सरकार गरीबों की बहुत सी चीजों जैसे खाने, खाद, इलाज, गैस, पढ़ाई की कीमत कम रखती है और लागत और वसूले पैसे का फर्क टैक्स से जमा किए पैसे से पूरा करती है. लोग शिकायत करते हैं कि इस में बहुत धांधलियां हैं. सस्ता खाना गरीबों के नाम पर ले कर इकट्ठा किया जाता है और बेच दिया जाता है अमीरों को. मुनाफा बिचौलियों की जेब में. सस्ती गैस के सिलैंडर होटलों, कारखानों को दिए जाते हैं.

इलाज किया नहीं जाता पर दवाओं और वेतन का पैसा भारीभरकम डाक्टरों, नर्सों, अर्दलियों, बिचौलियों की जेब में जाता है. खाद के मामले में तो बड़ी कंपनियों को दोहरातिहरा मुनाफा कमाने का मौका मिलता है. कंपनियां जितना माल बनाया उस से ज्यादा बनाया दिखा कर सरकारी सहायता डकार जाती हैं और कागजों पर बाजार में खाद की बिक्री दिखा जाती हैं. हर सस्ती चीज के पीछे महंगे नेताओं, सरकारी बाबुओं, बिचौलियों और रातोंरात बने धन्ना सेठों की कतारें दिखती हैं.

सरकार अब कह रही है कि बजाय गरीबों को सस्ती चीज देने के, गरीबों को पैसे दे देगी ताकि वे अपने पैसे से जो चाहे बाजार से व लागत दाम पर खरीद सकें. चूंकि अब सरकार ने करोड़ों आधार कार्ड बना डाले हैं, सरकार का कहना है कि इस से बिचौलियों के बिना पैसा सीधे गरीब के बैंक अकाउंट में जा सकता है. किसी हेरफेर की गुंजाइश ही नहीं.

हेरफेर की गुंजाइश ही नहीं का असल मतलब आप समझिए कि अब प्राइवेट बिचौलियों की जरूरत नहीं होगी. अब सारा पैसा सरकारी बाबू बिना नेता, दलाल, उद्योगपति, व्यापारी के हजम कर सकता है. अब सरकार के आकाओं को अपना खजाना लूटने के लिए दूसरों का सहारा नहीं चाहिए. अब ऐसा सिस्टम बनाया गया है कि खरबों (यानी 1 के बाद 11 जीरो) डकारे जा सकें और किसी को कमीशन भी न देना पड़े.

अब तक सस्ती चीजों को बांटने में किसानों की यूनियनें, ट्रांसपोर्टरों की सभा, नेताओं की पार्टियां, बनाने वालों के चैंबर होते थे, जो गड़बड़ में बराबरी का हिस्सा मांगने के लिए एकजुट हो कर हल्ला मचा डालते थे. वे प्रैस में जाते. अदालतों में जाते. करोड़ों की हेराफेरी दिखती. आसानी से चोर माल ले जाते दिख जाते.

अब यह पैसा सरकारी खजाने से निकलेगा हर साल हर आदमी के लिए 1000-2000 या 3000 बस. 5 करोड़ को पहुंचा या 10 करोड़ को कौन कैसे गिनती करेगा? गांव वाले कहते रहेंगे कि पैसा नहीं पहुंचा, सरकार कहती रहेगी चला गया. गरीब बेचारा अब ज्यादा महंगी चीजें खरीदेगा, और भूखा रहेगा, और नंगा रहेगा पर उस की सुनेगा कौन? नेताओं को अपना हिस्सा मिल जाएगा जो गिनती में हजारपांच सौ होंगे, पर लाखों सरकारी बाबू, बैंकर, कंप्यूटर औपरेटर अरबों बना डालेंगे.

इसे कहते हैं कंप्यूटर के जरीए टैक्नो तानाशाही. यह रिश्वतखोरी पर मोनोपोली लाएगा. जिन कुछ लाखों को पैसा मिलेगा वे वाहवाही करेंगे. बाकी की जबान ही नहीं है. सभी पार्टियां मिल कर जनता को लूटेंगी. डायरैक्ट बैनिफिट या बैंक ट्रांसफर में शिकायतें होंगी तो कंप्यूटर साहब पर चांप दो जिसे न पुलिस छू सकती, न अदालत और न प्रैस उस का इंटरव्यू ले सकता है. गरीबों को लूटने का इस से अच्छा उपाय न होगा. वाहवाह, क्या सोच है?

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