उत्तर प्रदेश की योगी आदित्य नाथ सरकार पर संकट के बादल गहरे काले होते जा रहे हैं. एक तरफ नरेंद्र मोदी की चाह है कि योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री पद से मुक्त हो जाएं, तो दूसरी तरफ योगी आदित्यनाथ और उन के खास लोग ऐसा नहीं चाहते हैं.

बहुचर्चित कांवड़ यात्रा के संबंध में कहा जा सकता है कि सावन का महीना हो और बादल घने और पानी लिए न हों, भला यह कैसे मुमकिन है. कोई योगी हो तो भला वह आधुनिक विचारों से संपन्न कैसे हो सकता है. हालांकि, अपवाद हो सकते हैं, होते हैं, मगर उत्तर प्रदेश की बदहाली देखिए कि गोरखनाथ मठ के प्रमुख योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन गए हैं. इस के बाद से मुख्यमंत्री पद का जो पतन हुआ है, वह सारा देश और दुनिया जानती है. सच तो यह है कि हिंदू आज आधुनिक सोच के साथ दुनियाभर में देश की कामयाबी का परचम लहरा रहे हैं, मगर योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठ कर जिस तरह के फैसले ले रहे हैं, उन से हंसी भी आती है और रोना भी आता है.

कांवड़ यात्रा को ले कर आज देशभर में उत्तर प्रदेश चर्चा का केंद्र बन गया है और सरकार योगी आदित्यनाथ की छीछालेदर हो रही है. यहां तक कि भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी दल भी मुखर हो चुके हैं और विरोध कर रहे हैं. अब सवाल यह है कि क्या योगी आदित्यनाथ पीछे हटेंगे? क्या वे यह कहेंगे कि यह फैसला उन का नहीं है, बल्कि प्रशासनिक लैवल पर लिया गया था और अपनी छवि बचाएंगे या फिर पूरे मामले में नया ट्विस्ट आएगा? सचमुच यह सब देखना दिलचस्प होगा.

भाजपा में खतरे की घंटी

कांवड़ यात्रा मार्ग पर बने ढाबों पर अपने नाम लिखने के उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश की आम आदमी भी आलोचना कर रहा है. यह सचमुच हमारे देश की गंगाजमुना संस्कृति पर एक बड़ी चोट है. यही वजह है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सहयोगी दलों ने सवाल उठाए हैं.

जनता दल (यूनाइटेड) के नेता नीतीश कुमार, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान के बाद राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष और केंद्रीय राज्य मंत्री जयंत चौधरी ने भी सवाल उठाए हैं, जो यह बताते हैं कि जल्द ही योगी आदित्यनाथ की विदाई मुमकिन है या फिर वे राजनीति में एक पिटा हुआ चेहरा बन कर रह जाएंगे.

अपने पिता चौधरी चरण सिंह को ‘भारत रत्न’ मिलने से गदगद हुए जयंत चौधरी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से जुड़ गए हैं, मगर योगी आदित्यनाथ के इस फैसले पर उन्होंने सरकार के फैसले की आलोचना करते हुए कहा, ‘ऐसा लगता है कि यह आदेश बिना सोचेसमझे लिया गया है और सरकार इस पर इसलिए अड़ी हुई है, क्योंकि फैसला हो चुका है. कभीकभी सरकार में ऐसी चीजें हो जाती हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘अब भी समय है कि इसे वापस लिया जाए या सरकार को इसे लागू करने पर ज्यादा जोर नहीं देना चाहिए. कांवड़ की सेवा सभी करते हैं. कांवड़ की पहचान कोई जाति से नहीं की जाती है. इस मामले को धर्म और जाति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. कहांकहां नाम लिखें, क्या अब कुरते पर भी नाम लिखना शुरू कर दें, ताकि देख कर यह तय किया जा सके कि हाथ मिलाना है या गले लगाना है?’

इस से पहले नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) के प्रवक्ता केसी त्यागी ने फैसले की समीक्षा करने की मांग की. उन्होंने कहा कि ऐसा कोई भी आदेश जारी नहीं किया जाना चाहिए, जिस से समाज में सांप्रदायिक विभाजन पैदा हो. कई मौके पर मुजफ्फरनगर के मुसलमान कांवड़ यात्रियों की मदद करते देखे गए हैं.

राजग केंद्र सरकार में शामिल केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के फैसले पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा, ‘मेरी लड़ाई जातिवाद और सांप्रदायिकता के खिलाफ है, इसलिए जहां कहीं भी जाति और धर्म के विभाजन की बात होगी, मैं उस का कभी भी समर्थन नहीं करूंगा.’

दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने पहले तो योगी सरकार के फैसले पर सवाल उठाए और इसे छुआछूत को बढ़ावा देने वाला बताया, पर बाद में कहा कि राज्य सरकार के आदेश से साफ है कि कांवड़ियों की आस्था को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया गया है, लेकिन कुछ लोग सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं.

इस तरह भारतीय जनता पार्टी का चरित्र आज देश के चौराहे पर खड़ा है. दूसरी तरफ मजेदार बात किया है कि कांवड़ यात्रा के रास्ते पर कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की मुहब्बत की दुकान के पोस्टर दिखाई देने लगे हैं, जो बताता है कि उन की लोकप्रियता और विचार अब देश की जनता स्वीकार करने लगी है. यह सीधेसीधे नरेंद्र मोदी सरकार के लिए खतरे की घंटी है.

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