सिताब दियारा की चांद दियारा पुलिस चैकपोस्ट के बाद जयप्रकाश नारायण के गांव लाला टोला जाने के लिए कच्ची और गड्ढों से भरी सड़कों से पाला पड़ता है. हिचकोले दर हिचकोले खाती गाड़ी को देख कर पता ही नहीं चलता है कि गड्ढे में सड़क है या सड़क में गड्ढा है.
बिहार और उत्तर प्रदेश की सरकारों के तरक्की के दावों का वहां कहीं नामोनिशान नहीं मिलता है. गांव की हालत देख कर मुंह से बरबस यही निकल पड़ता है, ‘यहां तक आते आते सूख जाती हैं कई नदियां, मुझे मालूम है पानी कहां ठहरा हुआ होगा.’
11 अक्तूबर, 1902 में सिताब दियारा के ही लाला टोला गांव में जयप्रकाश नारायण का जन्म हुआ था. उन के चेले नीतीश कुमार बिहार की सत्ता पर काबिज हैं और हर चुनाव में उन के नाम पर सियासत करते रहे हैं. इस के बाद भी वे अपने सियासी गुरु के गांव की बदहाली से बेखबर हैं.
जयप्रकाश नारायण का गांव सिताब दियारा हर साल गंगा और सरयू नदी की बाढ़ में डूब जाता है. बारिश के मौसम में हर साल सिताब दियारा के वजूद पर खतरा मंडराता रहता है.
गांव का एक किसान सिपाही राय बताता है कि बाढ़ के समय बालू के कुछ बोरे नदी के किनारे डाल कर सरकार अपना काम पूरा होना मान लेती है, पर गांव के लोग हर पल जानलेवा खतरे से जूझने के लिए मजबूर हैं.
सिताब दियारा की बदहाली की कई वजहें हैं. सब से बड़ी वजह इस का बिहार और उत्तर प्रदेश राज्यों के बीच फंसा होना है.
सिताब दियारा में कुल 37 टोले हैं. 10 टोले बिहार में और 27 टोले उत्तर प्रदेश में पड़ते हैं. इस से दोनों राज्यों की सरकारों और उन के अफसरों के बीच खींचतान चलती रहती है और अपनी जिम्मेदारियों को एकदूसरे पर डाल कर पल्ला झाड़ते रहते हैं.
लाला टोला गांव के हरि लाल गुस्से से कहते हैं कि जेपी के गांव को उन के चेलों ने ही तबाह कर दिया है. आज कई दलों और सरकारों में उन के चेले बैठे मलाई चाट रहे हैं, पर कहीं भी कोई भी जेपी का नामलेवा नहीं है.
लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, सुशील कुमार मोदी, रामविलास पासवान, नरेंद्र सिंह समेत कई बड़े और ताकतवर नेता जेपी की संपूर्ण क्रांति की ही उपज हैं. उन्हीं लोगों ने जेपी के गांव को ही नहीं, बल्कि उन के सपनों और संपूर्ण क्रांति के मकसद को ही मटियामेट कर के रख दिया है.
गांव में बिजली, पानी, सड़क वगैरह की हालत बदतर है. साल 2011 के बाद वहां बिजली की रोशनी कौंधी, तो गांव वालों की आंखें चुंधिया गई थीं.
बिजली इसलिए नहीं पहुंचाई गई थी, क्योंकि जेपी के चेलों को अचानक जेपी और उन के गांव की याद आ गई हो या उन्होंने अपनी गलती को सुधारने की कोशिश की हो.
गांव में बिजली गांव वालों के लिए नहीं, बल्कि भाजपा के नेता लाल कृष्ण आडवाणी के लिए पहुंची थी. उन्होंने 11 अक्तूबर, 2011 को सिताब दियारा से ही अपनी ‘जनचेतना यात्रा’ की शुरुआत की थी. उस से पहले 9 अक्तूबर को बिहार के तब के उपमुख्यमंत्री और भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने खुद वहां मौजूद रह कर गांव में बिजली का टांसफार्मर लगवाया था और बिजली का बल्ब जलवाया था.
बिहार बिजली बोर्ड को गांव में बिजली पहुंचाने में दिक्कतें हो रही थीं, तो उत्तर प्रदेश बिजली बोर्ड से करार कर के बिजली की लाइन खींची गई थी.
रामेश्वर टोले का मधु राय कहता है कि जेपी के नाम पर तो आज तक सिताब दियारा में बिजली नहीं पहुंची, पर लाल कृष्ण आडवाणी के 10 मिनट के लिए आने की वजह से ही गांव रोशन हो गया था.
वहीं हरकिशोर बताता है कि मोबाइल फोन चार्ज करने के लिए उसे पड़ोसी राज्य (उत्तर प्रदेश) में जाना पड़ता है. यहां बिजली रहती है, तो उस की आंखमिचौली चलती रहती है.
गंगा और सरयू (घाघरा) नदियों के संगम से घिरे सिताब दियारा में साल 2011 में बिजली तो पहुंचा दी गई थी, पर उस के बाद से रखरखाव करने वाला कोई नहीं है.
गांव का किसान महेश कुमार कहता है कि उत्तर प्रदेश बिजली बोर्ड के भरोसे कितने दिनों तक बिजली मिलती? नेताजी के जाते ही बिजली भी चली गई.
जेपी के गांव तक जाने वाली सड़क का भी वही हाल है, जो संपूर्ण क्रांति का हुआ. सड़कें इतनी खराब हैं कि लाल कृष्ण आडवाणी का रथ वहां तक पहुंच ही नहीं पाया और मजबूरी में उनको अपनी यात्रा छपरा से शुरू करनी पड़ी थी.
लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार जैसे कई बड़े नेता खुद को जेपी का चेला बता कर इतराते रहते हैं, लेकिन उन्हें जेपी के गांव को बचाने की कोई ललक ही नहीं है.
जेपी के नाम पर स्मारक, लाइब्रेरी, सभागार, म्यूजियम वगैरह बनाने का ऐलान हुआ, पर सारे के सारे ऐलान कागजी बन कर ही रह गए.