काफी पसोपेश के बाद भी अहल्या तय नहीं कर पाई कि वह कोख में पल रही बच्ची को गिराए या नहीं. वैसे, हालात का खयाल आते ही उसे बच्चा गिराने पर मजबूर हो जाना पड़ता था. वह सोचती कि घर हो या बाहर, गांव हो या शहर, चारों ओर दहशतगर्दी है. दिनदहाड़े हत्याएं और बलात्कार होते हैं. बूढ़ी हो या जवान, किसी भी उम्र की औरत को बलात्कार का शिकार बनना पड़ सकता है.

कुछ दिन पहले ही उस के पिता की उम्र के एक अफसर ने उसे काम के बहाने अपने घर पर बुला कर उस के साथ हमबिस्तरी की ख्वाहिश जाहिर की थी. वह सपने में भी उस बूढ़े से ऐसी हरकत की उम्मीद नहीं कर सकती थी.

तकरीबन 15 बरस पहले उस के ममेरे भाई ने उस के साथ जबरदस्ती की थी, लेकिन वह खामोशी से उस पीड़ा को सह गई थी.

अहल्या सोचती कि लड़की को जन्म देना ही आफत मोल लेना है. लेकिन उस के पेट में पलती बच्ची उस के पति की आखिरी निशानी थी, इसलिए इस बारे में उसे बारबार सोचना पड़ रहा था.

आखिर में उस ने पेट में पल रही बच्ची को गिराने का ही इरादा किया और इस काम में होस्टल की वार्डन कल्पना से मदद मांगी, ‘‘मैडम, आप से एक विनती है.’’

‘‘बोलो, क्या बात है? कैसी मदद चाहती हो?’’ मैडम ने पूछा.

‘‘मुझे पेट गिराना है. मेरे पेट में 3 महीने की बच्ची पल रही है.’’

‘‘तू विधवा है न? क्या किसी ने तुम्हारे साथ बलात्कार किया है?’’

‘‘नहीं मैडम, यह मेरे पति की आखिरी निशानी है. उस को मरे तो सिर्फ 2 महीने हुए हैं.’’

‘‘तो फिर यह बच्चा क्यों गिरवा रही है?’’

‘‘मैं ने जांच करवा ली है. पेट में बच्ची है, बच्चा नहीं.’’

‘‘बच्ची होने से तुझे क्या परेशानी है?’’

‘‘उसे पालनेपोसने से ले कर शादी करने तक झमेला ही झमेला है. हालात इतने खराब हो गए हैं कि ऐसा लगता है, जैसे हम किसी जंगल राज में जिंदगी गुजार रहे हैं. बच्ची जब थोड़ी बड़ी होती है, तो उस की इज्जत बचाने की चिंता हरदम सताती रहती है. इस के अलावा उस की शादी करना भी कितनी बड़ी समस्या होती है.

‘‘औरत की जिंदगी नरक बन कर रह गई है. हमारे जैसे लोग अपनी बच्ची को ऐसी जिंदगी गुजारने को क्यों मजबूर करें. यही सोच कर मैं ने पेट गिराने का फैसला लिया है.’’

होस्टल की वार्डन सोचने लगी कि अहल्या का सोचना बिलकुल सही है. इस में कोई दो राय नहीं है कि औरत को हर उम्र में पीछा करने वालों से सावधान रहना पड़ता है. इस अधेड़ उम्र में भी मेरे जीजा ने किस तरह अपने चंगुल में फंसा कर मेरे साथ बलात्कार किया. उस दिन रात को मैं उस के घर पर मजबूरी में ठहरी थी. दीदी बहुत समय पहले मर चुकी थीं. बालबच्चे सभी दूसरे शहरों में रहते हैं.

मेरे पति ने कहा था कि होटल में न ठहरना, हालांकि मुझे सरकारी खर्चे पर वहां 2 दिन ठहरना था. रात में खाने के बाद जब मैं सोने के लिए दूसरे कमरे में जाने लगी, तो जीजा ने फरमाया, ‘कल्पना, मेरे कमरे में चलो. थोड़ी देर गपशप करेंगे… तुम से बहुत दिनों के बाद भेंट हुई है.’

मैं उन के कमरे में जा कर कुरसी पर बैठ गई. कुछ देर तक बातें करने के बाद उन्होंने पूछा, ‘बहुत ठंड है, मैं तो दूध लेता हूं… तुम क्या लोगी… गरम दूध या चाय?’ मैं ने कहा, ‘कुछ नहीं.’

पर उन्होंने जोर दिया, ‘नहीं, कुछ तो लेना पड़ेगा,’ कहते हुए उन्होंने नौकर को दूध लाने को कहा, लेकिन खुद भी रसोई में चले गए.

मैं ने जैसे ही दूध का गिलास खत्म किया, चक्कर सा आने लगा. उस के बाद मैं होश खो बैठी.

सुबह 4 बजे मेरी नींद टूटी. मैं ने अपने को बिलकुल नंगी हालत में उन की गोद में पाया. मेरे गुस्से और हैरानी की सीमा न रही. अगर मेरे पास पिस्तौल होती, तो मैं उसे गोली मार देती.

मैं ने उसे जगा कर लताड़ा, ‘आप ने यह सब क्या किया…’

‘आप इनसान नहीं, जानवर हैं,’ फिर मैं साड़ी ठीकठाक करने गुसलखाने में चली गई.

गुसलखाने से मैं रोती हुई सीधे दूसरे कमरे में जा कर रजाई ओढ़ कर लेट गई और रोने लगी कि क्या सोचा था और क्या हो गया? अपनी ही बड़ी बहन के घर में मेरा सबकुछ लुट गया.

जी में आया कि अभी इस घर से बाहर चली जाऊं, लेकिन जाड़े के दिन थे. इतनी सुबह बाहर निकलना ठीक नहीं समझा.

फिर मैं सोचने लगी कि कैसा जमाना आ गया है, ऐसी हालत में तो किसी भी मर्द पर यकीन नहीं किया जा सकता. अपनी हवस मिटाने के लिए आदमी कितना नीचे गिर जाता है. उसे अपनी उम्र और रिश्ते का भी खयाल नहीं रहता.

सुबह जब मैं जाने के लिए सामान ठीक करने लगी, तो वह टपक पड़े, ‘कल्पना, कहां जा रही हो?’ मैं ने जवाब दिया, ‘जहन्नुम में.’

उन्होंने माफी मांगी, ‘कल्पना, मुझे अफसोस है.’

‘भाड़ में जाओ.’

‘मुझे तुम से कुछ कहना है.’ ‘मैं अब कुछ सुनना नहीं चाहती.’

‘सिर्फ एक बात सुन लो.’

‘आप को जो नहीं करना चाहिए था, वह तो कर दिया… फिर एक बात कहने में क्यों संकोच है?’

‘तुम्हारी दीदी की मौत के बाद मेरा तो जैसे दिमाग ही खराब हो गया था…’

‘दीदी आप की रंगरलियां मनाने की आदत की वजह से हमेशा दुखी रहा करती थीं… इसी वजह से वे जल्दी ही चल बसीं.’

मेरे तमतमाए चेहरे से आग बरस रही थी. मैं ने नौकर को आदेश दिया, ‘टैक्सी बुलाओ.’

जीजाजी मेरे सामने हाथ जोड़ कर खड़े हो गए, ‘कल्पना, यह तुम क्या कर रही हो… जाना ही है, तो ड्राइवर के साथ मैं अपनी गाड़ी से भिजवा देता हूं. टैक्सी से क्यों जा रही हो?’

‘अब आप मेरे साथ बात मत कीजिए…’ मैं ने गुस्से से कहा. तभी अहल्या ने वार्डन को टोका, ‘‘मैडम, कुछ बोल नहीं रही हैं?’’

‘खामोश नहीं हूं, तुम्हारे हालात पर गौर कर रही हूं. एक बुजुर्ग के नाते तुम्हें सलाह देना चाहती हूं. इस में कोई दो राय नहीं कि हम औरतों के लिए घर से ले कर बाहर तक खतरा ही खतरा है, लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि हम अपना वजूद ही खो बैठें.

‘‘हमें अपने वजूद के लिए मर्दों के इस समाज से जद्दोजेहद करनी होगी. अगर हम हालात के आगे घुटने टेक कर अपना वजूद खो दें, तो सारी मानव जाति का अंत हो जाएगा.

‘‘इसलिए मैं तुम्हें यही राय दूंगी. कि अपनी कोख में पलती बच्ची को धरती पर आने दो, रोको नहीं, उसे नष्ट मत करो.’’

मैडम की बात पर काफी देर तक गौर करने के बाद अहल्या ने अपना इरादा बदल दिया.

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