अपने खेत की मेंड़ पर बैठे रमिया की सूनी आंखों में बेबसी साफ दिख रही थी. वजह, उस की फसल इतनी नहीं हुई थी कि वह 4 लोगों के परिवार का लंबे समय तक पेट भर सके. महाजन का कर्ज चुकाने की तो वह सोच भी नहीं सकता था.

‘‘अब क्या होगा लज्जो? फसल कट चुकी है, यह बात तो सब को मालूम है. महाजन के आदमी कर्ज लेने के लिए अब आते ही होंगे और हमारी हालत तुम्हें पता ही है,’’ रमिया ने रोंआसी आवाज में अपनी बीवी से कहा.

‘‘हिम्मत से काम लो. महाजन से हम थोड़ा समय और मांगेंगे,’’ लज्जो ने पति को हिम्मत बंधाते हुए कहा.

फसल कटने के चौथे दिन बाद ही महाजन के 3 आदमी रमिया के सामने आ खड़े हुए.

‘‘क्यों बे, महाजन का पैसा कब तक लौटाएगा?’’ उन में से एक ने पूछा.

‘‘हमारी हालत ठीक नहीं है. हम लोग 2-4 दिन में लालाजी से थोड़ा समय और मांगेंगे,’’ रमिया ने डरी हुई आवाज में कहा.

‘‘क्या तेरी लौटरी लगने वाली है? अच्छा, अभी तो हम जा रहे हैं, पर अगर तू ने जल्दी फैसला नहीं किया, तो तेरी हड्डियों का सुरमा बना कर तेरी लुगाई की आंखों में डाल देंगे,’’ उन में से एक ने कहा और वहां से चले गए.

महज 45 साल की उम्र में ही मानो रमिया को उम्मीद की हर डोर टूटती सी लगने लगी थी. 2 बीघा खेत के अलावा उस के पास कुछ था ही नहीं, जिस को बेच कर वह महाजन का कर्ज चुका पाता.

5-6 दिनों के बाद वे लोग फिर आ गए. इस बार जो थोड़ी सी इनसानियत बची थी, उसे भी वे पूरी तरह छोड़ कर आए थे.

‘‘अरे ओ बेशर्म… हमारी बात तेरी समझ में नहीं आई क्या? लालाजी का पैसा देने की क्या सोची है? अब तू कुछ करेगा या हम करें?’’ कह कर एक आदमी ने पूरी ताकत से एक लाठी रमिया को दे मारी.

रमिया दर्द से तिलमिला उठा. इस से पहले कि वह खड़ा हो पाता, दूसरे ने कस कर एक ठोकर उस के पेट पर मार दी. रमिया को लगा कि उस की जान ही निकल जाएगी.

‘‘हम को मत मारो भाई, हम गरीब आदमी हैं. हम ने पैसे देने से कहां मना किया है. हमें थोड़ा और समय दे दो,’’ कराहते हुए रमिया ने गुहार लगाई.

‘‘इन आंसुओं का हम पर कोई असर नहीं पड़ने वाला. 5-7 दिनों में पैसा चुका देना, नहीं तो हम तुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे,’’ एक आदमी ने गुस्से में आखिरी धमकी दी.

रमिया के मन पर पुरानी यादें बारबार उभर कर आतीं. खेत बस इतना भर कि उपज से परिवार बमुश्किल पल सके, पर रमिया फिर भी खुश था. लेकिन पिछले 2-3 सालों के उलट हालात ने उसे झकझोर कर रख दिया था. न चाह कर भी वह महाजन के कर्ज की चपेट में आ गया.

महाजन ने कर्ज दे कर रमिया का खेत गिरवी रख लिया और बिना खेत किसान का वजूद ही दांव पर लग जाता है. अब उस के पास बचा ही क्या था. एक अनपढ़ पत्नी और 2 बच्चे, वे भी उसी की तरह अनपढ़.

रमिया की सारी उम्मीदें टूट गई थीं और साथ ही उस की सहन करने की ताकत भी. इस से पहले कि महाजन के दरिंदे फिर आते, उस ने चौपाल के पास के पेड़ से लटक कर खुदकुशी कर ली.

सुबहसवेरे ही जंगल में लगी आग की तरह यह खबर फैल गई. लज्जो रमिया की दिमागी हालत पहले से जानती थी और समयसमय पर उस की हिम्मत बंधाती थी, पर उसे इस तरह की उम्मीद कभी नहीं थी. वह बेहोश हो कर वहीं गिर पड़ी.

धीरेधीरे लोग इकट्ठा हो गए. लाश को पेड़ से उतार कर चौपाल पर ही लिटा कर कपड़े से ढक दिया गया. लज्जो को किसी तरह होश में लाया गया.

महाजन को रमिया की मौत में अपने दिए गए कर्ज से कुछ सरोकार दिखा और अनजान मुसीबत से बचने के लिए वह थाने जा पहुंचा.

थानेदार चारपाई पर लेटा हुक्का गुड़गुड़ा रहा था. महाजन को आते देख कर उसे लगा कि लक्ष्मी आ रही हैं. उस के चेहरे पर एक मुसकराहट उभर उठी.

‘‘नमस्ते दारोगाजी,’’ तकरीबन आधा झक कर महाजन ने दारोगा के सामने हाथ जोड़े.

‘‘कहिए लालाजी, कैसे आना हुआ?’’ दारोगा ने पूछा.

जवाब देने से पहले महाजन ने एक लिफाफा अपने चौड़े हाथ में दबा कर दारोगा को दे दिया. फिर क्या था. जब साज बदल गए, तो सुर तो मीठे निकलने ही थे.

‘‘माईबाप, रमिया बिना कर्ज चुकाए मर गया. बोलो सरकार, अब हम क्या करें?’’ महाजन ने कहा.

‘‘अरे लाला, तुम्हें हम अच्छी तरह जानते हैं. तुम ने उस का खेत वगैरह तो अपने नाम कराने के लिए खाली कागज पर अंगूठे के निशान लगवा लिए होंगे.

‘‘पोस्टमार्टम के बाद लाश का दाह संस्कार होगा. उस में शामिल हो कर थोड़ा नाटक कर देना. थोड़ा सब्र करो. बाद में तहसील में जा कर जमीन अपने नाम करा लेना.’’

‘‘आप का हुक्म सिरमाथे पर हुजूर,’’ कह कर महाजन ने दोबारा हाथ जोड़े और उन से विदा ली.

दूसरे दिन दोपहर में दाह संस्कार होना तय हुआ. तकरीबन 7 सौ लोगों के उस गांव में सभी एकदूसरे को जानते थे.

रमिया यों तो छोटे से खेत का मालिक था, पर अपने अच्छे बरताव से गांव में काफी मशहूर था, इसलिए उस के दाह संस्कार में काफी लोग आए थे. महाजन और दारोगा के अलावा वहां 2 और पुलिस वाले भी मौजूद थे.

रमिया के बड़े बेटे 16 साला भोला ने आग दी. शाम घिरने लगी थी और चिता की आग हलकी हो चली थी. लोग धीरेधीरे अपने घर जाने लगे थे.

अब तो बच्चों के पालने की सारी जिम्मेदारी लज्जो की थी. इस फसल का धान तो 2 महीने किसी तरह कटा देगा, पर उस के बाद? अनेक उठते सवाल किसी फुफकारते सांप से कम न थे.

महाजन ने रमिया के खेत को अपने नाम कराने की योजना बना ली थी. संबंधित अफसरों से वह पहले ही मिल चुका था.

लज्जो को पता भी नहीं चला कि कब और किस ने उस की वह डोर भी काट दी, जिस के सहारे उस ने जीने की सोची थी. जब उसे पता चला, तो बहुत देर हो चुकी थी. वह महाजन के पास जा पहुंची.

महाजन बोला, ‘‘आओ भौजाई, हमें रमिया की मौत का बहुत दुख है, पर तुम जरा भी चिंता न करना. हम हैं न. कुछ दिनों में बोआई शुरू हो जाएगी और तुम तीनों खेत पर काम करना. कोई कमी नहीं रहेगी.’’

महाजन ने हमदर्दी का मुखौटा ओढ़ लिया. आखिर उसे तो 3 मजदूर अपनी शर्तों पर मिल रहे थे. लज्जो और उस के बच्चों के पास कोई और रास्ता नहीं था.

‘‘तुम किसी दिन रामपाल से मिल लेना. वह तुम्हें सब समझ देगा,’’ महाजन ने कहा.

खेत पर अपनी मां के साथ वे दोनों बच्चे भी मजदूरी करने लगे. महाजन के कारिंदे जम कर काम लेते और शाम को आधीचौथाई मजदूरी उन के हाथ में थमा देते. लज्जो अपने बुरे दिनों पर सौसौ आंसू बहाती. वह अपने नादान बच्चों के लिए दुखी होती.

यों तो सरकारी योजनाओं में ऐसे हालात में पीडि़त परिवार की मदद के लिए कई नियम बने हैं, पर वे सब भ्रष्टाचार रूपी सुरसा के गाल में समा गए हैं.

खाली कागजों पर अनपढ़ लज्जो के अंगूठे के निशान लगते रहे और मिलते रहे झूठे वादे.

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