Uttarkashi Tunnel Rescue Operation: आप को याद होगा कि साल 2018 में थाइलैंड (Thailand) में हुए एक हादसे में जूनियर फुटबाल टीम (Juinor Football Team) के कोच समेत 12 बच्चे पानी से भरी एक गुफा में फंस गए थे. उन्हें बचाने के लिए एक रैस्क्यू मिशन (Rescue Mission) शुरू किया गया था, जिस में तकरीबन 10,000 लोग शामिल हुए थे. उन लोगों में 100 से ज्यादा तो गोताखोर (Diver) ही थे. इस दौरान एक गोताखोर की मौत भी हो गई थी, लेकिन वह आपरेशन चलता रहा था. 15 दिनों की मशक्कत के बाद वे सभी छात्र और कोच उस गुफा से बाहर निकल पाए थे. अब भारत की बात करते हैं, जहां पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की एक नई बन रही सुरंग में 41 मजदूर कुछ इस कदर फंस गए थे कि उन का बचना भी मुश्किल ही लग रहा था. उत्तरकाशी (Uttarkashi) की सिलक्यारा (Silkyara) नामक इस सुरंग में यह हादसा दीवाली पर 12 नवंबर, 2023 की सुबह 4 बजे हुआ था, जब सुरंग में मलबा गिरना शुरू होने लगा था और साढ़े 5 बजे तक मेन गेट से सुरंग के 200 मीटर अंदर तक भारी मात्रा में जमा हो गया था.

फिर शुरू हुआ एक ऐसा बचाव अभियान, जिस में हर दिन उम्मीद जगती थी कि जल्दी ही सारे मजदूरों को बाहर निकाल लिया जाएगा, पर टनों पड़ा मलबा जैसे इस अभियान में जुड़े लोगों का इम्तिहान ले रहा था. पर इनसान की जिद, नई तकनीक और मजदूरों का सब्र रंग लाया और 12 नवंबर की सुबह के साढ़े 5 बजे से 28 नवंबर की रात के 8.35 बजे तक यानी 17 दिन बाद पहला मजदूर शाम को 7.50 बजे बाहर निकाला गया. इस के 45 मिनट बाद 8.35 बजे सभी मजदूरों को बाहर निकाल लिया गया.

रैट होल माइनिंग तकनीक ने किया कमाल

इस पूरे अभियान में लोगों के साथसाथ कई महाकाय मशीनें भी मलबे को चीर कर मजदूरों तक पहुंचने की जद्दोजेहद कर रही यहीं. जब औगर मशीन मलबे से जूझ कर हार मान गई थी, तब रैट होल माइनिंग तकनीक को इस्तेमाल करने का फैसला लिया गया. रैट का मतलब है चूहा, होल का मतलब है छेद और माइनिंग मतलब खुदाई. इस तकनीक में पतले से छेद से पहाड़ के किनारे से खुदाई शुरू की जाती है और धीरेधीरे छोटी हैंड ड्रिलिंग मशीन से ड्रिल किया जाता है. इस में हाथ से ही मलबा बाहर निकाला जाता है.

भारत में रैट होल माइनिंग तकनीक का इस्तेमाल आमतौर पर कोयले की माइनिंग में खूब होता रहा है. झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तरपूर्व में रैट होल माइनिंग जम कर होती है, लेकिन यह काफी खतरनाक काम है, इसलिए इसे कई बार बैन भी किया जा चुका है.

मिला नया सबक

सिलक्यारा हादसा उत्तराखंड राज्य के साथसाथ पूरी दुनिया को सबक भी सिखा गया खासकर भारत के पहाड़ी राज्यों ने यह सीखा है कि वे आपदा में केंद्रीय एजेंसियों का बारबार मुंह नहीं ताक सकते. उन्हें अपने दम पर तैयार रहना होगा, क्योंकि आपदाएं हर बार सिलक्यारा हादसे जैसा समय नहीं देंगी.

पहाड़ी इलाके में इस तरह के काम में सब से बड़ी बाधा तो खुद कुदरत ही होती है. बारिश के मौसम में लैंड स्लाइडिंग होना आम बात है. बड़ीबड़ी मशीनों को पहाड़ी रास्तों से लाना और ले जाना भी बड़ी चुनौती वाला काम होता है. वर्तमान सरकार पहाड़ों पर नएनए प्रोजैक्ट बना रही है. इस का मतलब यह है कि आगे भी सरकार और मजदूरों को सावधान रहना होगा.

मजदूरों का किया स्वागत

सुरंग से बाहर आए पहले बैच के पहले मजदूर का उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने माला पहना कर स्वागत किया. पाइप के जरीए सब से पहले बाहर आने वाले मजदूर का नाम विजय होरो था. वह खूंटी, झारखंड का रहना वाला था.

मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने ऐलान किया सभी मजदूरों को उत्तराखंड सरकार की ओर से 1-1 लाख रुपए की मदद दी जाएगी. उन्हें एक महीने की तनख्वाह समेत छुट्टी भी दी जाएगी, जिस से वह अपने परिवार वालों से मिल सकें. उन्होंने एक संदेश भी दिया, ‘मैं इस बचाव अभियान से जुड़े सभी लोगों के जज्बे को भी सलाम करता हूं. उन की बहादुरी और संकल्पशक्ति ने हमारे श्रमिक भाइयों को नया जीवन दिया है. इस मिशन में शामिल हर किसी ने मानवता और टीम वर्क की एक अद्भुत मिसाल कायम की है.’

यह बात बिलकुल सही है, क्योंकि इस पूरे अभियान में 42 मजदूरों के साथसाथ उन सभी लोगों की जान दांव पर लगी थी, जो मजदूरों की जिंदगी बचाने के लिए नए से नया जोखिम ले रहे थे.

ये ही वे लोग हैं जो देश को आगे बढ़ाने का काम करते हैं. मजदूरों की अनदेखी तो किसी भी सरकार को नहीं करनी चाहिए. वे ही सही माने में अपने खूनपसीने से देश को खुशहाल बनाते हैं. वे भले ही दो वक्त की रोटी न खाएं, पर शरीर से फुरतीले और मजबूत होते हैं. यह बात इन 41 मजदूरों ने साबित भी कर दी. ये लोग अमूमन जाति से भले ही निचले हों, पर काम हमेशा अव्वल दर्जे का करते हैं. पूरे देश को इन की जीने की इच्छा को सलाम करना चाहिए.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...