Family Story: महज 30 साल की उम्र में पंकज ने अपनी कारोबारी हैसियत का लोहा मनवा लिया था. पिता के टैंट हाउस के काम को वह नई ऊंचाई पर ले जा चुका था.
‘पंकज टैंट हाउस’ का नाम अब शहर से बाहर भी अपना डंका बजाने लगा था. बड़े आयोजन के लिए उस के काम का कोई सानी नहीं था. जहां उस के पिता 25 लोगों के स्टाफ के साथ अपना कारोबार चलाते थे, वहीं पंकज ने पिछले तकरीबन डेढ़ साल में 200 लोगों का स्टाफ अपने नीचे काम करने के लिए रख लिया था.
पैसों की बारिश के साथ सामाजिक इज्जत में भी भारी इजाफा हुआ था, पर इस शानशौकत, इज्जत, पैसे के एवज में पंकज न तो चैन की नींद ले पाता था, न ही ढंग से भोजन कर पाता था.
पंकज की शादी हुए भी 2 साल हो चुके थे, पर 3 दिन के हनीमून के अलावा उस के पास बीवी के लिए भी समय नहीं था. मातापिता और पत्नी उसे काम के फैलाव को समेटने के लिए समझाते, पर उस का जुनून उसे अपने काम के नशे से सरोबार रखता.
सारा दिन औफिस और साइट के बीच भागदौड़ और साथ ही मोबाइल पर लगातार बातचीत पंकज को एक पल के लिए भी अपने या परिवार के बारे में सोचने का मौका नहीं देता था. सुबह जल्दबाजी में नाश्ता कर घर छोड़ता, दिन में जो मिल जाता खा लेता और देर रात घर लौट कर जो भी उसे परोस दिया जाता, अपना ध्यान फोन पर उंगली फिराते हुए खा लेता.
ज्यादा मेहनत करने से पंकज की सेहत पर बुरा असर पड़ने लगा था. कभी सिरदर्द, तो कभी बदनदर्द, एयरकंडीशंड औफिस में भी काम करते समय कभी माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा आती थीं.
एक दिन ऐसे ही बेचैनी में पंकज औफिस से उठ कर अपने गोदाम की ओर चल दिया. 4-5 मजदूर सामान को जमातेजमाते भोजन करने जमीन पर घेरा बना कर बैठे थे. कोई डब्बे में तो कोई थैली में से भोजन निकाल रहा था और हंसीठिठोली से माहौल में मस्ती घोल रहा था.
पंकज चुपचाप उन को निहारता रहा और उसे उन को देख कर ही सुकून मिलने लगा था.
‘‘ले… मेरे कटहल के अचार का स्वाद चख, मेरी नानी ने बना कर भिजवाया है,’’ एक मजदूर ने दूसरे को मनुहार से अपना खाना साझा किया, तो दूसरा मजदूर बोला, ‘‘मेरी बीवी भी प्याजपरवल की सब्जी बहुत अच्छी बनाती है, सब चख लो.’’
अचानक एक मजदूर की नजर पंकज पर पड़ी, तो सब चुप हो गए. वह धीरे से चल कर उन के पास आया, तो एक मजदूर सकपका कर बोला, ‘‘हम बस अभी खाना खाने बैठे हैं. जल्दी खा लेते हैं. कोई काम है, तो आप बताइए?’’
पंकज झिझकते हुए बोला, ‘‘क्या मैं भी आप लोगों के साथ बैठ कर भोजन कर सकता हूं?’’
कुछ देर की शांति के बाद एक जना अटकते हुए बोला, ‘‘हमारा भोजन शायद आप को पसंद न आए और फिर आप कहां बैठ कर खाएंगे? यहां तो बरतन भी नहीं हैं.’’
‘‘अरे, मैं यहीं तुम्हारे साथ बैठ कर भोजन करना चाहता हूं, अगर आप को एतराज न हो तो…?’’ एक मुसकराहट के साथ पंकज ने कहा, तो खुशीखुशी सभी लोगों ने सरक कर घेरा बड़ा कर लिया और उस के लिए जगह बना दी.
पंकज पूरे मजे के साथ एकएक कौर खाते हुए सोच रहा था कि इतनी दौलत होने के बाद भी उस ने जिंदगी में पिछली बार कब इतने शौक से भोजन किया था?
बहुत सोचने के बाद भी पंकज याद नहीं कर पाया. इस समय तो बारबार बजते फोन को भी उस ने साइलैंट मोड पर कर दिया था. उस के कारोबार के लिए मेहनत करने वाले कामगारों को वह पहली बार जाननेसमझने का मौका पा रहा था, जो सब मिल कर उसे अपनी बातों से अनोखा मजा दे रहे थे.
वहां से खाना खा कर जाते हुए पंकज यह सोच रहा था कि वह अपने सभी कामगारों को एक शानदार तोहफा देगा और काम से छुट्टी ले कर अपने परिवार के लिए भी रोज समय जरूर निकालेगा.
पंकज की चिंता और दर्द अब काफूर हो चुके थे और उसे लग रहा था कि उस ने अपने ऊपर जबरदस्ती का लादा हुआ बोझ उतार फेंका है.