जयकिशन ईमानदार और मेहनती था. उसे मेहनत से गुजरबसर करना ही पसंद था, लेकिन खुद की ताकत और काबिलीयत पर भरोसा न था. इसी कारण उसे कहीं भी काम नहीं मिल रहा था. जब भी कोई उसे काम देता, वह घबरा जाता और कहता कि इतना काम तो मैं कर ही न पाऊंगा.

जयकिशन के पड़ोस में मदन लाल रहता था. उस की गल्ले की दुकान थी. जयकिशन हर रोज मदन लाल की दुकान के बरामदे में जा कर बैठा रहता.

मदन लाल जयकिशन के अच्छे स्वभाव और ईमानदारी की तारीफ किया करता था, इसलिए उस ने जयकिशन में आत्मविश्वास जगाने के लिए एक नायाब तरकीब सोची.

एक दिन मदन लाल ने जयकिशन से पूछा, ‘‘मेरे साथ काम करोगे?’’

यह सुनते ही जयकिशन ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्या कहा?’’

‘‘मेरे लिए बोझ उठाने का काम करोगे,’’ मदन लाल ने दोबारा पूछा.

जयकिशन कुछ सोचता हुआ बोला, ‘‘काम तो करूंगा, मगर पता नहीं बोझ उठा भी सकूंगा या नहीं…’’

‘‘ज्यादा बोझ उठाने वाला काम नहीं दूंगा,’’ मदन लाल ने उसे यकीन दिलाया.

दूसरे दिन सुबह जल्दी ही जयकिशन मदन लाल की दुकान पर जा पहुंचा. मदन लाल भी उसी का इंतजार कर रहा था.

अपनी तरकीब के मुताबिक, मदन लाल ने 5 किलो वजन वाला थैला बरामदे में रखा हुआ था. जयकिशन को देख कर मदन लाल ने कहा, ‘‘अनाज के इस थैले को कसबे की मेरी दुकान में पहुंचा दो और उस दुकान से जो मिले, उसे ला कर यहां पहुंचा दो.’’

जयकिशन ने थैला उठाया और चल दिया. मदन लाल की 2 दुकानें थीं. एक दुकान अपने महल्ले में थी और दूसरी कसबे में थी. कसबे की दुकान उस का भाई सदन लाल संभालता था.

जयकिशन ने अनाज का थैला सदन लाल के पास पहुंचा दिया.

सदन लाल ने 8 किलो वजन वाले शक्कर के थैले की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘इसे ले कर जाओ.’’ जयकिशन ने थैला उठाया और वहां से चल दिया.

कसबे से मदन लाल की दुकान 2 किलोमीटर दूर थी, इसलिए जयकिशन को पहले दिन थोड़ी तकलीफ महसूस हुई थी.

दूसरे दिन मदन लाल ने 10 किलो वजन वाली बोरी दिखा दी. जयकिशन उसे आसानी से उठा कर चल दिया.

उस ने कसबे की दुकान पर जा कर बोरी रख दी. तब सदन लाल ने उसे 14 किलो वजन वाली साबुन की पेटी ले जाने को कहा.

तीसरे दिन मदन लाल ने 16 किलो वजन की मसूर की दाल वाली बोरी दिखाई, जिसे उठा कर वह चल दिया.

कसबे से वापस आ कर जयकिशन ने 20 किलो वजन के गुड़ के ढेले ला कर मदन लाल की दुकान में रख दिए.

हर रोज और हर खेप में 2 से 4 किलो वजन बढ़ जाता था, लेकिन जयकिशन को बढ़ते वजन का बोझ मालूम नहीं पड़ रहा था. उस के अंदर ज्यादा से ज्यादा मेहनत करने के लिए आत्मविश्वास बढ़ रहा था.

इसी तरह एक हफ्ता बीत गया. जयकिशन की हिम्मत और जोश बढ़ता ही जा रहा था. अब वह 40-45 किलो तक वजन उठाने लगा था.

बरसात के दिन थे. रात के समय आसमान में घने बादल घिर आए थे और सुबह तक जाने का नाम नहीं ले रहे थे. तभी अनाज की बोरियों से लदा एक ट्रक दुकान के सामने आ कर रुका.

‘‘सेठजी, जल्दी से गाड़ी में लदी बोरियां उतरवाइए, वरना अनाज भीग जाएगा. गाड़ी में तिरपाल नहीं है,’’ ड्राइवर ने मदन लाल से कहा.

ड्राइवर की बात सुनते ही मदन लाल का चेहरा लटक गया, क्योंकि किसी भी वक्त बारिश हो सकती थी और कोई मजदूर भी वहां दिखाई नहीं दे रहा था.

तभी जयकिशन आ पहुंचा. मदन लाल का उतरा हुआ चेहरा देख कर वह सारा माजरा समझ गया और बोला, ‘‘फिक्र मत कीजिए, मैं ट्रक से बोरियां उतार कर गोदाम में रख दूंगा.’’

जयकिशन की बात सुन कर मदन लाल की चिंता दूर हो गई.

जयकिशन जल्दीजल्दी ट्रक से बोरियां उतारने लगा. देखते ही देखते ट्रक खाली हो गया और गोदाम भर गया.

यह देख कर मदन लाल को बेहद खुशी हुई. दरअसल, उस की तरकीब कामयाब हो गई थी.

जब अनाज की बोरियां गोदाम में उतार कर जयकिशन दुकान में पहुंचा, तब मदन लाल ने कहा, ‘‘आज से तुम्हारी नौकरी पक्की. तुम्हारी पगार भी तय कर दूंगा.’’

जयकिशन की खुशी का ठिकाना नहीं था. वह बोला, ‘‘सच?’’

‘‘बिलकुल सच. जयकिशन, तुम्हारे अंदर मेहनत करने की लगन तो थी, मगर अपनेआप पर भरोसा नहीं था. मैं तुम्हारे अंदर आत्मविश्वास जगाना चाहता था, इसीलिए एक तरकीब निकाली.

‘‘मैं हर रोज थोड़ाथोड़ा वजन बढ़ाता था, ताकि तुम्हें ज्यादा तकलीफ न हो. इस तरकीब में भाई सदन लाल ने भी मेरा साथ निभाया,’’ मदन लाल ने मुसकरा कर बताया.

‘‘वह कैसे?’’ जयकिशन ने हैरानी से पूछा.

‘‘पहले दिन मैं ने तुम से 5 किलो वजन वाला थैला उठवाया. उसी दिन ही सदन लाल ने 8 किलो वजन उठवाया. पहले दिन तुम 8 किलो वजन उठाने में कामयाब हुए.

‘‘तुम्हारी हिम्मत देख कर दूसरे दिन मैं ने 10 किलो वजन उठवाया और सदन लाल ने 14 किलो वजन उठवाया. उस दिन तुम ने 14 किलो बोझ भी उठा लिया.

‘‘इसी तरह हर रोज हम दोनों भाई वजन बढ़ा देते थे, ताकि तुम्हें अचानक इस बात का एहसास न हो.

‘‘इसी बीच धीरेधीरे तुम्हारे अंदर की कमजोरी ताकत में बदलती गई और आत्मविश्वास बढ़ने लगा. 2 हफ्तों के अंदर ही तुम 50 किलो तक वजन उठाने लगे.’’

मदन लाल की यह बात सुन कर जयकिशन बहुत खुश हुआ. उस ने मदन लाल के पैर छू कर कहा, ‘‘आप के इस उपकार को मैं कभी नहीं भूल सकूंगा.’’

अब जयकिशन के अंदर एक नया जोश पैदा हो गया था.

आसमान से बादल साफ हो गए थे. जयकिशन ने नए जोश व उमंग के साथ 50 किलो वाली अनाज की बोरी गोदाम से निकाली और कसबे की दुकान के लिए चल पड़ा.

थोड़े दिनों में जयकिशन ने अपनी खुद की दुकान खोल ली. लेकिन वह हर सुबह खुद 10 बोरियां उठा कर बाहर जरूर रखता, ताकि उसे खुद पर भरोसा बना रहे.

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