जम्मूकश्मीर में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. 5 लाख से ज्यादा की फौज भी वहां के बाशिंदों को पूरी तरह कंट्रोल में नहीं कर पा रही और अलगाववादी खुलेआम सेना और सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी कर रहे हैं. 60 सालों में दुनिया का स्वर्ग कहलाया जाने वाला कश्मीर अब एक नरक सा बन गया है, जहां न बाहरी जना सेफ है, न कश्मीरी.

उम्मीद थी कि भारतीय जनता पार्टी और महबूबा मुफ्ती की सरकार मिल कर, कंधे से कंधा मिला कर चल कर कश्मीरियों को एक नया रास्ता दिखाएगी. कश्मीरी जवान भी और जगहों की तरह अच्छी नौकरियों, अपने मकान, खुशियों भरे माहौल के लिए तड़प रहा है, पर दोनों तरफ के कट्टरपंथियों के बीच बुरी तरह पिस रहा है. श्रीनगर में आजादी के नारे चाहे दीवारों पर लगे फीके पड़ते दिख जाएं, पर कोचिंग क्लासों के बोर्ड जगमग कर रहे हैं.

कश्मीरी समझ तो गए हैं कि अगर खुशहाली लानी है तो पढ़ना होगा, अपने पैरों पर खड़ा होना होगा, क्योंकि अगर भारत या पाकिस्तान ने कुछ दिया भी तो वह ऊपर के अफसर व नेता हड़प जाएंगे. अपना कल सुधारना है तो मेहनत करनी होगी. कश्मीरी मेहनती हैं, पर धर्म के मामले में कमजोर भी. उन के दिमाग में कीड़ा घुसा है कि शायद भारत से अलग वे ज्यादा अच्छे रहेंगे.

असलियत यह है कि दोनों देशों की सरकारों के लिए कश्मीर तो बहाना है बाकी जनता को फुसलाने और बहलाने के लिए. कश्मीर के नाम पर भारत में इलैक्शन जीते जाते हैं, तो पाकिस्तान में सेना को मनमानी करने का हक मिल जाता है. अगर कश्मीर का मुद्दा न हो तो पाकिस्तान शायद 2-3 मुल्कों में बंट तक जाए.

अफसोस यह है कि जैसे जवाहरलाल नेहरू ने 1947 में सही फैसले न ले कर कश्मीर को आफत की पुडि़या बना दिया था, वैसे ही आज इस की हर रोज नई पुडि़या बनाई जा रही है. सेना के एक ज्यादा दबंग अफसर ने एक जीप पर एक कश्मीरी आदमी को बांध कर पत्थर फेंकने वालों से बचाव का नायाब तरीका तो ढूंढ़ा, पर इस की बड़ी कीमत भारत को दुनियाभर की मेजों पर देनी होगी, जब दूसरे देश इस अत्याचार की सफाई मांगेंगे.

समझदार, ईमानदार सरकार से उम्मीद थी कि वह ऐसा हल निकालेगी कि कश्मीर की जनता को लगेगा कि भारत के साथ उस को लाभ ही लाभ है, पर लगता है कि चुने जाने से पहले के वादों और हकीकत में बहुत फर्क होता है. भाजपा सरकार कश्मीर की हिंसा के सामने कांग्रेस सरकारों की तरह बेबस नजर आ रही है.

सरकार की यह कमजोरी देश के लिए गलत संदेश दे रही है. लोगों को जिस प्रैक्टिकल सरकार की उम्मीद थी, वह कश्मीर में तो दिख नहीं रही.

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