यह शायद पहला मौका था, जब खुद सरकार ने माना था कि पुलिस वालों ने वहशीपन किया है. मामला मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके के टीकमगढ़ जिले का है. यहां बीती 3 अक्तूबर को कुछ किसान कलक्टर को ज्ञापन देने गए थे कि टीकमगढ़ जिले को सूखाग्रस्त घोषित किया जाए. जैसा कि आमतौर पर होता है कलक्टर साहब ने हैरानपरेशान किसानों से मिल कर उन का दुखड़ा सुनना फुजूल की बात समझी और अपने कमरे से भी बाहर नहीं आए.

इस बात पर गुस्साए किसानों ने धरनाप्रदर्शन और आंदोलन कर डाला, जो उन का हक था. इन किसानों के हाथ में कोई हथियार नहीं थे, न ही ये कोई हिंसा या तोड़फोड़ कर रहे थे, बल्कि अपनी एक जायज मांग से जिले के मुखिया को वाकिफ कराते हुए उन का ध्यान खींचने की कोशिश कर रहे थे, जिस से सरकारी इमदाद और राहत मिल सके.

जाने क्यों पुलिस को किसानों का प्रदर्शन करना इतना नागवार गुजरा कि उस ने गांवों की तरफ लौट रहे किसानों की ट्रौलियां रोकीं और उन्हें गिरफ्तार करना शुरू कर दिया.

इस ज्यादती पर किसानों ने विरोध दर्ज कराया, तो देखते ही देखते पुलिस वाले वहशी हो उठे. टीकमगढ़ के देहात थाने में किसानों को ले जा कर उन के बदन पर चड्डी छोड़ कर सारे कपड़े उतरवा दिए गए और उन की बेरहमी से धुनाई की गई.

दुनावर गांव के एक किसान रतिराम का कहना है, ‘हम तो घर वापस जा रहे थे, पर पुलिस वालों ने हमें रोका और कोतवाली ले जा कर खूब मारापीटा. 2 घंटे नंगधड़ंग हालत में थाने में भूखाप्यासा बिठाए रखा.

‘हमारा कुसूर इतना भर था कि हम चाह रहे थे कलक्टर साहब हमारी मांगें सुन लें. इस का खमियाजा हमें यों पीट कर और बेइज्जत हो कर भुगतना पड़ेगा, यह तो हम ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था.’

थाने में किसानों को अधनंगा बिठा कर उन की धुनाई की जा रही है, यह बात फैली तो एक कांग्रेसी नेता और मंत्री रह चुके यादवेंद्र सिंह अपने समर्थकों समेत थाने गए और जैसेतैसे दहशत में आ गए थरथर कांपते किसानों को छुड़ाया.

राज्य में इस वहशीपन को ले कर हल्ला मचा, तो सरकार के कान खड़े हो गए और उस ने मामले को ठंडा करने के लिए जांच का ऐलान कर दिया.

जांच हुई और इस की रिपोर्ट राज्य के गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह के पास गई, तो उन्होंने माना कि रिपोर्ट में थाने के  मुलाजिमों को कुसूरवार पाया गया है, पर कपड़े उतरवाने की बात पर उन्होंने बचकाना बयान यह दिया कि चूंकि कपड़े पहने लोग खुदकुशी कर लेते हैं, इसलिए कपड़े उतरवाए गए होंगे. कुसूरवारों को लाइन हाजिर कर दिया गया है.

जाहिर है, यह कोई सजा नहीं है, बल्कि पुलिस की बर्बरता को ढकने का रिवाज भर है. मध्य प्रदेश के ही नीमच में किसान आंदोलन में 6 किसान गोली चलने से मारे गए थे. इस गोलीकांड की जांच भी चल रही है और उम्मीद है कि तब तक चलती रहेगी, जब तक लोग इसे भूल नहीं जाएंगे.

पूरे कुएं में ही भांग है

टीकमगढ़ की घटना के दूसरे दिन ही उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के थाना रसूलपुर में एक नौजवान मुकेश राठौड़ को पुलिस ने इतनी बेरहमी से धुना था कि वह मौत के मुंह तक पहुंच गया था.

मुकेश की आसफाबाद रेलवे फाटक के नजदीक कपड़े की छोटी सी दुकान थी. हादसे के दिन उस की मामूली कहासुनी पड़ोसी दुकानदार राजाराम से बाइक खड़ी करने पर हुई थी. राजाराम ने तो मुकेश को मारा ही और पुलिस में शिकायत भी दर्ज करा दी.

पुलिस मुकेश को उठा कर थाने ले गई और वहां उस की पिटाई जानवरों की तरह की गई. बेतहाशा पिटने पर उस की हालत बिगड़ी, तो उस के पिता रामगोपाल को खबर कर दी गई.

तकरीबन मरने की सी हालत में पुलिस उसे आगरा इलाज के लिए ले गई और अस्पताल में भरती करा कर वापस चली आई.

बाद में मुकेश के घर वाले उसे इलाज के लिए फिरोजाबाद ले आए और पुलिस के आला अफसरों से शिकायत की. इस मामले में भी कार्यवाही के नाम पर जांच का भरोसा दे कर चलता कर दिया गया.

मुकेश तो वक्त पर इलाज मिलने से बच गया, लेकिन बिहार में गोपालगंज के बाशिंदे धीरज गुप्ता को कोई डाक्टर नहीं बचा सका.

एक मामले में धीरज जेल में बंद था यानी विचाराधीन कैदी था. गोपालगंज जेल में बीती 18 अक्तूबर को पुलिस वालों ने मारमार कर उस की हत्या कर दी.

धीरज के घर वालों ने उस की मौत का जिम्मेदार पुलिस को ठहराया था, लेकिन पोस्टमार्टम के बाद जांच का राग अलाप कर पुलिस के वहशीपन पर परदा डाल दिया गया.

पुलिस वाले कितनी बेरहमी से आम लोगों पर मामूली बात या फिर बिना बात के भी कहर ढाते हैं, इस की एक मिसाल 4 अक्तूबर को ही पंजाब के मोहाली में देखने में आई थी.

दशहरे के दिन पुलिस ने चोरी के इलजाम में कुमड़ा के 6 नौजवानों को उठा कर हवालात में बंद कर दिया था.

जबरन चोरी की वारदात कबूल करवाने के लिए पुलिस ने इन नौजवानों के साथ जो सुलूक किया, उसे सुन कर किसी का भी दिल दहल सकता है. लगातार 5 दिनों तक सिकंदर, राम, हरप्रीत, अनिल, कपिल और हीरा नाम के नौजवान को बारीबारी से दिनरात मारापीटा गया.

बेतहाशा पिटाई के बाद भी ये खुद को बेगुनाह बताते रहे, तो झल्लाई और गुस्साई पुलिस ने इन्हें बिजली का करंट भी लगाया.

इधर, इन के घर वाले 5 दिनों तक थाने के चक्कर काटते रहे, पर उन की कोई सुनवाई नहीं हुई, तो वे हाईकोर्ट गए और वहां इंसाफ की गुहार लगाई. इस पर मदहोश पुलिस वालों को होश आया, क्योंकि हाईकोर्ट ने इन्हें रिहा करने का हुक्म दिया था.

बाद में पता चला कि इन नौजवानों की कार में सवार कुछ लोगों से मामूली बात पर कहासुनी हो गई थी, तो इन रसूखदारों ने उन्हें चोरी के इलजाम में फंसा दिया.

इन में से एक नौजवान सिकंदर का कहना है कि कार वालों की शिकायत पर पुलिस ने उन्हें पकड़ा और कुछ देर बेवजह इधरउधर घुमाती रही, बाद में इन्हें खरड़ के सीआईए के दफ्तर में ले जा कर चोरी की वारदात कबूल करने का दबाव बनाया गया. बात न मानने पर प्राइवेट पार्ट और छाती में करंट लगाने जैसी वहशी हरकत की गई.

गरीबों पर कहर

दरअसल, पुलिस के वहशीपन में दबंगों का भी बड़ा हाथ रहता है. इन की ज्यादती के शिकार ज्यादातर गरीब, बेबस, मजलूम और छोटी जाति के ही लोग होते हैं. इस तबके के लोगों का कोई माईबाप नहीं होता, न ही इन की सुनवाई कहीं होती, इसलिए ये पुलिस के लिए सौफ्ट टारगेट होते हैं.

जो दबंग और रसूखदार खुद सीधे गरीबों को मारने से कतराते हैं, वे घूस दे कर पुलिस का सहारा लेते हैं. कभी किसी रईस आदमी को पुलिस की ज्यादती का शिकार होते शायद ही किसी ने देखा या सुना हो.

मेरठ के गैसूपुर गांव के दबंग बाशिंदे शिवम का मोबाइल फोन चोरी हो गया था. महज शक की बिना पर शिवम और उस के साथियों ने 7 साला राजा और

11 साला अक्षय को चोरी का जुर्म कबूलवाने के लिए कुएं में उलटा लटका दिया और राजा के हाथ की उंगलियां काट कर उसे डराया गया.

इस पर भी बात नहीं बनी, तो शिवम और उस के साथी इन दोनों को आसफाबाद पुलिस चौकी ले कर पहुंच गए. हैवानियत की यह इंतिहा ही थी कि पुलिस चौकी में पुलिस वालों ने शिवम के साथ मिल कर इन दोनों को खूब मारापीटा.

खबर मिलने पर इन दोनों के घर वालों ने चौकी जा कर गुहार लगाई, तो उम्मीद के मुताबिक कोई सुनवाई नहीं हुई. बच्चों की हालत जब ज्यादा बिगड़ गई, तो उन्हें उन के घर वालों के हवाले कर दिया गया.

गरीब घर वालों ने हिम्मत जुटाते हुए एसएसपी मंजिल सैनी से शिकायत की और बच्चों के बदन के जख्म दिखाए, तो दोनों की मैडिकल जांच कराई गई. एसएसपी मंजिल सैनी की पहल पर शिवम और उस के साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया.

मेरठ का ही एक और चिंताजनक मामला शास्त्रीनगर का है, जिस में पुलिसिया कहर की शिकार एक बेगुनाह दलित औरत सरोज बाई बनी.

सरोज ने इसी साल जून महीने में सोनू नाम के नौजवान को शादी के बाबत 20 हजार रुपए उधार दिए थे. तयशुदा वक्त पर सोनू ने सरोज के पैसे वापस नहीं किए, तो उस ने इस की शिकायत पुलिस में की.

गई थी इंसाफ मांगने, पर मिली यातना. पुलिस वालों ने ग्राम प्रधान बाबूराम के इशारे पर सरोज को थाने बुला कर लाठीडंडों से पीटा. इतना ही नहीं, पुलिस वालों ने उस के ही खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया.

सरोज की हालत बिगड़ी, तो पुलिस वालों ने इलाज के लिए अस्पताल भेज दिया. 4 दिन तक जेल में सरोज को इतनी यातनाएं दी गईं कि वह 22 अक्तूबर तक इलाज कराती फिरी. लेकिन हिम्मत न हारते हुए उस ने पुलिस ज्यादती के खिलाफ एससीएसटी अदालत में मामला दर्ज कराया.

अदालत ने सरोज के आरोपों को सही ठहराते हुए थानेदार समेत पूरे थाने के ही खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने का हुक्म दे दिया.

पैसा हो तो बच जाते हैं

भोपाल के एक सीनियर पुलिस अफसर की मानें, तो सच तो यह है कि पुलिसिया कहर से बचने का एकलौता रास्ता चढ़ावा है, जो ज्यादातर लोग देते भी हैं, फिर भले ही इस के लिए उन्हें जमीनजायदाद और जेवरात बेचने पड़ें या भारी सूद पर कर्ज लेना पड़े.

रिटायर होने जा रहे इस इंस्पैक्टर के मुताबिक, पुलिस ज्यादती के महज 10 फीसदी मामले उजागर हो पाते हैं और कोई इन मामलों पर ध्यान नहीं देता.

खबरिया चैनलों पर धर्म पर बहस होती है, राजनीति पर बहस होती है, लेकिन कभी पुलिस ज्यादती पर नहीं होती. जाहिर है, यह जागरूकता की कमी की वजह से है.

पुलिस ज्यादती के 90 फीसदी शिकार गरीब और दलित तबके के लोग ही होते हैं. 10 फीसदी लोग थोड़े पैसे वाले और अकसर ऊंची जाति के होते हैं.

ये लोग कुछ लेदे कर ठुकाई से बच जाते हैं, जबकि इन्होंने वाकई में छोटा हो या बड़ा जुर्म किया होता है, लेकिन गरीब अकसर शक की बिना पर पकड़े जाते हैं और हवालात में लातघूंसे और बिजली का करंट खाते हैं.

खौफनाक तरीके से पिटाई

सच उगलवाने के नाम पर पुलिस जिन तरीकों का इस्तेमाल करती है, बोलचाल की जबां में उन्हें थर्ड डिगरी कहते हैं. इस पिटाई के जो स्पैशल तरीके चलन में हैं, उन में पहला है गिरफ्तार किए गए कैदी को ऐसी जगह मारना, जहां निशान कम पड़ें, जिस से पेशी के वक्त अदालत में पुलिस ज्यादती न दिखे.

एक खास किस्म की स्पैशल पिटाई जिसे देशभर में ‘आन मिलो सजना’ कहा जाता है, के तहत कैदी को नंगा कर हाथपैर बांध कर पीठ के बल लिटा

दिया जाता है. अव्वल तो इतने में ही कैदी कराहने लगता है, इस पर भी भारीभरकम डीलडौल वाला कोई पुलिस वाला उस के बदन पर चढ़ कर बैठ जाता है. फिर शुरू होती है बैल्ट या डंडे से कैदी की धुनाई, जो उसे उस की नानी याद दिला देती है.

एक और तरीका हैलीकौप्टर पिटाई के नाम से मशहूर या बदनाम है, जिस में कैदी के हाथपैर बांध कर उलटा लटका दिया जाता है. ऐसी हालत में खून का बहाव सिर की तरफ ही जाता है, जिस से कैदी को बेहद तकलीफ होती है और उस के सोचनेसमझने की ताकत जाने लगती है. इसी हालत में बैंतों से उस के जिस्म पर जगहजगह पिटाई की जाती है.

तीसरी तरह की खतरनाक पिटाई में कैदी के हाथपैर बांध कर उस की उंगलियों के बीच डंडा फंसा कर लगातार उसे दबाया जाता है. यह तरीका देशभर के थानों में आमतौर पर अपनाया जाता है, जिसे पुलिसिया जबां में ‘गिल्लीडंडा’ कहा जाता है.

सच उगलवाने के नाम पर झूठा जुर्म कबूलवाने के लिए कैदियों को भूखाप्यासा रखा जाता है और उन्हें सोने नहीं दिया जाता. ऐसे में हर कोई भले ही उस ने जुर्म न किया हो, मंजूर करने में ही अपनी भलाई और सलामती समझता है.

नहीं सुधरेंगे

भोपाल की एक आला अफसर बताती हैं कि आप या किसी भी पुलिस वालों से सुधरने की उम्मीद न रखें, क्योंकि हम पर नेताओं, अफसरों और बड़े कारोबारियों का दबाव रहता है. मीडिया वाले भी पीछे नहीं रहते. अगर मुजरिम जुर्म न कबूले, तो हमारी खाल उतारने में कोई रहम नहीं करता, फिर हम क्यों किसी से हमदर्दी से पेश आएं.

किसी मामले में हल्ला ज्यादा मचता है, तो कुसूरवार पुलिस वालों को कुछ वक्त के लिए सस्पैंड या लाइन हाजिर कर दिया जाता है, जो फिर वापस नौकरी पर आ जाते हैं. इस पर हर किसी का ध्यान नहीं जाता, क्योंकि तब तक मामला ठंडा पड़ चुका होता है.

समयसमय पर पुलिस की इमेज सुधारने की हर कहीं मुहिम चलती हैं, पर वह टांयटांय फिस होे कर रह जाती है, क्योंकि खुद पुलिस वाले नहीं चाहते कि उन की इमेज सुधरे. सुधरेगी तो उन्हें घूस मिलना बंद हो जाएगी और सारा रुतबा कोने में रखा रह जाएगा.

नरेंद्र मोदी सरकार ने 2 साल पहले पुलिस की इमेज सुधारने और दूसरी सहूलियतों के लिए 25 हजार करोड़ रुपए की भारीभरकम रकम मंजूर की थी. अब न तो सुधार का कहीं कोई पता है, न ही इस रकम का कि यह कहां गई?

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