भाजपा संसदीय दल की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सांसदों की भूमिका तय कर दी है कि वे सब हनुमान हैं और खुद नरेंद्र मोदी मर्यादा पुरुषोत्तम राम हैं. हनुमान एक शक्तिशाली बंदर था जिसने कई असंभव अभियानों को अंजाम तक पहुंचाया और कभी उफ करना तो दूर की बात है राम से कोई सवाल भी नहीं पूछा. ऐसी ही निष्ठा की उम्मीद मोदी अपने सांसदों से रखते हैं कि वे सेवक बने रहें. त्रेता की रामायण और आज की लोकतान्त्रिक रामायण में कई समानताएं और कुछ असमानताएं भी हैं. मोदी ने कभी वनवास नहीं भोगा, न ही वे किसी रघुकुल में पैदा हुये थे, पर आज वाकई वे किसी चक्रवर्ती सम्राट से कम नहीं, जिसके अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े रोकने कोई लव कुश नहीं और तो और तो और इस रामायण में माता सीता होते हुये भी नहीं हैं, जो जाने कौन से गुनाह का वनवास भोगते राम राम जपने की अपनी आदत नहीं छोड़ पा रहीं.

भाजपाइयों का राम बन जाने का शौक नया नहीं है. मंदिर आंदोलन के दौरान राम का टाइटल और भूमिका लालकृष्ण आडवाणी के पास थे. वे तो रथ पर धनुष बाण लेकर ही निकलते थे कि रावण कहीं दिख भर जाये तो एक तीर में ही उसका काम तमाम कर दें. संसदीय दल की मीटिंग में वे थे, पर शायद ही हनुमान खुद को वह भी मोदी का कहलाना पसंद करें, अच्छा होता मोदी उन्हे विश्वामित्र टाइप का कोई किरदार थमा देते. राम ने छल से एक और बंदर बाली को मारा था पर मोदी तो रोज किसी न किसी बाली का राजनैतिक वध करते हैं. कांग्रेस को तो उन्होंने लंका की तर्ज पर उखाड़ ही फेंका है.

राम ने एक शूद्र स्त्री शबरी के झूठे बेर खाये थे, मोदी ने तो शबरी के बेर ही छीन लिए. रामायण में एक शूद्र था शंबूक, वह पठन पाठन का बड़ा शौकीन था, इसी शौक शौक में वह अपनी जाति भूल गया और वेदों का श्रवण पाठन करने लगा. अपना यह अपराध जब उसे समझ आया तब तक वह सुनने की शक्ति खो चुका था.

लोकतन्त्र की यह मजबूरी है कि मोदी ने इस रिवाज में कुछ छूट दे दी और दलितों को कुम्भ स्नान करा दिया, जिससे वे पवित्र भाव से मतदान करें. दलितों ने भी हालिया उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में शबरी को छोड़ राम को चुना. हनुमान की अपनी पूरी टीम थी जिसमे सुग्रीव, जामवंत, अंगद वगेरह प्रमुख थे, बेहतर होता कि मोदी मीटिंग में टाइटल वितरण भी कर देते कि कौन क्या है. इससे  लोगों को यह लोकतान्त्रिक रामायण समझने में आसानी रहती.

अब 372 में से असल हनुमान को पहचान पाना कठिन काम तो है क्योकि सारे बंदर एक से दिखते हैं. कुछ कुछ लोग अमित शाह को असली हनुमान मानते हैं, जबकि कुछ लोग उन्हे लक्ष्मण करार देते हैं. इस राम दरबार जिसे संसदीय दल की मीटिंग कहा गया में खुद को राम तो मोदी ने घोषित कर दिया, पर यह भूल गए कि राम हनुमान की ताकत से नहीं, बल्कि विभीषण की गद्दारी से जीता था. अब विभीषण कौन है लोग अभी तक अंदाजे ही लगा रहे हैं. मान लेने में हर्ज नहीं की यही राम राज्य है, जिसमें गरीबी भुखमरी और अपराध चरम पर हैं, पर चूंकि राम राज्य है इसलिए ये सब चीजें दिखेंगी नहीं, वे तो यज्ञ और हवन के धुएं में उड़ रही हैं.

त्रेता में भी यही होता था कि गुलाम और औरतें खुले आम बिकती थीं. लोग जानवरों की तरह लड़ते थे, इसलिए ऋषि मुनियों की दुकाने खूब चमकती थीं. आज भी चमकती हैं बस फर्क यह है कि राम तो एक ही है, हनुमान कई हो गए हैं, जिन्हें कुर्सी के सपने से दूर रखने समारोह पूर्वक यह खिताब दे दिया गया है जिससे उनमे दासत्व का भाव बना रहे.

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