देश जिन हालातों और माहौल से गुजर रहा है उसे देखते हुए वाकई किसी बड़े आंदोलन की सख्त जरूरत है, जिससे मूर्छित होती जनता को सांस लेने नए और खुलेपन की आक्सीजन मिले. पिछले एक साल से आंदोलन करूंगा, आंदोलन करूंगा की रट लगाए बैठे गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हज़ारे ने इस अदृश्य मांग को समझते दोबारा एक बड़ा आंदोलन करने की हुंकार भर दी है. यह प्रस्तावित आंदोलन भी भ्रष्टाचार के ही खिलाफ होगा. इस बाबत अन्ना ने बाकायदा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखते चेतावनी भी दी है कि 3 साल गुजर जाने के बाद भी न तो लोकपाल और लोकयुक्तों की नियुक्तियां हुई हैं और न ही सरकार किसानों की समस्याओं को दूर करने स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट पर अमल करने कोई पहल कर रही है.
बकौल अन्ना हजारे वे बेहद व्यथित हैं और इसलिए फिर से जन आंदोलन करने को विवश हो रहे हैं. अपनी चिट्ठी में उन्होंने खासतौर से इस बात का जिक्र किया है कि अगस्त 2011 के उनके आंदोलन में दिल्ली के रामलीला मैदान पर देश के कोने कोने से आए लोगों ने शिरकत कर अपना समर्थन दिया था, जिसके चलते तत्कालीन सरकार को लोकायुक्त का कानून 17 और 18 दिसंबर 2013 को क्रमश राज्यसभा और लोकसभा में पारित करने बाध्य होना पड़ा था और बाद में राष्ट्रपति ने भी इस पर दस्तखत किए थे. नरेंद्र मोदी को संबोधित करते अन्ना ने लिखा है कि आपने सत्ता में आने से पहले जनता को भ्रष्टाचार मुक्त भारत के निर्माण का भरोसा दिलाया था लेकिन जिन राज्यों में आपकी पार्टी की सरकारें हैं वहां भी नए कानून के तहत लोकायुक्त नियुक्त नहीं किए गए हैं. क्या हुआ तेरा वादा वो कसम वो इरादा की तर्ज पर मोदी पर तंज कसते हुये अन्ना ने उनकी कथनी और करनी में आते फर्क का भी जिक्र किया है.
इस एलान के और खत के मजमून के अपने दीर्घकालिक माने हैं कि मोदी जी भी पूनम गुप्ता की तरह बेवफा निकले, इसलिए उन्हें भी आंदोलन के जरिये वफा का सबक सिखाया जाएगा और मुमकिन है इस बाबत जगह भी वही हो, लोग भी वही हों, माहौल भी वही हो, लेकिन बाजी अन्ना के हाथों में ही होगी, इसमें शक है क्योंकि तीन साल में देश सचमुच में काफी बदल चुका है और उसकी प्रमुख समस्या भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि तेजी से देश को अपनी गिरफ्त में लेता नव हिंदुत्व या राष्ट्रवाद है, जिस पर अन्ना की नजर नहीं गई है या फिर जानबूझकर उन्होंने सत्ता पर हावी होते पंडावाद को अनदेखा कर दिया है, इसे समझ पाना हाल फिलहाल मुश्किल काम है.
लेकिन यह तय है कि इस बार भी उनके निशाने पर बिना किसी भेदभाव के सरकार और उसके मुखिया हैं. जन शक्ति आंदोलन पार्ट 2 को हालांकि उम्मीद के मुताबिक शुरुआती रेस्पान्स नहीं मिला है, लेकिन अन्ना की जिद और इच्छाशक्ति को हल्के में लेने की भूल मोदी और भाजपा करेंगे ऐसा लग नहीं रहा. 2011 के उनके हाहाकारी आंदोलन से भ्रष्टाचार भले ही खत्म न हुआ हो, लेकिन कांग्रेस जरूर खत्म सी हो गई, जिसे नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार का पर्याय बताते थकते नहीं थे, पर तब सिर्फ भ्रष्टाचार था और अब उसके साथ साथ वंदे मातरम, भारत माता, गौ माता, राष्ट्र गान वगैरह भी हैं, जिन्हें मौजूदा सरकार ने ही एक आंदोलन सा ही बनाकर रख दिया है.
राष्ट्रीय समस्याओं के नए बनते अपार्टमेंट में भ्रष्टाचार टौप फ्लोर पर है, लेकिन ग्राउंड फ्लोर पर धर्म और उसके सहायक तत्वों की पार्किंग है, जिससे होकर गुजरना अन्ना हज़ारे के लिए एक दुश्वारी वाला काम होगा. कमजोर और बिखरे विपक्ष को अन्ना का नया ऐलान राहत देने वाला हो सकता है, जिसमें मुमकिन है दिल्ली की बवाना विधानसभा सीट जीत कर फिर से वापसी कर रहे अपने चेले अरविंद केजरीवाल को वे फिर हीरो बना दें या दो चार और नए नायक पैदा कर दें, परंतु 2011 जैसा जन समर्थन अन्ना हजारे को शायद ही मिले, वजह उनके आंदोलन का पेटर्न और डिजायन वक्त के हिसाब से नहीं बदले हैं.
उन्हे अगर टौप फ्लोर गिराना है तो पहला बुलडोजर ग्राउंड फ्लोर पर चलाना पड़ेगा, जिसके किसी फ्लेट में उनका गांधीवाद भी बंधक पड़ा है. भाजपा की धर्मांधता को अरविंद केजरीवाल भी चुनौती देने की हिम्मत नहीं जुटा पाये थे, संभव नहीं दिख रहा कि अन्ना हजारे भी सच, एक कडवे सच से जूझने का दुसाहस कर पाएंगे. ऐसे में उनका आंदोलन टाइम पास इवैंट बन कर रह जाये तो बात कतई हैरानी की नहीं होगी.