उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की जीत का असर बिहार की राजनीति पर दिखने लगा है. इस के अलावा 4 राज्यों में भाजपा की सरकार बनने के बाद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और जद (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने बीच के तमाम विवादों को खत्म करने की कोशिशें शुरू कर दी हैं. दोनों नेता लगातार एकदूसरे से मिल रहे हैं और साथसाथ फोटो भी खिंचवा रहे हैं. इस बहाने दोनों धुरंधर यह संदेश देने की पुरजोर कवायद कर रहे हैं कि उन के बीच सबकुछ ठीक है और हर हाल में दोनों साथसाथ हैं.
लालू प्रसाद यादव ने तो बातचीत में ईमानदारी से यह कबूल भी किया कि अगर अब भी गैरभाजपाई दल एकजुट नहीं हुए, तो उन के खत्म होने का पूरा खतरा है.
महागठबंधन में दरार, उठापटक और खटास की अटकलों पर पानी डालते हुए नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव ने एक सुर में कहा है कि वे साथसाथ हैं और उन के बीच कोई विवाद या तनाव नहीं है.
लालू प्रसाद यादव ने यह भी कहा कि नीतीश कुमार की अगुआई में महागठबंधन की सरकार मजबूती से काम कर रही है और वह अपना कार्यकाल पूरा करेगी. वे और नीतीश कुमार मिल कर दिल्ली से भाजपा को खदेड़ेंगे.
लालू प्रसाद यादव कहते हैं, ‘‘कितनी मेहनत से महागठबंधन के पेड़ को खड़ा किया है और उसे खुद ही कालिदास बन कर काट देंगे क्या? संघ बिहार को तोड़ने की साजिश में लगा हुआ है, क्योंकि बिहार उस का डेंजर जोन है.’’
वहीं नीतीश कुमार भी लालू प्रसाद यादव के सुर में सुर मिलाते हुए कहते हैं कि महागठबंधन को ले कर भरम और अफवाह फैलाने वालों की दाल बिहार में नहीं गलेगी. कुछ लोगों को बिहार और महागठबंधन को बदनाम करने की आदत पड़ चुकी है.
भाजपा के खिलाफ नैशनल लैवल पर महागठबंधन बनाने के लिए नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव ने 3 अप्रैल, 2017 को लंबी बातचीत की. पिछले दिनों 5 राज्यों के चुनाव नतीजे आने के बाद पहली बार दोनों नेताओं की मुलाकात हुई.
मुलाकात के बाद लालू प्रसाद यादव ने बताया कि देश को बचाने के लिए गैरभाजपाई दलों की गोलबंदी जरूरी हो गई है. अगर ऐसा नहीं हुआ, तो धर्मनिरपेक्ष ताकतों का बोरियाबिस्तर गोल हो जाएगा.
नीतीश कुमार ने कांग्रेस को इस पर पहल करने को कहा है, क्योंकि वह बड़ी और सब से पुरानी पार्टी है. लालू प्रसाद यादव ने भी यही कहा कि नीतीश कुमार के साथ वे भी सभी दलों के नेताओं से बात करेंगे और राष्ट्रीय महागठबंधन के लिए जमीन तैयार करेंगे.
उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावी नतीजों में भाजपा को मिली भारी जीत के बाद दोनों नेताओं ने सभी विपक्षी दलों से गुहार लगाई है कि वे आपसी तनाव और अहम को छोड़ कर एक मंच पर आ जाएं, तो इस मुहिम को जमीन पर उतारने में कोई दिक्कत नहीं होगी. उत्तर प्रदेश के चुनाव नतीजे को गैरभाजपाई दलों को चेतावनी और चुनौती की तरह लेना होगा.
लालू प्रसाद यादव ने अपनी पार्टी राजद को राममनोहर लोहिया और मधु लिमये की नीति पर हर कार्यकर्ता को चलाने की रणनीति बनाई है. बिहार के पड़ोसी उत्तर प्रदेश में भगवा पार्टी की कामयाबी और समाजवादियों की करारी हार के बाद राजद ने बिहार में खुद को नए सिरे से खड़ा करने की तैयारी शुरू की है.
लालू प्रसाद यादव कहते हैं कि समाजवादियों की हार को उन्होंने चुनौती के रूप में लिया है. उन्हें इस बात का यकीन है कि बिहार ने हमेशा भगवा रथ को रोका है. सब से पहले लालकृष्ण आडवाणी के रथ को लालू प्रसाद यादव ने बिहार में रोक दिया था. उस के बाद पिछले विधानसभा चुनाव में बिहार ने नरेंद्र मोदी की लहर को नाकाम कर दिया था. इन्हें भरोसा है कि वे अपने 30 लाख सक्रिय कार्यकर्ताओं के दम पर साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में हिंदुत्व के उभार को पटकनी दे सकते हैं.
लालू प्रसाद यादव के बेटे और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव कहते हैं कि वे अपने कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग देंगे कि किस तरह से महागठबंधन की सरकार के कामकाज को गांवगांव और जनजन तक पहुंचाया जाए. इस के लिए कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर लगाया जाएगा.
2 मई से 4 मई तक राजगीर में राजद के सभी नेताओं और ब्लौक लैवल के प्रमुख कार्यकर्ताओं को शिविर में बुलाया गया. राजद ने नया नारा बुलंद किया कि आबादी के हिसाब से देश में बजट बनाया जाए. समाजवादी विचारधारा को पंचायतों और वार्डों तक पहुंचा कर भगवा विचारधारा को हराया जा सकता है.
लालू प्रसाद यादव पिछले 30 सालों से समाजवाद और दलितों, पिछड़ों व अल्पसंख्यकों की राजनीति की धुरी रहे हैं. उत्तर प्रदेश में भाजपा को मिली जीत के बाद के खतरे को उन्होंने तुरंत भांप लिया है. वे साफसाफ कहते हैं कि अब भी अगर धर्मनिरपेक्ष पार्टियां अपनाअपना अहम छोड़ कर एक मंच पर नहीं आएंगी, तो सांप्रदायिक ताकतें और भी मजबूत होती चली जाएंगी और हमारा वजूद खत्म हो जाएगा.
ईगो प्रौब्लम की वजह से सभी विरोधी दल एकजुट नहीं हो पा रहे हैं, जबकि सभी गैरभाजपाई दलों की एक ही मंजिल है. सभी दल दिल्ली से भाजपा को उखाड़ने की कोशिश में लगे हुए हैं.
पिछले कुछ समय से लालू प्रसाद यादव ने केंद्र की भाजपा सरकार पर जम कर निशाना साधना शुरू कर दिया है. वे बारबार जोर दे कर अपने वोटरों से कह रहे हैं कि केंद्र सरकार ने अडानी का 2 हजार करोड़ रुपए का कर्ज माफ कर दिया. रिलायंस कंपनी को फायदा पहुंचाया जा रहा है.
मोदी सरकार को अमीरों की सरकार करार देते हुए वे कहते हैं कि अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा को जड़ से उखाड़ फेंकने की जरूरत है, नहीं तो गरीबों का जीना मुहाल हो जाएगा.
अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार ने पिछले सारे विवादों और तनावों को दूर करने की पहल की है, जो महागठबंधन के लिए सुकून की बात है.
उत्तर प्रदेश और पंजाब के विधानसभा चुनावों के दौरान नीतीश कुमार लालू प्रसाद यादव की अनदेखी कर अकेले ही वहां जा कर सभाएं कर रहे थे. महागठबंधन में बखेड़ा खड़ा करने से बचने के लिए लालू प्रसाद यादव चुप रह गए, पर राजद के थिंक टैंक माने जाने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह ने यह कहने से परहेज नहीं किया कि अपने सियासी फायदे के लिए नीतीश कुमार महागठबंधन के साथियों की अनदेखी करते रहे हैं.
उन्होंने नीतीश कुमार से कई तल्ख सवाल भी पूछे थे. जैसे, नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार किस ने बना दिया? किस हैसियत से नीतीश कुमार मिशन, 2019 की बात कर रहे हैं? क्या अकेले घूम कर नीतीश कुमार सैकुलर ताकतों को कमजोर और सांप्रदायिक ताकतों को मजबूत नहीं कर रहे हैं? दूसरे राज्यों में सभा करने से पहले नीतीश कुमार को क्या सहयोगी दलों से बात नहीं करनी चाहिए थी? क्या उन्हें भरोसे में नहीं लेना चाहिए था?
इन सवालों पर नीतीश कुमार चुप्पी साधे रहे गए और लालू प्रसाद यादव ने भी कुछ नहीं कहा.
राजद सूत्रों के मुताबिक, लालू प्रसाद यादव इस बात से काफी नाराज हुए थे कि नीतीश कुमार ने उन से कोई सलाहमशवरा किए बगैर उत्तर प्रदेश के बनारस, कानपुर, नोएडा और लखनऊ में अकेले ही लगातार कई रैली कर डालीं. इस मामले में महागठबंधन को भरोसे में नहीं लिया गया.
नीतीश कुमार के उत्तर प्रदेश में धुआंधार चुनाव प्रचार कर और अपना जनाधार बनानेबढ़ाने की जुगत से लालू प्रसाद यादव कतईर् खुश नहीं थे. पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुर्मी जाति की अच्छीखासी आबादी है और नीतीश कुमार की नजर उन पर गड़ी हुई थी.
लालू प्रसाद यादव ने कई दफा नीतीश कुमार को समझाने की कोशिश की कि प्रधानमंत्री बनने के चक्कर में कहीं मुख्यमंत्री की कुरसी न गंवानी पड़ जाए? इस से जहां महागठबंधन का मकसद पूरा नहीं होगा, वहीं भाजपा को मजबूत होने का मौका भी मिल जाएगा.
गौरतलब है कि 243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा में महागठबंधन ने 178 सीटों पर कब्जा किया है. इस में राजद के खाते में 80, जद (यू) की झोली में 71 और कांग्रेस के हाथ में 27 सीटें हैं. राजग के खाते में 58 सीटें हैं.
लालू प्रसाद यादव को महागठबंधन में अपनी ताकत का एहसास है और इस के साथ उन्हें यह भी डर है कि महागठबंधन में विवाद होने से भाजपा उस का फायदा उठा सकती है.
लालू प्रसाद यादव की नाराजगी की वजह से ही नीतीश कुमार ने नोटबंदी, सर्जिकल स्ट्राइक, थल सेनाध्यक्ष की नियुक्ति के मामले में केंद्र सरकार का समर्थन कर अपने सहयोगी दलों के साथ समूचे विपक्षी दलों का सिर चकरा दिया था.
लालू प्रसाद यादव भी हैरत में थे. इस से राजनीतिक हलकों में यह अफवाह जोरों से चलने लगी कि नीतीश कुमार दोबारा राजग में जाने का माहौल बना रहे हैं, जबकि नीतीश कुमार को करीब से जानने वाले बताते हैं कि नीतीश कुमार की राजनीतिक चाल दूसरे नेताओं से अलग है.
साल 2012 में जब नीतीश कुमार भाजपा की मदद से बिहार में सरकार चला रहे थे, तो उस समय उन की पार्टी जद (यू) ने राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी को वोट दिया था. उस के बाद जब कांग्रेस सरकार जीएसटी बिल लाई, तो नीतीश कुमार ने उस का भी समर्थन किया था, जबकि उन की सहयोगी भाजपा ने जीएसटी बिल को पास नहीं होने दिया था.
नीतीश कुमार सियासत के चतुर और माहिर खिलाड़ी हैं. फिलहाल जहां वे लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस की मदद से बिहार में सरकार चला रहे हैं और साल 2019 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी को कड़ी टक्कर देने की कवायद में
लगे हुए हैं, वहीं दूसरी ओर वे भाजपा से हाथ मिलाने का रास्ता भी बना कर रखे हुए हैं.
पिछले महीने 4 राज्यों में भाजपा की सरकार बनने के बाद नीतीश कुमार का सियासी गणित कुछ गड़बड़ा सा गया है. उन्हें लगने लगा है कि बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को मिली कामयाबी को नैशनल लैवल पर आजमाया जा सकता है. इस के अलावा दूसरा कोई चारा भी नहीं है.
बातबेबात पर लालू प्रसाद यादव को नाराज और नजरअंदाज करने की रणनीति में बदलाव करते हुए नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव के गले
मिल कर फोटो खिंचवाया और जनता को बतानेजताने की कोशिश की कि महागठबंधन पर कोई विवाद नहीं है और लालू प्रसाद यादव से भी कोई खटास नहीं है.
नीतीश कुमार के बदलाव को देख कर लालू प्रसाद यादव भी खुश हैं, तभी तो वे कहने लगे हैं कि बिहार में भाजपा वालों के लिए कोई जगह नहीं है. यहां कोई वैकेंसी नहीं है. वे और नीतीश कुमार मिल कर दिल्ली से भाजपा को खदेड़ कर ही दम लेंगे.