पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक तसवीर खूब वायरल हुई थी. इस में देशी व अंगरेजी शराब की दुकानों के बीच में मद्यनिषेध महकमे का बोर्ड टंगा था. यह तो ठीक वही बात हुई कि पहले चोर से कहो कि तुम चोरी करो और बाद में पुलिस से कहो कि इन्हें मत छोड़ना.
इस तरह के पाखंड व दिखावे तो हमारे समाज में कदमकदम पर देखने को मिलते हैं. मसलन, एक ओर सिगरेट धड़ल्ले से बनतीबिकती हैं, दूसरी ओर उन की डब्बी व इश्तिहारों में लिखते हैं कि ‘सिगरेट पीना सेहत के लिए हानिकारक है.’ इसी तरह प्लास्टिक, औक्सीटोसिन के इंजैक्शन व फलों को पकाने वाले जहरीले कैमिकल वगैरह से परहेज व पाबंदियां हैं, लेकिन उन्हें बनाने व बेचने की पूरी छूट?है.
सिर्फ एक शराब के मामले में ही नहीं, बल्कि देश की राजनीति, सरकार व धर्म के ठेकेदारों की उलटबांसियां भी कुछ कम नहीं हैं इसलिए कदमकदम पर बड़े ही अजब व गजब खेल दिखाई देते हैं. मसलन, एक ओर राज्य सरकारों के आबकारी महकमे नशीली चीजों की बिक्री से कमाई करने में जुटे रहते हैं, वहीं दूसरी ओर समाज कल्याण व मद्यनिषेध जैसे महकमे करोड़ों रुपए इन से बचाव के प्रचार में खर्च करते हैं.
जहांतहां दीवारों पर नारे लिखे जाते हैं, होर्डिंग लगाए जाते?हैं और इश्तिहार दिए जाते हैं कि शराब जहर से भी ज्यादा खराब व नुकसानदायक है. इस तरह 2 नावों पर पैर रख कर करदाताओं की गाढ़ी कमाई का पैसा बड़ी ही दरियादिली के साथ पानी में बहाया जाता है. इन में कोई एक काम बंद होना जरूरी?है, लेकिन इस की फिक्र किसे है?
कहने को आबकारी महकमे नशीली चीजों की बिक्री पर नकेल कसते हैं, लेकिन असल में तो वे भांग, शराब वगैरह के ठेके नीलाम कर के रंगदारी वसूलते हैं. कहा यह जाता है कि वे लोगों को जहरीली शराब पीने से बचाते हैं. जायज व नाजायज शराब में फर्क बताते हैं. सरकारी कायदेकानून को लागू कराते हैं, लेकिन सब जानते हैं कि हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और होते हैं, इसलिए भ्रष्टाचारी खूब खुल कर खेलते हैं.
इसी वजह से गुड़गांव, हरियाणा में रेयान स्कूल के पास अंगरेजी शराब की दुकान चल रही थी. हफ्तावूसली करने वालों की वजह से ज्यादातर ठेकों पर तयशुदा वक्त से पहले व बाद में और बंदी के दिन भी शराब की बिक्री चोरीछिपे बराबर चलती रहती है.
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शराब बेचने की दुकानों को लाइसैंस देने के नाम पर उन से भरपूर कीमत वसूली जाती है. मसलन, उत्तर प्रदेश में आबकारी महकमे का कुल सालाना बजट 122 करोड़, 78 लाख रुपए का है, जबकि साल 2017-18 में उत्तर प्रदेश सरकार ने आबकारी से 8 अरब, 916 करोड़ रुपए कमाए. जाहिर है कि शराब का धंधा सरकारों के लिए सोने की खान है.
शराब की मनमानी कीमत तो शराब बनाने वाले खरीदारों से लेते ही हैं, इस के अलावा करों के नाम पर अरबोंखरबों रुपए जनता की जेब से निकल कर विकास के नाम पर सरकारी खजाने में चले जाते हैं. इस का एक बड़ा हिस्सा ओहदेदारों की हिफाजत, सहूलियतों, बैठकों, सैरसपाटों, मौजमस्ती वगैरह पर खर्च होता है.
शराब खराब है, यह बात जगजाहिर है. ज्यादातर लोग इसे जानते और मानते भी हैं, लेकिन कमाई के महालालच में फंसी ज्यादातर सरकारें शराबबंदी लागू ही नहीं करती हैं.
गौरतलब है कि गुजरात, नागालैंड, मणिपुर व बिहार समेत देश के 4 राज्यों में शराबबंदी होने से सरकारें कौन सी कंगाल हो गई हैं? उत्तर प्रदेश में सरकार को होने वाली कमाई का महज 17 फीसदी आबकारी से आता है.
इसे दूसरे तरीकों से भी तो पूरा किया जा सकता है. मसलन, तत्काल सेवाओं के जरीए, कानून तोड़ने वालों पर जुर्माना बढ़ा कर, हथियारों, महंगी गाडि़यों वगैरह पर बरसों पुरानी फीस की दरें बढ़ा कर, सरकारी इमारतों व रसीदों पर इश्तिहार लेने जैसे कई तरीके हैं, जिन से जनता पर बिना कर लगाए भी राज्यों की सरकारें अपनी कमाई बढ़ा सकती हैं, लेकिन ज्यादातर ओहदेदार तो खुद शराब पीने के शौकीन होते हैं, इसलिए वे शराबबंदी को लागू करने के हक में कभी नहीं रहते हैं.
यह है वजह
लोग नशेड़ी कैसे न हों क्योंकि हमारा धर्म तो खुद नाश करने की पैरवी करता है. शिवशंकर के नाम पर भांग, गांजा, सुलफा वगैरह पीने वाले साधुमहात्माओं व भक्तों की कमी नहीं है. कांवड़ यात्रा के दौरान तो ऐसे नशेड़ी खुलेआम सामने आ कर सारी हदें पार कर देते हैं. इस के अलावा धर्म की बहुत सी किताबों में सोमरस पीने का जिक्र आता है.
शराब का इतिहास सदियों पुराना है. अंगूर से अलकोहल तक, ताड़ी से कच्ची व जहरीली शराब पी कर बहुत से लोग अपनी जान गंवा चुके हैं.
दरअसल, हमारा धर्म भी इस की इजाजत देता है. कई देवीदेवताओं की पूजा में शराब का भोग लगाया जाता?
है, फिर उसे प्रसाद के तौर पर भक्तों में बांटा जाता है. काली माई व भैरव के मंदिरों में शराब की बोतलें चढ़ाने जैसे नजारे देखे जा सकते हैं.
शादीब्याह के मौकों पर मौजमस्ती करने, खुशियां मनाने, गम भुलाने, तीजत्योहार या दावतों में मूड बनाने के नाम पर अकसर शराब के दौर चलते हैं. धीरेधीरे शराब पीने की यह लत रोज की आदत बन जाती है. शराब के नशे में इनसान का अपनी जबान, हाथपैर व दिमाग पर काबू नहीं रहता है.
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शराब पीने से शरीर कांपने लगता है. चिड़चिड़ापन, उदासी व बेचैनी बढ़ने लगती है. जिगर खराब होने लगता है. कई तरह की बीमारियां घेरने लगती हैं. इनसान इस का आदी हो जाता है. इस की लत लग जाने पर फिर शराब छोड़ना आसान नहीं रहता. आखिर में शराबी दूसरों की नजरों में भी गिरने लगता है.
फिर भी कई लोग दूसरों को बहलाफुसला कर अपना हमप्याला बनाने के लिए कहते हैं कि शराब पीना सेहत के लिए अच्छा रहता है, जबकि ऐसा कुछ नहीं है.
नुकसान ही नुकसान
शराब इनसान, उस की जेब व उस के घरपरिवार को तबाह कर देती है, फिर भी इसे पीने वालों की गिनती बढ़ रही है. अब औरतें व बच्चे भी इस के शिकार हो रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 37 करोड़ से भी ज्यादा लोग शराब पीते हैं. इन में से आधे से ज्यादा लोग बहुत बड़े पियक्कड़ हैं.
शराब पीने से हर साल लाखों लोग बीमारियों व मौत के मुंह में चले जाते हैं. उन की माली हालत खराब हो जाती है. न जाने कितने लोग शराब के नशे में कानून तोड़ते हैं. दूसरों के साथ गालीगलौज, झगड़ाफसाद व दूसरे जुर्म करते हैं. अपने बीवीबच्चों को मारतेपीटते?हैं. लेकिन शराब की लत के शिकार लोगों व सरकारों की आंखें नहीं खुलती हैं.
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शराब पी कर गाड़ी चलाने की वजह से सड़कों पर हो रहे हादसों में लाखों लोगों की जानें चली जाती हैं, लोग फिर भी अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारते रहते हैं. कई बार बेगुनाह भी उन की गलती व लापरवाही के शिकार हो जाते हैं. राह चलते या सड़क किनारे सोने वाले गरीब लोग शराबियों की गाडि़यों की चपेट में आ कर अपनी जान तक गंवाते रहते हैं.
दरअसल, पूरे देश में शराबबंदी लागू होनी लाजिमी है, लेकिन ऐसा करना आसान काम नहीं?है. नीतीश कुमार की सरकार ने बिहार में शराबबंदी कानून लागू की थी, लेकिन सरकार के इस फैसले को सब से तगड़ा झटका पटना हाईकोर्ट से उस वक्त लगा, जब जारी आदेश में कहा गया कि किसी भी सभ्य समाज में इतने कड़े कानून लागू नहीं किए जा सकते. यह जनता के हकों को छीनने जैसा है.
इस से पहले हरियाण, आंध्र प्रदेश, मिजोरम व तमिलनाडु राज्यों में भी शराबबंदी लागू की गई थी लेकिन भारी दबाब के चलते उसे वापस लेना पड़ा. दरअसल, शराब चाहे जायज तरीके से बनी हो या नाजायज तरीके से, वह सरकारों, नेताओं व पुलिस सब की कमाई का बड़ा जरीया है. राजकाज चलाने वाले ओहदेदार चाहते हैं कि शराब की खपत दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती रहे. ऐसे में जरूरत खुद सोचसमझ कर कदम उठाने की है.
हालांकि शराब की लत छुड़ाने के तरीके व पुनर्वास केंद्र वगैरह हैं, लेकिन इन सब में वक्त व पैसा बहुत लगता?है. साथ ही, तब तक शराब दीमक की तरह अंदर ही अंदर खा कर इनसान को खोखला कर चुकी होती है, इसलिए पहले से ही पूरी सावधानी बरतें, वरना पछतावे के साथ यही करना पड़ेगा कि सबकुछ लुटा के होश में आए तो क्या हुआ.