उत्तर प्रदेश में भगवा वस्त्रधारी योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे अयोध्या के राममंदिर का मुद्दा है. भाजपा अब सीधे हिन्दुत्व पर भरोसा करने के बजाय प्रतीक के सहारे अपने वोटबैंक को साधना चाहती है. योगी आदित्यनाथ पूरी तरह से धर्मिक चेहरा हैं. ऐसे में भाजपा का कोर वोटर इस बात को लेकर खुश है कि केन्द्र सरकार ने राम मंदिर न सही पर प्रदेश की सत्ता हिदुत्व के अगुवा नेता के हवाले कर दी है. योगी गोरखपुर की गोरक्षा पीठ के मंहत हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश में उनका संगठन हिन्दू युवावाहिनी बहुत सक्रिय है. ऐसे में वह भाजपा के मददगार साबित होते हैं. 5 बार के सांसद योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के 32 वें मुख्यमंत्री हैं. पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो भगवा पहनते हैं और शादीशुदा नहीं हैं.
भाजपा योगी को चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने का पूरा मन बना चुकी थी. भाजपा के पूर्वी उत्तर प्रदेश के 2 बड़े नेता इस बात का विरोध कर रहे थे. ऐसे में योगी का नाम मुख्यमंत्री पद के लिये घोषित नहीं किया गया. योगी को इस बात की पूरी जानकारी पहले से मिल चुकी थी. यही वजह है कि विधानसभा चुनाव के पूरे प्रचार अभियान में वह सबसे प्रमुख चेहरे के रूप में सामने आते रहे. जैसे ही भाजपा को बहुमत हासिल हुआ उसने योगी को आगे कर दिया. मीडिया और भाजपा के दूसरे नेताओं को भ्रम में रखने के लिये भाजपा पूरे एक सप्ताह तक लोगों को भ्रमित करती रही.
जैसे ही गोवा, मणिपुर, उत्तराखंड में सरकार बनाने के बाद पार्टी को मौका मिला उसने अपने मिशन उत्तर प्रदेश को अंजाम तक पहुंचाते हुये गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ को प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया. योगी को कामकाज में मदद करने के लिये उपमुख्यमंत्री के रूप में प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्य और लखनऊ के मेयर डाक्टर दिनेश शर्मा को पद दे दिये गये. 1980 के बाद उत्तर प्रदेश में उपमुख्यमंत्री का पद दोबारा बहाल हुआ है. इसे एक तरह से सत्ता के संतुलन के रूप में देखा जा रहा है. भाजपा योगी की छवि का प्रयोग राममंदिर को लेकर पार्टी पर उठ रहे सवाल के जवाब में करना चाहती है.
भाजपा को केन्द्र सरकार में पूर्ण बहुमत हासिल है. 282 लोकसभा सदस्य उसके पास हैं. देश के अलग अलग 16 राज्यों में उसकी सरकार है. उत्तर प्रदेश की विधानसभा में 325 विधायक उसके पास हैं. उत्तर प्रदेश में जीत के बाद 1 साल के अंदर राज्यसभा में भी भाजपा को बहुमत हासिल होगा. ऐसे में पहली बार देश में भाजपा सबसे पावरफुल रोल में है. भाजपा हमेशा से यह कहती रही है कि जैसे ही उसे देश और प्रदेश में स्पष्ट बहुमत हासिल होगा राममंदिर बन जायेगा. अब वह समय भाजपा के सामने है. भाजपा के लिये अब राममंदिर मुद्दे पर ‘यूटर्न‘ लेने का कोई रास्ता नहीं है. भाजपा के सामने एक ही रास्ता था कि वह ऐसे चेहरे को मुख्यमंत्री बनाये जिसके बनने से हिदुत्व की छवि को बचाया जा सके.
योगी खुद में राममंदिर के सबसे बडे समर्थक रहे हैं. ऐसे में 2019 के चुनाव तक हिन्दुत्व को मानने वाले वोटर राममंदिर के मुद्दे पर भाजपा को घेरने का कोई प्रयास नहीं करेंगे. भाजपा अपने वोटर को यह समझाने में सफल हो जायेगी कि उसने राममंदिर को दरकिनार नहीं किया है. हिन्दुत्व वाला वोटर भाजपा के अगर किसी नेता पर भरोसा कर सकता है तो वह योगी आदित्यनाथ ही थे. क्योंकि वह राममंदिर के मुद्दे पर गोलमोल जवाब नहीं देते थे. ऐेसे में भाजपा ने योगी को प्रदेश की कमान देकर अपने पर उठते सवालों की ढाल तैयार कर ली है. देखने वाली बात यह है कि अब तक राममंदिर पर स्पष्ट राय रखने वाले योगी अब क्या करते हैं?