गुना के कैंट इलाके के उस घर को शहर का हर बाशिंदा जानता था कि वह पूनम दुबे उर्फ पक्का का है. पूनम उर्फ पक्का अधेड़ावस्था में दाखिल होने के बाद भी निहायत  खूबसूरत और सैक्सी महिला थी. वह सभ्य समाज की एक ऐसी महिला थी, जो किन्हीं वर्जनाओं में नहीं जीती थी, बल्कि अपनी शर्तों और मरजी से काम करते हुए खुद अपने उसूल गढ़ती थी.

एक मामूली खातेपीते अग्रवाल परिवार में जन्मी पूनम उर्फ पक्का के कदम जवानी की दहलीज पर रखते ही बहकने लगे थे. परिवार और सामाजिक संस्कारों की बेडि़यां उन्हें बांध नहीं पाईं. वह एक ऐसी बहती नदी की तरह थी, जिस का बहाव अपने साथ बहुत कुछ बहा ले जाता है. उसे अपनी खूबसूरती का अहसास अच्छी तरह था. जब भी वह शहर की गलियों और चौराहों से गुजरती, लोगों की निगाहें उस के हसीन और गठीले बदन से चिपक जाती थीं.

पूनम का रहने का अपना अलग स्टाइल था. कभी वह जींसटौप में नजर आती तो कभी सलवारसूट में और कभीकभार वह साड़ी भी पहन लेती थी. होठों पर गहरी सुर्ख लिपस्टिक  उस का ट्रेड मार्क थी. इस हालत में वह दूसरी लड़कियों की तरह शरमातीझिझकती नहीं थी. शायद यही वजह थी कि हर कोई उसे हासिल कर लेना चाहता था, लेकिन 2-4 घंटे के लिए, हमेशा के लिए उस के साथ शादी के बंधन में बंधने की हिम्मत कोई नहीं कर पा रहा था.

पूनम एक बदनाम लड़की थी. बहुत कम उम्र में बगैर कोई तपजप किए उसे बाजार में प्रचलित यह ज्ञान मुफ्त में मिल गया था कि दुनिया नश्वर है और शरीर एक साधन, साध्य नहीं. लिहाजा अपने हुस्न का इस्तेमाल करने में उस ने कंजूसी नहीं बरती. इस का मतलब यह भी नहीं था कि उसे उस ने यूं ही हर किसी पर लुटा दिया. पूनम का शरीर सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए था, जिन की जेब में उस की कीमत देने लायक पैसा होता था.

शुरू में पूनम खुलेआम यह सब नहीं करती थी. गुना मध्य प्रदेश का छोटा सा शहर है, जहां के लोग एकदूसरे के बारे में आमतौर पर सब कुछ जानते हैं. संबंध न बिगड़े, इस डर या लिहाज से कुछ लोग भले ही न बोलें, पर चौराहों पर दिलचस्प विषयों पर चर्चा करने का मौका कोई नहीं छोड़ता. पूनम के मामले में भी ऐसा ही था.

पूनम चौराहों की चर्चा का एक अहम किरदार बन चुकी थी, जिस के बारे में खुलेआम पहली बार तब कुछ कहा गया था, जब सालों पहले उस ने अपने मुंहबोले भाई अजय दुबे से शादी कर ली थी. अजय उस के भाई का दोस्त था, जिसे वह राखी बांधती थी. यही वजह थी कि अजय से शादी की बात जिस ने भी सुनी, कलयुगी रिश्तों को कोसते हुए यही कहा कि ‘क्या जमाना आ गया है, जिसे भैया मानती थी, उसी को सैंया बना लिया, लानत है.’

पूनम को इन बातों से कोई लेनादेना नहीं था. मुंहबोले अंतरजातीय भाई से प्यार हो गया तो उस ने दुनियाजमाने को धता बताते हुए उस से शादी करने का भी दुस्साहस कर डाला, जो एक लिहाज से बहुत ज्यादा गलत बात नहीं थी.

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गोलगप्पे बेच कर घर चलाने वाले अपने पिता का घर छोड़ कर वह पति के घर आ गई. मांबाप और भाईबहन का सिर समाज के सामने झुका कर पूनम को बहुत कुछ हासिल नहीं हुआ. जिसे वह प्यार मान बैठी थी, वह दरअसल एक उम्र का आकर्षण भर था. पानी के बुलबुले और बियर के झाग जैसा, जो जल्दी ही बिखर गया. लेकिन वह रही पति के घर में ही, जिस से उस के एक बेटा भी हुआ, जिस का नाम उस ने किशोर रखा.

महत्त्वाकांक्षी पूनम और उस की आदतों से अजय ने समझदार, पर विवश पुरुष की तरह समझौता सा कर लिया था. कहने को तो वह नेशनल फर्टिलाइजर लिमिटेड में ठेकेदारी करता था, पर उस की शानोशौकत की एक बड़ी वजह पत्नी की कमाई थी. पैसों के बाबत पूनम कोई मेहनतमजदूरी वाला काम या नौकरी नहीं करती थी. फिर भी पैसा उस पर बरसता था.

शहर के रसूखदारों, नेताओं, व्यापारियों और पुलिस वालों का पूनम के घर आनाजाना आम बात थी. उस के घर में किसी को किसी बात की मनाही नहीं थी. सफेदपोश लोगों से गुलजार पूनम के घर में महफिलें जमती थीं. जाम छलकते थे और वह सब कुछ होता था, जिस की समाज और कानून के लिहाज से मनाही है.

फिर भी किसी की हिम्मत या मजाल नहीं थी कि पूनम को कुछ कहे, क्योंकि कानून के रखवालों, सत्ता के दलालों और नामी गुंडेमवालियों के पांव पूनम की चौखट पर अपनी छाप छोड़ते रहते थे. कभी जिस जिंदगी के ख्वाब अजय ने कमसिन पूनम के साथ जीने के देखे थे, वे पूनम की मरजी की बलि चढ़ गए थे, इसलिए उस ने खुद को पूनम के अनुसार ढाल लिया था. वह देखता सब कुछ था, पर बोलता कुछ नहीं था.

इधर कुछ दिनों से पूनम महसूस करने लगी थी कि उस में शायद अब पहले सा आकर्षण नहीं रहा. इस की वजह उस की ढलती उम्र है, यह भी उस की समझ में आने लगा था. पहले के मुकाबले आमदनी कम हो चली थी. चहेतों की तादाद भी घट रही थी. उसे पहली बार भविष्य की चिंता हुई. एक दिन वह बूढ़ी हो जाएगी, तब क्या होगा? अब तक मर्दों की यह फितरत उस की समझ में आ चुकी थी कि मर्द जवान रहने तक ही पैसा लुटाते हैं, उस के बाद कन्नी काटने लगते हैं.

पूनम का युवा हो चला बेटा किशोर भी मां के नक्शेकदम पर चलने लगा था, जिस की कोई खास चिंता उसे नहीं थी. किशोर नौवीं क्लास से ज्यादा नहीं पढ़ सका था और 17 साल की उम्र में ही जाम छलकाने लगा था. वह अय्याशी भी करने लगा था, जिस पर ऐतराज जताने वाला कोई नहीं था. घर में क्या होता है, यह किशोर को मालूम ही नहीं था, बल्कि वह खुद भी उस माहौल का हिस्सा बन चुका था.

जिस आजादी और अय्याशी के सपने इस उम्र में लड़के देखा करते हैं, वह किशोर को तोहफे के रूप में मिली थी. पढ़ाई का दबाव नहीं, कोई रोकटोक नहीं, उलटे हर वह सहूलियत उसे मिल रही थी, जो आमतौर पर इस उम्र में नहीं मिलनी चाहिए. पूनम की जिंदगी एक आम गृहस्थ औरत की जिंदगी नहीं थी. ठीक उसी तरह किशोर की जिंदगी आम किशोरों जैसी नहीं थी, जो इस उम्र में कुछ बन जाने के सपने देखते हैं, संघर्ष करते हैं और अनुशासन में रहते हैं.

जिंदगी से लापरवाह और आवारा किशोर को इस बात का अंदाजा हो चला था कि मां इन दिनों पैसों और भविष्य को लेकर चिंतित रहने लगी है. यह उस के लिए भी चिंता की बात थी कि बगैर कुछ किएधरे पैसे आने बंद हो गए तो उस की आजादी और अय्याशी दोनों खत्म हो जाएंगे.

कहने वाले गलत नहीं कहते कि एक दरवाजा बंद होता है तो दूसरा खुदबखुद खुल जाता है. यही पूनम के साथ हुआ. अभी उस की आमदनी कम हुई थी, बंद नहीं हुई थी. इसलिए वह एक झटके में इतना कमा लेना चाहती थी कि बुढ़ापे तक आराम से खा सके. उस पर न्यौछावर होने वाले हमउम्रों की तादाद कम होने लगी तो एक दिन उस के खुराफाती दिमाग में करामाती आइडिया आया. इस आइडिया या शिकार का नाम था हेमंत मीणा.

किशोर के जो इनेगिने दोस्त बेधड़क उस के घर आया करते थे, हेमंत उन में से एक था. 2 साल पहले ही हेमंत की किशोर से दोस्ती हुई थी, जो देखते ही देखते ऐसी परवान चढ़ी कि हेमंत किशोर के घर का एक हिस्सा बन गया. यहां उसे हर तरह की छूट थी. पूनम को वह आंटी कहता था और मां की तरह उस का सम्मान करता था.

17 साल के हेमंत के पिता अंतर सिंह मीणा गुना के सिंचाई विभाग में कार्यालय अधीक्षक जैसे महत्त्वपूर्ण पद पर कार्यरत हैं. हेमंत उन का एकलौता बेटा होने के कारण जान से भी ज्यादा प्यारा था. उन की 2 संतानें सांप के काटने से मर चुकी थीं, इसलिए वह और उन की पत्नी, दोनों हेमंत पर जान छिड़कते थे. उस की महंगी से महंगी फरमाइश पलक झपकते पूरी करते थे.

अंतर सिंह जानते थे कि पूनम की छवि अच्छी नहीं है, इस के बावजूद पुत्रमोह के चलते वह हेमंत की किशोर से दोस्ती के बारे में कभी कुछ कह नहीं पाए. हेमंत में कोई गलत आदत या ऐब नहीं था, इसलिए उसे ले कर वह बेफिक्र थे.

वह जानते थे कि घर के अलावा अगर वह कहीं जाता है तो अपने दोस्त किशोर के यहां ही जाता है. लेकिन कोई गलत आदत उस ने नहीं पाली है.

यहीं अंतर सिंह मात खा गए. खेलीखाई पूनम को अपने भविष्य की चिंता का निराकरण हेमंत में नजर आया. उसे पता था कि अंतर सिंह के पास पैसों की कमी नहीं है और वह अपने एकलौते बेटे के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. उसे लगा कि यही मौका है, जब वह एक लंबी छलांग लगा कर इस नन्हे से खरगोश का शिकार कर के जिंदगी आराम से गुजार सकती है.

कुछ ही दिनों में जाने क्या हुआ कि हेमंत किशोर की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आने लगा. मौका देख कर एक दिन पूनम ने नौसिखिए हेमंत को जब आदम और हौवा वाले सेब का फल चखाया तो वह उस का दीवाना हो गया. इस उम्र में सैक्स की लत अगर पेशेवर और तजुर्बेकार हाथों से लगे तो अंजाम क्या होता है, यह हर कोई जानता है.

बहुत जल्द हेमंत पूनम के जिस्म के समंदर में गोते लगाने लगा. यह उस के लिए एक नया और सुखद अहसास था. आंटी बेतकल्लुफ हो कर तरहतरह से उसे एक ऐसा सुख दे रही थी, जिस के बारे में वह सुनता भर आया था.

हेमंत के अलावा किशोर के जो दोस्त नियमित उस के घर आते थे, उन में लोकेश लोधा, ऋतिक नामदेव और नदीम (बदला हुआ नाम) प्रमुख थे. ये सभी पूनम की मौजूदगी में ही महफिल जमा कर बीयर पीते, सिगरेट फूंकते. पूनम इन के लिए स्नैक्स वगैरह का इंतजाम करती थी.

इन दोस्तों की अपनी अलगअलग दुखद कहानियां थीं. लोकेश के पिता नीरज सिंह कैंसर से पीडि़त थे तो ऋतिक के पिता शिवराज पेशे से इलैक्ट्रिशियन थे, जिन का अपनी पत्नी से अलगाव हो चुका था. ऋतिक की मां इंदौर जा कर रहने लगी थी. इन का साथी नदीम जो किशोर की संगति में पड़ कर राह भटक चुका था, उस के मातापिता शिक्षक हैं, इसलिए पढ़ाईलिखाई में वह काफी होशियार था. हाईस्कूल की परीक्षा में 90 प्रतिशत अंकों के साथ उस ने स्कूल में टौप किया था.

नई उम्र के इन लड़कों की महफिल के बारे में कैंट तो कैंट, पूरे गुना के लोग जानते थे, पर मामला और घर चूंकि पूनम का था, इसलिए सभी खामोश रहते थे. महफिल के दौरान ही हेमंत की निगाहें पूनम के गदराए बदन और नाजुक अंगों को छूने लगीं तो वह मुसकरा कर उस की आग को और हवा देने लगी थी, जिस से वक्त पर बकरा हलाल करने में आसानी रहे.

हेमंत अब तक सोचनेसमझने की ताकत खो बैठा था. चूंकि नया खून था, इसलिए रोजरोज उबलता था और रोजरोज उस उबाल को पूनम कुछ इस तरह ठंडा करती थी कि हेमंत को सिवाय उस के कुछ सूझता ही नहीं था.

शिकार को जाल में पूरी तरह फंसा देख पूनम ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया. वह हेमंत के आगे पैसों का रोना रोती तो हेमंत तुरंत अपनी जेब खाली कर देता. धीरेधीरे वह घर से भी पैसे चुरा कर लाने लगा. इस पर भी पूनम पैसों का रोना रोती तो वह अपनी इस अधेड़ प्रेमिका के लिए अपनी मां के जेवरात चुरा कर लाने लगा. उस ने मंगलसूत्र जैसी सुहाग की निशानी भी घर से चुरा कर पूनम के हवाले कर दी थी.

मुमकिन है, अंतर सिंह और उन की पत्नी को इस बात का अंदाजा रहा हो, पर वे चुप रहे हों कि घर से पैसे गायब हो रहे हैं, लेकिन हेमंत की इच्छाएं पूरी करने में वह हिचकिचाए कभी नहीं, न ही उस से कभी पूछताछ की.

बीती 17 मई को हेमंत ने मांबाप से मोटरसाइकिल खरीदने के लिए 40 हजार रुपए मांगे तो उन्होंने झट से उस के हाथ में पैसे थमा दिए. बेटे के चेहरे पर पसरी खुशी ही उन का मकसद रह गई थी, इसलिए उन्होंने उस की यह इच्छा भी पूरी कर दी.

हेमंत रुपए ले कर घर से निकला तो लौट कर नहीं आया. जब काफी रात हो गई तो अंतर सिंह को चिंता हुई. पुलिस में रिपोर्ट लिखाने से पहले उन्होंने पूनम के घर जाना ठीक समझा, क्योंकि उन्हें पूरी उम्मीद थी कि हेमंत किशोर के साथ होगा. जब किशोर ने अनभिज्ञता जाहिर की तो उन की पेशानी पर बल पड़ गए और उन का मन शंका से भर उठा. तुरंत वह थाना कैंट गए और हेमंत की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

किसी पर शक, पुलिस के इस चलताऊ और रूटीन सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि हेमंत का पूनम के यहां काफी आनाजाना था. अभी तक किसी ने फिरौती नहीं मांगी थी, इसलिए उन की चिंता बढ़ती जा रही थी. मामला चूंकि पूनम का था, इसलिए पुलिस वाले अंजान बन कर खामोश रहे.

अगले दिन 18 मई को अंतर सिंह सीधे एसपी औफिस जा पहुंचे और एसपी अविनाश सिंह को सारी बात बताई. हेमंत का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ था. अविनाश सिंह ने थाना कैंट के थानाप्रभारी आशीष सप्रे को निर्देश दिया तो अंतर सिंह द्वारा जताए शक के आधार पर उन्होंने किशोर को थाने बुलवा लिया.

किशोर से पूछताछ की गई तो बड़ी मासूमियत से उस ने यह तो स्वीकार कर लिया कि हेमंत उस के घर काफी आताजाता था, पर वह कहां गया, यह उसे नहीं मालूम. इस पर पुलिस वालों ने यह धारणा कायम कर ली कि कहीं हेमंत खुद ही तो नहीं गायब हो गया? इस थ्यौरी में कोई खास दम नहीं था, लेकिन काफी खोजबीन के बाद भी हेमंत का कोई सुराग न मिलना दुश्चिंताएं बढ़ा रहा था. अगर उस का अपहरण हुआ था तो फिरौती मांगी जानी चाहिए थी, जो अब तक नहीं मांगी गई थी.

48 घंटे तक अंतर सिंह और उन की पत्नी की जान हेमंत को ले कर हलक में अटकी रही. 19 मई को अंतर सिंह के मोबाइल पर हेमंत का नंबर डिसप्ले हुआ तो एकबारगी वह खुशी से झूम उठे कि बेटे का फोन है. उन्होंने तुरंत फोन रिसीव किया, पर दूसरी ओर से अंजान सी आवाज आई कि हेमंत उस के कब्जे में है और अगर वह उसे सहीसलामत वापस चाहते हैं तो 50 लाख रुपए का इंतजाम कर लें.

फोन करने वाले ने इतना कह कर तुरंत फोन काट दिया तो अंतर सिंह ने एसएमएस के जरिए रुपए देने के लिए हामी भर दी. इस के बाद उन्होंने न जाने कितनी बार हेमंत के फोन पर फोन किए, पर वह पहले की तरह स्विच औफ बताता रहा. अब तक गुना में हेमंत की गुमशुदगी को ले कर खासा हल्ला मच चुका था और हर कोई पूनम और किशोर को संदेह की नजरों से देख रहा था.

लेकिन फिरौती वाले इस फोन ने सब के दिमाग के फ्यूज उड़ा दिए, क्योंकि वे दोनों अपने घर पर थे. अंतर सिंह ने तुरंत इस फोन के बारे में पुलिस को बताया. अंधेरे में हाथपांव मार रही पुलिस को एक दिशा मिल गई. पुलिस ने जब हेमंत का नंबर ट्रैकिंग पर रखा तो उस की लोकेशन इंदौर की मिली. इस से अंदाजा लग गया कि हेमंत का अपहरण कर के उसे इंदौर में रखा गया है. पुलिस की एक टीम तुरंत इंदौर रवाना हो गई.

इस दौरान थानाप्रभारी आशीष सप्रे इस खोजबीन में लगे रहे कि शायद किसी की अंतर सिंह से कोई दुश्मनी रही हो और उस ने बदला लेने के लिए हेमंत का अपहरण कर लिया हो. लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. इस के बाद उन्होंने अपना सारा ध्यान इंदौर पर फोकस कर लिया. अब तक पुलिस की यह थ्यौरी भी दम तोड़ चुकी थी कि हेमंत खुद कहीं गायब हो गया होगा.

उम्मीद थी कि अपहर्त्ता दोबारा फोन करेंगे कि पैसे कब, कहां और कैसे देने है? परंतु हफ्ते भर तक कोई फोन नहीं आया तो फिर से मामला उलझ गया. इंदौर गई पुलिस टीम के हाथ भी कुछ नहीं लगा. वह खाली हाथ लौट आई. चूंकि फोन हेमंत का ही इस्तेमाल किया गया था, इसलिए गुत्थी और उलझ गई थी कि अपहर्त्ता कौन हो सकते हैं?

जब हफ्ते भर कोई फोन नहीं आया तो अंतर सिंह के साथसाथ पुलिस वालों की चिंताएं और परेशानियां बढ़ गईं. अंतर सिंह के दिमाग में तरहतरह के खयाल आ रहे थे, जिन में एक यह भी था कि कहीं उन के पुलिस में जाने की बात अपहर्त्ताओं को पता न चल गई हो, जिस से डर कर उन्होंने फोन न किया हो?

कहीं ऐसा न हो कि हेमंत को… इस से आगे और ज्यादा सोच कर वह कांप उठते थे. 50 लाख की रकम उन के लिए बड़ी जरूर थी, लेकिन रकम दे कर भी क्या गारंटी थी कि बदमाश हेमंत को छोड़ ही देंगे? अब पतिपत्नी और रिश्तेदारों सहित परिचित भी हेमंत के सहीसलामत वापस आने की दुआ मांगने लगे थे. सभी उसे अपनेअपने स्तर से ढूंढ रहे थे और अपहर्त्ताओं के अगले कदम या फोन का इंतजार कर रहे थे, जोकि फिर कभी नहीं आया.

इस मामले में अब करने को कुछ नहीं रह गया था, सिवाय इंतजार के. 26 मई को थाना कैंट पुलिस को पटेलनगर इलाके की रेलवे क्रौसिंग के पास एक किशोर की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. पुलिस मौके पर पहुंची और जांच शुरू कर दी. लाश अधजली थी. जलने के निशान ताजा थे, इसलिए अंदाजा लगाया गया कि बीती रात ही उस की हत्या कर के लाश को जलाने की कोशिश की गई थी.

थाने आ कर पुलिस अपनी खानापूर्ति कर रही थी कि तभी बदहवास सा एक आदमी अपने बेटे के लापता होने की रिपोर्ट लिखाने आया. पुलिस को शक हुआ कि कहीं मृतक ही तो उस का बेटा नहीं है, लिहाजा वह उस आदमी को ले कर घटनास्थल पर पहुंची. लाश देखते ही वह आदमी सकते में आ गया. रोते हुए उस ने बताया कि यह लाश उस के बेटे ऋतिक की है.

पूछताछ में चौंकाने वाली यह बात सामने आई कि ऋतिक पिछली रात अपने जिगरी दोस्त किशोर दुबे के साथ गया था. किशोर दुबे यानी गुना की रसूखदार महिला पूनम का बेटा. इस से पुलिस वालों के कान खड़े हो गए, क्योंकि हेमंत की गुमशुदगी के बारे में उस के पिता अंतर सिंह ने पूनम और उस के बेटे पर शक जताया था.

पुलिस वालों ने बिना समय गंवाए पूनम के घर छापा मारा तो किशोर घर पर ही मिल गया. उस से ऋतिक के बारे में पूछताछ की गई तो शुरू में तो वह गुमराह करने वाली कहानियां सुनाता रहा. टीआई आशीष सप्रे सख्ती से भी पेश आए, पर वह अपनी ‘मैं कुछ नहीं जानता’ वाली रट से टस से मस नहीं हुआ.

अब तक काफी कुछ उगते सूरज की तरह नजर आने लगा था, जो किसी बड़े हादसे की तरफ इशारा कर रहा था. हादसा क्या था, इस बाबत जरूरी था कि किशोर अपना मुंह खोले, जो उस ने मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ने पर खोला. और जब उस ने मुंह खोला तो पुलिस वालों की बोलती बंद हो गई.

किशोर ने जो बताया, वह दिल दहला देने वाला था. उस ने न केवल ऋतिक की, बल्कि हेमंत और लोकेश लोधा की भी हत्या की थी. उस ने माना कि चूंकि हेमंत के उस की मां से नाजायज संबंध थे, इसलिए वह उस से नाराज था. बेटा कैसा भी हो, जाने क्यों अपनी मां के प्रेमी को बरदाश्त नहीं कर पता. फिर यहां तो मां का महबूब उस का पक्का दोस्त था. किशोर ने अपना अपराध स्वीकार कर के पुलिस को जो बताया, वह इस प्रकार था—

उस ने अपने दोस्तों ऋतिक, लोकेश और नदीम के साथ मिल कर हेमंत के अपहरण की योजना बनाई. चारों को पता था कि हेमंत के पिता के पास काफी पैसा है, इसलिए वह उसे छुड़ाने के लिए मुंहमांगी रकम दे देंगे, जिसे वे चारों आपस में बांट कर ऐश की जिंदगी जिएंगे.

हेमंत का अपहरण कर के लोकेश को उस का फोन दे कर इंदौर भेजा गया, जहां से उस ने फिरौती के लिए फोन किया. लोकेश अपना काम कर के गुना वापस आ गया, इसलिए पुलिस इंदौर में हाथपांव मार कर वापस आ गई.

हेमंत को अपने दोस्तों की हरकतों पर शक हुआ तो वह घर जाने की जिद करने लगा. जबकि वह रोकने पर अकसर किशोर के घर रुक जाया करता था. लेकिन अपने सिर पर मंडराते खतरे को भांप कर वह रोकने पर भी नहीं रुक रहा था. इस के बाद किशोर और उस के दोस्तों की मजबूरी यह हो गई कि हेमंत की जिद का कोई इलाज किया जाए.

हेमंत को उलझाए रखने के लिए किशोर और नदीम उसे बीयर पिलाने खेजरा रोड ले गए. नशा चढ़ने के बाद किशोर ने हेमंत से उस के और मां के संबंधों के बारे में पूछा तो वह भड़क उठा. इस पर नाराज हो कर किशोर ने पूरी ताकत से उस के सिर पर बीयर की बोतल दे मारी. वार इतना तेज था कि उसी एक वार में हेमंत का सिर फट गया और उस की मौत हो गई.

अब समस्या लाश को ठिकाने लगाने की थी. किशोर और नदीम शहर के पैट्रोल पंप से पैट्रोल खरीद कर लाए और हेमंत की लाश जला दी. दूसरी ओर लोकेश और ऋतिक इंदौर से लौटे तो हेमंत की हत्या की बात सुन कर वे घबरा गए, क्योंकि हत्या उन की योजना में शामिल नहीं थी. किशोर और नदीम के सामने दोनों ने हेमंत की हत्या पर ऐतराज जताया और सब कुछ पुलिस को बताने की बात कही.

यह किशोर के लिए नया सिरदर्द था, इसलिए उस ने सारी बात पूनम को बताई. शायद उसे सब कुछ पहले से ही पता था. एक तरह से यह अपरहण उस की सलाह पर ही किया गया था. उस ने लोकेश और ऋतिक की जिद से छुटकारा पाने के लिए एक और खतरनाक साजिश रच डाली. इसी योजना के तहत उस ने उन दोनों को हेमंत की तरह लोकेश को भी ठिकाने लगाने को कहा.

26 मई को किशोर और नदीम लोकेश को ऊमरी रोड जंगल में ले गए और वहां उस की हत्या कर लाश को जला दिया. अब बारी ऋतिक की थी. उसे भी दोनों अगले दिन 27 मई को गुलाबगंज की रेलवे क्रौसिंग पर ले गए और गला घोंट कर कत्ल कर दिया.

पिछली 2 हत्याओं की तरह उन्होंने ऋतिक की लाश पर भी पैट्रोल छिड़क कर उसे भी जला दिया. लोकेश की लाश की तरह ऋतिक की भी लाश पूरी तरह नहीं जल पाई थी. किशोर शाम को ऋतिक को उस के घर से बुला कर लाया था. जब वह घर नहीं लौटा तो उस के पिता ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी थी. अगर तुरंत उस की शिनाख्त न हुई होती तो गुना का यह ट्रिपल मर्डर केस शायद इतनी जल्दी नहीं सुलझ पाता.

किशोर और नदीम के साथ पूनम को भी गिरफ्तार कर लिया गया था, जिस ने शुरू में तो रसूखदारों से अपने संबंधों की धौंस दे कर बचने की कोशिश की. यही नहीं, अपने हुस्न का जाल भी टीआई आशीष सप्रे पर फेंका.

गुना में एक के बाद एक कर के 3 किशोरों की लाशें मिलने से शहर में सनसनी मच गई थी. पूनम का असली चेहरा भी उजागर हो चुका था, लेकिन वे चेहरे जरूर पुलिस वालों की ढील या मेहरबानी से, कुछ भी कह लें, ढके रहेंगे, जिन्हें फोन कर के पूनम ने खुद को बचाने की गुहार लगाई थी.

अब तीनों जेल में हैं. पुलिस ने पुख्ता सबूत जुटा कर मामला अदालत को सौंप दिया है. जो गहने हेमंत ने घर से चुरा कर पूनम को दिए थे, वे उस ने एक सुनार के यहां 25 हजार रुपए में गिरवी रख दिए थे. पुलिस ने गहने बरामद कर लिए हैं. इस के अलावा बीयर और पैट्रोल की बोतलें भी बरामद कर ली गई हैं.

पुलिस ने जब पूनम को रिमांड पर लिया तो उस का कोई चाहने वाला तो दूर, घर वाले भी मिलने नहीं आए. पुलिस ने अजय दुबे पर दबाव डाला तो वह कतई घबराया हुआ नहीं था. उलटे उस ने बड़ी बीतरागी भाव से बताया कि उस ने हमेशा पत्नी और बेटे को गलत राह पर चलने से रोकने की कोशिश की, पर मांबेटे ने उस की एक नहीं सुनी. पूनम के लालच और वासना ने 3 घरों के चिराग हमेशा के लिए बुझा दिए और खुद के बेटे की भी जिंदगी बरबाद कर दी.

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