सरकार ने मुसलिम विवाह कानून तीन बार तलाक तलाक तलाक कह कर शादी को तोड़ने के मामले को इस तरह उछालने की जिद पकड़ ली है, मानो इस के खत्म होते ही औरतों, खासतौर पर मुसलिम औरतों को जहालत और जलालत से नजात मिल जाएगी. ट्रिपल तलाक उतना ही बुरा है, जितना हिंदुओं में कुंडली, व्रत, उपवास, दहेज, जातिउपजाति हैं. 50 सालों के कहने भर के सुधार के बावजूद हिंदू लड़कियों को शादी और शादी के बाद वैसी ही मुसीबतें झेलनी पड़ती हैं, जैसी ट्रिपल तलाक की शिकार मुसलिम औरतों को.

मुसलिम धर्म के दुकानदार इस मामले पर सकपकाए हुए हैं. कांग्रेसी राजों के दौरान उन के पास वोट की थोड़ीबहुत ताकत थी और उस के सहारे उन्होंने मुसलिम शादीब्याह के मामलों में कोई बदलाव न आने दिया और औरतों को गुलाम की सी जिंदगी जीने को मजबूर किया. कहने को मुसलिम शादी में मेहर तय होता है, पर आम गरीबों में यह मामूली रकम होती है और इसे वसूलने का कोई तरीका नहीं है.

हिंदू कानूनों में अब मजिस्ट्रेट गुजारा भत्ता दिला सकता है, पर उस के लिए मोटी रकम तो वकीलों और पेशियों पर ही खर्च हो जाती है. मुसलिम व हिंदू औरतों की तलाक के बाद एक सी बुरी हालत होती है, बजाय तलाक के बाद औरतों को कोई हक दिलाने के नरेंद्र मोदी मुसलिम तलाक के खिलाफ पिल पड़े हैं, मानो यही औरतों को आगे बढ़ने से रोक रहा है. गुजरात चुनावों में वे 5 के 25 की बातें भी जम कर करते थे जो मुसलिमों में एक से ज्यादा बीवियां रखने पर है. उन्होंने यह हिसाब करने की कतई कोशिश नहीं की कि अगर हर मर्द के पास 4 बीवियां हों, तो आबादी में औरतों को 4 गुना होना पड़ेगा. हिंदुओं की तरह मुसलिमों में औरतों की गिनती आदमियों से कम है और यह जनगणना से साफ है.

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