रजिया तीखे नैननक्श की लड़की थी. खूब गोरी भी थी. एक दकियानूसी परिवार में पलीबढ़ी होने के बावजूद उस ने बीए कर लिया था. वह मास्टरनी बनना चाहती थी, इसलिए अपनी अम्मी से पूछ कर उस ने बीएड का फार्म भर दिया. कुछ ही दिनों में उस के पास बीएड में दाखिला लेने के लिए कालेज से चिट्ठी भी आ गई.

चिट्ठी आते ही रजिया के अब्बू और अम्मी में जम कर झगड़ा शुरू हो गया. अब्बू तो रजिया को शुरू से ही स्कूल में पढ़ाने के खिलाफ थे. रजिया ने जब 5वीं जमात पास की थी, तब उस की पढ़ाईलिखाई को ले कर परिवार के बुजुर्गों में बहस शुरू हो गई थी.

उस की अम्मी नरगिस के अलावा सभी की यह राय थी कि रजिया को स्कूल के बजाय अपने मजहब की तालीम दी जाए. उस के अब्बू करीम साहब चाहते थे कि उसे कुरान शरीफ रटाया जाए. लेकिन रजिया की अम्मी ने उन्हें समझाया, ‘‘वह कुरान शरीफ तो पढ़ ही चुकी है. जमाना अब बदल गया है, इसलिए रजिया के लिए भी पढ़ाईलिखाई की जरूरत है.’’

तभी एक साहब आगे बढ़े और कहने लगे, ‘‘बड़े स्कूल में न भेजो, लड़की बिगड़ जाएगी. पढ़ा कर क्या कराना है, घर में परदे में ही तो रहेगी.’’

काफी बहस के बाद रजिया का दाखिला लखनऊ में कर दिया गया, जहां उस की मौसी रहती थीं. रजिया ने अपनी अम्मी द्वारा हौसला बढ़ाए जाने और अपनी जिद से बीए कर लिया था.

दरअसल, रजिया का परिवार लखनऊ के पास एक छोटे से कसबे में रहता था. वहां आज भी लड़कियों की पढ़ाई पर इतना जोर नहीं दिया जाता था. यही वजह थी कि रजिया ने अपने इलाके के कालेज के बजाय लखनऊ से बीए किया था.

जब करीम साहब से नरगिस ने रजिया की बीएड करने की इच्छा बताई, तो वे आगबबूला हो उठे, ‘‘रहने दो, बहुत हो चुका यह नाटक. यह सब तुम्हारी वजह से हो रहा है. मेरी इज्जत का तो खयाल करो. लोग क्या कहेंगे?’’ करीम साहब ने नरगिस से कहा.

‘‘जरा समझने की कोशिश करो. इस में क्या हर्ज है?’’

‘‘मैं हरगिज रजिया को बीएड में दाखिला कराने के लिए राजी नहीं हूं. लड़की बड़ी हो कर दुलहन बनती है, अपने घर को संभालती है, न कि बेपरदा हो कर बाहर घूमती है.’’

रजिया से तब चुप न रहा गया. उस ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘आप परदापरदा चिल्ला रहे हैं. आज कहां है परदा? बाजारों और बसों में औरतें बुरका पहनती जरूर हैं, पर उन का नकाब हमेशा उठा ही रहता है… क्यों? औरतें खेतों में काम करती हैं, सब्जियां लाती हैं, फिर कहां गया उन का परदा?’’

‘‘तुम मुझ से बहस कर रही हो?’’ करीम साहब ने गुस्से से कहा.

‘‘अब्बू, मैं बहस नहीं कर रही, बल्कि सही बात कह रही हूं. लड़कों की तरह लड़कियों की भी पढ़ाईलिखाई जरूरी है. अगर वे नौकरी न भी करें तो शादी के बाद मां बन कर अपने बच्चों की देखभाल तो अच्छी तरह कर सकती हैं.’’

बातचीत के दौरान वहां उन के कुछ करीबी रिश्तेदार और पड़ोसी भी आ गए. करीम साहब के एक पोंगापंथी दोस्त कहने लगे, ‘‘छोड़ो बेटी इन बातों को, अभी तुम नादान हो. आज हमारे देश की सरकार मुसलमानों के साथ इंसाफ नहीं कर रही है. सरकारी नौकरियों में हमें बहुत कम लिया जाता है. चारों तरफ हिंदूमुसलिम के झगड़े होते रहते हैं. यहां तक कि लोग हमें गयागुजरा समझते हैं. गिरी निगाहों से देखते हैं.’’

‘‘नहीं चाचा मियां, आप के समझने में फर्क है. जो भी पढ़ाईलिखाई में तेज होता है, वह अपनी मंजिल तक आराम से पहुंच जाता है, चाहे फिर वह हिंदू हो या मुसलमान. आज हिंदुस्तान का हर आदमी आजादी से अपने मजहब के मुताबिक रहने और अपने त्योहार मनाने का पूरा हक रखता है.

‘‘उधर जरा पाकिस्तान और दूसरे मुसलिम देशों को देखो, जो इसलामी देश होने का ढिंढोरा पीटते हैं, पर वहां क्या हो रहा है? इसलाम सिखाता है कि सभी से प्यार करो, न कि सिर्फ मुसलमानों को.

‘‘उन देशों में भी बराबरी का हक नहीं है. यहां से गए मुसलमानों को छोटा समझा जाता है, जबकि हमारे देश के कानून में किसी मजहब या बिरादरी को ज्यादा सुविधा नहीं दी गई है. हमारे देश में पढ़ाईलिखाई के आधार पर ही किसी को नौकरी मिलती है, हिंदूमुसलिम के आधार पर नहीं. इस मामले में लड़केलड़कियों में भी भेद नहीं किया जाता. कई नौकरियों में तो लड़के देखते रह जाते हैं और लड़कियां अपनी पढ़ाईलिखाई और हुनर के बल पर नौकरी पा जाती हैं.

‘‘2 मिसाल हमारे गांव की ही ले लो. हरदेव का बड़ा लड़का एक मुकदमे के चक्कर में जेल चला गया. ऐसे मौके पर किसी ने उस का साथ नहीं दिया. घर में उस की औरत और एक बच्चा था. औरत पढ़ीलिखी थी, इसलिए एक दफ्तर में नौकरी कर ली.

‘‘उस ने खुद की गुजरबसर की और अपने आदमी की भी जमानत करा ली,’’ नरगिस ने करीम साहब की ओर देखते हुए फिर कहा, ‘‘दूसरी ताजा मिसाल नईम की बेटी की ले लो. वह अनपढ़ लड़की शादी के बाद ससुराल गई.

‘‘अभी 2 ही साल बीते होंगे शादी को हुए कि उस का आदमी एक हादसे में मारा गया. सासससुर थे ही नहीं, रिश्तेदारों ने भी दुत्कार दिया उसे.

‘‘अब वह अपने बच्चे के साथ दुख व लाचारी के दिन काट रही है. अगर वह भी पढ़ीलिखी होती तो उस की यह हालत नहीं होती,’’ रजिया ने मजबूती से अपनी बात रखी.

इन सब के बावजूद रजिया अपनेआप को एक गहरे भंवर में फंसा हुआ महसूस कर रही थी. करीम साहब अपने फैसले पर अडिग थे, तो आखिर में रजिया की अम्मी को कहना पड़ा, ‘‘यह फैसला मेरा नहीं, बल्कि खुद रजिया का है. कानून के मुताबिक हमें उस के फैसले में दखल देने का कोई हक नहीं है.’’

‘‘हक क्यों नहीं? क्या हम उस के…’’ करीम साहब ने बहुत कोशिश की कि रजिया बीएड में दाखिला न ले, पर नरगिस ने हमेशा की तरह उस की तरफदारी की और वह बीएड करने लगी.

समय बीतता गया. रजिया की ट्रेनिंग पूरी हो गई. कुछ ही दिनों में वह एक स्कूल में अंगरेजी की बड़ी मास्टरनी हो गई.

करीम साहब रजिया के नौकरी करने से परेशान रहने लगे थे और अकसर उन की तबीयत खराब रहने लगी थी. एक दिन जब रजिया स्कूल से आई तो घर में कोई नहीं था. पड़ोसी से पता लगा कि उस के अब्बू की तबीयत खराब हो गई है. लोग उन्हें अस्पताल ले गए हैं.

कुछ ही देर में रजिया अस्पताल पहुंच गई. वहां बड़ी भीड़ जमा थी.

तभी नर्स ने आ कर कहा, ‘‘खून चाहिए. क्या आप में से कोई खून दे सकता है? अस्पताल में खून नहीं है.’’

खून देने के नाम पर सब चुप हो गए. रजिया सब की ओर देख रही थी. रजिया के कानों में एक ही शब्द ‘खून’ बारबार गूंज रहा था.

‘‘खून जितना चाहिए मेरा ले लीजिए, पर मेरे अब्बू को बचा लीजिए.’’

एकएक पल कीमती था. नर्स उसे अंदर ले गई, पर उस का खून दूसरे ग्रुप का था.

करीम साहब का इलाज करने वाले डाक्टरों में सर्जन वसीम भी थे. वे करीम साहब को पहचान गए, जिन के मकान में तकरीबन 23 साल पहले वे अपने मातापिता के साथ रहते थे.

उस समय वसीम और रजिया बहुत छोटे थे, इसलिए अब वे एकदूसरे को नहीं पहचान पाए थे. उन्हीं दिनों वसीम के पिताजी की बदली देहरादून हो गई थी. वसीम की पढ़ाईलिखाई वहीं हुई. वही वसीम अब सर्जन वसीम हो गए थे और रजिया मास्टरनी. उन्होंने रजिया से पूछा, ‘‘ये आप के क्या लगते हैं?’’

‘‘ये मेरे अब्बू हैं.’’

‘‘तो फिर आप का नाम रजिया होगा?’’ सर्जन वसीम ने सवालिया निगाह रजिया पर डाली.

‘‘जी, हां.’’

तभी वसीम ने अपने सहयोगी डाक्टर विमल से कहा, ‘‘डाक्टर, मेरा ब्लड ग्रुप करीम साहब के ब्लड ग्रुप से मिलता है, इसलिए मेरा खून ले लीजिए,’’ कहते हुए डाक्टर वसीम खून देने के लिए करीम साहब के बगल वाले बिस्तर पर लेट गए.

जब खून देने के बाद डाक्टर वसीम बाहर निकले, तो रजिया बड़े आभार से उन्हें देखने लगी और बोली, ‘‘मैं तुम्हारा शुक्रिया किस तरह अदा करूं. तुम ने मेरे अब्बू की जान बचा ली.’’

‘‘अरे, यह तो मेरा फर्ज था,’’ वसीम ने झुकी नजरों से कहा.

‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’ होश में आने पर करीम साहब ने पूछा.

‘‘वसीम. शायद आप ने मुझे पहचाना नहीं? आप रफीक साहब को तो जानते होंगे, जो आप के मकान में रहते थे?’’

‘‘हां. वही रफीक साहब जो सरकारी बैंक में मैनेजर थे?’’

‘‘जी हां, मैं उन्हीं का लड़का हूं.’’

अब सर्जन वसीम बिना रोकटोक उन के घर में आनेजाने लगे. एक शाम चाय पीने के बाद वसीम वहां से चले गए. रजिया ने खिड़की खोल कर सड़क की ओर देखा. सड़क की ज्यादातर बत्तियां बुझ चुकी थीं. सड़क सुनसान थी, जिसे वसीम के जूतों की आहट तोड़ रही थी. पेड़ों, मैदानों और मकानों पर चांदनी छिटक गई थी.

तभी रजिया ने खिड़की के पट बंद कर दिए और सोने की कोशिश करने लगी. लेकिन उस की आंखों के आगे बारबार वसीम का चेहरा नाचने लगता. उस के दिल में वसीम के प्रति प्यार हिलोरे मारने लगा था.

हो भी क्यों न. वसीम थे ही इतने हैंडसम. 5 फुट, 10 इंच का कद, चौड़ा सीना, चेहरामोहरा भी बहुत गजब. कालेज में खूब लड़कियां उन पर मरती होंगी.

एक दिन जब डाक्टर वसीम जाने लगा, तो रजिया ने अकेले में कहा, ‘‘कल मेरे जन्मदिन की पार्टी है. तुम आओगे न?’’

‘‘क्यों नहीं, जरूर आऊंगा और तुम्हें एक खूबसूरत तोहफा दूंगा.’’

यह सुन कर रजिया मुसकरा दी.

पार्टी के दिन अकेले में डाक्टर वसीम ने रजिया से कहा, ‘‘रजिया, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘शादी?’’ रजिया ने चौंक कर कहा, ‘‘क्या यही तोहफा है तुम्हारा?’’

‘‘सिर्फ यह ही नहीं, एक और भी है,’’ कहते हुए डाक्टर वसीम ने सोने की एक अंगूठी रजिया की उंगली में पहना दी.

कुछ ही दिनों में दोनों पक्षों में बातचीत शुरू हो गई. डाक्टर वसीम भी अपने मातापिता की एकलौती औलाद थे, इसलिए वे अपने बेटे के लिए अच्छे खानदान की खूबसूरत और पढ़ीलिखी बहू चाहते थे. राजकुमारी सी रजिया उन्हें एक ही नजर में भा गई.

करीम साहब अपनी रजिया का इतने अच्छे घराने में रिश्ता होने पर फूले नहीं समा रहे थे.

‘‘देखा न आप ने, यह सब रजिया की पढ़ाईलिखाई की वजह से हुआ है,’’ रजिया की अम्मी नरगिस ने करीम साहब से कहा.

करीम साहब बोले, ‘‘तुम ठीक कहती हो. अगर रजिया पढ़ीलिखी नहीं होती, तो किसी डाक्टर से निकाह की बात सोच भी नहीं सकती थी. यह बात सच है कि कोई मजहब पढ़ाईलिखाई के लिए मना नहीं करता.

‘‘उस वक्त मेरी आंखों पर पट्टी पड़ गई थी. अब मेरी आंखें खुल गई हैं. मैं अब सब को सही सलाह दूंगा कि

लड़के के साथसाथ लड़की की तालीम भी जरूरी है, तभी हमारी बिरादरी आगे बढ़ सकेगी.’’

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