टैक्नोलौजी गरीबों, कम पढ़ेलिखे नौजवानों, बेचारों, बेरोजगारों को कैसे पूरी तरह लूट का जरिया बनती जा रही है, इस का सब से बड़ा नमूना है एप्प के जरिए फलफूल रहा व्यापार. इस में एप्प में चलाई जा रही टैक्सी सॢवसें, फूड डिलीवरी सॄवसें, दवाओं को घरघर पहुंचाने की सॢवसें, मेडिकल टेस्ट कराने की सॢवसें, ब्यूचोलियों, कारपेंटरों, इलैक्ट्रिशियनों की सॢवसें शामिल हो चुकी हैं. अपने खुद के नाम से सेवा देने वालों की कमी होती जा रही है और एयर कंडीशंड आफिसों में कंप्यूटरों के आगे बैठे लोग जमीन पर तपती धूप और कड़ाके की ठंड में काम कर रहे लोगों को चूस रहे हैं क्योंकि उन के पास मोबाइल से हर हाथ पहुंचने वाली टैक्नोलौजी है.

इन सेवाओं को देने वालों ने अपने यूनियनों को बनाने की कोशिश शुरू की है हालांकि यह 1857 की अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई की तरह बेमतलब की साबित होगी क्योंकि इन के पास न टैक्नौलौजी न स्ट्रेरेजी.

दुनिया भर में वह गरीब रहेगा जो नई टैक्नीक को नहीं अपनाएगा और नई टैक्नीक की जानकारी अब इसी मंहगी कर दी गई है कि केवल अमीरों के बच्चे ही जा सकते हैं. ये गरीब पहले छोटी दुकानों में या छोटे खोखों में काम करते थे, अब बड़ी, कईकई देशों में फैली कंपनियों के जरिए काम कर रहे हैं क्योंकि कंपनी के पास टैक्नोलौजी है. वे ग्राहकों, उत्पादकों और डिलिवरी करने वालों सब को लूट सकते हैं.

फूड डिलिवरी का एक नमूना इन बिग सेवा देने वालों की मीङ्क्षटग में बताया गया. इन्हें इंसैङ्क्षटव दिया गया कि यदि एक दिन में 23 डिलिवरी करेंगे तो एक्स्ट्रा पैसे मिलेंगे पर कंप्यूटर सिस्टम सेवा बनाया कि वह 20 आर्डरों के बाद नया आर्डर देगा ही नहीं. केवल छुट्टियों और त्यौहार के साल में 10-95 दिन यह एक्स्ट्रा कमाई हो सकती है.

टेक्नोलौजी के जरिए इन बिग सेवा देने वाली कंपनियों ने कोने की किराने की दुकान का धंधा कम कर दिया, पलंबर को बेकार कर दिया, कैमिस्ट खाली रहने लगा, रेस्ट्राओं का बिजनैस कम हो गया, क्लाउड  किचन चल गईं जिस में किचन का नाम है पर रेस्ट्रा है ही नहीं. इन सब की जान डिलिवरी देने वाले, मेडिकल सैंपल लेने वाले, ब्यूटिशियन, जिम, कारपैंटरी की सेवा देने वाले हैं पर न वे दाम तय करते हैं, न क्वालिटी, टैक्नोजौली कंपनी और ग्राहक के बीच में फंस कर रह गए हैं. मोटर साइकलों पर ये घुड़संवार सैनिकों की वह लाइन है जिस पर लड़ाइयां जीती जाती हैं पर मरते सब से ज्यादा इन्हीं में से हैं.

टैक्नोलौजी बुरी नहीं होती पर आमतौर पर हर युग में टैक्नोलौजी का इजाद करने वाले या कंट्रोल करने वालों के राज किया है और उन से काम कराते वाले फक्कड़ गरीब बने रहे हैं. आज अमेजन की डिलिवरी हो, स्वीगी का फूड पार्सल या 1 एमजी की वलड टेङ्क्षस्टग, जो ग्राहक के संपर्क में आता है उसे न सामान के बारे में काम आता है, न खाने के बारे में न टेङ्क्षस्टग की कला के बारे में उबर या ओला वाला ड्राइवर कंपनी की टैक्नोलौजी के दिए गए रूप पर चल कर ग्राहक लेता है और उसी टैक्नोलौजी के बताए रास्ते पर चल कर पहुंचाता है, उसे कंपनी क्या देगी, यह कंपनी की मर्जी है.

बिग सिस्टम ने ‘मैं ने इसे बनाया’ बड़ी तसल्ली का हक हरेक कामगार से छीन लिया है. यह जलन बेबस है, लाचार है.

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