महीने की सजा का प्रावधान है. पर राज्य सरकारें क्या इस का अनुपालन कर पाई हैं? 29 अप्रैल को राजस्थान के भीलवाड़ा का उदय लाल घोड़ी चढ़ कर शादी करने निकला तो दबंगों ने खींच कर उसे घोड़ी से उतारा और खूब पीटा. मध्य प्रदेश में साल 2017 में 38 साला दूल्हे को घोड़ी से उतार कर पीटा गया.
गुजरात के 21 साला दलित प्रदीप राठौड़ की 31 मार्च को इसलिए हत्या कर दी गई क्योंकि उसे घोड़े की सवारी करने का शौक था और मेहसारांव के एक दलित को इसलिए पीटा गया क्योंकि वह गले में सोने की चेन पहन कर सवर्णों के सामने आ गया था.
तो फिर क्या संजय को अपनी जिद छोड़ देनी चाहिए थी? नहीं. उस ने प्रदेश की सब से बड़ी अदालत में अर्जी लगाई तो हाईकोर्ट ने यह कह कर उस की याचिका को खारिज कर दिया कि मामला जिला लैवल का है. जिला अदालत में अपना मामला ले जाओ.
हाईकोर्ट से निराश हो कर संजय ने ठान लिया कि वह अब पीछे नहीं मुड़ेगा, बल्कि देश की सब से बड़ी अदालत में अपनी फरियाद ले कर जाएगा. जिला प्रशासन को इस की भनक लगी तो जिलाधिकारी ने दोनों पक्षों को बुलाया. निजामपुर के दामाद की फरियाद टैलीविजन चैनलों से पूरे देश तक पहुंच चुकी थी.
इधर शादी की तारीख भी पास आ रही थी और उधर संजय की जिद थी कि वह अपनी बरात निजामपुर में घुमाएगा. यह उस का हक है.
जिलाधिकारी ने अधिकारियों की बैठक की. एसपी शिवहरि मिश्रा भी इस बैठक में शामिल हुए और एक रोड मैप बनाया गया.
संजय की बरात चढ़ाने के संबंध में अब प्रशासन गंभीर था. दोनों पक्षों के लोगों को बुलवा कर रोड मैप उन्हें दिखाया गया और दोनों पक्षों के बीच एक समझौता पत्र रखा गया जिसे दोनों पक्षों ने स्वीकार किया और दस्तखत कर दिए. दोनों पक्षों को शांति व्यवस्था बनाए रखने की हिदायत दी गई.
अब पुलिस और प्रशासन के सामने यह सवाल था कि दलित की बरात को कैसे सिक्योरिटी दी जाए क्योंकि मामला काफी संगीन था.
निजामपुर गांव में खुफिया पुलिस तैनात की गई लेकिन इसी बीच जिलाधिकारी को एक शिकायत पत्र मिला कि स्कूल सर्टिफिकेट के मुताबिक संजय की होने वाली पत्नी शीतल नाबालिग है, तो संजय ने ऐलान किया कि वह शीतल के बालिग होने का इंतजार करेगा और उस की शादी अब 15 जुलाई को होगी.
15 जुलाई को होने वाली इस शादी को अपने कैमरों में कैद करने के लिए देश का मीडिया निजामपुर गांव पहुंच गया. गांव पुलिस छावनी बन चुका था. गांव तक पहुंचने के 5 किलोमीटर के रास्ते पर हर मोड़ पर पुलिस तैनात थी.
फिर एक पुलिस की जिप्सी और दर्जनभर गाडि़यों के साथ संजय की बरात आई. तब तक शाम के 6 बज चुके थे. बरात आते ही पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने मोरचा संभाल लिया. संजय को कार से निकाल कर घोड़ी पर बैठाया गया और उसे पुलिस ने घेर लिया. एंबुलैंस का भी इंतजाम था. बैंडबाजे बजने लगे. बराती खूब नाचे. एक पुरानी परंपरा ने दम तोड़ दिया.
दूसरी ओर गांव के ठाकुर सुबह से ही घरों में ताले लगा कर चले गए थे. उन की गलियों में सन्नाटा पसरा था. इक्कादुक्का औरतें या बुजुर्ग ही घर पर थे. संगीनों के साए में संजय और शीतल की शादी हुई. सुबह पुलिस सुरक्षा में उन की विदाई हुई और पुलिस प्रशासन ने राहत की सांस ली. पर क्या आने वाले दिनों में भी गांवों में दलितों की शादियां ऐसे ही धूमधाम से होंगी? यह एक बड़ा सवाल है.