आजादी के लिए किए गए आंदोलन से ले कर बाकी आंदोलनों तक किसान मुख्य धुरी रहा, पर उसे कभी श्रेय नहीं दिया गया. 3 कृषि कानूनों को ले कर पहली बार किसानों की ताकत को स्वीकार किया गया है.
इस से पहले किसानों को तरहतरह से बदनाम करने की जुगत की गई. राकेश टिकैत को सोशल मीडिया पर ‘राकेश डकैत’ लिखा गया. पर एक साल तक लंबी लड़ाई लड़ कर किसानों ने साबित कर दिया कि सही तरह से सरकार का विरोध हो तो कोई भी लड़ाई जीती जा सकती है. ममता बनर्जी की तरह ही राकेश टिकैत ने भाजपा के ‘राजसूय यज्ञ’ को कामयाब होने से रोकने का काम किया.
कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर जब किसान नेता राकेश टिकैत ने आंदोलन शुरू किया, तो उस समय उन को सब से कमजोर नेता माना जा रहा था. यह पंजाब और हरियाणा के किसानों की लड़ाई मानी जा रही थी. उत्तर प्रदेश में इस को केवल पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक ही सीमित माना जा रहा था.
पर, जैसेजैसे किसान आंदोलन आगे बढ़ता गया, वैसेवैसे इस पर किसान नेता चौधरी राकेश टिकैत की पकड़ बढ़ती गई. 26 जनवरी, 2021 में जब किसानों ने ट्रैक्टर रैली की और लालकिले पर झंडा उतारा गया, उस के बाद लगा कि किसान आंदोलन खत्म हो जाएगा. पर इस घटना के बाद से किसान आंदोलन की कमान पूरी तरह से राकेश टिकैत के हाथ आ गई.
राकेश टिकैत के खिलाफ सरकार ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के भाजपा नेता लामबंद होने लगे. इस से दुखी हो कर राकेश टिकैत की आंखों से आंसू निकल गए. राकेश टिकैत ने खुद को मजबूत करते हुए किसान आंदोलन को जारी रखने का ऐलान किया.
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